हेमोराइड जिसे पाइल्स या बवासीर भी कहते हैं एक आम समस्या है जो किसी को भी हो सकती है। इसमें रेक्टम यानी मलाशय के निचले हिस्से की नसों में सूजन आ जाती है जिससे दर्द और खुजली की समस्या होने लगती है और मल में रक्त भी आता है। वैसे तो यह परेशानी किसी को भी हो सकती है, लेकिन गर्भावस्था में बवासीर (Haemorrhoids in pregnancy) का जोखिम अधिक होता है। इसलिए प्रेग्नेंट महिलाओं को इस दौरान अपनी डायट का खास ध्यान रखने की जरूरत है। गर्भावस्था में बवासीर (Haemorrhoids in pregnancy) के लक्षण, कारण और उपचार क्या है जानिए इस आर्टिकल में।
बवासीर क्या है? (What is Hemorrhoids)
रेक्टम (Rectum) यानी (मलाशय) के निचले हिस्से की नसों में सूजन की वजह पाइल्स या बवासीर की समस्या होती है। यह सजून मटर के दाने जितनी छोटी या बड़ी हो सकती है। इसकी वजह से मल त्याग के समय दर्द और खुजली होती है। मल त्याग के समय खून भी आने लगता है और ऐसा लगता है कि पेट साफ नहीं हुआ है। यदि समस्या ज्यादा है तो आपको डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत है।
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गर्भावस्था में बवासीर (Haemorrhoids in pregnancy)
जानकारों के मुताबिक, गर्भावस्था में बवासीर की समस्या आम है खासतौर पर तीसरी तिमाही में। प्रेग्नेंसी के दौरान दो प्रकार के बवासीर दिखाई दे सकते हैं: अंदरूनी बवासीर (Internal haemorrhoids) और बाहरी बवासीर (External haemorrhoids)। अंदरूनी बवासीर में इलाज की जरूरत पड़ती है जिसमें दवाएं और नॉन ऑपरेटिव तरीके शामिल है जैसे रबर बैंड लिगेशन (Rubber band ligation) आदि, जबकि बाहरी बवासीर (External haemorrhoids) में किसी तरह के उपचार की जरूरत नहीं पड़ती है जब तक की कोई असहजता महसूस न हो। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली अन्य समस्याओं की तरह ही पाइल्स की समस्या भी आम है, लेकिन डायट का ध्यान रखकर इससे बचा जा सकता है।
गर्भावस्था में बवासीर के लक्षण (Haemorrhoids symptoms)
पाइल्स का लक्षण इस बात पर निर्भर करता है कि यह अंदरूनी है या बाहरी। दोनों ही स्थितियों में इसके लक्षण अलग होते हैं।
अंदरूनी बवासीर (Internal Haemorrhoids)
यह मलाशय (rectum) के अंदर होता है। इसके लक्षणों में शामिल है।
रेक्टल ब्लीडिंग (Rectal bleeding)- मरीज को मल त्याग के समय रक्त आ सकता है।
प्रोलैप्सड हेमोराइड (Prolapsed haemorrhoid): यह तब होता है जब दबाव के कारण इंटरनल हेमोराइड मलाशय से गिरता है। इस स्थिति में मरीज को दर्द और असहजा महसूस होती है। यदि प्रोलैप्सड हेमोराइड नहीं हो तो इंटरनल हेमोराइड में मरीज को आमतौर पर दर्द नहीं होता है।
गर्भावस्था के दौरान यूटरस (uterus) के विकास के कारण बढ़ता दबाव भी पाइल्स का कारण बन सकता है।
बाहरी बवासीर (External Haemorrhoids)
यह मलाशय के बार होता है और इसके लक्षणों में शामिल है-
- मलाशय में खुजली होना या बैठने पर दर्द होना
- मलाशय के पास दर्दनाक गांठ (hard lumps)
- मल त्याग के समय अधिक दवाब देने पर बवासीर से खून आ सकता है या दर्द हो सकता है
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प्रेग्नेंसी में बवासीर के कारण (Hemorrhoids causes)
प्रेग्नेंसी में होने वाले हार्मोनल (Harmonal) और शारीरिक बदलाव पाइल्स का एक बहुत बड़ा कारण है। इसके अन्य कारणों में शामिल है-
गर्भाशय का विकास- जैसे-जैसे भ्रूण का विकास होता है, गर्भाशय (Uterus)बढ़ने लगता है जिसकी वजह से पेल्विक वेन्स पर और इंटीरियर वेना कावा (वो नस जो निचले अंग से खून लेती है) पर दबाव पड़ता है। इस प्रेशर के कारण शरीर के निचले हिस्से में ब्लड फ्लो (Blood fow) कम हो जाता है और गर्भाशय (Uterus) के नीचे की नसों पर दबाव बढ़ता है और उनमें सूजन आ जाती है। इससे रेक्टम में वैरिकोज वेन्स उत्पन्न हो जाती हैं और बवासीर की समस्या होती है।
कब्ज (Constipation)- कब्ज की समस्या भी प्रेग्नेंसी में पाइल्स (Piles during pregnancy) के लिए जिम्मेदार है। कब्ज की वजह से जब मल सख्त हो जाता है तो मल त्याग के समय अधिक दबाव देना पड़ता है जिससे बवासीर की समस्या बढ़ जाती है, क्योंकि इससे मलाशय (रेक्टम) पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का बढ़ना- प्रेग्नेंसी में प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्राव अधिक होता है और कब्ज के लिए यही हार्मोन जिम्मेदार होता है।
पाइल्स हिस्ट्री- जिन महिलाओं को पहले से पाइल्स की समस्या होती है प्रेग्नेंसी के दौरान इसके बढ़ने का जोखिम अधिक होता है। प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही या लेबर के दूसरे चरण में बवासीर होना आम है। डिलीवरी के बाद भी बवासीर के कारण ब्लीडिंग की समस्या हो सकती है।
प्रेग्नेंसी में पाइल्स का उपचार (Treatment for haemorrhoids)
पाइल्स की समस्या होने पर तुरंत इलाज करवाने की जरूरत वरना स्थिति गंभीर हो सकती है जैसे- तेज दर्द और ब्लीडिंग के कारण एनीमिया की समस्या हो सकती है। पाइल्स के उपचार के लिए आप कुछ घरेलू तरीके और जीवनशैली में बदलाव अपना सकते हैं।
घरेलू उपचार
इन घरेलू तरीकों को अपनाकर पाइल्स की समस्या से राहत पाई जा सकती है।
- ऐसे वाइप्स और पैड्स का इस्तेमाल करें जिसमें विच हैजल हो।
- सौम्य और फ्लश किए जाने योग्य वाइप्स का इस्तेमाल करें।
- गुनगुने पानी के टब में कुछ देर बैठें। इससे दर्द और जलन से राहत मिलेगी। इसके अलावा वार्म बाथ लें। पानी में 10 से 15 तक अपने शरीर को डुबाकर रखें इससे आराम मिलेगा और ब्लड सर्कुलेशन भी बढ़ता है।
- प्रभावित हिस्से पर आइस पैक लगाएं। यह सूजन और जलन को कम करने में मदद करता है। ऐसा दिन में कई बार कर सकते हैं।
- ज्यादा देर तक बैठे नहीं और एनस (anus) पर अतिरिक्त दबाव न डालें।
- खूब पानी पीएं और फाइबर से भरपूर चीजें खाएं इससे मल सख्त नहीं होगा।
- मल त्याग के समय बहुत दबाव न डालें और टॉयलेट में लंबे समय तक न बैठें।
- मसल्स को मजबूत बनाने के लिए कीगल एक्सरसाइज (Kegel exercises) करें।
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प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करें। डॉक्टर आपको सुरक्षित दवा या अन्य तरीके बताएगा पाइल्स के उपचार के लिए। विज हेजल (Witch hazel) भी पाइल्स का होमोपैथिक इलाज है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान इसके इस्तेमाल से पहले डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें।
बवासीर के अन्य उपचार
घरेलू तरीके के अलावा पाइल्स के उपचार के अन्य तरीकों में शामिल है।
टॉपिकल ट्रीटमेंट (Topical treatment)- एनस (Anus) एरिया में सूजन और दर्द को कम करने के लिए डॉक्टर एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेटरी मलहम की सलाह डॉक्टर दे सकते हैं।
स्टूल सॉफ्टनर (Stool softner)- चूकि मल का सख्त होना पाइल्स का एक बहुत बड़ा कारण है, इसलिए डॉक्टर आपको स्टूल सॉफ्टनर लेने की सलाह दे सकता है, ताकि कब्ज की दिक्कत ना हो। प्रेग्नेंसी के दौरान हमेशा डॉक्टर की सलाह पर ही इसका इस्तेमाल करें।
ओरल फ्लेवोनोइड्स (Oral flavonoids)- बवासीर के उपचार के लिए डॉक्टर ओरल मेडिसिन (oral medicine) के रूप में फ्लेवोनोइड (flavonoids) (माइक्रोनाइज्ड डायोस्मिन 90% और हेसिपरिडिन 10%) की सलाह दे सकता है। एक रिसर्च के मुताबिक, प्रेग्नेंसी के दौरान भी यह सुरक्षत है।
रबर बैंड लिगेशन (Rubber band ligation)- बैंडिंग के दौरान एक छोटा रबर बैंड हेमोराइड के बेस पर लगाया जाता है। यह बैंड हेमोराइड में ब्लड फ्लो को रोकता है जिससे हेमोराइड (Hemorrhoid) अपने आप गिर जाता है। इस प्रक्रिया में 10 से 12 दिन का समय लग सकता है। इस प्रोसेस के दौरान स्कार टिशू बन जाती है जो हेमोराइड को दोबारा उसी जगह पर होने से रोकती है।
स्क्लेरोथेरेपी (Sclerotherapy)- इसमें एक केमिकल सॉल्शूशन (chemical solution) को सीधे बवासीर (Hemorrhoid) में डाला जाता है। जिससे यह छोटा होकर स्कार टिशू बनाता है। हालांकि इस उपचार के बाद संभव है कि बवासीर दोबारा हो जाए।
हेमोरोइडक्टमी (Hemorrhoidectomy)- बवासीर निकालने की यह सर्जिकल प्रक्रिया है। इसके साथ कई जोखिम जुड़े है जिसमें जनरल एनिस्थिसिया (general anesthesia), एनस के मांसपेशियों को नुकसान, अधिक दर्द, रिकवरी में अधिक समय लगना आदि शामिल है। यही वजह है कि सिर्फ गंभीर मामलों में ही इसकी सलाह दी जाती है।
प्रेग्नेंसी में पाइल्स से कैसे बचें? (Hemorrhoids prevention during pregnancy)
पाइल्स की समस्या का आपकी डायट और लाइफस्टाइल से गहरा संबंध है। इसलिए डायट में सुधार करके काफी हद तक इस समस्या से बचा जा सकता है। प्रेग्नेंसी में पाइल्स की समस्या से बचने के उपाय-
- जितना ज्यादा हो सके लिक्विड चीजों का सेवन करें और कम से कम 10-12 ग्लास पानी पीएं।
- फाइबर (Fiber) से भरपूर साबूत अनाज, फल और सब्जियां खाएं। कब्ज की समस्या से निपटने में फाइबर बहुत मददगार होता है।
- आप फाइबर सप्लीमेंट्स का भी इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन डॉक्टर की सलाह पर
- टॉयलेट में ज्यादा देर तक न बैठें, इससे बवासीर की समस्या बढ़ सकती है।
- जब भी मल की इच्छा हो तो इसे दबाए नहीं, तुरंत टॉयलेट जाएं।
- जितना हो सके चलती-फिरती रहें, एक ही पोजिशन में ज्यादा देर तक न बैठें।
कब जाएं डॉक्टर के पास?
यदि डायट में बदलाव और घरेलू तरीके आजमाने के बाद भी समस्या कम नहीं होती है और बवासीर में तेज दर्द होता है, तो आपको डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत है। वैसे भी प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी तरह की दवा बिना डॉक्टर की सलाह के लेना खतरनाक हो सकता है।
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क्या गर्भावस्था के बाद पाइल्स की समस्या खत्म हो जाती है?
कई मामलों में डिलीवरी के बाद (After delivery) बवासीर की समस्या बिना किसी उपचार के अपने आप ठीक हो सकी है, क्योंकि डिलीवरी के बाद आपका हार्मोन लेवल, बल्ड वॉल्यूम और इंट्रा एबडॉमिनल प्रेशर कम हो जाता है। आमतौर पर प्रेग्नेंसी (Pregnancy) की तीसरी तिमाही या बच्चे के जन्म के तुरंत बाद पाइल्स की समस्या हो सकती है।
गर्भावस्था में बवासीर (Haemorrhoids in pregnancy) की समस्या से बचने के लिए आपको हेल्दी लाफस्टाइल (Healthy lifestyle)और फाइबर (Fiber) से भरपूर चीजें खाने की जरूरत है। साथ ही खूब पानी और अन्य तरल पदार्थों का सेवन करें। इन उपायों से कब्ज नहीं होगा और जब कब्ज की समस्या नहीं होगी तो बवासीर का जोखिम भी घट जाता है।
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