भारत में ज्यादातर ब्रीच बेबी (उल्टे बच्चे) का जन्म सी-सेक्शन की मदद से किया जाता है। वहीं यूनाइटेड स्टेट्स में 84 प्रतिशत ब्रीच बेबी की डिलिवरी भी सर्जरी से की जाती है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि ब्रीच बेबी की डिलिवरी कैसे की जानी चाहिए? जिससे मां और शिशु दोनों की सेहत को नुकसान न हो।
ब्रीच बेबी (Breech baby) क्या है?
शिशु के जन्म के समय सिर के बजाय पैर पहले बाहर आए तो ऐसी स्थिति को ब्रीच पुजिशन कहते हैं और शिशु को ब्रीच बेबी। ब्रीच बेबी को सामान्य भाषा में उल्टा बच्चा भी कहते हैं। हालांकि गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में बच्चे के पैर नीचे की ओर ही होते हैं लेकिन, धीरे-धीरे सिर नीचे की ओर आ जाता है।
ब्रीच बेबी होने के क्या हैं कारण?
ब्रीच बेबी निम्नलिखित कारणों से हो सकते हैं। जैसे-
- अगर महिला कई बार गर्भवती हो चुकी हो, तो ऐसी स्थिति में गर्भ में शिशु का पुजिशन उल्टा हो सकता है।
- गर्भ में एक से ज्यादा शिशु होने पर बच्चे की पुजिशन उल्टी हो सकती है और ऐसे स्थिति में ब्रीच बेबी डिलिवरी होती है।
- गर्भवती महिला पहले किसी गर्भावस्था में समय से पहले शिशु को जन्म दे चुकी हो।
- गर्भवती महिला के यूट्रस का शेप ठीक नहीं होने की स्थिति में बच्चा गर्भ में उल्टा हो सकता है या रह सकता है।
- गर्भवती महिला का प्लेसेंटा प्रीविया होने की स्थिति में ब्रीच बेबी डिलिवरी संभव होता है।
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ब्रीच बेबी डिलिवरी के दौरान किन-किन बातों का ध्यान रखें?
रिसर्च के अनुसार मां और शिशु दोनों की सेहत को ध्यान में रखकर डॉक्टर सिजेरियन डिलिवरी करते हैं। दरअसल जब प्रेग्नेंसी के आखिरी दिनों में शिशु का सिर वजायना की ओर नहीं आ पाता है, तो ऐसी स्थिति में नॉर्मल डिलिवरी की बजाय सिजेरियन ही करनी पड़ती है। हालांकि सिजेरियन डिलिवरी की वजह से परिवार के लोगों की परेशानी बढ़ जाती है लेकिन, हेल्थ एक्सपर्ट गर्भ में पल रहे शिशु और जन्म देने वाली मां की परेशानी को समझते हुए ब्रीच बेबी डिलिवरी के लिए सिजेरियन ही सही विकल्प मानते हैं।
गर्भ में पल रहे शिशु का सिर प्रेग्नेंसी के 36वें हफ्ते से 37वें हफ्ते में नीचे की ओर आ जाता है। वैसे डिलिवरी के दौरान बच्चे का सिर ही सबसे पहले बाहर आना चाहिए। तकरीबन 100 बच्चों में 4 बच्चे ब्रीच होते हैं। वैसे बच्चे जिनका जन्म उल्टा होता है उनमें नॉर्मल डिलिवरी के वक्त ज्यादा परेशानी हो सकती है। गर्भ में पल रहे शिशु का सिर वजायना की ओर नहीं आने के कारण शिशु को ठीक तरह से ऑक्सिजन नहीं मिल पाती है जो लाइफ थ्रेटनिंग भी हो सकती है। इसलिए डॉक्टर पहले से या डिलिवरी के दौरान ब्रीच बेबी की डिलिवरी सिजेरियन ही करते हैं। अगर पहले से ब्रीच बेबी डिलिवरी सिजेरियन प्लान तय है तो प्रेग्नेंसी के 39वें हफ्ते में शिशु की डिलिवरी की जा सकती है।
डिलिवरी होने के बाद मां का ख्याल कैसे रखें?
ब्रीच बेबी डिलिवरी के बाद निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें। जैसे-
- नई बनी मां को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए
- पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए, अस्पताल से घर वापस आने के पहले डॉक्टर से यह जरूर समझें की उन्हें किस तरह के खाद्य पदार्थों की ज्यादा जरूरत है। जैसे खाने की सलाह दें वैसा ही खाना ब्रीच बेबी डिलिवरी के बाद खाएं। ऐसा करने से आप जल्द स्वस्थ हो सकती हैं।
- सर्जरी की जगह का ध्यान रखें और इंफेक्शन से बचें, टांके वाली जगह की सफाई रोजाना करें। अगर टांके वाली जगह से पस आये तो इसकी जानकारी जल्द से जल्द डॉक्टर को दें।
- शिशु को स्तनपान करवाने के दौरान लाइफ पार्टनर या फिर घर में मौजूद किसी महिला की मदद लें। इससे टांके पर दवाब नहीं पड़ेगा।
- डॉक्टर ने अगर कंप्लीट बेड रेस्ट की सलाह नहीं दी है तो नियमित रूप से समतल जगहों पर वॉक करें। वॉक करने से आप अच्छा महसूस करेंगी और आप अपने आपको एक्टिव भी रखने में सफल रहेंगी।
- परेशानी महसूस होने पर इसे नजरअंदाज न करें और डॉक्टर से संपर्क करें।
- ब्रीच बेबी डिलिवरी के दौरान और डिलिवरी के बाद भी ऊपर बताई गई बातों को ध्यान रखकर मां और शिशु दोनों हेल्दी रह सकते हैं।
डिलिवरी के लिए हॉस्पिटल जाते वक्त इन बातों का ध्यान रखें:
- मैटरनिटी पैड्स लेकर जाएं।
- कॉटन और ढ़ीले कपड़े अपने पास रखें।
- नवजात के लिए मौसम के अनुसार कपड़े अवश्य रखें।
- वेट टिशू वाइप्स (सिजेरियन डिलिवरी के बाद महिला तुरंत स्नान नहीं कर सकती हैं। इसलिए वेट टिशू वाइप्स की जरूरत पड़ती है)
- ब्रीच बेबी डिलिवरी अगर डॉक्टर पहले से तय करते हैं, तो सर्जरी के कुछ घंटे पहले खाने-पीने की सलाह नहीं दी जाती है।
इन बातों को ध्यान रखने के साथ-साथ डिलिवरी से पूर्व अपने डॉक्टर या मिडवाइफ्स से इस बारे में अवश्य पूछ लें की आपको डिलिवरी के बाद किन-किन चीजों की आवश्यक पड़ सकती है।
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