के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar
सावधानी हटी दुर्घटना घटी… दरअसल हम बात कर रहें हैं गर्भावस्था के दौरान गिरने की। गर्भवस्था के शुरुआत से ही गर्भवती महिला खुद और परिवार के अन्य सदस्य भी सतर्क रहते हैं कि गर्भवती महिला को किसी भी तरह की कोई परेशानी न हो। बेगूसराय (बिहार) की रहने वाली 26 वर्षीय किम्मी पंडित गर्भवती थीं और प्रेग्नेंसी में गिरना उनके लिए बड़ी मुसीबत बन गई। दरअसल गर्भावस्था के आखरी वक्त में चक्कर आने की वजह से किम्मी गिर गईं। ऐसी स्थिति में डिलिवरी भी जल्दी हो गई।
डिलिवरी के बाद पता चला की नवजात को सीने में चोट लग गई है। हालांकि डॉक्टर्स की टीम ने तुरंत बच्चे का इलाज शुरू किया और अब वह हेल्दी है और उसे कोई परेशानी भी नहीं है। वैसे ये सब किम्मी के लिए एक सदमे से कम नहीं था लेकिन, समय रहते डॉक्टर ने मां और शिशु दोनों को स्वस्थ कर दिया।
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प्रेग्नेंसी सिर्फ बॉडी स्ट्रक्चर को नहीं बल्कि गर्भवती महिला के चलने, उठने-बैठने जैसी अन्य एक्टिविटी पर असर डालता है। इस दौरान शरीर का वजन भी बढ़ता जाता है और बॉडी को बैलेंस करने में परेशानी होती है, जिससे प्रेग्नेंसी में गिरना संभव हो सकता है। Pennstate कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट के अनुसार 4000 गर्भवती महिलाओं में 27 प्रतिशत महिलाएं प्रेग्नेंसी में गिर गईं हैं। हालांकि एमनियॉटिक फ्लूइड के वजह से शिशु गर्भ में सुरक्षित रहता है लेकिन, अत्यधिक दबाव या चोट शिशु को नुकसान पहुंचा सकती है।
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कोई भी महिला जैसे ही गर्भधारण करती है, यूट्रस में फीटस का निर्माण शुरू हो जाता है। गर्भ में पल रहा फीटस एमनियॉटिक फ्लूइड से पूरी तरह ढ़का हुआ रहता है। इसी एमनियॉटिक फ्लूइड से ही गर्भ में पल रहा भ्रूण पूरी तरह से सुरक्षित रहता है और यहीं से ही शिशु को संपूर्ण पोषण मिलता है। जिससे गर्भ में उसका विकास बेहतर तरीके से हो पाता है। एमनियॉटिक फ्लूइड गर्भवती महिला के शरीर से बनता है और फिर यह शिशु तक पहुंचता है। गर्भधारण के 12 दिनों के बाद ही एमनियॉटिक फ्लूइड बनने लगता है। प्रेग्नेंसी के आधे समय तक एमनियॉटिक फ्लूइड मां के शरीर में मौजूद पानी से बनता है। इसके बाद गर्भ में पल रहे शिशु के यूरिन से एमनियॉटिक फ्लूइड बनने लगता है। एमनियॉटिक फ्लूइड गर्भ में पल रहे शिशु को पोषण प्रदान करने के साथ-साथ उसे बाहरी चोट से भी बचाता है।
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प्रेग्नेंसी में गिरना यूट्रस पर नकारात्मक असर नहीं डाल सकता है लेकिन, अगर चोट तेज लगी हो तो इससे परेशानी हो सकती है। जैसे-
तकरीबन 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं को प्रेग्नेंसी में गिरना उन्हें परेशानी में डाल देता है और उन्हें इलाज की जरूरत पड़ती है।
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अगर हल्की-फुल्की चोट लगी है, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है लेकिन, चोट तेज लगी है डॉक्टर से जल्द से जल्द मिलना जरूरी है। जैसे-
ऊपर बताई गई परेशानियों के साथ-साथ अन्य परेशानी होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
कोई भी व्यक्ति सोच-समझकर नहीं गिरता है लेकिन, इससे बचा जा सकता है। इसलिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें-
इन सभी के साथ ऐसी कोई भी फिजिकल एक्टिविटी न करें जिससे गिरने का खतरा हो।
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प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर से समय-समय पर मिलते रहें। इससे आपका शिशु गर्भ में कितना फिट है इसकी जानकारी मिलती रहेंगी और अगर कोई कमी या परेशानी है तो उसका इलाज भी किया जा सकता है। प्रेग्नेंसी में गिरना इस बारे में जब हमने पुणे की रहने वाली 31 साल की सुषमा गौरव से पूछा तो उनका कहना है कि ‘जब मैं गर्भवती थीं तो मैं गिरी नहीं थी लेकिन, मुझे चक्कर आने की परेशानी ज्यादा होती थी। ऐसे में मुझे इस बात का डर लगने लगा की मैं कहीं गिर न जाऊं। मैंने अपनी परेशानी डॉक्टर को बताई तो उन्होंने मुझे कहा की मैं अपने मन से गिरने की बात निकाल दूं और अपने आहार पर और अपने आपको व्यस्त रखें। मुझे चक्कर आने की परेशानी भी कुछ महीनों में ठीक हो गई।’
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपने आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। गर्भवती महिला को अपने आहार में खास तौर से हरी सब्जियां, साग, मौसमी फल, साबुत अनाज, अंकुरित अनाज, दूध, दही, अंडें या पनीर का सेवन करना चाहिए। गर्भवती महिला को गर्भवस्था के दौरान वर्कआउट या योगा भी करना चाहिए। हालांकि इस दौरान यह ध्यान रखें की आप किस फिटनेस एक्सपर्ट या योगा एक्सपर्ट की निगरानी में रहें। अगर गर्भवती महिला एक्सरसाइज या योगा करती हैं, तो शुरू करने के पहले अपने हेल्थ एक्सपर्ट से एक बार अवश्य सलाह लेलें।
हमें उम्मीद है कि यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा। अगर आप प्रेग्नेंसी में गिरना या गर्भावस्था के दौरान से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा।
डिस्क्लेमर
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