दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक शिशु को जन्म देने वाली 32 वर्षीय रिहाना ने भी अपना अनुभव शेयर किया। ‘उस वक्त मैं दिल्ली के मालवीय नगर अस्पताल में थीं। डॉक्टर ने मुझे सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। रात 11 बजे मैं वहां के जच्चा-बच्चा विभाग में भर्ती हुई। वे बताती हैं कि मुझे दो दिन हल्का-हल्का दर्द का अहसास हो रहा था। मुझे डिलिवरी पेन इतना अधिक नहीं था। शाम 4 बजे से ही हल्का-हल्का दर्द शुरू हुआ और रात 12:30 बजे मैंने शिशु को जन्म दिया। यह डिलिवरी एकदम सामान्य थी। डॉक्टर ने सिर्फ 2-3 टांके लगाए थे। अगले दिन तक मैं 2-3 घंटों तक चल नहीं पाई थी।’
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मां और शिशु दोनों का होता है जन्म
डिलिवरी पेन को लेकर हमने एक वरिष्ठ महिला चिकित्सक से बात की। उन्होंने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘डिलिवरी में सिर्फ एक शिशु का ही जन्म नहीं होता बल्कि एक मां का भी दूसरा जन्म होता है। समाज में महिलाओं को हमेशा कमतर आंका जाता है। शिशु को जन्म देने में कई बार महिला की जान भी चली जाती है।’
डिलिवरी के वक्त महिलाओं की मौत होना कोई आम बात नहीं है। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं। कुछ महिलाएं कुपोषित होती हैं, जिनके शरीर में इतनी ताकत नहीं होती है जो इसका सामना कर पाएं।
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दर्द की सीमा का आंकलन मुश्किल
2010 में एनसीबीआई में ‘ईरानियन जर्नल ऑफ नर्सिंग एंड मिडवाइफ रिसर्च’ नाम से प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, पिछली असामान्य प्रेग्नेंसी, जानकारी की कमी और खराब अनुभव प्रसव पीढ़ा के दर्द को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। वहीं, पिछली सामान्य डिलिवरी, आत्मविश्वास और यदि महिला डिलिवरी के दौरान अच्छा और आरामदेह महसूस करती हैं, तो दर्द को सहने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है। चिकित्सीय आधार पर दर्द का आंकलन मुश्किल है। ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर महिलाओं का अनुभव ही इसके बारे में ज्यादा जानकारी दे सकता है। इस शोध में 288 स्वीडिश महिलाओं को शामिल किया गया। इसमें 28 प्रतिशत महिलाओं के लिए प्रसव पीढ़ा एक सकारात्मक अनुभव रहा। वहीं, 41 प्रतिशत महिलाओं का अनुभव अभी तक का सबसे डरावना एक्सपीरियंस था। उन महिलाओं के मुताबिक, यह दर्द अभी तक के सभी अनुभवों से सबसे ज्यादा भयानक था। इसी दर्द के डर की वजह से ज्यादातर महिलाएं सिजेरियन डिलिवरी कराना ज्यादा पसंद करती हैं। ईरान में 37.2 प्रतिशत महिलाएं प्रसव पीढ़ा के डर से सिजेरियन डिलिवरी कराती हैं।