डिलिवरी पेन की कहानी ‘डिलिवरी के वक्त मैं एकदम बेहोश थी। एक दिन पहले से ही मुझे हल्के-हल्के दर्द का अहसास हो रहा था। मेरे पति ने मुझे तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया। इसके अलगे दिन रात तक यह दर्द जारी रहा। वहीं, जब डिलिवरी का वक्त आया, तो मानो ऐसा लग रहा था कि अब मेरी जान नहीं बचेगी। मुझे नहीं लगता कि कोई महिला डिलिवरी के वक्त होने वाले दर्द को शब्दों में बयां कर पाएगी।’ यह बात 26 वर्षीय राजकुमारी ने हैलो स्वास्थ्य से बातचीत करते हुए डिलिवरी के जुड़े अनुभवों को शेयर करते हुए कही।
राजकुमारी मूलतः उत्तर प्रदेश की निवासी हैं। वे फिलहाल अपने परिवार के साथ दक्षिणी दिल्ली में रहती हैं। वह एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आती हैं, जहां पर इन सारी चीजों के बारे में खुलकर बातचीत करने से परहेज किया जाता है। राजकुमारी ने दो महीने पहले ही एक शिशु को जन्म दिया है।
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मां बनने का अहसास एकदम था अलग
अपने अनुभव को साझा करते हुए वे आगे बताती हैं कि डिलिवरी के दो घंटे बाद डॉक्टर ने मुझे बच्चे से मिलाया। उस वक्त की फीलिंग एकदम अलग थी। खुशी के साथ ही एक अजीब सा अनुभव हो रहा था। विशेषज्ञों के मुताबिक, डिलिवरी के बाद कुछ ऐसी महिलाएं होती हैं, जिनका व्यवहार एकदम बदल जाता है।
इस पर दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनोकॉलोजिस्ट डॉक्टर एस के सपरा ने कहा, ‘मैंने अपने करियर में कई ऐसे मामले देखें हैं, जिनमें डिलिवरी के बाद महिलाएं डिप्रेशन में चली जाती हैं।
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अलग-अलग होता है डिलिवरी पेन का अहसास
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक शिशु को जन्म देने वाली 32 वर्षीय रिहाना ने भी अपना अनुभव शेयर किया। ‘उस वक्त मैं दिल्ली के मालवीय नगर अस्पताल में थीं। डॉक्टर ने मुझे सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। रात 11 बजे मैं वहां के जच्चा-बच्चा विभाग में भर्ती हुई। वे बताती हैं कि मुझे दो दिन हल्का-हल्का दर्द का अहसास हो रहा था। मुझे डिलिवरी पेन इतना अधिक नहीं था। शाम 4 बजे से ही हल्का-हल्का दर्द शुरू हुआ और रात 12:30 बजे मैंने शिशु को जन्म दिया। यह डिलिवरी एकदम सामान्य थी। डॉक्टर ने सिर्फ 2-3 टांके लगाए थे। अगले दिन तक मैं 2-3 घंटों तक चल नहीं पाई थी।’
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मां और शिशु दोनों का होता है जन्म
डिलिवरी पेन को लेकर हमने एक वरिष्ठ महिला चिकित्सक से बात की। उन्होंने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘डिलिवरी में सिर्फ एक शिशु का ही जन्म नहीं होता बल्कि एक मां का भी दूसरा जन्म होता है। समाज में महिलाओं को हमेशा कमतर आंका जाता है। शिशु को जन्म देने में कई बार महिला की जान भी चली जाती है।’
डिलिवरी के वक्त महिलाओं की मौत होना कोई आम बात नहीं है। इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं। कुछ महिलाएं कुपोषित होती हैं, जिनके शरीर में इतनी ताकत नहीं होती है जो इसका सामना कर पाएं।
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दर्द की सीमा का आंकलन मुश्किल
2010 में एनसीबीआई में ‘ईरानियन जर्नल ऑफ नर्सिंग एंड मिडवाइफ रिसर्च’ नाम से प्रकाशित एक शोध के मुताबिक, पिछली असामान्य प्रेग्नेंसी, जानकारी की कमी और खराब अनुभव प्रसव पीढ़ा के दर्द को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। वहीं, पिछली सामान्य डिलिवरी, आत्मविश्वास और यदि महिला डिलिवरी के दौरान अच्छा और आरामदेह महसूस करती हैं, तो दर्द को सहने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है। चिकित्सीय आधार पर दर्द का आंकलन मुश्किल है। ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर महिलाओं का अनुभव ही इसके बारे में ज्यादा जानकारी दे सकता है। इस शोध में 288 स्वीडिश महिलाओं को शामिल किया गया। इसमें 28 प्रतिशत महिलाओं के लिए प्रसव पीढ़ा एक सकारात्मक अनुभव रहा। वहीं, 41 प्रतिशत महिलाओं का अनुभव अभी तक का सबसे डरावना एक्सपीरियंस था। उन महिलाओं के मुताबिक, यह दर्द अभी तक के सभी अनुभवों से सबसे ज्यादा भयानक था। इसी दर्द के डर की वजह से ज्यादातर महिलाएं सिजेरियन डिलिवरी कराना ज्यादा पसंद करती हैं। ईरान में 37.2 प्रतिशत महिलाएं प्रसव पीढ़ा के डर से सिजेरियन डिलिवरी कराती हैं।
डिलिवरी पेन को कम करने के लिए ब्रिदिंग तकनीक
सांस के प्रति संवेदनशील होने से आपको अपने शरीर में संवेदनाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलती है। यह जटिलताओं को रोकने के लिए प्रसव के दौरान संकुचन के बारे में अधिक जागरूक होने में आपकी मदद कर सकता है। श्वास भी आपको डिलिवरी पेन से राहत देने के लिए एक अच्छा ऑप्शन है, जो आपको शांत रखने में मदद कर सकता है, खासकर जब दर्द बढ़ जाता है। प्रसव के दौरान सांस लेने की तकनीक उतनी ड्रैमेटिक नहीं होती है, जो टीवी या मूवीज में दिखती है। डिलिवरी पेन से बचने के लिए जरूरी है कि आप गहरी सांस लें। इसके अलावा डिलिवरी के दौरान मंत्रों का उच्चारण और किसी एक तस्वीर पर फोकस करके ध्यान केंद्रित करने से डिलिवरी के दौरान डिलिवरी पेन में राहत मिल सकती है।
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कॉन्पलीमेंटरी थेरेपीस से भी मिल सकती है डिलिवरी में पेन में राहत
ब्रिदिंग तकनीक के अलावा हल्का मेडिटेशन भी डिलिवरी पेन में मदद करता है। इसके अलावा कुछ थेरेपेटिक तकनीक से रिलेक्सिंग माहौल बनाकर भी डिलिवरी पेन से राहत मिल सकती है। ऐसी ही थेरेपीज हैं:
- अरोमाथेरेपी
- मसाज
- एक्यूपंक्चर
- योग
कभी-कभी ब्रीदिंग तकनीक और इस तरह की थेरेपीज से भी डिलिवरी पेन में राहत देने के लिए काफी नहीं होते हैं। लेकिन इपीडुरल लेने से पहले महिलाओं को डिलिवरी पेन के लिए अन्य तकनीकें भी अपनानी चाहिए। जैसे कि
ऐसे में आप नर्स से आग्रह कर सकते हैं कि वह आपकी पुजीशन को बदलने में आपकी सहायता करें। इससे आपका दिमाग डिस्ट्रेक्ट हो जाएगा और आपको डिलिवरी पेन से राहत मिल सकती है। लेबर बॉल या बर्थिंग बॉल पर लेटने से भी आपको डिलिवरी पेन से राहत मिल सकती है। नहाने से भी राहत मिल सकती है। इसके अलावा पीठ पर आइस या हीट पैक का इस्तेमाल करने से भी राहत मिलती है। प्रसव से पहले चलने से भी आराम मिल सकता है।
हमें उम्मीद है कि यह आर्टिकल आपको पसंद आया होगा। डिलिवरी के समय और उसके बाद सर्तकता रखना जरूरी है। ताकि बच्चा और मां दोनों हेल्दी रह सकें। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह लें।
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