प्रेग्नेंसी का समय मां के लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक बदलावों के साथ-साथ उत्साह व खुशी से भरा होता है। अधिकतर महिलाएं इस सुनहरे वक्त को एन्जॉय करती हैं। हालांकि, प्रसव के बाद आपकी जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। अपने नवजात शिशु के साथ व्यस्त होने और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखने वाले इस पीरियड को पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) कहा जाता है। इस पीरियड को प्रसवोत्तरकाल (Puerperium) भी कहते हैं। यह पीरियड भी गर्भावस्था की तरह ही बेहद खास होता है। जानिए पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के बारे में विस्तार से
क्या है पोस्टपार्टम पीरियड? (What is Postpartum Period)
पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) को शिशु के जन्म से लेकर उसके बाद के 6 हफ्तों तक के समय को माना जाता है। यह समय एक तरह से एडजस्टमेंट का समय है। आप इस दौरान नई मां के रूप में एडजस्टमेंट कर रही होती हैं। इस बात का ध्यान रखें कि प्रेग्नेंसी और शिशु की डिलीवरी के कुछ प्रभाव लंबे समय तक रहते हैं। पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) में आप मानसिक,भावनात्मक और शारीरिक रूप से रिकवर कर रही होती हैं। प्रसवोत्तरकाल (Puerperium) में महिलाएं कुछ जटिलताओं को लेकर भी अधिक संवेदनशील होती हैं, जैसे इंफेक्शन (Infection), थ्रोम्बोसिस (Thrombosis), अपर्याप्त प्रसवोत्तर रिकवरी (Insufficient Postpartum Recovery) और पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression) आदि। जानिए क्या हैं पोस्टपार्टम पीरियड के चरण (Phases of Postpartum Period)
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क्या हैं पोस्टपार्टम पीरियड के चरण? (Phases of Postpartum Period)
पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) यानी शुरू के चालीस दिन। यह वो समय होता है जिसे अधिकतर महिलाएं घर में समय बिताती हैं। इन दिनों महिलाओं को पूरा समय आराम करने की सलाह दी जाती है ताकि जल्दी रिकवरी हो सके। जानिए, पोस्टपार्टम पीरियड के चरण (Phases of Postpartum Period) कौन से हैं और क्या बदलाव होते हैं इस दौरान:
पहला चरण : पहले से सातवां दिन (Phase 1 : 1st to 7th Day)
शारीरिक बदलाव (Physical Changes) :पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के पहले फेज में अगर आप वजाइनल डिलीवरी से गुजरी हैं तो वजाइना में दर्द होना सामान्य है। इसके साथ ही ब्लीडिंग भी होती है। इस दौरान गर्भाशय अपनी शुरुआती स्थिति में सिकुड़ना शुरू हो जाता है। अगर आपकी सिजेरियन डिलीवरी हुई है, तो मूवमेंट में परेशानी हो सकती है।
मानसिक बदलाव (Mental Changes): इस दौरान हार्मोन्स में बदलाव सामान्य है। आप अभी परेशान और भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस कर सकती हैं।
दूसरा चरण : सातवें से चौदहवां दिन (Phase 2 :7th to 14th Day)
शारीरिक बदलाव (Physical Changes) : पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के दूसरे हफ्ते में भी आप वेजाइनल ब्लीडिंग महसूस कर सकती हैं। हालांकि, यह ब्लीडिंग अधिक नहीं होनी चाहिए। आप वजाइना में खुजली भी महसूस कर सकती हैं। अगर आपका सिजेरियन हुआ है। तो आप पहले हफ्ते की तुलना में चलने फिरने में आसानी महसूस करेंगी। इसके साथ ही आपको घाव वाले स्थान पर खुजली हो सकती है।
मानसिक बदलाव (Mental Change) : इस दौरान बेबी ब्लूज होना सामान्य है। लेकिन यह प्रसवोत्तर अवसाद से अलग होता है। इस दौरान आप दुख और एंग्जायटी से बाहर आने लगेंगी। अगर आपको सोने,खाने में समस्या हो रही है, आप अपने शिशु से बॉन्ड नहीं बना पा रही हैं या आपके मन में सुसाइडल विचार आ रहे हैं तो डॉक्टर की सलाह लें।
चरण 3 : अंतिम के दिन (Phase 3 : Last Days)
शारीरिक बदलाव (Physical Changes): इस समय गर्भाशय अपने पुराने आकार में वापस आ जाता है।अब आप आराम से व्यायाम कर सकती हैं और सेक्शुअल गतिविधियों में इन्वॉल्व हो सकती हैं।
मानसिक बदलाव (Mental Changes) : इस दौरान भी आपका थका हुआ महसूस करना सामान्य है। लेकिन, अगर आप तनाव या एंग्जायटी महसूस कर रहे हैं, तो डॉक्टर से सलाह जरूरी है।
पोस्टपार्टम पीरियड के दौरान मेंस्ट्रुएशन (Menstruation/period during postpartum period)
प्रसव के बाद जहां आपके शरीर को रिकवर को कुछ वक्त लगता है। वहीं अधिकतर महिलाएं प्रसव के बाद अपने पीरियड्स को लेकर भी चिंतित रहती हैं। नौ महीने पीरियड ना आने से एक तरह से इस मामले पर निश्चिंत रहने के बाद अब परेशानी की वजह यह होती है कि अब पीरियड कब आएंगे। जानिए पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के दौरान मेंस्ट्रुएशन के बारे में।
प्रसव के बाद पीरियड कब आना शुरू होते हैं?
शिशु के जन्म के बाद पहली बार पीरियड कब आएंगे, इसमें आपका ब्रेस्टफीडिंग स्टेटस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा प्रोलैक्टिन (Prolactin) नामक हार्मोन के कारण होता है, जो ब्रेस्ट-मिल्क को बनाने और ओव्यूलेशन स्प्रेस्स करने के लिए जिम्मेदार होता है। जो महिलाएं शिशु को ब्रेस्टफीडिंग नहीं कराती हैं, उन्हें शिशु के जन्म के चार से लेकर आठ हफ्तों के बीच पीरियड आ जाते हैं। लेकिन, जो महिलाएं ब्रेस्टफीड कराती हैं उन्हें फिर से पीरियड आने में अधिक हफ्ते या महीने लगते हैं। वैसे भी प्रसव के बाद पीरियड फिर से आने से छे महीने या इससे अधिक समय लगना सामान्य है।
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कौन से पोस्टपार्टम लक्षणों का आपको ध्यान रखना चाहिए? (Postpartum symptoms)
शिशु के जन्म के बाद कुछ समस्याएं होना सामान्य है। गर्भावस्था से पहले का सामान्य जीवन जीने के लिए आपको कुछ समय लगता ही है। इस दौरान आपका शरीर कई परिवर्तनों से गुजरेगा। इस दौरान होने वाली कुछ समस्याएं इस प्रकार हैं :
- वजाइनल ब्लीडिंग (Vaginal bleeding)
- कॉन्ट्रैक्शंस (Contractions
- पेरीनियल पेन (Perineal pain)
- मूत्रत्याग के समय दर्द (Painful Urination)
- टांगों और पैरों में सूजन Swollen Legs and feet)
- कॉन्स्टिपेशन (Constipation)
- सूजी हुई ब्रेस्टस (Swollen Breasts)
- थकावट (Fatigue)
कुछ खतरनाक लक्षणों जैसे छाती में दर्द, सांस लेने में समस्या, अधिक ब्लीडिंग, तेज दर्द और अत्यधिक दर्द आदि की स्थिति में तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।
किन स्थितियों में तुरंत डॉक्टर की सलाह जरूरी है?
पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के बाद भी आपको नियमित चेकअप कराना चाहिए। क्योंकि इस दौरान आप कई परेशानियों और बदलावों से गुजरेंगे। लेकिन, किन्ही स्थितियों में आपको तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के दौरान इन स्थितियों में तुरंत डॉक्टर की सलाह अनिवार्य है:
- अगर आपको 100° F या इससे अधिक बुखार हो। यह संक्रमण का लक्षण हो सकता है।
- योनि से दुर्गन्ध आना भी इंफेक्शन का संकेत हो सकता है।
- किसी भी तरह की विजुअल डिस्टर्बेंस होना भी हानिकारक हो सकता है।
- अत्यधिक ब्लीडिंग होना प्लेसेंटा रेटेनेड (Placenta Retained) की तरह इशारा हो सकता है। ऐसी स्थिति में भी आपको डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
- फ्लू की तरह समस्या, लगातार उल्टी आना ,जी मिचलाना आदि फ्लू, वायरस के कारण हो सकता है।
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- बिलकुल भी ब्लीडिंग न होना। कई हफ्तों तक बिलकुल भी डिस्चार्ज न होना भी समस्या की निशानी है।
- ब्रेस्ट्स में दर्द या लालिमा किसी इंफेक्शन के कारण हो सकती है। इसके साथ ही टांगों में दर्द, अकड़न आदि भी ब्लड क्लॉट के कारण हो सकता है। इस स्थिति में भी डॉक्टर की सलाह लें।
- मूत्र त्याग में समस्या जैसे मूत्र त्याग न कर पाना, मूत्र त्याग के दौरान बर्निंग सेंसेशन या गहरे रंग का मूत्र आदि डिहायड्रेशन (Dehydration), इंफेक्शन (Infection) या अन्य जटिलताओं के कारण हो सकता है।
- गंभीर सिरदर्द, हार्मोन्स के कारण हो सकती है या ब्लड प्रेशर भी इसका कारण हो सकता है। अगर आप गर्भाशय में सूजन या अन्य समस्या महसूस करते हैं तो यह भी ब्लड क्लॉट या यह समस्याओं का संकेत है।
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन या पोस्टपार्टम एंग्जायटी की स्थिति में भी डॉक्टर से तुरंत सलाह लें।
पोस्टपार्टम पीरियड के दौरान मेंटल हेल्थ को मेंटेन रखने के तरीके कौन से हैं? (How to Maintain Mental Health During Postpartum Period)
शिशु के जन्म के बाद यानी पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) में आपका मन कई इमोशंस से भरा होगा जिसमे खुशी, ड़र, उत्साह आदि शामिल होंगे। लेकिन,अगर आप लगातार उदास अनुभव कर रहे हैं। जिसके कारण आपकी रोजाना का जीवन प्रभावित हो रहा हो। तो यह परेशानी की वजह बन सकता है। इसे पोस्टपार्टम पीरियड या पोस्टपार्टम एंग्जायटी कहा जाता है। पोस्टपार्टम पीरियड के दौरान मेंटल हेल्थ को मैंटेन रखने के तरीके कौन से हैं, जानिए:
व्यायाम करें (Exercise)
ऐसा माना जाता है कि पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के दौरान व्यायाम करने से महिलाओं पर एंटीडिप्रेसेंट प्रभाव पड़ता है। डॉक्टर की सलाह के बाद आप हल्का व्यायाम कर सकती हैं। कुछ देर सैर करने से भी आपको अच्छे परिणाम मिलेंगे।
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हेल्दी डायट (Healthy Diet)
हेल्दी आहार ही पोस्टपार्टम डिप्रेशन से राहत पहुंचाने काफी हद तक मददगार हो सकता है। अच्छा और पौष्टिक आहार लेने से आप अच्छा महसूस करेंगे और आपके शरीर को सब न्यूट्रिएंट्स प्राप्त होंगे।
खुद के लिए समय निकालें (Time for Yourself)
शिशु की जिम्मेदारियों के बीच आपके लिए अपने लिए समय निकालना मुश्किल हो सकता है। लेकिन खुद के लिए समय निकाल कर आपको तनाव आदि से छुटकारा पाने और अच्छा महसूस करने में मदद मिलेगी। इसके लिए आप शिशु को संभालने के लिए अन्य लोगों, प्रियजन आदि की मदद ले सकते हैं। अकेले में वाक करने जाएं, कोई फिल्म देखें, योग करें या थोड़ी देर आराम करें।
डॉक्टर की मदद लें (Take Doctor’s Help)
हर संभव तरीके को अपनाने के बाद अगर आप कोई सुधार महसूस न करें। तो आप डॉक्टर की सलाह ले सकती हैं। डॉक्टर आपको इसके लिए दवाइयों या साइकोथेरेपी या दोनों की सलाह दे सकते हैं। गंभीर स्थितियों में एंटीडिप्रेसेंट्स (Antidepressants) भी दी जा सकती है।
ब्रेस्ट फीडिंग कराएं (Breastfeeding)
ऐसा भी माना जाता है कि ब्रेस्टफीडिंग कराने से पोस्टपार्टम डिप्रेशन के रिस्क को कम करने में मदद मिलती है।
पोस्टपार्टम पीरियड के दौरान पति और अन्य परिवार के सदस्यों की भूमिका क्या है?
हम में से अधिकतर लोग यह कल्पना करते हैं कि बच्चे के जन्म के बाद का समय आनंद और उत्साह का होगा। लेकिन, ऐसा जरूरी नहीं है क्योंकि कई महिलाएं इसके बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का अनुभव करती हैं। महिला के पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) के दौरान पति और परिवार के अन्य सदस्य भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जानिए, इसके बारे में :
- गर्भावस्था हो या पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period), हर समय महिला को शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक स्पोर्ट की जरूरत होती है। ऐसे में पति और परिवार के अन्य सदस्यों का उनके साथ रहना और उसकी मदद करना जरूरी है।
- शिशु केवल मां की ही जिम्मेदारी नहीं होता बल्कि पिता और अन्य सदस्यों की भी पूरी जिम्मेदारी बनती है कि वो शिशु का ख्याल रखने में मां का सहयोग करें और मां को खुद के लिए समय निकालने में सहयोग कर सके।
- पोस्टपार्टन पीरियड के दौरान महिला कई मानसिक बदलावों से गुजरती है। ऐसे में उसका छोटी-छोटी बात कर चिढ़ना सामान्य है। लेकिन, आपको उसके मूड को समझना चाहिए। आप धैर्य बनाएं रखें।
- इस दौरान महिला को खास आहार की जरूरत होती है। उसकी शारीरिक जरूरतों को डॉक्टर की सलाह के बाद उन्हें उचित आहार दें।
- अगर आपको पत्नी या घर की महिला सदस्य जो अभी मां बनी है। इस दौरान परेशानी से गुजर रही है। तो लक्षणों को नजरअंदाज न करें बल्कि तुरंत उसे डॉक्टर के पास ले कर जाएं। क्योंकि, इस दौरान होने वाली कुछ परेशानियां घातक हो सकती हैं।
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पोस्टपार्टम पीरियड (Postpartum Period) भी गर्भावस्था की तरह ही एक खूबसूरत समय होता है। जब आपको अपने शिशु से बांड बनाने में मदद मिलती है। इस दौरान आप सही खाएं, शिशु का ध्यान रखें, पर्याप्त आराम करें और हल्का व्यायाम करें। लेकिन, किसी भी समस्या को इग्नोर न करते हुए नियमित रूप से चेकअप जरूरी है।
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