कोविड-19 के दौरान लोगों का मानसिक स्वास्थ्य काफी प्रभावित हुआ है। केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी। बढ़ रहें मानसिक तनाव को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार भारत के 1.3 बिलियन आबादी का 7.5 प्रतिशत किसी न किसी रूप में मानसिक परेशानियों से पीड़ित है। मेंटल इलनेस की इस समस्या को कोविड-19 के इस वक्त ने और तेजी दे दी है। इस आर्टिकल में समझेंगे की मेंटली फिट होना कितना जरूरी है? मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर कैसे पड़ता है। मेंटल इलनेस और कोरोना वायरस का प्रभाव प्रजनन क्षमता पर कैसे पड़ता है?
मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) और निःसंतानता (Childlessness) दोनों ही अलग-अलग स्वास्थ्य स्थितियां हैं, लेकिन कुछ स्थितयों में दोनों आपस में जुड़े हुए भी हैं। हालांकि मेंटल हेल्थ या निःसंतानता पर इस वक्त में भी लोग खुलकर बातचीत करने से परहेज करते हैं। इसका सबसे मुख्य कारण है जागरूकता की कमी है। अगर कोई महिला गर्भधारण नहीं कर पा रहीं, तो उन्हें अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है। जबकि गर्भधारण न कर पाना कोई बीमारी नहीं है। वहीं अगर किसी व्यक्ति में मेंटल इलनेस के लक्षण नजर आने पर उन्हें पागल या सनकी जैसे शब्दों संबोधित किया जाता है। मानसिक स्वास्थ्य और निःसंतानता की परेशानी झेल रहें लोगों की परेशानी को दूर करने के लिए झाड़-फुंक जैसे विकल्पों को अपनाया जाता है।
मासिक स्वास्थ्य का असर पूरे शरीर पर पड़ता है। यहां तक की अगर महिला मानसिक रूप से ठीक न हो, तो इसका असर प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर देखा गया है। वहीं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस) के अनुसार भारत की अनुमानित 1.3 बिलियन आबादी में से 10-15 प्रतिशत आबादी निःसंतानता से प्रभावित है। इसका अर्थ है कि देश में लगभग 195 मिलियन लोग गर्भधारण करने में समस्याओं का सामना करते हैं।
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किसी भी कपल के गर्भधारण न कर पाने के पीछे कई कारणों में से एक मेंटल इलनेस भी होता है। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है। लेकिन अगर किसी महिला को गर्भधरण में कोई परेशानी हो रही है, तो निराश नहीं होना चाहिए। क्योंकि गर्भधारण के कई विकल्प हो सकते हैं। अगर प्रेग्नेंसी प्लानिंग में कोई समस्या हो, तो निराश न हों और हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लें।
निःसंतानता की समस्या से अगर कोई परेशान है, तो उनके लिए आईवीएफ यानि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) बेहतर विकल्प हो सकता है गर्भधारण करने का।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) क्या है?
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन गर्भधारण करने का कृत्रिम एवं बेहतर विकल्प होता है। आईवीएफ प्रक्रिया के दौरान दवाइयों की मदद के साथ-साथ पुरुष के स्पर्म को महिला के एग्स के फर्टिलाइज करवाया जाता है और इस प्रोसेस के दौरान लैब में रखा जाता है। इस प्रोसेस के दौरान महिला एवं पुरुष (कपल) को हेल्थ चेकअप करवाने की सलाह दी जाती है। क्योंकि किसी भी महिला का गर्भधारण न हो पाना उनके एवं उनके पार्टनर दोनों पर निर्भर करता है। अगर महिला में फैलोपियन ट्यूब से संबंधित कोई परेशानी होना या पुरुष में स्पर्म संबंधी परेशानियों पर ध्यान दिया जाता है। इस दौरान आईवीएफ एक्सपर्ट यह भी समझने की कोशिश करते हैं कि क्या कोई और शारीरिक परेशानी की वजह से गर्भधारण में समस्या आ रही है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के दौरान फर्टिलाइज्ड एग को डेवलप होने के लिए लैब में रखा जाता है और कुछ समय बाद फर्टिलाइज्ड एग को महिला के गर्भ (यूटरस) में इम्ब्रियो इम्प्लांट किया जाता है। इम्ब्रियो इम्प्लांटेशन के दो हफ्ते के बाद महिला का प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाता है, जिससे यह जानकारी मिलती है कि महिला गर्भवती हुई या नहीं। कुछ केसेस में गर्भधारण नहीं हो पाता है, तो ऐसी स्थिति में आईवीएफ एक्सपर्ट्स समझने की कोशिश करते हैं की गर्भधारण न कर पाने का कारण क्या हो सकता है? वहीं जिन महिलाओं का गर्भधारण हो जाता है, उन्हें विशेष ख्याल रखने की जरूरत होती है।
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आईवीएफ को सफल बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
गर्भधारण न कर पाना मानसिक परेशानी को बढ़ा सकता है और मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है। इसलिए आईवीएफ के माध्यम से गर्भधारण करने पर गर्भवती महिला उनके पार्टनर एवं परिवार को सकारात्मक विचारधारा अपना कर इन विट्रो फर्टिलाइजेशन को सफल बनाना चाहिए। इसलिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर आईवीएफ प्रेग्नेंसी को एन्जॉय करते हुए इसे सफल बना सकते हैं। जैसे:
- सक्सेसफुल इम्ब्रियो इम्प्लांटेशन के बाद आईवीएफ एक्सपर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों का सही तरह से पालन करें
- अगर महिला की उम्र 40 वर्ष से ज्यादा है, तो आईवीएफ एक्सपर्ट्स से जरूरी गाइडलाइंस को समझें
- अगर कोई शारीरिक परेशानी है, तो अपने हेल्थ एक्सपर्ट से छुपाएं नहीं और उनसे साझा करें
- इम्ब्रियो इम्प्लांट के बाद अगर डॉक्टर बेड रेस्ट की सलाह देते हैं, तो उसे फॉलो करें
- एम्ब्रियो इम्प्लांटेशन के बाद अपने आपको एक्टिव रखें और खुश रहें
- गर्भावस्था के दौरान डायट का ख्याल रखें
- सात से नौ घंटे सोने की आदत डालें
- अपने आपको रिलैक्स रखें
- हेल्थ एक्सपर्ट से सलाह लेकर प्रेग्नेंसी के दौरान किये जाने वाले एक्सरसाइज या योग करें। वैसे इस दौरान वॉकिंग भी बेहतर विकल्प हो सकता है
- सर्दी-खांसी जैसे समस्या होने पर डॉक्टर से संपर्क करें
- स्वीट वॉटर की जगह सादे पानी का सेवन करें
- भारी सामानों को न उठायें
- आईवीएफ प्रेग्नेंसी या नॉर्मल प्रेग्नेंसी के दौरान भी स्मोकिंग, एल्कोहॉल या किसी भी नशीले पदार्थों का सेवन न करें
- फ्रोजेन फूड या पैक्टड जूस का सेवन न करें
- मेडिटेशन करें
- पॉसिटिव थिंकिंग रखें
हेल्दी प्रेग्नेंसी के लिए इन ऊपर बताई गई बातों का ध्यान रखें।
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मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर कैसे पड़ता है?
मानिसक स्वास्थ्य का फर्टिलिटी पर प्रभाव पड़ता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे तनाव की वजह से अन्य बीमारियों का खतरा। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर न पड़े इसके लिए कुछ खास टिप्स अपनाना चाहिए, जिसे फॉलो कर मेंटल हेल्थ को फिट रखा जा सकता है, जिसका असर प्रजनन क्षमता पर नहीं पड़ेगा। इन टिप्स में शामिल है:
बैलेंसड एवं हेल्दी डायट करें फॉलो
मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर न पड़े इसलिए पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए। फायबर युक्त आहार का सेवन करें और पानी खूब पीएं। ऐसा करने से आप फिट रहेंगी और मूड स्विंग होने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। बेहतर मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्रोसेस्ड एवं स्वीट ड्रिंक का सेवन न करें। इनके सेवन से ब्लड शुगर लेवल में बदलाव हो सकता है।
विटामिन और मिनिरल
मानसिक स्वास्थ्य को फिट रखने के लिए ओमेगा-3 फैटी एसिडस, फोलेट, विटामिन-बी 12, कैल्शियम, आयरन एवं जिंक युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन रोजाना और संतुलित मात्रा में करें।
शारीरिक रूप से रहें स्वस्थ्य
जो लोग शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं होते हैं, उन्हें मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में परेशानी हो सकती है। क्योंकि शारीरिक परेशानियों का असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ना तय माना है। इसलिए अगर आप कोई लाइफस्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज या पीसीओएस (PCOS) जैसी परेशानी से पीड़ित हैं, तो अपनी सेहत का ध्यान रखें और हेल्थ एक्सपर्ट के संपर्क में रहें।
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इन ऊपर बताई बातों का ध्यान रखने के साथ-साथ कुछ खास बातों का भी ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है। जैसे:
- एल्कोहॉल का सेवन न करें
- स्मोकिंग न करें
- नकारात्मक लोगों के प्रभाव में न आएं
- हेल्दी डेली रूटीन फॉलो करें
किसी भी शारीरिक परेशानी को दूर करने के लिए हेल्थ एक्सपर्ट से संपर्क करें।
मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर पड़ता है और कोविंड-19 के दौरान मेंटल हेल्थ पर और ज्यादा नकारात्मक असर पड़ा रहा है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में मेंटल हेल्थ की समस्या बढ़ी है।
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क्या हैं मासिक परेशानियों के कारण?
कोरोना वायरस के बढ़ते आंकड़े सिर्फ युवा वर्ग ही नहीं बल्कि बुजुर्गों और बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रहें हैं। संक्रमण के खतरे को देखते हुए लोग अपने-अपने घरों में हॉउस अरेस्ट महसूस कर रहें। वहीं रेगुलर चेकअप के लिए अस्पताल न जा कर डॉक्टर से ऑनलाइन कंसल्ट कर रहें। वहीं मेंटल इलनेस के कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। जैसे:
- पारिवारिक विवाद
- आर्थिक तंगी
- अनुवांशिक कारण
- डेली हैबिट
- शारीरिक परेशानी या क्रोनिक डिजीज जैसे डायबिटीज, पीसीओएस या ह्रदय संबंधित परेशानियां
अगर आप या आपके करीबी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की मदद से फैमली आगे बढ़ाने की प्लानिंग कर रहें हैं, तो सर्टिफाइड IVF सेंटर एवं IVF एक्सपर्ट से संपर्क करें। इम्ब्रायो इम्प्लांटेशन की इस प्रक्रिया को समझने की कोशिश करें और फिर कपल आपस में चयन करें की क्या उन्हें यह विकल्प अपनाना है या नहीं। वहीं अगर आप इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) से जुड़े कुछ खास सवाल जैसे कि इस प्रक्रिया में कितना वक्त लगता है? क्या आपके लिए आईवीएफ से गर्भधारण करना सही निर्णय होगा या नहीं या ऐसे ही कोई दुविधा हो तो एक्सपर्ट्स से सलाह लें। वहीं अगर आप मानसिक स्वास्थ्य का प्रजनन क्षमता पर असर से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं, तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा
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