गुणसूत्र (Chromosomes)
आपने सुना होगा कि गर्भ में ही सेक्स डिटरमिनेशन यानी कि लिंग निर्धारण की एक प्रक्रिया होती है। जिसमें XX क्रोमोसोम होने से फीमेल सेक्स और XY होने से मेल सेक्स होता है, लेकिन डिफरेंस ऑफ सेक्शुअल डेवेलपमेंट के साथ पैदा होने वाले लोगों में क्रोमोसोमल कंफिगरेशन मेल फीमेल से अलग हो सकता है।
इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन देखा गया है कि ट्रांस लोगों के पास ऐसे क्रोमोसोम होते हैं, जो उनके सेक्स से मेल नहीं करते हैं। उदाहरण के तौर पर ट्रांसजेंडर महिला सेक्स से फीमेल है, लेकिन उसके पास XY क्रोमोसोम है।
प्राइमरी सेक्स की विशेषताएं
हम जानते हैं कि कुछ सेक्स हॉर्मोन होते हैं, जो मेल फीमेल में अलग-अलग पाए जाते हैं। बस यही सेक्स और जेंडर में अंतर को दिखाता है। जैसे- फीमेल सेक्स में एस्ट्रोजन और मेल सेक्स में टेस्टोस्टेरॉन पाया जाता है, लेकिन सेक्स और जेंडर में अंतर किए बिना आपके लिए यह जानना जरूरी है कि हर व्यक्ति में, चाहे वह कोई भी हो सब में दोनों हार्मोन पाए जाते हैं।
एक हॉर्मोन है एस्ट्रेडियल (estradiol), यह एस्ट्रोजन का प्रभावी रूप है। हालांकि, एस्ट्रोजन महिलाओं में पाया जाता है, लेकिन एस्ट्रोजन का प्रभावी रूप एस्ट्रेडियल पुरुषों में जन्म से पाया जाता है। एस्ट्रेडियल सेक्शुअल अराउजल, स्पर्म प्रोडक्शन और इरेक्टाइल फंक्शन में अपनी अहम भूमिका निभाता है।
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सेकेंड्री सेक्स की विशेषताएं
सेकेंड्री सेक्स की विशेषताएं आसानी से समझ में आ जाती हैं। इसमें चेहरे पर बाल यानी कि मेल में मूंछ-दाढ़ी, फीमेल में ब्रेस्ट और आवाजों में अंतर होना। इसी के आधार पर हम किसी भी व्यक्ति के सेक्स को पहचानते हैं, लेकिन कभी-कभी आपकी ये पहचान गलत भी हो सकती है।
ये भी हो सकता है कि जो व्यक्ति जिस सेक्स में पैदा हुआ है, उसमें उस सेक्स के आधार पर सेकेंड्री सेक्स के लक्षण सामने आए ही ना। जैसे बहुत सारी फीमेल के फेस पर फेशियल हेयर पाए जाते हैं और कुछ मेल में नहीं।
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