जेंडर क्या है?

सेक्स और जेंडर में अंतर को समझने के लिए आपको जेंडर के बारे में भी जानना होगा। सेक्स और जेंडर में अंतर के क्रम में अभी तक आपने जाना सेक्स के सभी आयामों के बारे में। अब जानते हैं कि जेंडर क्या है?
हमारे समाज में सिखाया जाता है कि जेंडर दो तरह के होते हैं – महिला और पुरुष, लेकिन जेंडर की कई सीमा नहीं है, यह विस्तृत है। कुछ लोग नॉन बाइनरी के रूप में पहचाने जाते हैं। नॉन बाइनरी को सात रंगों के अम्ब्रेला से प्रदर्शित किया जाता है। इसका मतलब एक ऐसी पहचान से है जो महिला और पुरुष दोनों से परे हो।
इसके अलावा जेंडर की कुछ और भी पहचान है, जैसे – बाइजेंडर। बाइजेंडर ऐसे लोग होते हैं, जिनमें महिला और पुरुष दोनों के जेंडर पाए जाते हैं। अजेंडर ऐसे लोग जिनमें किसी भी जेंडर की पहचान न की जा सके। जिसे आज हमारे समाज में थर्ड जेंडर के रूप में देखा जाता है।
इसलिए जेंडर अब सिर्फ महिला और पुरुष की सीमा में नहीं बंधा है, बल्कि उससे कहीं परे हो गया है। हमारे समाज में ऐसे लोगों को किन्नर कहा जाता है।
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जेंडर की पहचान क्या है
आप अपने जेंडर के बारे में क्या सोचते हैं और इसे लेकर क्या समझते हैं और दुनिया को किस तरह देखते हैं, यही आपके जेंडर की पहचान है।
जैसे कि पुरुष मानते हैं कि समाज उनके निर्णयों से चलता है। इसका मतलब है कि वो दुनिया को एक पुरुष की नजर से देखते हैं, यही जेंडर है।
लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीला
कई देशों में गुलाबी रंग को लड़कियों और नीले रंग को लड़कों की पहचान माना जाता है। हालांकि, 19वीं शताब्दी से पहले बच्चों के लिए रंगीन कपड़े नहीं आए थे इसलिए सफेद रंग को शिशु की पहचान मानी गई।
हालांकि, देखा जाए तो गुलाबी रंग मजबूती और प्रबल निर्णायक क्षमता को दर्शाता है जो पुरुषों से संबंधित है जबकि नीला रंग नाजुक और खूबसूरत है जो लड़कियों से संबंधित है।
आने वाले सौ साल के बाद आपको मुश्किल से ही कोई पुरुष गुलाबी रंग के कपड़ों में दिखेगा क्योंकि इस रंग को पूरी तरह से लड़कियों के जेंडर से जोड़ दिया जाएगा।
कई मायनों में जेंडर और सेक्स अलग होता है और इनका संबंध काफी हद तक इंसान की मानसिकता से है। आप अपने दिमाग में जेंडर और सेक्स को लेकर क्या सोचते हैं और कैसी प्रतिक्रिया देते हैं, ये सब चीजें आपके जेंडर और सेक्स से प्रभावित हो सकता है।
सेक्स और जेंडर के बीच क्या संबंध है?
सेक्स और जेंडर में अंतर होने के बावजूद इनमें संबंध है। सेक्स और जेंडर में अंतर होने के बाद भी इनमें कुछ समानताएं हैं। अगर कोई व्यक्ति मेल सेक्स के साथ पैदा हुआ है तो उसका जेंडर पुरुष होता है।
अगर कोई फीमेल सेक्स के साथ पैदा हुई है तो उसका जेंडर महिला होगा, लेकिन जो लोग ट्रांस या नॉन-कन्फर्मिंग जेंडर के होते हैं, जन्म के समय उनका सेक्स भले से निर्धारित रहता है, उनका जेंडर कंफर्म नहीं रहता है। ऐसा भी हो सकता है कि वे जन्म के समय जिस सेक्स के साथ पैदा हुए हैं, भविष्य में उनका सेक्स अलग हो।
जो लोग सेक्स और जेंडर में अंतर को नहीं समझते हैं, उन लोगों का मानना है कि जेंडर दिमाग में और सेक्स पैंट में होता है। ऐसा सोचने से ट्रांस लोगों को दुख होता है, लेकिन जो लोग समाज की इस हकीकत को अपना चुके होते हैं, वे लोग खुश रहते हैं। ट्रांस लोगों की सामाजिक तौर पर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक सेहत प्रभावित होती है। हालांकि, हमारे देश की उच्च न्यायालय ने इन्हें समानता का दर्जा दे दिया है।
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जेंडर सेक्शुअल ओरिएंटेशन से अलग होता है
बहुत सारे लोगों को लगता है कि ट्रांस लोग हेट्रोसेक्सुअल होते हैं, लेकिन ये सच नहीं है। एक सर्वे में ये बात सामने आई है कि ट्रांस लोगों में से 15 फीसदी लोग ही हेट्रोसेक्सुअल होते हैं। ये लोग लेस्बियन, गे, क्वीर या बाइसेक्शुअल हो सकते हैं, लेकिन इनका हेट्रोसेक्शुअलिटी से सीधा संबंध नहीं होता है इसलिए सेक्स और जेंडर को तराजू के एक ही पलड़े पर न तोला जाए।