- रैशेज सामान्यत: लाल भूरे रंग ( reddish brown) के, छोटे, सख्त, फ्लेट या उभरे हुए होते हैं। ये (Sores) 2CM के हो सकते हैं। ये दूसरी स्किन प्रॉब्लम्स की तरह ही दिखाई देते हैं।
- छोटे और खुले हुए घाव या फोड़े म्यूकस मेम्ब्रेन (Mucous membranes) पर दिखाई देते हैं। इनमें पस होता है। यह वार्ट्स (warts) की तरह दिखाई देते हैं।
- डार्क स्किन कलर के लोगों में ये फोड़े की स्किन के कलर से हल्के रंग के होते हैं।
- स्किन रैश (चकत्ते) आमतौर पर 2 महीने के अंदर ठीक हो जाते हैं। इनका दाग भी नहीं रहता है। इनके ठीक होने के बाद स्किन डिस्लोकेशन (skin discoloration) डेवलप हो सकती है। भले ही चकत्ते या दाने ठीक हो गए हों, लेकिन सिफलिस बीमारी अभी भी मौजूद है और एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति को संक्रमण हो सकता है।
सिफलिस बीमारी की दूसरी स्टेज में जब संक्रमण पूरी बॉडी में फैल जाता है तो व्यक्ति में निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
- 101°F (38°C) से कम बुखार आना
- गले में खराश (sore throat)
- कमजोरी का एहसास होना और असहजता महसूस होना
- वजन कम होना
- एक पैच से बालों का झड़ना जिसमें आईब्रो, आईलैशेज और स्कैल्प के बाल शामिल हैं
- सेकेंड्री सिफलिस (secondary syphilis) के कुछ नर्वस सिस्टम से संबंधित लक्षण भी दिखाई देते हैं जिसमें नेक स्टिफनेस, सिर में दर्द, चिड़चिड़ापन, पैरालिसिस, आदि शामिल हैं।
लेटेंट स्टेज (Latent stage)

अगर इसका इलाज नहीं किया जाता है, तो इंफेक्टेड व्यक्ति लेटेंट स्टेज तक पहुंच जाता है जिसे हिडन स्टेज (hidden stage) भी कहा जाता है। दूसरी स्टेज के बाद रैशेज चले जाते हैं। इस दौरान मरीज में कुछ समय के लिए किसी प्रकार के लक्षण भी दिखाई नहीं देते हैं इसलिए इसे हिडन स्टेज कहते हैं। लेटेंट पीरियड (latent period) 1 साल से लेकर 20 साल तक का हो सकता है। इस स्टेज के दौरान सटीक निदान (diagnosis) केवल ब्लड टेस्ट (blood test) के जरिए हो सकता है। इसके साथ ही मरीज की हिस्ट्री और बच्चे के जन्म के आधार पर (congenital syphilis) के बारे में डॉक्टर पता करता है। मरीज लेटेंट स्टेज के शुरुआती समय में संक्रामक होता है। भले ही उस समय सिफलिस बीमारी के कोई लक्षण ना दिखाई दें।
100 में से 20-30 लोगों में लेटेंट स्टेज के दौरान सेकेंड्री स्टेज रिलेप्स (Relapses of secondary syphilis) हो जाती है। रिलेप्स का मतलब होता है कि मरीज सेकेंड स्टेज से गुजर चुका है। उसमें सिफलिस बीमारी के कोई लक्षण भी नहीं है। इसके बाद उसे फिर से सेकेंड्री स्टेज के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। रिलेप्स कई बार हो सकता है। जब रिलेप्स होना बंद हो जाता है तो वो व्यक्ति संक्रामक नहीं रहता।
और पढ़ें: पुरुषों के यौन (गुप्त) रोगों के बारे में पता होनी चाहिए आपको यह जरूरी बातें
महिलाओं में लेटेंट स्टेज के दौरान भी सिफलिस की बीमारी संक्रामक होती है जो गर्भवती होने पर बच्चे को ट्रांसफर हो सकती है और यह इंफेक्शन मिसकैरिज (miscarriage), या स्टिलबर्थ (stillbirth) का कारण बन सकता है। बच्चे में जन्मजात सिफलिस (congenital syphilis) भी हो सकता है। अगर महिला सिफलिस से ग्रसित है तो वह कम वजन वाले बच्चे को जम्न दे सकती है। सिफलिस पॉजिटिव होने पर महिला को तुरंत ट्रीटमेंट लेना चाहिए। अगर यह ठीक नहीं होता है तो पैदा होने वाले बच्चे में सिफलिस बीमारी के लक्षण दिखाई देते। अगर तुरंत इसका इलाज ना किया जाए तो बच्चे में बहरापन, मिर्गी जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।