कैंसर की बीमारी का इलाज संभव है, लेकिन तभी जब शुरुआती दिनों में बीमारी का पता चले। यदि कोई जागरूक है और समय समय पर शरीर में हो रहे बदलाव को लेकर डॉक्टरी सलाह लेता है, या फिर वैसे लोग जो एक उम्र के बाद समय समय पर विशेषज्ञों के द्वारा बॉडी चेकअप कराते हैं तो उसमें कई बीमारियों की पहचान आसानी से हो जाती है। इसलिए जरूरी है कि व्यक्तिगत स्तर से लेकर विशेषज्ञों के स्तर तक शरीर में यदि किसी प्रकार का बदलाव दिखे को कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) करवानी चाहिए। मौजूदा समय में बदलते लाइफस्टाइल के कारण कैंसर की बीमारी होने का खतरा दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। जरूरी है कि इस बीमारी को लेकर न केवल जागरूक रहा जाए बल्कि खुद भी समय समय पर कैंसर स्क्रीनिंग कर सकें इतनी जानकारी होनी चाहिए।
आज के समय में मौजूद है लेटेस्ट कैंसर स्क्रीनिंग (Latest Cancer Screeing)
शोधकर्ता इस बात की तलाश में जुटे हैं कि किस प्रकार कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) और बेहतर की जा सके। बता दें कि इस बीमारी से ग्रसित ज्यादातर व्यक्ति न केवल ठीक होते हैं बल्कि लंबे समय तक जीते भी हैं। ऐसे सभी लोगों का यह उद्देश्य होना चाहिए कि बीमारी के शुरू होते ही इसे रोका जा सके। यदि सही समय पर बीमारी का पता चल जाए तो इलाज संभव है और उसे फैलने से रोका जा सकता है। कैंसर की बीमारी का पता करने से लेकर इसे ठीक करने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं।
व्यक्तिगत तौर पर करें खुद की देखभाल
कैंसर की बीमारी को लेकर यदि आपको पहले से ही रिस्क फैक्टर की जानकारी है तो बीमारी से बचा जा सकता है। कैंसर के मरीजों में जीन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इतना ही नहीं मौजूदा समय में लाइफस्टाइल भी बीमारी के होने के कारणों में से एक है। मौजूदा दौर की बीमारियां जैसे
मोटापे की समस्या, डायट,
स्मोकिंग की आदत और एक्सरसाइज न करने की आदत के कारण यह बीमारी हो सकती है। ऐसे में व्यक्तिगत तौर पर शरीर की देखभाल कर न केवल कैंसर से बचा जा सकता है बल्कि दूसरी बीमारी से भी रक्षा की जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि कैंसर के बारे में जानकारी रखी जाए।
सटीक कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) पर नजर
जैसा कि हम जानते हैं कि कैंसर की बीमारी का यदि जल्द पता चल जाए तो इससे बचा जा सकता है। इससे पहले कि बीमारी फैले जरूरी है कि उसको पहले ही रोक दिया जाए। कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट में कई रिस्क जुड़े होते हैं। सीटी स्कैन की बात करें तो इसके कारण रेडिएशन का खतरा होता है। वहीं
बायोप्सी की प्रक्रिया (Biopsies) और कोलोनोस्कोपीस (Colonoscopies) के भी अपने साइड इफेक्ट हैं। कई बार कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट में ऐसी बीमारी का पता चलता है जो वहां होती ही नहीं है, डॉक्टर उसे फाल्स पॉजीटिव कहकर बुलाते हैं। वहीं कई बार कैंसर स्क्रीनिंग में वैसी बीमारी का पता कर लेते हैं जो अपनी शुरुआती अवस्था में होती है। वहीं यदि आप कुछ अपने शारिरिक लक्षणों को डॉक्टर को बताएंगे तो इससे बीमारी का पता करने में डॉक्टर को आसानी होगी।
इन प्रिंसिपल पर कैंसर स्क्रीनिंग है निर्भर (Cancer Screening is dependent on these principals)
- कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) उस वक्त ज्यादा सफल होती है जब व्यक्ति सामान्य कैंसर से पीड़ित हो, जिसके लक्षण आसानी से पहचान में आ जाए। ताकि उसे मरने से बचाया जा सके।
- समय पर बीमारी का पता चल जाए तो इफेक्टिव ट्रीटमेंट मौजूद है, जिससे पीड़ित व्यक्ति को बचाया जा सकता है।
- कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट न केवल विश्व भर में स्वीकारा जा रहा है बल्कि यह सेफ होने के साथ कम खर्चीली भी होती है।
क्या है जेनेटिक और जेनोमिक टेस्ट (What is Genetic and Genomic Test)
कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट में यह कुछ ऐसे खास टेस्ट हैं जिन्हें शुरुआती दौर में किया जाता है। इस टेस्ट के तहत जीन की जांच की जाती है, वहीं पता किया जाता है कि क्या वाकइ में आगे चलकर कैंसर में बदलेगा कि नहीं। वहीं ट्यूमर के बिहेवियर चेंजेस के बारे में पता लगाया जाता है।
महिलाओं में ओवेरियन (Ovarian) और ब्रेस्ट कैंसर (Breast Cancer) का खतरा
जेनेटिक टेस्ट के तहत बीआरसीए 1 और बीआरसीए 2 जीन की जांच की जाती है। वैसी महिलाएं जिनमें इनमें से एक या दोनों होता है उनमें ब्रेस्ट कैंसर या
ओवेरियन कैंसर की बीमारी होने की संभावनाएं अधिक रहती है। वहीं मौजूदा समय में कई ऐसे होम टेस्ट हैं जिसके तहत डीएनए स्पॉट की जांच कर कोलोन कैंसर की स्क्रीनिंग की जा सकती है। यह जांच कोलोनोप्सी की तरह जटिल नहीं है। वहीं यदि यह टेस्ट यह बताता है कि आपको कैंसर है तो उसके बाद कोलोनोप्सी की जांच कराना अहम हो जाता है। ताकि कैंसर को कंफर्म किया जा सके। मौजूदा दौर में जेनोमिक टेस्ट भी है, जिसके कारण
ब्रेस्ट कैंसर के जीन की जांच की जाती है, इससे डॉक्टर बीमारी के बारे में जान बेहतर से बेहतर ट्रीटमेंट कर पाते हैं।
बायोमार्क्स (Biomarks) की होती है जांच
बता दें कि कैंसर स्क्रीनिंग के तहत खून, यूरीन सहित शरीर के तरल में पाए जाने वाले तत्व बायोमार्क्स की जांच की जाती है। यह एक प्रकार का कैंसर का सिग्नल है। इसकी जांच के बाद उपचार के बारे में पता चलता है।
बायोमार्क्स टेस्ट में इनको किया जाता है शामिल:
– लीवर कैंसर : अल्फा-फेटोप्रोटीन (एएफपी) alpha-fetoprotein (AFP)
– नॉन स्मॉलर सेल लंग कैंसर: एएलके जीन
– प्रोस्टेट कैंसर : प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजिन (पीएसए)
शोधकर्ता इस बात का पता लगाने में जुटे हैं कि बायोमार्क्स की मदद से अन्य कैंसर का भी पता लगाया जा सके। एक नए टेस्ट के अनुसार खून में मौजूद दो प्रकार के प्रोटीन की जांच कर पैनक्रेटिक कैंसर का पता लगाया जाता है। लेकिन साइंटिस्ट अभी भी इसको लेकर शोध कर रहे हैं। कैंसर के अलावा बायोमार्क्स की उपयोगिता को लेकर जांच किया जा रहा है। ऐसे में डॉक्टर इस टेस्ट का बेहतर इस्तेमाल को लेकर जांच कर रहे हैं।
कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट में यह होते हैं शामिल (Cancer screening test includes these steps)
– फिजिकल इग्जाम और हिस्ट्री की जांच कर बीमारी का लगाया जाता है पता
– लेबोरेटरी टेस्ट कर जिसमें टिशू, ब्लड, यूरीन सहित अन्य की जानकारी ली जाती है
– इमेजिंग प्रोसीजर के तहत शरीर के अंदर की तस्वीर लेकर की जाती है जांच
– जेनेटिक टेस्ट कर कैंसर का लगाया जाता है पता
कैंसर स्क्रीनिंग में लिक्विड बायोप्सी (Biopasy) की होती है जांच
शोधकर्ता इस बारे में रिसर्च कर रहे हैं कि केवल ब्लड टेस्ट कर कैंसर की बीमारी का पता लगाया जा सके, इसे लिक्विड बायोप्सी कहा जाता है। इसी मदद से खून में फैल रहे डीएनए कैंसर के बारे में पता लगाया जाता है। 2016 में एफडीए ने पहली लिक्विड बायोप्सी को मान्यता दी थी। वहीं जो व्यक्ति नॉन
स्मॉल सेल लंग कैंसर की बीमारी से पीड़ित होते हैं उनके खून में ईजीएफआर के रूप में बदलाव दिखता है। वहीं इस बारे में अभी भी शोध किया जा रहा है जिसके जरिए लिक्विड बायोप्सी की जांच कर अन्य प्रकार के कैंसरों का पता लगाया जा सके।
कैंसर से बचाव की दवा (Cancer Medicines)
क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि
कैंसर से बचाव को दवाएं कारगर हैं। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। बावजूद इसके कई दवाएं यह दावा करती हैं कि उन दवा का सेवन कर कैंसर से बचा जा सकता है।
वैसे लोग जो हार्ट को बचाने के लिए दवा का सेवन करते हैं उनको कोलोरेक्टल कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। यूएस प्रिवेंटिव सर्विस टास्ट फोर्स (यूएसपीएसटीएफ) के अनुसार 50 से लेकर 59 की उम्र के लोगों को रोजाना एसपिरिन लेना चाहिए, ताकि हार्ट डिजीज और कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव किया जा सके। वैसी दवाएं जो एस्ट्रोजिन रिसेप्टर्स को ब्लॉक करने में मददगार हैं उसका सेवन करने वैसे लोग जिन्हें ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है उन्हें बीमारी (कैंसर) की संभावना कम हो जाती है। इन दवाओं को एरोमेटेस इनहिबिटर्स के नाम से जाना जाता है, जो कैंसर की संभावनाओं को कम करता है।
कैंसर वैक्सीन (Cancer Vaccine) हो सकती है विकल्प
कैंसर वैक्सीन की बात करें तो यह सीधे हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता से जुड़ा हुआ है। मौजूदा समय में कई ऐसे वैक्सीन हैं जिसकी मदद से मिजिल्स और चिकनपॉक्स जैसी बीमारी से बचा जा सकता है वहीं इसके कारण कुछ कैंसर से भी बचाव संभव है।
बता दें कि एचपीवी वैक्सीन जो हमें वायरस से बचाने के साथ कई केस में
सर्वाइकल कैंसर से भी बचाता है। यह 2006 में अप्रूव भी हो चुका है। इसके कारण किशोरियों में एचपीवी इंफेक्शन होने की 64 फीसदी कम संभावनाएं रहती है। वहीं इसके विपरीत जो वैक्सीन हमें हेपेटाइटिस बी से बचाती है उशके कारण लीवर कैंसर होने की संभावनाएं अधिक रहती हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो वैक्सीन कैंसर से बचाने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। बता दें कि सेप्यूल्यूकल टी (प्रोवेंज) sipuleucel-T (Provenge) नाम का वैक्सीन प्रोस्टेट कैंसर से बचाने में मददगार होता है। वहीं साइंटिस्ट दूसरे कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीन की खोज में जुटे हैं। ताकि कोलोन कैंसर और मेलननोमा जैसी गंभीर बीमारियों से लोगों को बचाया जा सके।
बीमारी से बचने का बेहतर उपाय
ऐसे में बीमारी से बचने का बेहतर उपाय यही है कि आप और आपकी फैमिली कैंसर स्क्रीनिंग को लेकर जागरूक रहे। वहीं सभी को फैमिली हिस्ट्री की जानकारी का होना भी जरूरी है ताकि
कैंसर के लक्षण दिखने पर कैंसर स्क्रीनिंग कर डॉक्टरी सलाह ली जा सकें, वहीं बीमारी से बच सामान्य जीवन जी सकें।
यूनाइटेड स्टेट्स के नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार कैंसर की तमाम जानकारी सार्वजनिक की गई है। इसमें कैंसर की डेफिनेशन के साथ यह कैसे शुरू होता है और समय के साथ कैसे बढ़ता है उसकी जानकारी दी गई है। यह बताया गया है कि कैंसर काफी जटिल रोग है। कैंसर सिर्फ एक बीमारी नहीं है बल्कि बीमारी का समूह है। इस बीमारी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2019 में सिर्फ यूएस में करीब 1.8 मीलियन लोग इस गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं, वहीं छह लाख सात हजार लोग इससे जान गंवा चुके हैं।
कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) टेस्ट के की प्वाइंट्स
- कैंसर स्क्रीनिंग के तहत बीमारी के लक्षण दिखने के पहले बीमारी का पता किया जा सकता है
- मौजूदा समय में कई प्रकार के कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट हैं
- कैंसर स्क्रीनिंग टेस्ट में कई रिस्क शामिल हैं जैसे-
- कई स्क्रीनिंग टेस्ट के कारण दूसरी बीमारी होने की संभावनाएं रहती है
- फॉल्स पॉजीटिव टेस्ट आने की संभावना रहती है
- उस कैंसर के बारे में पता चल सकता है जिसके कारण मरीज की जान बचाई नहीं जा सकती
उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।