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जानें कब और क्यों बदलता है दांतों का रंग, ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 20/04/2021

    जानें कब और क्यों बदलता है दांतों का रंग, ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सतर्क

    दांत का रंग सीधे तौर पर आपकी हेल्थ से जुड़ा है। अगर हम हेल्दी हैं तो हमारे दांत का रंग स्ट्रा यल्लो होगा। वहीं यदि दांत का रंग इससे अलग है तो माने कि आप किसी समस्या या बीमारी से जूझ रहे हैं। दांत का रंग सफेद, काला, भूरा होना भी एक समस्या है। सीएमसी वैलोर हास्पिटल के एक्स डेंटिस्ट व डेंटल सर्जन डा. सिकंदर बताते हैं कि, ‘दांतों के रंग को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। चाहे आप बच्चे से लेकर बुजुर्ग ही क्यों न हो, दांत का रंग बदलना बीमारी की ओर इशारा करता है। वहीं शराब पीने के पानी के साथ आपकी अच्छी व बुरी आदतें भी दांतों पर असर डालती है। दांतों के रंग में यदि कोई परिवर्तन आता है तो जरूरी है कि डॉक्टरी सलाह लें।’

    गर्भावस्था के खानपान से बदल सकता है शिशु के दांत का रंग

    गर्भावस्था में मां के खानपान का असर शिशु के स्वास्थ्य पर पड़ता है। यदि मां ने पौष्टिक आहार का सेवन नहीं किया, खाने में मिनरल, विटामिन की कमी हुई तो इससे भी शिशु को दांतों और मुंह की बीमारी होने के साथ उसके दांत का रंग बदल सकता है। इसे जन्मजात, कॉन्जीनाइटल (congenital) बीमारी कहा जाता है। डॉ. सिकंदर बताते हैं कि, ‘इसका असर पांच से छह साल की उम्र में देखने को मिलता है। बच्चे के दांतों का रंग तब बदलता है जब ऊपरी सतह इनैमल (enamel) एकदम पीला हो जाता है। इस प्रक्रिया को मेडिकल टर्म में एमिलोजेनिसिस इमपरफेक्टा (amelogenisis imperfecta) कहा जाता है।’

    इस केस में दांत का रंग पीला व भूरा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि गर्भावस्था के दौरान मां को संपूर्ण पौष्टिक आहार नहीं मिलने, मिनरल व विटामिन की कमी होने से एमब्रियो (embryo) भ्रूण को पोषक तत्व नहीं मिल पाते। ऐसे में शिशु का संपूर्ण विकास नहीं हो पाता और आगे चलकर उसे मुंह की बीमारी होती है और दांत का रंग बदलता है। भारत में ऐसे केस काफी कम हैं। वहीं यह बीमारी ज्यादातर उन लोगों में देखने को मिलती है जो गांवों में रहते हैं। आदिवासियों के साथ ऐसी महिलाएं जो गर्भावस्था में ड्राय फ्रूट्स, फल, दूध आदि का सेवन नहीं करतीं हैं। उनमें ये समस्या देखने को मिलती है।

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    दूध के दांत गिरने पर दांतों की ऊपरी सतह का पीला होना 

    एक्सपर्ट बताते हैं कि बच्चों के दूध के दांत पांच से छह साल तक निकल जाते हैं। वहीं इस उम्र से लेकर 12 से 13 साल के बच्चों में दांतों की ऊपरी सतह एकदम पीली दिखाई दें तो समझे कि उन्हें मुंह की बीमारी है। इसका उपचार करने के लिए एनेस्थिसिया (anesthesia) देकर सुन कर दिया जाता है। वहीं दांतों का रूट कैनल ट्रीटमेंट आरसीटी (root canal treatment) कर नैचुरल दांतों को हटाकर एस्थेटिक क्राउन (aesthetic crown) जिसे कैप कहा जाता है, लगा देते हैं। वहीं मरीज को ओरल हाईजीन मैनटेन (दांतों की देखभाल) की सलाह दी जाती है। यदि किसी में भी ऐसे लक्षण दिखाई दे तो उन्हें डॉक्टरी सलाह जरूर लेना चाहिए। यदि हम मुंह की देखभाल करेंगे तों दांतों का रंग नहीं बदलेगा।

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    पानी का भी दांत का रंग से है कनेक्शन

    एक्सपर्ट बताते हैं कि हम जो पानी पीते हैं उसका हमारे दांतों पर साफ असर होता है उस कारण भी दांत का रंग बदल सकता है और मुंह की बीमारी हो सकती है। भारत में कोई भी व्यक्ति बोरवेल, कुआं, हैंडपंप, कम्युनिटी वाटर सप्लाई का ही पानी पीता है। कम्युनिटी वाटर सप्लाई को प्योरिफाइड माना जाता है।

    वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन पुष्टि करता है कि पीने के पानी में 1.5 से लेकर 2 पार्ट्स पर मिलियन (पीपीएम) फ्लोराइड होना आवश्यक है। वहीं पानी में फ्लोराइड व मिनरल की मात्रा का नियमित होना भी जरूरी है। फ्लोराइड का इससे कम या ज्यादा होना सेहत व दांतों के लिए घातक है। जरूरी है कि पानी में फ्लोराइड का बैलेंस बना रहे। बैलेंस ना होने पर या कम होने पर दांतों का रंग पीला हो जाता है, दांतों का ऊपरी सतह (इनैमल) टूटकर झड़ने लगता है। इससे दांत का रंग बदलने के साथ ही फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने पर हमारे दांत सामान्य से यल्लोइश ब्राउन हो जाते हैं।

    कुएं, हैंडपंप आदि के पानी में मिनरल ज्यादा होता है ऐसे में उसका सेवन करने पर हमारे दांतों में कालापन (blakish) साफ तौर पर नजर आएगा। ऐसे में बोरवेल, कुआं, हैंडपंप आदि से पानी पीने वाले लोगों को घर में फिल्टर लगवाना चाहिए ताकि पानी की सही मात्रा का सेवन करें व हमारे स्वास्थ पर इसका कोई विपरीत असर न हो।

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    दांत का रंग बदलने से युवा रहते हैं सचेत

    दांत का रंग बदलने को लेकर युवा वर्ग काफी सचेत रहते हैं, क्योंकि यह भी खूबसूरती का अभिन्न अंग है। जानकारी के आभाव में ज्यादातर युवाओं का मानना है कि सफेद दांत होना ही स्वास्थ व शरीर के लिए सही है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। ज्यादा सुंदर दिखने की चाह में युवा इतना ज्यादा ब्रश करते हैं जिससे हमारे दांतों का ऊपरी सतह इनैमल घिस जाता है। इस कारण भी मुंह की बीमारी हो सकती है। फिर दांत कमजोर होने के साथ सफेद दिखने लगता है। शुरुआत में युवाओं को लगता है कि वो सही कर रहे हैं, लेकिन कुछ साल बाद उनको लक्षण महसूस होते हैं।

    सनसनाहट, कुछ भी ठंडा-गर्म खाद्य व पेय खाने पर सनसनाहट-झनझनाहट महसूस होती है। एक्सपर्ट बताते हैं कि पूरे विश्व में स्ट्रा यल्लो ही स्वस्थ दांतों की पहचान हैं। वहीं दांतों की देखभाल को लेकर सचेत रहे। नियमित ब्रश करें। जरूरी है कि दांतों का रंग किसी और रंग का होने की बजाय स्ट्रा यल्लो ही हो।

    20 से 60 साल के लोगों में दिखता है दांतों का अलग-अलग रंग

    एक्सपर्ट बताते हैं कि पुरुष हो या महिलाएं 20-60 साल के लोगों के दांत का रंग अलग अलग देखने को मिलता है। क्योंकि इस उम्र के लोग सबसे ज्यादा खैनी, पान, गुटका, तंबाकू, धूम्रपान का सेवन करते हैं। ऐसा करने वालों के दांतों में लालपन, कालापन, पीलापन, मसूड़ों का सूखना, दांतों का कमजोर होना, दांतों का पतला होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। इस उम्र के लोगों का दांत का रंग काफी ज्यादा बदला हुआ मिलता है।

    डा. सिकंदर बताते हैं कि इससे दांत का रंग न केवल बदलता है बल्कि दांतों की क्वालिटी भी खराब होती है। सहयोगी मसूड़े पर भी असर पड़ता है, वो कमजोर होते है।

    धूम्रपान करने से जहां दांत हल्के काले होते हैं वहीं तालु (palate) काला हो जाता है, वहीं इससे फेफड़े (lungs) भी खराब होते हैं। जब कोई धूम्रपान करता है तो सिगरेट की गर्म सेक से मसूड़ा जलता है, मसूड़ा गर्म भांप से वास्तविक जगह से खिसकता है। वहीं दांत भी कमजोर होते हैं। कई बार दांत हिलकर गिर भी जाता है। वहीं धुआं फेफड़ों में जाने से वो भी कमजोर होते हैं। जरूरी है कि नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। वहीं लक्षण दिखने पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। क्योंकि इसका सेवन करने से दांत का रंग बदलने से साथ सेहत को नुकसान पहुंचता है।

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    डायबिटिज के मरीजों को दिल की बीमारी का खतरा

    एक्सपर्ट बताते हैं कि डायबिटिज के मरीजों को दांतों की खास देखभाल करनी चाहिए। क्योंकि दांतों का बैक्टिरियल इंफेक्शन मुंह से शरीर में जाएगा तो इससे दिल की बीमारी का भी खतरा बढ़ेगा। क्योंकि यह इंफेक्शन लंग्स से खून में होते हुए दिल व शरीर के अन्य हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। इससे कार्डिक अरेस्ट (cardiac arrest), इशिमिया (ischemia, lack of blood supply) जैसी समस्या हो सकती है। वहीं कार्डियोलॉजिस्ट भी दिल संबंधी ऑपरेशन के पूर्व सलाह देते हैं कि डेंटल क्लीयरेंस जरूर लें, यानी यदि दांतों में किसी प्रकार की बीमारी हो तो सबसे पहले उसके ट्रीटमेंट के बाद ही दिल संबंधी किसी बीमारी का ऑपरेशन होता है। वहीं कैंसर की बीमारी से पीड़ित मरीजों को रेडिएशन से पहले, किसी भी ऑर्गन ट्रांसप्लांट के पहले भी डेंटल क्लीयरेंस जरूरी होता है ताकि मुंह का बैक्टीरिया या इंफेक्शन शरीर के अन्य भागों को प्रभावित ना करें।

    60 साल के बाद दांतों का ब्राउन होना सामान्य

    डॉक्टर बताते हैं कि 60 साल की उम्र के बाद दांत का रंग बदलता है, यह सामान्य से ब्राउन (भूरा) हो जाता है। इस उम्र तक इनैमल काफी घिस जाता है। वहीं डेंटीन (dentine) हल्का यल्लोइश हो जाता है। इस कारण दांत का रंग ब्राउनिश हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दांतों को घिसाई के कारण इनैमल पर भी असर पड़ता है, ऐसे में लोगों को कनकनाहट होती है जो इस उम्र के लोगों में सामान्य है। इस उम्र के लोगों को भी दांतों की साफ-सफाई ओरल हाइजीन (oral hygine) मेनटेन रखना चाहिए। वहीं कई लोगों के दांत टूट चुके होते हैं उन लोगों को टूथ पेस्ट से मसूड़ों को व जीभ को साफ रखना चाहिए ताकि उनके दांत का रंग पूरी तरह खराब न हो।

    दांतों की देखभाल के लिए टिप्स

    • रोजाना दिन में दो बार ब्रश करें।
    • कुछ भी खाद्य-तरल पदार्थ का सेवन करने के बाद कुल्ला कर मुंह साफ रखें।
    • मीठा व चिपचिपा खाद्य पदार्थ का सेवन कम करने के साथ कुल्ला जरूर करें।
    • फास्ट फूड जैसे पिज्जा, बर्गर, पास्ता, मैगी, नूडल्स इत्यादि का सेवन करने से बचें।
    • ऐसे खाद्य पदार्थ जिनमें मॉडिफाई शुगर (modified sugar) हो उसका सेवन करने से परहेज करें।
    • टीवी-कंप्यूटर, मोबाइल देखते समय खाना नहीं खाए, ऐसा इसलिए क्योंकि टीवी देखते समय हमारा ध्यान टीवी पर केंद्रित होता है, ऐसे में खाना लंबे समय तक मुंह में रहता है जिससे दांतों को नुकसान पहुंचता है।
    • ट्रायंगल बैलेंस रखना, यहां ट्रायंगल का अर्थ समय पर खाने का सेवन करना, अच्छी गुणवत्ता का खाद्य पदार्थ का सेवन करना व साफ व स्वच्छ खाद्य पदार्थ का सेवन करने से है।

    दांतों को साफ रखने का सुरक्षित तरीका 

    चारकोल का टूथपेस्ट इस्तेमाल करना लाभदायक होता है, यह दांतों के अंदर के सतह डेंटीन को भी प्रभावित नहीं करता है वहीं दांतों के सतह से धब्बे हटाता है। सही उपकरण का इस्तेमाल कर जैसे ओरल बी इलेक्ट्रिक टूथ ब्रश 3 डी व्हाइट ब्रश हेड का इस्तेमाल कर दांतों को अच्छे से साफ कर सकते हैं। यह भी दांतों के ऊपरी सतह पर लगी गंदगी को हटाता है।

    जानें रोजमर्रा की किन चीजों से होता दांतों को नुकसान

    एक्सपर्ट बताते हैं कि ज्यादा चाय-कॉफी का सेवन करने से दांतों की बाहरी सतह पर दाग उभर आते हैं। इसका सेवन करने से ना केवल इनैमल प्रभावित होता है बल्कि दांतों में चिपचिपाहट भी होती है, ऐसे में खाद्य पदार्थ उसमें चिपक जाते हैं। वहीं हमें ऐसे पेय पदार्थ से भी परहेज करना चाहिए जिसमें शूगर हो। स्मोकिंग के अलावा खाना खाने के तुरंत बाद ब्रश करना भी दांतों की सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। डॉक्टर बताते हैं कि खाना खाने के बाद शरीर में अपने आप एसिड व शुगर निकलता है जो इनैमल को मजबूत बनाता है। यदि हम खाना खाने के तुरंत बाद ही मुंह के अंदर की सफाई करेंगे तो आगे चलकर हमारे दांत कमजोर नहीं होंगे। साथ ही बीमारियों से बचे रहेंगे। जरूरी है कि मुंह की बीमारी न हो इसलिए दांत की सफाई रखें।

    दांत का रंग बदलने में ये खाद्य पदार्थ हैं अहम

  • कुछ फल व सब्जियों का सेवन करने से भी दांत का रंग बदल सकता है। जैसे सेब व आलू का अत्यधिक सेवन दांत के रंग को बदल सकता है।
  • वहीं धूम्रपान करने के साथ तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों के दांत का रंग बदल सकता है। वहीं उन्हें मुंह की बीमारी हो सकती है।
  • इसके अलावा खराब डेंटल हाइजीन नहीं अपनाने से भी दांत का रंग बदलने के साथ मुंह की बीमारी हो सकती है। जैसे दांत का प्लाक हटाने के लिए एंटीसेप्टिक माउथवाश का इस्तेमाल नहीं करना।
  • वहीं कुछ बीमारियों के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है।
  • सिर, गर्दन जैसे जगह में यदि कीमोथैरिपी दी गई तो इससे भी दांत का रंग बदल सकता है। वहीं मुंह की बीमारी भी हो सकती है।
  • वहीं कुछ दवाओं जैसे एंटीबायटिक, टेट्रासीलिन (tetracline) और डाॅक्सीसिलीन (doxycycline) का सेवन करने के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है।
  •  उम्र बढ़ने के साथ अनुवांशिक व लाइफस्टाइल में बदलाव, प्राकृतिक कारणों के अलावा किसी हादसे के कारण भी दांत का रंग बदल सकता है वहीं मुंह की बीमारी हो सकती है।
  • दांत से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान और उपचार प्रदान नहीं करता।

    डिस्क्लेमर

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    डॉ. प्रणाली पाटील

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