के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya
नसों में सूजन होने की स्थिति को फिलीबाइटिस (Phlebitis) कहा जाता है। इस स्थिति के होने पर नसों में खून के थक्के बन जाते हैं, जिसे थ्रोम्बोफ्लिबिटिस के तौर पर जाना जाता है। फिलीबाइटिस त्वचा की सतह में, गहराई से त्वचा के नीचे के ऊतकों में हो सकता है। आमतौर पर, यह हाथ, पैर और गर्दन की नसों को प्रभावित करती हैं। इसके कारण नसों में खून (Blood) का प्रवाह प्रभावित हो जाता है।
थ्रोम्बोफ्लिबिटिस (Thrombophlebitis) दो तरह की होती है। पहला सुपरफिशियल दूसरा डीप। त्वचा की सतह के पसा एक नस की सूजन को सुपफिशियल थ्रोम्बोफ्लिबिटिस कहते हैं। इस प्रकार के थ्रोम्बोफ्लिबिटिस के इलाज की जरूरत हो सकती है, लेकिन आमतौर पर इसे गंभीर रूप से लिया जाता है। सुपरफिशियल थ्रोम्बोफ्लिबिटिस रक्त के थक्के या जलन पैदा करने वाली किसी चीज के कारण हो सकता है। डीप थ्रोम्बोफ्लिबिटिस से तात्पर्य है नस के गहराई में सूजन होना। आमतौर पर यह समस्या टांगों में होती है। इसके बहुत गंभीर, जानलेवा परिणाम हो सकते हैं। इसके लक्षण नजर आते ही बिना देरी करें डॉक्टर से कंसल्ट करने की जरूरत होती है।
फिलीबाइटिस की समस्या बहुत ही सामान्य होती है। इसके बारे में अधिक जानकारी के लिए कृपया अपने चिकित्सक से चर्चा करें।
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फिलीबाइटिस के लक्षणों में शामिल हो सकते हैंः
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इसके सभी लक्षण ऊपर नहीं बताएं गए हैं। अगर इससे जुड़े किसी भी संभावित लक्षणों के बारे में आपका कोई सवाल है, तो कृपया अपने डॉक्टर से बात करें।
अगर ऊपर बताए गए किसी भी तरह के लक्षण आपमें या आपके किसी करीबी में दिखाई देते हैं या इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें। हर किसी का शरीर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रिया करता है।
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फिलीबाइटिस होने के कई कारण हो सकते हैं। इसके कुछ सामान्य कारणों में शामिल हो सकते हैंः
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ऐसी कई स्थितियां हैं जो फिलीबाइटिस के जोखिम को बढ़ा सकती हैं, जैसेः
यदि आपको डीवीटी के होने की संभावना हो तो आप निम्न उपायों को अपनाकर ब्लड क्लॉट के बनने की संभावना को कम कर सकते हैं:
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यहां प्रदान की गई जानकारी को किसी भी मेडिकल सलाह के तौर पर ना समझें। अधिक जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से परामर्श करें।
डॉक्टर आपकी स्थिति की पहचान करने के लिए आपके लक्षणों और आपके स्वास्थ्य स्थिति के बारे में आपसे जानकारी लेंगे।
शरीर में खून के थक्कों की जांच करने के लिए डी-डिमर (D-dimer) टेस्ट किया जा सकता है। यह एक तरह का ब्लड टेस्ट (Blood test) होता है। अगर ब्लड टेस्ट का परिणाम निगेटिव होगा, तो आपको कोई भी जोखिम नहीं होगा। यानी आपकी नसों में खून के थक्के नहीं हैं।
इसके अलावा डॉक्टर आपका अल्ट्रासाउंड (Ultrasound) भी कर सकते हैं। अल्ट्रासाउंड खून के प्रवाह में किसी भी तरह के खून के थक्के या ब्लॉकेज की जांच करता है, खासकर खून के थक्के बहुत बड़े और पैर के ऊपरी हिस्से में हों। हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले एक छोटे से औजार से आपकी त्वचा पर दबाव बनाया जाएगा, जो इसकी जांच करेंगे की कौन सी नस में खून के थक्के ब्लॉक हो रहे हैं। शरीर में एक छेद या चीरे के माध्यम से इसका इस्तेमाल किया जाता है, जो दर्द रहित टेस्ट होता है।
कभी-कभार अगर खून के थक्के बहुत छोटे हैं या नसों से अधिक दूर हैं, तो इनकी पहचान करने के लिए वेनोग्राम (venogram) की जरूरत हो सकती है। यह एक इंवेसिव प्रक्रिया है। इसमें पैर की नसों में एक्स-रे डाई या कंट्रास्ट मटीरियल को इंजेक्ट किया जाता है।
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फिलीबाइटिस का इलाज करने के कोई भी विशेष दवा या उपचार नहीं है। इसके सूजन आमतौर पर कुछ हफ्ते के बाद कम हो जाते हैं, लेकिन त्वचा के पैच पर गांठ रह सकते जो कई महीनों तक बने रह सकते हैं। फिलीबाइटिस (Phlebitis) का इलाज उसकी स्थिति पर निर्भर करता है। वार्म कम्प्रेशर या आईवी कैथिटर (IV Catheter) के जरिए भी इलाज किया जाता है। फिलीबाइटिस को ठीक करने के लिए एंटीकॉग्यूलेंट्स दवाएं दी जाती है, जिससे खून का थक्का बनने से रोक जाता है। वहीं, इंफेक्शन वाली स्थिति में मरीज को एंटीबायोटिक (Antibiotics) भी दिया जाता है।
अगर फिलीबाइटिस काफी ज्यादा हो गया है तो इससे हाथों या पैरों से ब्लड (Blood) वापस लौट आता है। ऐसे में एक सर्जरी की जरूरत पड़ती है, जिसे थ्रॉम्बेक्टमी कहते हैं। इस प्रक्रिया में सर्जन एक वायर और कैथिटर को प्रभावित नसों में डालते हैं, जिससे जमे हुए खून के थक्के को दवाओं के द्वारा डिसॉल्व किया जाता है।
निम्नलिखित जीवनशैली में बदलाव लाने और घरेलू उपायों से आप फिलीबाइटिस के खतरे को कम कर सकते हैंः
उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में फिली बाइटिस से जुड़ी जानकारी देने की कोशिश की गई है। यदि आप इससे जुड़ी अन्य कोई जानकारी पाना चाहते हैं या अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
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