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कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहने में किन समस्याओं का करना पड़ता है सामना?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Sayali Chaudhari · फार्मेकोलॉजी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 06/01/2022

    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहने में किन समस्याओं का करना पड़ता है सामना?

    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना ( Living with Colorectal Cancer) कैसा होता होगा, आपके मन में ये सवाल जरूर होगा।कैंसर की बीमारी तब शुरू होती है, जब शरीर की कोशिकाएं अनियंत्रित तरीके से वृद्धि करने लगती हैं। यह कोशिकाएं आसपास के टिशू यानी कि ऊतकों को भी प्रभावित करने लगती हैं। सेल्स का अचानक से अनियंत्रित तरीके से बढ़ना डीएनए (DNA) में बदलाव के कारण होता है। ज्यादातर कैंसर का कारण डीएनए में हुआ परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन कई कारणों से हो सकता है।

    कैंसर की समस्या शरीर के किसी भी भाग में हो सकती है। अगर सही समय पर कैंसर की बीमारी को डायग्नोज कर लिया जाए, तो इस बीमारी को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। कैंसर के अधिक बढ़ जाने पर या फिर लास्ट स्टेज तक पहुंच जाने पर इसे कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जिन लोगों को कैंसर की समस्या है और साथ ही इसका ट्रीटमेंट भी ले रहे हैं, उनके लिए लाइफ कितनी कठिन और कितनी आसान होती है, इस बारे में आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से जानकारी देंगे। आइए जानते हैं कि कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना ( Living with Colorectal Cancer) कितना कठिन होता है।

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    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना ( Living with Colorectal Cancer)

    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना

    कोलोरेक्टल कैंसर वाले कई लोगों के लिए ट्रीटमेंट कैंसर को दूर या कर सकता है। ट्रीटमेंट के अंत में तनावपूर्ण और रोमांचक दोनों प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। इलाज खत्म होने के बाद आपको राहत मिल सकती है, लेकिन कैंसर के वापस आने की चिंता भी लगी रहती है।यदि आपको कैंसर हुआ है तो यह बहुत सामान्य है। कुछ लोगों के लिए कोलोरेक्टल कैंसर कभी भी पूरी तरह से दूर नहीं हो सकता है। लंबे समय तक कैंसर को ठीक करने के लिए कीमोथेरेपी, रेडिएशन थेरिपी या अन्य उपचारों के साथ रेग्युलर ट्रीटमेंट बहुत जरूरी हो जाता है। ये सिचुएशन वाकई दर्दनाक होती है। इस कारण से पेशेंट तनावपूर्ण रहता है।

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    सर्वाइवरशिप केयर प्लान (survivorship care plan) है जरूरी!

    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना किसी भी पेशेंट के लिए आसान नहीं होता है। कैंसर के ट्रीटमेंट के बाद सर्वाइवरशिप केयर प्लान (survivorship care plan) जरूरी होता है। सर्वाइवरशिप केयर प्लान (survivorship care plan) में कुछ गाइडलाइन रहती हैं, जिसके तहत हेल्थ की मॉनिटरिंग संबंधित जानकारियां होती हैं। पेशेंट को समय-समय पर अपना चेकअप कराना पड़ता है। अपने डॉक्टर से आपको सर्वाइवरशिप केयर प्लान (survivorship care plan) के बारे में जानकारी लेनी चाहिए। इसमें कुछ बातें शामिल की जाती हैं जैसे कि टेस्ट के बारे में जानकारी आदि।

    लॉग टर्म साइड इफेक्ट्स, जो कि ट्रीटमेंट के दौरान हुए हैं। उनकी लिस्ट और साथ ही डॉक्टर से संपर्क करने के बारे में जानकारी। आपको भविष्य में कुछ टेस्ट की भी जरूरत पड़ सकती है। जिसकी जानकारी इस प्लान में भी रहती है। आपको अपनी हेल्थ को इंप्रूव करने के लिए किन बातों का ध्यान रखने की जरूरत है, जो कि आपके दोबारा कैंसर होने के चांसेस को कम कर सकते हैं। इस बारे में भी इस प्लान में जानकारी दी जाती है। आपके प्राइमरी केयर प्रोवाइडर के साथ अपॉइंटमेंट और साथ ही हेल्थ केयर मॉनिटरिंग भी इसमें शामिल होती है। एक बार कैंसर का ट्रीटमेंट हो जाने के बाद भी आपको कुछ समय के अंतराल पर टेस्ट कराने की जरूरत पड़ती है। ऐसा करने से दोबारा कैंसर होने की संभावना कम हो जाती है। अगर दोबारा कैंसर हो भी जाता है, तो उसे समय पर डायग्नोज कर लिया जाता है। ऐसा करने से पेशेंट बड़े खतरे से बच जाता है।

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    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना: कोलोरेक्टल कैंसर के बाद फॉलोअप विजिट

    कोलोरेक्टल कैंसर के बाद फॉलोअप विजिट बहुत जरूरी होती है। जब कैंसर का ट्रीटमेंट पूरा हो जाता है, तो उसके करीब 1 से 2 साल तक फॉलोअप विजिट की जरूरत होती है। फॉलोअप विजिट के लिए आपको पहले से अपॉइंटमेंट की जरूरत होती है। अगर आपको किसी प्रकार की समस्या महसूस हो रही है, तो इस दौरान आपको डॉक्टर को बताना चाहिए। डॉक्टर आपसे प्रॉब्लम्स पूछेंगे और साथ ही कुछ एग्जाम और लैब टेस्ट भी कर सकते हैं। इन टेस्ट में इमेजिंग टेस्ट के साथ ही अन्य टेस्ट भी शामिल होते हैं। इन टेस्ट की मदद से कैंसर के दोबारा वापस आने के बारे में जानकारी मिल जाती है। अगर आपको कैंसर ट्रीटमेंट से किसी प्रकार के साइड इफेक्ट्स हो रहे हैं, तो भी आप डॉक्टर को बता सकते हैं। सभी कैंसर ट्रीटमेंट के कुछ साइड इफेक्ट्स होते हैं। कुछ लोगों में साइड इफेक्ट्स कम नजर आते हैं या लंबे समय तक रह सकते हैं। अगर आपके मन में किसी भी प्रकार का प्रश्न है तो आप को फॉलो अप मीटिंग के दौरान उसे जरूर पूछना चाहिए। कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना ( Living with Colorectal Cancer) है, तो आपको हमेशा सजग रहना होगा।

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    स्वास्थ्य बीमा और अपने मेडिकल रिकॉर्ड की रखें कॉपी

    इलाज के बाद भी हेल्थ इंश्योरेंस रखना बेहद जरूरी होता है।आपको ये नहीं सोचना चाहिए कि अब बीमारी दोबारा नहीं आ सकती है। परीक्षण और डॉक्टर की विजिट में बहुत खर्च होता है और दोबारा कैंसर की संभावना भी बनी रहती है इसलिए आपको सतर्क रहने की हमेशा जरूरत होती है।

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    कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना: साइडइफेक्ट्स को न करें नजरअंदाज!

    कैंसर ट्रीटमेंट के दो बाद होने वाले साइड इफैक्ट्स ऐसे भी होते हैं जो कुछ समय बाद ठीक हो जाते हैं लेकिन कुछ साइड इफेक्ट्स आपको लंबे समय तक परेशान कर सकते हैं।कोलोस्टॉमी या इलियोस्टॉमी के बाद आपको अधिक परेशानी उठानी पड़ सकती है।कोलन या रेक्टल कैंसर से पीड़ित कुछ लोगों को डायरिया, बार-बार बाथरूम जाने, या मल को रोकने में सक्षम न होने की समस्या हो सकती है। कुछ को कीमोथेरिपी के कारण उनकी उंगलियों और पैर की उंगलियों में झुनझुनाहट का एहसास होता रहता है। ऐसे में डॉक्टर से जानकारी लेना बहुत जरूरी हो जाता है।

    अगर आपके मन में कोलोरेक्टल कैंसर के साथ रहना ( Living with Colorectal Cancer) कोई सवाल है, तो उसकी बेहतर समझ के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श करें। उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और कोलोरेक्टल कैंसर से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे।

    डिस्क्लेमर

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