मलाशय में होने वाले कैंसर को रेक्टल कैंसर या फिर कोलोरेक्टल कैंसर कहते हैं। इसे कोलोन कैंसर के नाम से भी जाना जाता है। हमारे शरीर में मलाशय का अंत एनस तक होता है। शरीर में दो प्रकार की आंत होती हैं। पहला छोटी आंत और दूसरी बड़ी आंत। रेक्टम को बड़ी आंत का अंतिम छोर माना जाता है, जो एनस पर खत्म होता है। जब किसी भी व्यक्ति को रेक्टल कैंसर हो जाता है, तो स्टेज के अनुसार ही रेक्टल कैंसर का इलाज किया जाता है। रेक्टल कैंसर से निपटने के लिए रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) का सहारा भी लिया जाता है।
कैंसर की स्टेज 2 और स्टेज 3 के लिए रेक्टल कैंसर सर्जरी की सलाह दी जाती है। वहीं स्टेज 4 तक कैंसर पहुंच जाने की स्थिति में सर्जरी के साथ रेडिएशन थेरेपी और कीमोथेरेपी का सहारा भी लिया जाता है। अगर आपको रेक्टल कैंसर सर्जरी की जानकारी नहीं है तो इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि किस तरह से रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) की जाती है और इसके क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं।
रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) क्या है?
रेक्टल कैंसर सर्जरी कैंसर की किसी भी स्टेज में अपनाई जा सकती है। रेक्टल कैंसर सर्जरी के दौरान कैंसर सेल्स को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। अगर कैंसर शरीर के अन्य भाग में नहीं फैला है तो सर्जरी के बाद खतरा काफी हद तक टल जाता है। जानिए रेक्टल कैंसर सर्जरी के दौरान कौन से प्रकार अपनाएं जा सकते हैं।
पॉलीपेक्टॉमी (Polypectomy)
अगर कैंसर पॉलिप्स (टिशू का उभरा हुआ छोटा टुकड़ा) में है तो कोलोनोस्कोपी के दौरान पॉलिप्स को हटा दिया जाता है। ऐसा करने से कैंसर सेल्स समाप्त हो जाती हैं।
लोकल एक्सीजन (Local excision)
अगर कैंसर रैक्टम के अंदर की ओर पाया जाता है तो और मलाशय की दीवार में नहीं फैलता है, तो कैंसर सेल्स को हटा दिया जाता है। इस सर्जरी में स्वस्थ्य ऊतकों को भी नुकसान पहुंचता है।
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रीसेक्शन (Resection)
यदि कैंसर मलाशय की दीवार यानी रेक्टम (Rectum) में फैल जाता है तो रेक्टम के सेक्शन के साथ ही हेल्दी टिशू को भी रिमूव करना पड़ता है। ऐसे में एब्डॉमिनल वॉल के टिशू भी हट जाते हैं। साथ ही लिम्फ नोड्स ( Lymph nodes) को भी हटा दिया जाता है । कैंसर के लक्षणों को देखने के लिए माइक्रोस्कोप का भी यूज किया जा सकता है।
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रेडियोफ्रीक्वेंसी एबलेशन (Radiofrequency ablation)
इस सर्जरी में विशेष जांच के बाद इलेक्ट्रोड की सहायता से कैंसर कोशिकाओं को मारने का काम किया जाता है। कभी-कभी प्रॉब सीधे त्वचा के माध्यम से डाला जाता है। कुछ मामलों में पेट में चीरा लगाने के बाद प्रॉब डाली जाती है। ये सभी प्रोसेस जनरल एनिस्थीसिया के माध्यम से किया जा सकता है।
क्रायोसर्जरी (Cryosurgery:)
क्रायोसर्जरी के दौरान ऊतक को फ्रीज करने और नष्ट करने का काम किया जाता है। इस तरह के उपचार को क्रायोथेरिपी भी कहते हैं।
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पेल्विक एक्सेंट्रेशन (Pelvic exenteration)
अगर कैंसर रेक्टम के पास अन्य अंगों में फैल गया है, तो लोअर कोलन, रेक्टम और मूत्राशय या ब्लैडर (Bladder) को हटा दिया जाता है। वहीं जब महिलाओं में रेक्टल कैंसर सर्जरी की जरूरत पड़ती है तो गर्भाशय ग्रीवा यानी सर्विक्स, ओवरीज और पास के लिम्फ नोड्स को हटा दिया जाता है। पुरुषों में रेक्टल कैंसर सर्जरी के दौरान प्रोस्टेट को भी हटा सकते हैं। ऐसे में मूत्र और मल के बाहर जाने के लिए आर्टिफिशियल ओपनिंग बना दी जाती है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से जरूर परामर्श करें।
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रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) के बाद क्या होता है ?
रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) के बाद सर्जन रेक्टम के हेल्दी पार्ट्स और कोलन के पार्ट्स को एक साथ सिल देता है। कोलन के हेल्दी पार्ट्स और एनस को भी एक साथ सिला जा सकता है। जब कैंसर एनस के बहुत पास होता है तो स्टोमा ओपनिंग बनाई जाती है, ताकि मल बाहर जा सके। इसे कोलोस्टोमी कहा जाता है। स्टोमा के पास ही एक बैग रखा जाता है, ताकि वेस्ट को इकट्ठा किया जा सके। कुछ केसेज में स्टोमा की जरूरत केवल एनस के ठीक होने तक ही पड़ती है। कुछ मामलों में पूरा रेक्टम हटाने की जरूरत पड़ सकती है।
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रेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) से पहले और बाद में कीमोथेरिपी
कैंसर के दौरान ट्युमर बनना आम बात होती है। ट्यूमर को सिकोड़ने के लिए सर्जरी से पहले रेडिएशन या कीमोथेरिपी दी जा सकती है, जिससे कैंसर को दूर करना आसान हो जाता है। साथ ही बाउल कंट्रोल में भी हेल्प मिलती है। सर्जरी से पहले दिए गए ट्रीटमेंट को निओएडजुवेंट थेरिपी (Neoadjuvant therapy) कहा जाता है। कोलोरेक्टल कैंसर सर्जरी के बाद कैंसर सेल्स खत्म हो जाती हैं और उसके बाद जरूरत पड़ने पर रेडिएशन या कीमोथेरिपी दी जा सकती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि अगर कोई भी कैंसर सेल्स रह गई हो तो वो पूरी तरफ से समाप्त हो जाएं। सर्जरी के बाद दिए जाने वाले ट्रीटमेंट को अजुवेंट थेरिपी (Adjuvant therapy) कहा जाता है।
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कोलोरेक्टल कैंसर सर्जरी (Rectal cancer surgery) के बाद साइड इफेक्ट्स
कैंसर का ट्रीटमेंट जहां एक ओर मरीज को स्वस्थ्य कर देता है, वहीं दूसरी ओर इसके कुछ साइड इफेक्ट भी देखने को मिलते हैं। कैंसर के ट्रीटमेंट की बहुत-सी विधियां होती हैं, जिनके दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं। कैंसर ट्रीटमेंट के दौरान खराब सेल्स के साथ ही अच्छी सेल्स भी खत्म हो सकती हैं। कैंसर ट्रीटमेंट के बाद कुछ साइडइफेक्ट भी देखने को मिल सकते हैं,
- एनीमिया (Anemia)
- भूख में कमी
- ब्लीडिंग की समस्या (Bleeding problem)
- कब्ज (Constipation)
- डायरिया (Diarrhea)
- थकान महसूस होना (Feeling tired)
- पुरुषों में फर्टिलिटी इश्यू
- महिलाओं में फर्टिलिटी इश्यू (Fertility issue in women)
- फ्लू के लक्षण दिखना (flu symptoms)
- बालों का झड़ना
- संक्रमण की समस्या (Infection problem)
- मेमोरी में कमी आना
- मुंह और गले की समस्या
- मतली और उल्टी
- नर्व प्रॉब्लम (Nerve problem)
- त्वचा के रंग में बदलाव (Change in skin color)
रेक्टल कैंसर के इलाज को लेकर कई वर्षों से चली आ रही डिबेट को अब खारिज कर दिया गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस सर्जरी के ओपन सर्जरी के मुकाबले ज्यादा फायदे होते हैं जैसे कि, कम दर्द, अस्पताल में कम समय के लिए रहना और रिकवरी में तेजी आना।
कैंसर की स्टेज के अनुसार ही डॉक्टर ट्रीटमेंट डिसाइड करता है। अगर कैंसर जीरो या फिर पहली स्टेज में है तो कैंसर को खत्म करने में आसानी रहती है। सही समय पर डायग्नोज किया गया कैंसर खत्म किया जा सकता है। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी प्रकार की चिकित्सा और उपचार प्रदान नहीं करता है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको ये आर्टिकल पसंद आया होगा। आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।