ये सेल्स RCC के तहत आती हैं और बहुत ही कॉमन होती है। ये सेल्स क्लीयर और हल्के पीले रंग की होती हैं। करीब 70 परसेंट लोगों को जिन्हें किडनी कैंसर है, उनमे क्लियर सेल RCC पाई जाती है। अमेरिकन सोसाइटी ऑफ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी (ASCO) के अनुसार क्लीयर सेल आरसीसी इम्युनोथेरेपी और ट्रीटमेंट के दौरान आसानी से खत्म की जा सकती हैं।
पैपिलरी आरसीसी (Papillary RCC)
क्लियर सेल आरसीसी के बाद किडनी में कैंसर के लिए पैपिलरी आरसीसी जिम्मेदार होती हैं। माइक्रोस्कोप से देखने पर ये फिंगर की तरह दिखाई देती हैं। आरसीसी की समस्या से जूझ रहे करीब 10 प्रतिशत लोगों में ऐसी सेल्स पाई जाती हैं। इन्हें टाइप 1 और टाइप सेंकेंड में बांटा जा सकता है।पैपिलरी आरसीसी का ट्रीटमेंट भी क्लियर सेल आरसीसी की तरह ही किया जाता है। पैपिलरी आरसीसी के लिए टारगेट थेरेपी का यूज नहीं किया जा सकता है।
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क्रोमोफोब आरसीसी (Chromophobe RCC)
ट्यूमर की समस्या वाले करीब पांच प्रतिशत लोग क्रोमोफोब आरसीसी से ग्रस्त हो सकते हैं। इसमे भी सेल्स क्लीयर सेल आरसीसी जैसी ही दिखती हैं। साथ ही सेल्स बड़ी होती है और माइक्रोस्कोप से देखे पर कुछ अलग फीचर भी नजर आते हैं। ये सेल्स कैंसर डिजीज फॉम करने के लिए कुछ कम एग्रेसिव होती हैं। शरीर के विभिन्न भागों में फैलने से पहले ये ट्यूमर बड़े हो सकते हैं।
किडनी ट्यूमर में पाए जाने वाले रेयर आरसीसी
कई अन्य प्रकार के आरसीसी किडनी ट्यूमर में रेयर ही पाए जाते हैं।
- कलेक्टिव डक्ट आरसीसी (Collecting duct RCC) बहुत एग्रेसिव होता है, ये तेजी से फैलता है।
- मल्टीलोकुलर सिस्टिक आरसीसी ( multilocular cystic RCC) गुड प्रोग्नोसिस होता है।
- अन्य आरसीसी जैसे मेडुलरी कार्सिनोमा, रीनल म्युसीनस ट्यूबलर और स्पिंडल सेल कार्सिनोमा और अन्य आरसीसी न्यूरोब्लास्टोमा से जुड़ा हुआ है। ये सभी केवल एक प्रतिशत आरसीसी को रिप्रेजेंट करते हैं।
आरसीसी की समस्या क्यों होती है ?
मेडिकल एक्सपर्ट आरसीसी के सटीक कारण को नहीं जानते हैं। यह समस्या 50 और 70 की उम्र के बीच पुरुषों में सबसे अधिक पाया जाती है। इस समस्या के कुछ रिस्क फैक्टर हो सकते हैं।
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आरसीसी के रिस्क फैक्टर में शामिल है
- आरसीसी की फैमिली हिस्ट्री
- डायलिसिस ट्रीटमेंट के कारण
- हाई ब्लड प्रेशर के कारण
- मोटापा
- सिगरेट पीने से
- पॉलीसिस्टिक किडनी रोग के कारण ( ये एक वंशानुगत डिसऑर्डर है जो किडनी में अल्सर का कारण बनता है )
- आनुवंशिक स्थिति वॉन हिप्पेल-लिंडौ रोग के कारण।इस स्थिति में विभिन्न अंगों में अल्सर और ट्यूमर की समस्या होने लगती है।
- गठिया के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली कुछ दवाओं जैसे कि नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाओं के यूज करने से और बुखारऔर दर्द से राहत के लिए ली जाने वाली दवाएं जैसे एसिटामिनोफेन आदि के कारण
अगर किसी भी व्यक्ति को जांच के दौरान ये पता चलता है कि उसे किडनी में ट्यूमर है, तो घबराएं नहीं। किडनी में ट्यूमर का मतलब ये नहीं है कि वो कैंसर ही हो। डॉक्टर जांच के बाद ही तय करेगा कि किडनी में ट्यूमर कैंसर है या फिर नहीं। बेहतर होगा कि किसी भी तरह के लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।