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A1C टेस्ट की मदद से डायबिटीज के निदान के क्या हैं फायदे और क्या हो सकते हैं नुकसान, जानिए!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 01/04/2022

    A1C टेस्ट की मदद से डायबिटीज के निदान के क्या हैं फायदे और क्या हो सकते हैं नुकसान, जानिए!

    डायबिटीज यानी वो ऑटोइम्यून डिजीज जो कई अन्य रोगों और परेशानियों का कारण बन सकती है। डायबिटीज से न तो बचाव संभव है और न ही इसका कोई इलाज है। यही कारण है कि इस स्थिति को मैनेज करने के लिए सावधानियां बरतना और जीवनशैली में बदलाव जरूरी है। अपना ब्लड ग्लूकोज लेवल आप घर पर भी ग्लूकोमीटर की मदद से आराम से जांच सकते हैं। इसके साथ ही डायबिटीज की स्थिति में A1C टेस्ट (A1C test) को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। आज हम आपको जानकारी देने वाले हैं A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में। A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में जानने से पहले A1C टेस्ट किसे कहा जाता है, यह जान लेते हैं।

    A1C टेस्ट (A1C test): पाएं इस टेस्ट के बारे में पूरी जानकारी

    A1C टेस्ट को हीमोग्लोबिन A1C या HbA1c टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सामान्य ब्लड टेस्ट है, जो रोगी में पिछले तीन महीनों की एवरेज ब्लड शुगर लेवल को जांचने के लिए किया जाता है। यह टेस्ट प्रीडायबिटीज और डायबिटीज दोनों स्थितियों में किया जा सकता है। यही नहीं, रोगी में डायबिटीज के निदान के लिए यह सबसे मुख्य टेस्ट भी है।  A1C टेस्ट (A1C test) का लेवल अधिक होने को डायबिटीज कॉम्प्लीकेशन्स के साथ भी लिंक किया जाता है।

    जब शुगर हमारे ब्लडस्ट्रीम में एंटर करती है, तो यह हीमोग्लोबिन के साथ अटैच हो जाती है, जो रेड ब्लड सेल्स में पायी जाने वाली प्रोटीन है। वैसे तो हम सभी के हीमोग्लोबिन में कुछ शुगर अटैच होती है लेकिन जिन लोगों में ब्लड शुगर लेवल हाय होता है, उनमें यह सामान्य से अधिक होती है। ऐसे में,  A1C टेस्ट (A1C test) रेड ब्लड सेल्स की परसेंटेज को मापता है, जिनमें शुगर-कोटेड हीमोग्लोबिन होती है। A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में जानने से पहले आपको यह जानकारी भी होनी चाहिए कि यह टेस्ट कैसे किया जाता है?

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    कैसे किया जाता है A1C टेस्ट (A1C test)?

    इस टेस्ट को अस्पताल या लैब में रोगी के ब्लड सैंपल से आसानी से किया जा सकता है। इस टेस्ट का कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है। इसके लिए रोगी को केवल शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होना चाहिए। अब बात की जाए इस टेस्ट के परिणाम के बारे में, तो सामान्य A1C लेवल 5.7% से कम होता है, जबकि 5.7% से 6.4% प्रीडायबिटीज का संकेत है। वहीं, अगर यह प्रतिशत  6.5% से अधिक है, तो यह बताता है कि रोगी डायबिटीज से पीड़ित है। अब जानते हैं A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में।

    A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान, Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C

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    A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C)

    डायबिटीज और प्रीडायबिटीज की स्क्रीनिंग के लिए A1C टेस्ट (A1C test), ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (Oral glucose tolerance tests) से अलग है। A1C टेस्ट सेंसिटिविटी डायबिटीज के निदान के लिए इसकी ऍप्लिकेबिलिटी को सीमित करता है। यही नहीं, यह टाइप 2 डायबिटीज के निदान को मिस या डिले कर सकता है। ऐसे ही अगर इसके कुछ फायदे होते हैं तो कुछ नुकसान भी हो सकते हैं। अब जानते हैं A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे के बारे में।

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    A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) में इसके फायदे

    A1C टेस्ट (A1C test) डायबिटीज और प्रीडायबिटीज के जल्दी निदान के लिए सबसे लाभदायक टूल है।  यही नहीं, इसके जल्दी निदान से आप आसानी से अपने लाइफस्टाइल में बदलाव कर सकते हैं ताकि डायबिटीज की प्रोग्रेशन से बचा जा सके। A1C टेस्ट और ब्लड ग्लूकोज टेस्ट के कई अन्य फायदे हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

    • इस टेस्ट को करने के लिए आपके लिए फास्टिंग करना जरूरी नहीं है यानी इसका सैंपल लेने से पहले रोगी का भूखा रहना आवश्यक नहीं है। यही नहीं, इसका सैंपल दिन के किसी भी समय लिया जा सकता है। एक सिंगल सैंपल से ही डायबिटीज का निदान हो सकता है।
    • इस A1C टेस्ट (A1C test) में प्लाज्मा ग्लूकोज की तुलना में अधिक प्री-एनालिटिकल स्टेबिलिटी (Pre-analytical stability) होती है। प्री-एनालिटिकल फेज को उस फेज के रूप में पारिभाषित किया जाता है जो एनालिसीस से पहले होता है।
    • A1C टेस्ट्स इस बात में मदद कर सकता है कि आप सेल्फ मॉनिटरिंग को कितनी सही से कर सकते हैं। होम ग्लूकोज टेस्ट में कई एरर हो सकते हैं, ऐसे में यह टेस्ट एक बेहतर विकल्प है। यानी, यह टेस्ट समय, पैसा और प्रयासों को बचाने में मददगार होता है।
    • यह टेस्ट इस बात को कंफर्म करने में भी लाभदायक है कि जो ट्रीटमेंट आप ले रहे हैं वो आपके लिए सही है या उसमें मॉडिफिकेशन जरूरी है। अगर आपका A1C रिजल्ट टारगेट में नहीं है तो आपके लिए डायबिटीज ट्रीटमेंट में बदलाव जरूरी है। जब एक बार आप अपना A1C टारगेट अचीव कर लेते हैं, तो उसके बाद आप उपचार के तरीकों को और ज्यादा सुधार कर अगले गोल को अचीव करने का प्रयास करें।
    • A1C टेस्ट (A1C test) की सही रेंज में पहुंचने से आप कई डायबिटीज कॉम्प्लीकेशन्स से बच सकते हैं। इनमें नर्व डैमेज, आंखों और ओरल समस्याओं, हार्ट अटैक और डिप्रेशन आदि शामिल है।

    अब जानते हैं A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) में इनके नुकसान के बारे में।

    A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) में इसके नुकसान

    A1C टेस्ट (A1C test) आमतौर पर रिलाएबल है लेकिन इसकी एक्यूरेसी की कुछ लिमिटेशंस हो सकती हैं जैसे एनीमिया से पीड़ित लोगों में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं होता। जिससे इसका परिणाम एक्यूरेट नहीं आता। इसके लिए उन्हें अन्य टेस्ट्स की जरूरत हो सकती है। इसके अलावा इसके अन्य कुछ नुकसान इस प्रकार हैं:

    • प्रेग्नेंसी में या अगर कोई व्यक्ति हीमोग्लोबिन के अनकॉमन प्रकार (जिसे हीमोग्लोबिन वेरिएंट (Hemoglobin variant) कहा जाता है) होने से भी इनएक्यूरे HbA1c रिजल्ट आ सकता है। जबकि, इसकी रीडिंग शार्ट टर्म इश्यूज जैसे किसी बीमारी से भी प्रभावित हो सकती है। क्योंकि, वे ब्लड ग्लूकोज में अस्थायी वृद्धि का कारण बन सकती हैं।
    • HbA1c टेस्ट जिस तरह से ब्लड ग्लुकोज को मापता है उससे भी इसके परिणाम में विविधता आ सकती है। जैसे यदि आपके HbA1c टेस्ट से पहले के हफ्तों में अगर रोगी का ब्लड ग्लूकोज लेवल अधिक है, तो यह टेस्ट से 2 से 3 महीने पहले आपके ग्लूकोज लेवल की तुलना में आपके टेस्ट का रिजल्ट पर अधिक प्रभाव डालेगा।

    यह तो थी A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में जानकारी। अब जानते हैं कि A1C लेवल को कैसे मैनेज करें?

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    A1C लेवल्स को कैसे मैनेज करें?

    जैसा की पहले ही बताया गया है कि सामान्य A1C लेवल 5.7% से कम होता है। अगर आप टाइप 2 डायबिटीज के शुरुआती स्टेज में हैं, तो अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव कर के आप इस लेवल को मैनेज कर सकते हैं। यही नहीं इससे आप न केवल कई कॉम्प्लीकेशन्स के बच सकते हैं बल्कि ब्लड शुगर लेवल भी सही रहता है। ऐसे में एक्सरसाइज प्रोग्राम से भी आपको हेल्प मिल सकती है। डायबिटीज की स्थिति में निदान के तुरंत बाद उपचार जरूरी है। यही नहीं, समय-समय पर इसकी जांच कराना, दवाइयां लेना और डॉक्टर की सलाह का पालन करना भी बेहद आवश्यक है।

    जिन लोगों को लंबे समय से डायबिटीज या प्रीडायबिटीज है, उनमें हाय A1C रिजल्ट्स इस बात का संकेत हैं कि आप अपने लाइफस्टाइल में बदलाव और उपचार में परिवर्तन की जरूरत है। प्रीडायबिटीज कुछ ही समय में डायबिटीज में बदल सकती है। ऐसे में उन रोगियों के लिए नियमित ब्लड ग्लूकोज की जांच और सही कदम उठाना बेहद जरूरी है। इसके बेस्ट ट्रीटमेंट प्लान के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।

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    यह तो थी जानकारी A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में। A1C टेस्ट (A1C test) ब्लड में हीमोग्लोबिन के अमाउंट जो जांचने के लिए किया जाता है, जिसमें ग्लूकोज अटैच होता है। यह टेस्ट पिछले 3 महीनों के लिए आपके ब्लड ग्लूकोज की औसत रीडिंग प्रदान करता है। इसे ब्लड शुगर लेवल को मॉनिटर करने के साथ ही प्रीडायबिटीज और डायबिटीज की स्क्रीनिंग और निदान के लिए प्रयोग किया जाता है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों को एक साल में कम से कम दो बार इस टेस्ट को कराना चाहिए। कुछ मामलों में दो से अधिक बार इस टेस्ट की सलाह भी दी जा सकती है।

    डिस्क्लेमर

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