यह तो थी A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में जानकारी। अब जानते हैं कि A1C लेवल को कैसे मैनेज करें?
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A1C लेवल्स को कैसे मैनेज करें?
जैसा की पहले ही बताया गया है कि सामान्य A1C लेवल 5.7% से कम होता है। अगर आप टाइप 2 डायबिटीज के शुरुआती स्टेज में हैं, तो अपनी जीवनशैली में कुछ बदलाव कर के आप इस लेवल को मैनेज कर सकते हैं। यही नहीं इससे आप न केवल कई कॉम्प्लीकेशन्स के बच सकते हैं बल्कि ब्लड शुगर लेवल भी सही रहता है। ऐसे में एक्सरसाइज प्रोग्राम से भी आपको हेल्प मिल सकती है। डायबिटीज की स्थिति में निदान के तुरंत बाद उपचार जरूरी है। यही नहीं, समय-समय पर इसकी जांच कराना, दवाइयां लेना और डॉक्टर की सलाह का पालन करना भी बेहद आवश्यक है।
जिन लोगों को लंबे समय से डायबिटीज या प्रीडायबिटीज है, उनमें हाय A1C रिजल्ट्स इस बात का संकेत हैं कि आप अपने लाइफस्टाइल में बदलाव और उपचार में परिवर्तन की जरूरत है। प्रीडायबिटीज कुछ ही समय में डायबिटीज में बदल सकती है। ऐसे में उन रोगियों के लिए नियमित ब्लड ग्लूकोज की जांच और सही कदम उठाना बेहद जरूरी है। इसके बेस्ट ट्रीटमेंट प्लान के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
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यह तो थी जानकारी A1C से डायबिटीज के निदान के फायदे और नुकसान (Pros and Cons of Diagnosing Diabetes With A1C) के बारे में। A1C टेस्ट (A1C test) ब्लड में हीमोग्लोबिन के अमाउंट जो जांचने के लिए किया जाता है, जिसमें ग्लूकोज अटैच होता है। यह टेस्ट पिछले 3 महीनों के लिए आपके ब्लड ग्लूकोज की औसत रीडिंग प्रदान करता है। इसे ब्लड शुगर लेवल को मॉनिटर करने के साथ ही प्रीडायबिटीज और डायबिटीज की स्क्रीनिंग और निदान के लिए प्रयोग किया जाता है। डायबिटीज से पीड़ित लोगों को एक साल में कम से कम दो बार इस टेस्ट को कराना चाहिए। कुछ मामलों में दो से अधिक बार इस टेस्ट की सलाह भी दी जा सकती है।