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डायबिटीज में एनीमिया का रिस्क क्यों बढ़ जाता है?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Sayali Chaudhari · फार्मेकोलॉजी · Hello Swasthya


Manjari Khare द्वारा लिखित · अपडेटेड 29/11/2021

    डायबिटीज में एनीमिया का रिस्क क्यों बढ़ जाता है?

    डायबिटीज के मरीजों में एनीमिया होना सामान्य माना गया है। इसे डायबिटीज का एक कॉम्प्लिकेशन मान सकते हैं। एनसीबीआई (NCBI) में छपी स्टडी के अनुसार डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) को लेकर 820 मरीजों पर अध्ययन किया गया। जिसमें 190 मरीजों को अनरिक्नाइज्ड एनीमिया (Unrecognized anemia) के बारे में पता चला। किडनी से संबंधित परेशानी और आयरन स्टोरेज वाले मरीजों में यह प्रसार 2 से 3 गुना अधिक है। डायबिटीज की बीमारी में मौजूद अतिरिक्त फैक्टर्स मरीजों में एनीमिया के बढ़ते जोखिम के विकास में योगदान कर सकते हैं। इस आर्टिकल में डायबिटीज में एनीमिया के विषय पर जानकारी दी जा रही है।

    डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes)

    स्टडीज में यह बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) की समस्या हो सकती है, लेकिन इसके साथ ही आपको बता दें कि एंड स्टेज रीनल डिजीज का कॉमन कारण डायबिटीज होती है। इसलिए यह रीनल एनीमिया का सबसे आम कारण है। इसके साथ ही डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) अधिक आम हो सकता है। डायबिटिक नेफ्रोपेथी में भी इसका योगदान हो सकता है। हालांकि यह अभी तक अप्रमाणित है कि क्या एनीमिया सीधे डायबिटिक नेप्रोपेथी और डायबिटिक रीनल डिजीज (Diabetic renal disease) की प्रगति में योगदान देता है। हालांकि, मधुमेह के रोगी एनीमिया के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं क्योंकि कई लोगों को महत्वपूर्ण हृदय रोग (Cardiovascular disease) और हाइपोक्सिया इंडूस्ड ऑर्गन डैमेज (Hypoxia-induced organ damage) भी होते हैं।

    इसके अलावा, कई अध्ययनों ने सुझाव दिया है कि हीमोग्लोबिन का स्तर हृदय संबंधी घटनाओं, अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर के जोखिम से जुड़ा हो सकता है। इसके खिलाफ, कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि एनीमिया को ठीक करने से जीवन की गुणवत्ता के अलावा, रीनल फंक्शन फेलियर वाले मरीजों में परिणामों में काफी सुधार होता है।

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    डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) को लेकर क्या कहती है स्टडी?

    डायबिटीज में एनीमिया के प्रसार को लेकर भारत में भी स्टडीज की गई हैं। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिचर्स इन मेडिकल साइंसेस में छपी एक स्टडी का उद्देश्य टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में एनीमिया की व्यापकता का पता लगाना था। इस स्टडी में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस से पीड़ित 100 मरीजों को शामिल किया गया था। ये स्टडी एक साल (नवंबर 2016 – दिसंबर 2017) तक की गई। स्टडी हैदराबाद बालापुर के ओम साईं हॉस्पिटल्स में परफार्म की गई थी।

    सभी मरीजों की डिटेल्ड हिस्ट्री और क्लिनिकल एग्जामिनेशन और इंवेस्टिगेशन किया गया था। मरीजों के ब्लड सेम्पल को ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (HbA1C) वैल्यू और हीमोग्लोबिन (Hb) के स्तर के लिए विश्लेषित किया गया था। इस स्टडी में 43% लोगों में एनीमिया का प्रिवेलेंस पाया गया। डायबिटिक पुरुषों की तुलना में डायबिटिक महिलाओं में एनीमिया का प्रिवेलेंस अधिक पाया गया। इस प्रकार डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) होने की बात को बल मिलता है। अब तक इस लेख में आपने रीनल एनीमिया का नाम पढ़ा होगा। चलिए इसके बारे में विस्तार से जान लीजिए।

    क्या है रीनल एनीमिया? (What is Renal Anemia)

    एनीमिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें ब्लड में सामान्य से कम रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन होता है। हीमोग्लोबिन आयरन रिच प्रोटीन होता है जो रेड ब्लस सेल्स को ऑक्सिजन को फेफड़ों से शरीर के दूसरे हिस्सों में जाने की अनुमति देता है। रेड ब्लड सेल्स या हीमोग्लोबिन कम होने से बॉडी के दूसरे हिस्सों जैसे कि हार्ट या ब्रेन को काम करने के लिए पर्याप्त ऑक्सिजन नहीं मिल पाती है। एनीमिया क्रोनिक किडनी डिजीज का एक सामान्य कॉम्प्लिकेशन है। सीकेडी का मतलब है कि आपकी किडनी डैमेज्ड हैं और जैसे उन्हें ब्लड को फिल्टर करना चाहिए वे नहीं कर पा रही हैं। इसकी वजह से शरीर में अपशिष्ट पदार्थों का बिल्ड अप हो जाता है।

    एनीमिया अर्ली किडनी डिजीज में होना कम सामान्य है, लेकिन किडनी डिजीज के बढ़ने या अधिक किडनी फंक्शन के खत्म होने पर यह बिगड़ सकती है। सीकेडी को ही एनीमिया ऑफ रीनल डिजीज (Anemia of renal disease) कहा जाता है। ऐसे लोग जिन्हें सीकेडी के साथ डायबिटीज भी है उनमें एनीमिया होने की खतरा ज्यादा होता है। साथ ही उनमें अर्ली डायबिटीज में एनीमिया होने की प्रवृति होती है और जिन्हें डायबिटीज नहीं उनकी तुलना में सीवियर एनीमिया होने की संभावना होती है।

    डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) के अलावा भी अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं हो सकती हैं। जो निम्न हैं।

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    कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (Cardiovascular disease)

    डायबिटीज में एनीमिया

    डायबिटीज की बीमारी कई प्रकार की कार्डियोवैस्कुलर प्रॉब्लम्स का रिस्क बढ़ा देती है। जिसमें कोरोनरी आर्टरी डिजीज के साथ सीने में दर्द, हार्ट अटैक, स्ट्रोक, एथेरोस्केलोसिस आदि शामिल हैं। अगर आपको डायबिटीज है तो हार्ट डिजीज और स्ट्रोक का रिस्क बढ़ जाता है।

    नर्व डैमेज या न्यूरोपैथी (Nerve damage or neuropathy)

    अधिक मात्रा में शुगर ब्लड वेसल्स की दीवारों को घायल कर सकती है जो नर्व्स का ख्याल रखती हैं। खासकर पैरों में। इसकी वजह से सुन्नपन्न, झुनझुनी और अंगूठे और उंगलियों से शुरू होने वाला दर्द जो आगे तक फैलता है जैसी परेशानियां हो सकती हैं।

    आय डैमेज या रेटिनोपेथी (Eye damage or retinopathy)

    डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) ही नहीं आय प्रॉब्लम्स भी हो सकती हैं। डायबिटीज रेटिना की ब्लड वेसल्स को डैमेज कर सकती है। इसके साथ ही डायबिटीज दूसरी गंभीर विजन कंडिशन्स का रिस्क बढ़ा सकती है जिसमें मोतियाबिंद (Cataracts) और ग्लॉकोमा (Glaucoma) शामिल है।

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    फुट डैमेज (Foot damage)

    पैरों की नर्व डैमेज या पैरों में खराब रक्त प्रवाह से पैर की विभिन्न जटिलताओं का खतरा बढ़ जाता है। अगर इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो यह छाले और गंभीर संक्रमण विकसित कर सकते हैं। इन संक्रमणों के लिए अंततः पैर की अंगुली, पैर या पैर को अलग करने की आवश्यकता हो सकती है।

    त्वचा से संबंधित स्थितियां (Skin condition)

    मधुमेह आपको त्वचा की समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है, जिसमें बैक्टीरिया और फंगल संक्रमण शामिल हैं। इसके साथ ही डायबिटजी सुनने की क्षमता प्रभावित कर सकती है। मधुमेह वाले लोगों में सुनने की समस्या अधिक आम है।

    अल्जाइमर रोग (Alzheimer’s disease)

    टाइप 2 मधुमेह अल्जाइमर रोग  के जोखिम को बढ़ा सकता है। आपका रक्त शर्करा नियंत्रण जितना खराब होगा, जोखिम उतना ही अधिक होगा। हालांकि, इन दोनों के कनेक्शन को लेकर अभी तक सिर्फ थ्योरीज हैं। ऐसा कैसे होता है अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है।

    और पढ़ें: टाइप 2 डायबिटीज में न्यू ड्रग ट्रीटमेंट : जानिए क्या है ये खास ट्रीटमेंट? 

    अवसाद (Depression)

    टाइप 1 और टाइप 2 मधुमेह वाले लोगों में अवसाद के लक्षण आम हैं। अवसाद मधुमेह प्रबंधन को प्रभावित कर सकता है।

    इन कॉम्प्लिकेशन से बचने का तरीका डायबिटीज को मैनेज करना और ब्लड शुगर लेवल को टार्गेट रेंज में रखना है। जिसमें हेल्दी डायट, एक्सरसाइज, डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं को समय पर लेना महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ब्लड शुगर को मैनेज करने के तरीकों के बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

    उम्मीद करते हैं कि आपको डायबिटीज में एनीमिया (Anemia in diabetes) से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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