डायबिटिक किडनी डिजीज, किडनी से सम्बंधित एक बीमारी है जिसका मुख्य कारण डायबिटीज है। डायबिटीज कई बीमारियों के लिए कारण बन सकता है। 25% व्यक्ति जो डायबिटिक होते है, उन्हें किडनी से सम्बंधित समस्या हो सकती है। इस आर्टिकल में हम डायबिटीज और उस से होने वाली किडनी की समस्या के बारे में जानेंगे। साथ ही ये भी देखेंगे कि इन समस्याओ से कैसे बचा जा सकता है।
क्या होता है डायबिटिक किडनी डिजीज? (Diabetic Kidney Disease)
डायबिटिक नेफ्रोपैथी (Diabetic nephropathy) किडनी की ऐसी बीमारी है, जो डायबिटीज (Diabetes) की वजह से होती है। किडनी (Kidney) शरीर की सारी अशुद्धियों के निष्कासन में मदद करती है, जो बाद में मूत्र मार्ग से शरीर से निकल जाती हैं। जब किडनी में किसी प्रकार की समस्या आ जाती है, तब ये खून को शुद्ध नहीं कर पाती, जिसके नतीजतन शरीर में खराब पानी जमा होने लगता है।
डायबिटिक नेफ्रोपैथी (Nefrose), डायबिटिक लोगो में होने वाली आम बीमारी है। देखा गया है कि 4 में से हर 1 डायबिटिक व्यक्ति को ये समस्या हो सकती है।
डायबिटीज किस प्रकार किडनी को क्षति पहुंचाता है?
शरीर में बढा हुआ शुगर लेवल पूरे शरीर को क्षति पहुंचाता है, लेकिन मुख्य रूप से इसका शिकार किडनी बनती है।
किडनी की रक्त धमनियां (blood vessels)
किडनी का काम खून की अशुद्धि को काबू करना होता है। किडनी में पाई जानेवाली छोटी रक्त (Blood) धमनियां प्रमुख रूप से इस काम को करती है। लेकिन जब इन रक्त धमनियों में शुगर लेवल बढ जाता है, तो ये छोटी और बाधित होने लगती हैं। इसकी वजह से खून इन धमनियों तक नहीं पहुंच पाता है। खून की कमी से किडनी को क्षति पहुंचती है। एल्ब्यूमिन (Albumin) नाम का प्रोटीन इसी वजह से शरीर में रहने की बजाय मूत्र के साथ निष्काषित हो जाता है।
नर्वस सिस्टम को पहुंचती है क्षति
डायबिटीज शरीर के नर्वस सिस्टम को भी क्षति पहुंचाता है। नर्वस सिस्टम शरीर में मैसेंजर की तरह काम करता है, जो शरीर के अलग-अलग भागों तक सन्देश पहुंचाने का काम करता है। नर्वस सिस्टम में खराबी की वजह से ब्लैडर (Bladder) भरने के बाद भी मस्तिष्क को संदेश नहीं जाता और इस तरह किडनी को क्षति पहुंचाने का काम करता है।
मूत्र मार्ग (Urinary tract)
ब्लैडर समय से खाली नहीं हो पाने के कारण ब्लैडर में मूत्र संक्रमण (Urine Infection) फैलता है। बैक्टीरिया सृजित ये संक्रमण, ब्लड शुगर के साथ तेजी से ब्लैडर में फैलने लगता है। लम्बे समय तक बैक्टीरिया रहने से संक्रमण किडनी तक पहुंच जाता है।
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डायबिटिक किडनी फेलियर के लक्षण (Symptoms of Diabetes Kidney Failure)
डायबिटिक किडनी फेलियर में शुरुआती दिनों में कोई खास लक्षण दिखाई नहीं देते। परन्तु जैसे-जैसे किडनी की तकलीफ बढती है, लक्षण दिखाई देने लगते हैं। इनमें से कुछ लक्षण निम्न प्रकार के हैं –
- हाथ, पैर, चेहरे पर सूजन आना
- सोने में तकलीफ या ध्यान केंद्रित करने में तकलीफ होना
- भूख ना लगना
- मितली आना
- कमजोरी का अनुभव करना
- खुजली होना (किडनी की समस्या का ये आखिरी चरण होता है, जब त्वचा पूरी तरह शुष्क पड़ जाती है)
- चक्कर आना
- ह्रदय (Heart) की गति का अनियमित होना
- शरीर की चमडी का झूल जाना
जैसे-जैसे किडनी की समस्या बढती है, किडनी शरीर से अशुद्धियों को बाहर नहीं निकाल पाती। नतीजतन, शरीर में ये अशुद्धियां विष का निर्माण करना शुरू कर देती हैं। इस स्थिति को यूरीमिया (Uremia) के नाम से जाना जाता है।
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डायबिटीज से किडनी को कैसे बचाएं
डॉक्टर इन सारी बातों का ध्यान रखते हुए आपके लिए मील प्लान (Meal plan) बना सकते हैं। जो कि मुख्य रूप से आपके शुगर लेवल पर निर्भर करता है। इसके अलावा आप किसी अच्छे नेफ्रोलॉजिस्ट (Nephrologist) यानि किडनी के डॉक्टर से भी संपर्क कर सकते हैं। एक अनुशासित रहन-सहन के साथ आप डायबिटीज को नियंत्रित कर किडनी को बचा सकते हैं।
अपने ब्लड शुगर का ध्यान रखें
किडनी को किसी भी प्रकार की क्षति से बचाने के लिए सबसे बढ़िया रास्ता है ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखना। ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखने के लिए समय-समय पर ब्लड शुगर की जांच करते रहें। इसके अलावा एक अनुशासित जीवनशैली को अपनाएं। नियमित रूप से व्यायाम करें और नुक्सान पहुंचाने वाले भोजन का सेवन न करें।
ब्लड प्रेशर को नियंत्रण में रखें
बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर के साथ किडनी को क्षति पहुंचाने में ज्यादा सक्रीय हो सकता हैं। डॉक्टर से इस बारे में सलाह करें कि ब्लड प्रेशर का लेवल कितना होना चाहिए। साथ ही नियमित रूप से ब्लड प्रेशर की जांच करवाते रहें।
किडनी को बचाने के लिए दवाएं (ACE inhibitors)
डॉक्टर आपकी स्थिति के अनुसार ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए एंजियोटेनसिन-कंवर्टिंग एंजाइम (Angiotensin-converting enzyme (ACE) सम्बंधित दवाएं दे सकते हैं। ये दवाएं ब्लड प्रेशर को कम कर के किडनी को सुरक्षा देती हैं।
प्रोटीन सेवन की मात्रा निश्चित करें
रिसर्च के अनुसार, डायबिटीज से ग्रसित लोगों को प्रोटीन अच्छी मात्रा में लेना चाहिए। लेकिन साथ ही ज्यादा प्रोटीन का सेवन भी किडनी को नुकसान पहुंचा सकता हैं। इसलिए जरुरी हैं कि प्रोटीन लेने की सही मात्रा तय की जाए। इसके लिए आप अपने डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। डायटीशियन भी इसमें आपकी मदद कर सकती हैं। सुनिश्चित करें कि जो भोजन आप ले रहे हैं, वो आपके शरीर को पोषण प्रदान करे, क्षति नहीं।
मूत्र सम्बंधित समस्या को तुरंत डॉक्टर को बताएं
अगर आपको किसी भी प्रकार से मूत्र निकासी में समस्या आ रही है, जैसे कि मूत्र मार्ग में जलन होना, बहुत ज्यादा बार मूत्र के लिए जाना, मूत्र के साथ खून के अंश दिखाई देना अथवा तीव्र गंध अनुभव करना। ऐसी किसी भी स्थिति में तुरंत डॉक्टर को संपर्क करें। सही समय पर इलाज शुरू होने से किसी भी प्रकार की क्षति को टाला जा सकता हैं।
नमक का कम सेवन करें
ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के लिए नमक को कम मात्रा में लें।
बिना डॉक्टरी सलाह के कोई दवा न लें
NSAIDs (Non-Steroidal Anti-Inflammatory Drugs) जैसे कि आइबूप्रोफेन (ibuprofen) या फिर नेप्रोक्सेन (naproxen) किडनी को नुकसान पहुंचा सकता हैं। किसी भी प्रकार की दवा लेने से पहले अपने डॉक्टर के सलाह जरूर लें।
कोलेस्ट्रॉल के लिपिड लेवल को नियंत्रित रखें
शरीर में किसी भी प्रकार का परिवर्तन बड़ी समस्या को जन्म दे सकता है। समय-समय पर कोलेस्ट्रॉल और लिपिड प्रोफाइल की जांच करवाते रहें और अनहोनी से बचे रहे।
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डायबिटिक किडनी डिजीज का इलाज
“इलाज से बेहतर बचाव हैं “, ये कहावत यहां सार्थक होती है। डायबिटिक किडनी डिजीज का कोई भी इलाज अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित 30% लोग किडनी फेलियर की परेशानी का सामना करते हैं, वहीं टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित40% लोगों को इस समस्या से लड़ना पड़ता है। हाल ही में भारत में तकरीबन 80 लाख लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं। जो कि एक बहुत बड़ा आकड़ा है।
सभी प्रकार की सावधानियों के बाद भी अगर आप किडनी फेलियर का सामना करते हैं, तो इसके दो इलाज हो सकते हैं।
किडनी डायलिसिस ट्रीटमेंट्स (Kidney dialysis treatments)
किडनी अशुद्धि को छानने के काम में जब असफल हो जाती हैं, तब डायलिसिस ट्रीटमेंट्स को काम में लाया जाता हैं। डायलिसिस ट्रीटमेंट्स के जरिये डायलिसिस मशीन खून की अशुद्धियों को दूर करता हैं। डायलिसिस ट्रीटमेंट्स 3 प्रकार के होते हैं
- हेमोडायलिसिस (Hemodialysis)
- पेरिटोनियल डायलिसिस (Peritoneal dialysis)
- कंटीन्यूअस रेनल रिप्लेसमेंट थेरेपी (Continuous renal replacement therapy (CRRT))
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किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant)
किडनी फेलियर के स्थिति में डायलिसिस में जा रहे कुछ लोग ट्रांसप्लांट के योग्य होते हैं। डायलिसिस में मरीज को काफी समस्या होती है, जबकि किडनी ट्रांसप्लांट, डायलिसिस में होने वाली झंझटो से निपटने के लिए कारगर है। लेकिन किडनी ट्रांसप्लांट के लिए वही लोग जा सकते हैं, जिनकी किडनी पूरी तरह से खराब हो चुकी हो। साथ ही इसके लिए सही डोनर की भी जरुरत होती हैं, जो काफी मुश्किल होता है।
ये जरुरी नहीं कि अगर किसी को डायबिटीज है, तो उसे डायबिटिक किडनी डिजीज (Diabetic Kidney Disease) हो। परन्तु सावधानी जरुरी है ,ताकि भविष्य में होने वाली समस्या से बचा जा सके।
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