आप डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं और आपको अपने ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए इंसुलिन पर निर्भर होना पड़ता है तो, इस स्थिति में इंसुलिन लेने के लिए आप रोजाना कई इंजेक्शन लेते होंगे। इंसुलिन पंप इसी का वैकल्पिक तरीका है। इसके तहत इंजेक्शन के बजाय इंसुलिन (Insulin) पंप के जरिए शरीर को पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन के साथ जरूरत पड़ने पर बोलुस (Bolus ) मिलता है। इस प्रकिया में जरूरी है कि आप नियमित तौर पर अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच करते रहें, ऐसे में आप इंसुलिन लेने के लिए इंजेक्शन के बजाय इंसुलिन पंप का सहारा लेकर ब्लड ग्लूकोज लेवल को बेहतर तरीके से मैनेज कर सकते हैं।
इंसुलिन पंप (Insulin Pump) करता क्या है?
इंसुलिन (Insulin) पंप एक छोटा यंत्र है, जिसमें एक बीपर होने के साथ यह छोटे कंप्यूटर के समान दिखता है। यह ताश के पत्तों के डेक से थोड़ा छोटा होता है। इंसुलिन पंप के उपकरणों व किसकी क्या है विशेषता उसको जानें,
- रेजर्व्वार (Reservoir) : रेजर्व्वार उस जगह को कहते हैं, जहां इंसुलिन स्टोर (Insulin test) किया जाता है। समय-समय पर इंसुलिन के खत्म होने पर इसे भरना जरूरी होता है, ताकि इसका फायदा उठाया जा सके।
- कैनुला (Cannula) : यह एक प्रकार का छोटा निडल वाला व स्ट्रॉ के आकार का ट्यूब होता है, जो फैटी टिशू के अंदर डाला जाता है, ताकि इंसुलिन को शरीर में डाला जा सके। इंसुलिन की खुराक देने के बाद निडल को निकाल दिया जाता है जबकि ट्यूब इसी जगह पर रहती है। संक्रमण को रोकने के लिए समय-समय पर आपको कैनुला व इसके उपकरण जैसे पाइप आदि को बंद करना पड़ेगा, ताकि इंफेक्शन न हो। ऐसा इसलिए किया जाता है।
- ऑपरेटिंग बटन (Operating button): ऑपरेटिंग बटन की मदद से उपकरण को इस हिसाब से सेट कर दिया जाता है कि मरीज को दिन भर में समय समय पर इंसुलिन की खुराक मिलती रहे, खाने का समय होने पर उसे बोलस डोज मिलता रहता है।
- ट्यूबिंग (Tubing): यह एक पतली, फ्लेक्सिबल पाइप होती है, जो इंसुलिन को पंप से कैनुला तक ले जाने में मदद करती है।
कई लोगों के लिए इंसुलिन पंप इतना आरामदायक होता है कि वो इसे लगाकर बिना किसी की चिंता किए अपने रोजमर्रा के काम आसानी से कर पाते हैं। वहीं उन्हें डायबिटीज के लिए सप्लाई की आवश्यकता तक नहीं पड़ती है। वहीं इस उपकरण के जरिए मरीज को सही डोज मिलने के साथ सही समय पर डोज मिलते रहता है।
दो प्रकार के होते हैं इंसुलिन पंप (Types of Insulin Pump)
सामान्य तौर पर इंसुलिन पंप दो प्रकार के होते हैं, पहला बेसल रेट होता है। यह लगातार दिनभर में कम मात्रा में शरीर में इंसुलिन की मात्रा को पहुंचाते रहता है। इंसुलिन लेने से रात के समय खाना खाने के दौरान मरीज का ब्लड शुगर (Blood sugar) सामान्य बना रहता है। वहीं दूसरे प्रकार को बोलुस डोज ऑफ इंसुलिन कहा जाता है। यह खाना खाने के समय पर दिया जाता है, ताकि खाना खाने के वक्त हमारा ब्लड शुगर लेवल नियमित मात्रा में रहे।
इंसुलिन पंप का इस्तेमाल करने वाले डायबिटीज के मरीजों को उनके डॉक्टर यह सुझाव दे सकते हैं कि दोनों बेसल और बोलुस डोज की मात्रा, ब्लड ग्लूकोज लेवल, मरीज का डेली रूटीन, टारगेट ब्लड शुगर लेवल (Blood sugar level) आदि को ध्यान में रखते हुए डोज का निर्धारण किया जाता है।
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इंसुलिन पंप (Insulin Pump) लगाने पर मरीज की बढ़ती है जिम्मेदारी, करना पड़ता है यह सब
इंसुलिन पंप को पहनने के बाद मरीज की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ जाती है, ऐसा इसलिए है क्योंकि आपको पंप और पंप साइट को मेनटेन रखना पड़ता है। इंफेक्शन न हो इसलिए हर दो से तीन दिनों में आपको पंप को निकालना होता है। जरूरत के अनुसर इंसुलिन रेज़र्व्वार को निकाल उसमें इंसुलिन भरना होता है। आपकी सहुलियत व याद रखने के लिए आप जब भी अपने इंफ्यूशन साइट लोकेशन को बदलते हैं, उसी वक्त आप इंसुलिन रेज़र्व्वार में इंसुलिन डाल दें। मौजूदा समय में कई मैन्युफैक्चर इंसुलिन पंप का निर्माण करते हैं। इसे इस्तेमाल करने के पहले इस उपकरण पर दिए दिशा-निर्देशों को सही से पढ़ना चाहिए।
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क्या इंसुलिन पंप (Insulin Pump) हमारे स्वास्थ्य के लिए रिस्की हो सकते हैं?
एक्सपर्ट बताते हैं कि इंसुलिन पंप के जरिए शरीर में ब्लड शुगर को मेनटेन रखना काफी सुरक्षित होता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आप सही तरीके से इस उपकरण का इस्तेमाल करें। यह भी है कि इंसुलिन पंप का इस्तेमाल हर इंसान नहीं कर सकता है। जो इंसान इंसुलिन पंप का इस्तेमाल करते हैं उन्हें नियमित तौर पर ब्लड शुगर लेवल की जांच करानी होती है, ताकि वो कार्बोहाइड्रेड काउंट को जान सकें और उसी के हिसाब से खाने के समय इंसुलिन की मात्रा ले सकें। वहीं इंसुलिन पंप लगाने वाले लोग ज्यादा कूद-फांद नहीं कर सकते हैं। वैसे लोग जो नियमित तौर पर टेस्टिंग कर सकते हैं, खानपान में सुधार कर सकते हैं, वैसे लोगों को ही इंसुलिन पंप लगाने की सलाह डॉक्टर देते हैं।
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इंसुलिन पंप लगाने से जुड़ी कुछ रिस्क (Some risk associated with applying insulin pump)
- इंसुलिन पंप को अच्छे से चलाने के लिए मरीज को खास ट्रेनिंग की आवश्यकता पड़ती है
- पंप को खरीदने के साथ इसे कैसे ऑपरेट करना है उसको लेकर आपके पैसे खर्च करने होते हैं (कुछ इंश्योरेंस प्लान इन खर्चों को कवर करते हैं)
- इंफेक्शन होने की रहती है संभावना
इस पंप का इस्तेमाल करने के दौरान जब आप पानी के संपर्क में आते हैं तब आपको यह मशीन डिसकनेक्ट करनी होती है। या फिर बारिश में, पसीना आने पर, शावर लेने के दौरान, एक्सरसाइज करने के दौरान आपको इस मशीन को बंद करना होता है। कैनुला एक प्रकार के चिपकने वाले पदार्थ से चिपका होता है, यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है। इसमें पानी जाने से यह उखड़ सकता है। ऐसे में उस दौरान आपको मशीन ऑफ करनी पड़ सकती है। जरूरी है कि मशीन को कब ऑन करना है और कब इसे ऑफ करना है इसको लेकर डॉक्टर से चर्चा करनी चाहिए। कई लोग इंसुलिन पंप को लगातार दो घंटों के लिए बंद कर देते हैं।
इंसुलिन पंप में क्या देखना चाहिए (What to look for in an insulin pump)
इंसुलिन पंप का चयन करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि यह पंप सीधे आपके स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। यह आपके ब्लड शुगर लेवल को मेनटेन करने का काम करता है। पंप ऐसा होना चाहिए जिसे आप आसानी से इस्तेमाल कर सकें।
- लें जानकारी: इंसुलिन पंप को खरीदने को लेकर आप डॉक्टर से सलाह ले सकते हैं। वहीं वैसे लोगों से भी सलाह ले सकते हैं जो इंसुलिन पंप का इस्तेमाल करते हो, उनसे पूछकर अपनी सुविधा अनुसार पंप का चयन करने से अच्छा होगा।
- कीमत पर करें विचार: इंसुलिन पंप आपकी मदद तो कर सकता है लेकिन पैसों को लेकर आपकी जेब ढीली हो सकती है। यदि आपने इंश्योरेंस लिया है तो एजेंट से बात करें। कुछ इंसुलिन पंप जहां महंगे होते हैं, लेकिन उनमें कम कार्टिजिस, ट्यूबिंग व अन्य उपकरणों की आवश्यकता होती है, यह जल्दी खराब भी नहीं होते। वहीं कुछ पंप सस्ते होते हैं लेकिन उसमें संबंधित उपकरणों को बार बार खरीदना होता है। आप यह सोचकर लें कि इंसुलिन पंप को कम से कम चार से पांच साल तक पहन कर रखना होता है इसलिए उसी हिसाब से खरीदारी भी करनी चाहिए। जो टिकाउ हो उसे खरीदना बेहतर होता है।
- इंसुलिन पंप की खासियत को पढ़ें: इंसुलिन बनाने वाली कंपनी ने प्रोडक्ट के ऊपर दिशा निर्देश लिखे होते हैं, ऐसे में इसका इस्तेमाल करने के पहले जरूरी है कि आप दिए गए दिशा निर्देशों को सही से पढ़ लें। आपको बता दें कि अलग अलग फीचर्स के साथ यह इंसुलिन पंप बाजार में उपलब्ध है, लेकिन तमाम फीचर्स के साथ एक उपकरण बाजार में नहीं है, इसमें उनमें से बेहतर इंसुलिन पंप का ही चुनाव करें।
- डोज : दिनभर में आपको इंसुलिन की कितनी आवश्यकता है उसके अनुसार ही इंसुलिन पंप की खरीदारी करें। जहां कुछ पंप छोटे डोज नहीं देते हैं वहीं कुछ पंप बड़े डोज नहीं देते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप अपने डोज संबंधी जरूरतों का ख्याल रखकर ही इंसुलिन पंप की खरीदारी करें। ताकि आप पंप की मदद से आसानी से डोज ले सकें।
- प्रोग्रामिंग : मशीन की प्रोग्रामिंग को भी ध्यान से देखें, डोज को लेकर यह भी काफी अहम होता है। बता दें कि कुछ मशीनें इस हिसाब से प्रोग्राम की गई हैं कि वो 60 से ज्यादा बोलुस डोज नहीं दे पाती हैं। इन तमाम चीजों को ध्यान में रखकर ही इंसुलिन पंप की खरीदारी करें।
- रेज़र्व्वार : एक अच्छा इंसुलिन पंप वही है जिसमें कम से कम तीन दिनों तक रेज़र्व्वार की कैपेसिटी हो। कुछ लोगों को कम इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है इसलिए उन्हें दिन में कम इंसुलिन दिया जाता है, वहीं कुछ लोगों को ज्यादा इंसुलिन की जरूरत होती है उन्हें ज्यादा इंसुलिन देनी पड़ती है। इस जरूरत के हिसाब से भी इंसुलिन पंप लेना चाहिए।
- साउंड का भी है अहम रोल : इंसुलिन पंप में साउंड सिस्टम लगा होता है, जब हमारे रेज़र्व्वार में स्टोर इंसुलिन कम होने लगता है तो यह अलार्म अपने आप बजने लगता है। वहीं जब पाइप का इरेक्शन होता है उस स्थिति में भी यह बजने लगता है। इसलिए आप ऐसी मशीन ही खरीदें जिसका अलार्म आपको अच्छे से सुनाई दे।
- वाटर रेजिस्टेंस : यदि आप बार बार पानी में जाते हैं तो आपके लिए बेहतर यही होगा कि आप वैसे इंसुलिन पंप की खरीदारी करें जो वाटर रेजिस्टेंस हो। वहीं पंप के दिशा निर्देशों को अच्छे से पढ़ें। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि पंप जहां वाटर रेजिस्टेंस होता है वहीं रिमोट कंट्रोल वाटर रेजिस्टेंस नहीं होता है।
इतना ही नहीं पंप के शेप, साइज व अन्य पहलुओं की जांच करने के बाद उसे खरीदना चाहिए। ऐसे मरीजों को वैसे ही इंसुलिन पंप की खरीदारी करनी चाहिए जिसे पहनने में वो किसी प्रकार का संकोच न करें।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डॉक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।
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उन्नत तकनीक से लैस इंसुलिन पंप (Insulin pump) मार्केट में हैं मौजूद
मौजूदा समय में मार्केट में कई इंसुलिन पंप ऐसे हैं जो लगातार ब्लड ग्लूकोज की मॉनिटरिंग करते रहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इंसुलिन पंप का मॉनिटर हमें दिन भर ब्लड शुगर लेवल को दिखाते रहता है। ऐसे में हमें अपनी उंगलियों से खून निकाल चेक करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। साल दर साल इंसुलिन पंप के निर्माता इसे और आधुनिक बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं। उदाहरण के तौर पर मेडट्रॉनिक कंपनी ने मिनी मेड 640 जी सिस्टम बनाया है। इस सिस्टम के तहत यह हमारे ब्लड शुगर लेवल की जांच करते रहता है और जब ब्लड शुगर नीचे जाता है तो अपने आप ही इंसुलिन की सप्लाई को रोक देता है।
मौजूदा दौर में शोधकर्ता इससे भी उन्नत इंसुलिन पंप बना रहे हैं ताकि डायबिटीज के मरीजों को सहुलियत हो सके। यह संभव है कि एक दिन ऐसा आएगा जब इंसुलिन पंप आर्टिफिशियल पैनक्रियाज के रूप में काम करेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि इसके बाद जब कोई इंसान इंसुलिन पंप को पहन लेगा तो बिना उसे मेनुअली एडजस्ट किए वो अपने आप ही एडजस्ट हो जाएगा और हमारे शरीर को इंसुलिन की जितनी जरूरत होगी उसकी आपूर्ति करेगा। इंसुलिन पंप डॉक्टरी सलाह के बाद ही लोग लगाते हैं। वहीं यदि कोई अपने मन से इसे लगाता है तो यह गलत है, इसे लगाने को लेकर डॉक्टरी सलाह लें।
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