हाइपरटेंशन या हाई ब्लड प्रेशर का अर्थ है रक्त वाहिकाओं पर दिल के काम करने के दौरान पड़ने वाला दबाव। सामान्य रूप से लोग हायपरटेंसिव क्राइसिस (Hypertensive Crisis) को हाई ब्लड प्रेशर के नाम से जानते हैं। आजकल के जीवनशैली और खान-पान के अनियमितता के कारण हाइपरटेंशन होने का खतरा किसी भी उम्र में हो सकता है। इसलिए यदि समय पर इसपर ध्यान नहीं दिया गया तो यह हायपरटेंसिव क्राइसिस की शक्ल ले लेता है। अगर इस बीमारी को समय रहते नियंत्रण में लाना है तो इसके बारे में विस्तार से जानकारी होना आवश्यक है।
हायपरटेंसिव क्राइसिस (Hypertensive Crisis) क्या है?
हायपरटेंसिव क्राइसिस हाई ब्लड प्रेशर को कम करने पर की गई लापरवाही के बाद की स्टेज है। हायपरटेंसिव क्राइसिस में रक्तचाप हद से ज्यादा बढ़ जाता है। इस दौरान सिस्टोलिक प्रेशर(systolic pressure) 180 mmHg और डायस्टोलिक प्रेशर(diastolic pressure) 120 mmHg तक पहुंच जाता है। यह भयावह स्थिति रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाकर स्ट्रोक का कारण बन सकती है। यह स्थिति इतनी गंभीर है कि इस दौरान रक्त वाहिकाएं फट सकती हैं। रक्त वाहिकाओं में सूजन हो जाती है और द्रव या रक्त का रिसाव हो सकता है। परिणाम स्वरूप हृदय प्रभावी ढंग से रक्त पंप करने में सक्षम नहीं हो पाता।
हाइपरटेंसिव क्राइसिस के कारण (Hypertensive Crisis Causes)
- अगर किडनी के मरीज है तो किडनी के खराब होने के कारण हायपरटेंसिव क्राइसिस होने का खतरा
- दिल का दौरा या स्ट्रोक होने के कारण हायपरटेंसिव क्राइसिस होने की संभावना
- हार्ट फेलियर होने के वजह से हायपरटेंसिव क्राइसिस होने के खतरा
- ब्लड प्रेशन का मेडिसन भूल जाने के कारण हायपरटेंसिव क्राइसिस होने का खतरा
- दो अलग-प्रकार की दवा, जो साथ में लेने पर शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं
- गर्भावस्था के दौरान शरीर में अचानक आए कॉन्ट्रैक्शन के कारण हायपरटेंसिव क्राइसिस होने की संभावना
- शरीर की मुख्य आर्टरी के फटने या टूटने के कारण हायपरटेंसिव क्राइसिस होने का खतरा
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हायपरटेंसिव क्राइसिस के लक्षण (Hypertensive Crisis symptoms)
हायपरटेंसिव क्राइसिस के लक्षण निम्न हैं। अगर आपको निम्न लक्षण दिखाई देते हैं तो डॉक्टर से संपर्क करें। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि ये लक्षण किसी दूसरी हेल्थ कंडिशन के भी हो सकते हैं।
- देखने में परेशानी
- सिर दर्द
- सीने में दर्द
- धुंधला दिखना
- उल्टी जैसा महसूस होना
- सांस लेने में तकलीफ होना
- बेहोशी जैसा महसूस होना
- दिल का दौरा पड़ना
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हायपरटेंसिव क्राइसिस के प्रकार (Hypertensive Crisis types)
हायपरटेंसिव क्राइसिस के प्रकार निम्न हैं। इसके प्रकार के आधार पर ही डॉक्टर के द्वारा ट्रीटमेंट सजेस्ट किया जाता है।
हाइपरटेंसिव अर्जेंसी (Hypertensive Urgency)
जब आपको ब्लड प्रेशर रीडिंग 180/120 mmHg या इससे दिख रही हो लेकिन सिर दर्द, सीने में दर्द, धुंधली दृष्टि जैसे अन्य लक्षण साथ में ना दिख रहे हों तो आप हाइपरटेसिव अर्जेंसी की स्थिति में हैं। इस समय तुरंत अपने डॉक्टर के पास जाना जरूरी होता है। अन्य लक्षण नहीं दिखने के कारण ऑर्गन फेलियर का कम खतरा होता है, पर कुछ भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। डॉक्टर से मिलकर ही सलाह-मशवरा करें।
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हाइपरटेंसिव इमर्जेंसी (Hypertensive Emergency)
यदि ब्लड प्रेशर रीडिंग 180/120 mmHg या इससे अधिक है। इसके साथ ही सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, धुंधली दृष्टि, बोलने में कठिनाई आदि की समस्या हो रही है तो यह हाइपरटेंसिव इमर्जेंसी की स्थिति है। इस स्थिति में बिना देर किए अस्पताल पहुंचना बहुत जरूरी हो जाता है। चूंकि ऐसे में आर्टरी के फटने व ऑर्गन के फेलियर के बहुत चांस होते हैं।
हायपरटेंसिव क्राइसिस (Hypertensive Crisis) के खतरे क्या हैं?
हाई ब्लड प्रेशर पर यदि समय रहते ध्यान ना दिया जाए। वहीं हाइपरटेंशन का पता चलने के बाद मरीज दवा खाने या लाइफस्टाइल में सुधार को अपनाने में कोताही बरते तो हाइपरटेंसिव क्रासिस की नौबत आती है। ऐसी स्थिति जान के खतरे को भी साथ लाती है। इसमें मौत के साथ-साथ शरीर का किसी अंग को नुकसान पहुँच सकता है।
हायपरटेंसिव क्राइसिस का इलाज कैसे होता है? (Hypertensive Crisis treatment)
उच्च रक्तचाप की रोकथाम, मूल्यांकन और उपचार के लिए गठित की गई संयुक्त राष्ट्रीय समिति की सातवीं रिपोर्ट के अनुसार हायपरटेंसिव क्राइसिस इमर्जेंसी वाले रोगियों को निरंतर रक्तचाप की निगरानी के लिए आईसीयू में भर्ती किया जाना चाहिए। संयुक्त राष्ट्रीय समिति के अनुसार इमर्जेंसी में ब्लड प्रेशर को पहले एक घंटे में 25 प्रतिशत से ज्यादा कम नहीं करना चाहिए। अगले दो से छह घंटे में 160/100-110 mmHg तक कम करना चाहिए। यदि मरीज ठीक है तो अगले 24 से 48 घंटे में ही ब्लड प्रेशर को नॉर्मल स्थिति यानी 120/80 mmHg तक लाना चाहिए।
वहीं हायपरटेंसिव क्राइसिस अर्जेंसी के मरीजों को कुछ चेकअप के बाद दवा देकर घर भेज दिया जाता है। इसमें अपेक्षा की जाती है कि धीरे-धीरे ब्लड प्रेशर कंट्रोल में आ जाएगा। वहीं कई अस्पताल अर्जेंसी और इमर्जेंसी दोनों को एक ही तरह ट्रीट करते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इमर्जेंसी वाले मरीज की तरह अर्जेंसी वाले मरीज का ब्लड प्रेशर एकदम से कम करना हानिकारक हो सकता है। इसके कारण ब्रेन स्ट्रोक की समस्या या हार्ट फेलियर की स्थिति बन सकती है। इसलिए दोनों के चेकअप और इलाज का तरीका अलग होना चाहिए।
हायपरटेंसिव क्राइसिस से बचाव कैसे करें? (Hypertensive Crisis Preventions)
भारत में हाइपरटेंशन की स्थिति
हाई ब्लड प्रेशर से भारत भी अछूता नहीं रह गया है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(National Family Health Survey) की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2017 में 112 मिलियन पुरुष और 95 मिलियन महिलाएं हाई ब्लड प्रेशर की शिकार हो चुके हैं। एक स्टडी के मुताबिक सन् 2025 तक 22.9 प्रतिशत पुरुष और 23.6 प्रतिशत महिलाएं भारत में हाइपरटेंशन के शिकार हो सकते हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि बड़े-बुजुर्ग ही नहीं युवा भी इसकी चपेट में आ रहे हैं।
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हाइपरटेंशन से बचने के अन्य तरीके
- कार्डियो एक्सरसाइज दिल के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है। यह हाई ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल में रखती है। इसलिए नियमित रूप से कार्डियो एक्सरसाइज को अपनी जीवनशैली का अभिन्न अंग बनाएं।
- खाने में नमक या चीनी को कम करना बहुत जरूरी है।
- चुकंदर, हरी सब्जियां, सीट्रस फ्रूट हाई ब्लड प्रेशर में लाभाकरी साबित हो सकते हैं।
- हाइपरटेंशन पर शराब का प्रभाव तो बुरा पड़ता ही है। इसके साथ ही स्मोकिंग भी हाई ब्लड प्रेशर के लिए बहुत हानिकार होती है। इसलिए स्मोकिंग से दूरी बनाना भी जरूरी है।
- खाने में जो भी शामिल करना है, आप पहले से ही डॉक्टर से इस बारे में जानकारी प्राप्त करें और डायट चार्ट भी रेडी करें।
हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में ही भलाई है। यदि यह स्थिति हायपरटेंसिव क्राइसिस तक पहुंच जाती है तो आपकी जान पर भी बन सकती है। इसलिए सचेत रहें और स्वस्थ रहें। हाई ब्लड प्रेशर की समस्या का निदान लाइफस्टाइल में सुधार और खानपान पर ध्यान देकर किया जा सकता है। हाई ब्लड प्रेशर के कारण शरीर में अन्य रोग भी पनपने लगते हैं। अगर हाई ब्लड प्रेशर के शुरुआती लक्षणों के दौरान ही इलाज कर लिया जाए तो गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है। अगर आपको हाई बीपी की समस्या है तो बेहतर होगा कि आप डॉक्टर से जानकारी ले कि आपको किस प्रकार की डायट लेनी चाहिए। साथ ही ये भी जानकारी लें कि कैसे फूड आपको अवॉयड करना चाहिए। अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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