नीमन पिक डिजीज (Niemann-Pick disease) एक रेयर और आनुवंशिक बीमारी है। यह बॉडी की कोशिकाओं में फैट (कोलेस्ट्रॉल और लिपिड्स) को मेटाबॉलाइज करने की क्षमता को प्रभावित करती है। इससे ये कोशिकाएं कुपोषित हो जाती हैं और कुछ समय बाद मर जाती हैं। नीमन पिक डिजीज ब्रेन, नर्व्स, लिवर, स्पलीन, बोन मैरो और गंभीर होने पर फेफड़ों को प्रभावित करती है। इस कंडिशन से प्रभावित होने वाले लोग नर्व्स, ब्रेन और दूसरे अंगों के फंक्शन में कमी महसूस करते हैं। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन यह प्रमुख रूप से बच्चों को प्रभावित करती है। इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है और कई बार ये मौत का कारण भी बन सकती है। ट्रीटमेंट का उपयोग इसके लक्षणों को कम करने और लोगों की लाइफ को आसान बनाने के लिए किया जाता है। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
नीमन पिक डिजीज के लक्षण (Niemann-Pick disease symptoms)
- चलने में कठिनाई
- मांसपेशियों में अत्यधिक संकुचन (Dystonia)
- अत्यधिक आई मूवमेंट्स या आई मूवमेंट करने में परेशानी होना
- निगलने और खाने में कठिनाई
- बार-बार निमोनिया होना (Recurrent pneumonia)
नीमन पिक बीमारी के लक्षण इस बीमारी के प्रकार और इसकी गंभीरता के आधार पर दिखाई देते हैं। नीमन पिक के तीन प्रकार A,B,और C हैं। कुछ शिशु जिनको टाइप A नीमन पिक की बीमारी होती है उनमें संकेत और लक्षण जन्म के शुरुआती महीनों में दिखाई देने लगते हैं। टाइप B से पीड़ित बच्चों में कई वर्षों तक लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। ये एडल्टहुड (adulthood) तक आसानी पहुंच जाते हैं। वहीं टाइप सी (type C) से पीड़ित लोग एडल्टहुड तक लक्षणों को अनुभव नहीं कर पाते।
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नीमन पिक डिजीज के कारण (Causes of Niemann Pick)
नीमन पिक स्पेसिफिक जीन्स में म्यूटेशन के कारण होती है जो बॉडी फैट को कैसे मेटाबोलाइज करती है से संबंधित होता है। नीमन पिक जीन म्यूटेशन पैरेंट्स से बच्चों में एक पैटर्न के जरिए ट्रांसफर हो जाते हैं जिसे ऑटोसोमल रिसेसिव इनहेरिटेंस (autosomal recessive inheritance) कहा जाता है। इसका मतलब है कि दोनों माता और पिता से जीन के डिफेक्टिव फॉर्म बच्चे में पहुंचाते हैं और इससे बच्चा अफेक्ट होता है। नीमन पिक एक प्रोग्रेसिव डिजीज है और इसका कोई इलाज नहीं है।
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नीमन पिक के प्रकार (Types of Niemann-Pick)
टाइप ए और बी (Types A and B)
टाइप ए और बी एंजाइम स्फिंगोमाइलीनेज (sphingomyelinase) की कमी के कारण होता है। यह बॉडी की फैट को मेटाबोलाइज (Metabolize) करने की क्षमता को प्रभावित करता है। इसके परिणामस्वरूप कोशिकाओं मे फैट जमा हो जाता है। इससे आगे जाकर कोशिकाएं काम नहीं कर पाती और कुछ समय बाद मर जाती हैं। यह प्रकार प्रमुख रूप से शिशुओं में दिखाई देता है। जो प्रोग्रेसिव ब्रेन डिजीज का कारण बनता है। इसका कोई इलाज नहीं है इसलिए ज्यादातर बच्चों की जन्म के बाद के शुरुआती वर्षों में ही मौत हो जाती है। टाइप बी ज्यादातर थोड़े बड़े बच्चों में दिखाई देता है और इसमें ब्रेन डिजीज नहीं होती। ज्यादा टाइप बी से प्रभावित होने वाले बच्चे युवावस्था तक सर्वाइव करते हैं।
टाइप सी (type c)
नीमन पिक टाइप सी दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी है। इस टाइप में होने वाला जेनेटिक म्यूटेशन कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) और दूसरे फैट्स का लिवर (liver), स्पलीन और लंग्स में जमने का कारण बनता है। इससे ब्रेन भी प्रभावित होता है।
नीमन पिक डिजीज का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of Niemann-Pick disease)
नीमन पिक डिजीज के निदान की शुरुआत फिजिकल एक्जामिनेशन से होती है। जिसमें अर्ली वार्निंग साइन जैसे कि बड़ा हुआ लिवर या स्पलीन दिखाई दे सकते हैं। डॉक्टर डिटेल्ड मेडिकल हिस्ट्री के बारे में पूछते हैं। साथ ही वे लक्षणों और फैमिली हिस्ट्री के बारे में भी जानकारी लेते हैं। नीमन पिक बीमारी दुर्लभ है और इसलिए इसके लक्षणों को किसी दूसरी बीमारी के लक्षण भी समझा जा सकता है। इस बीमारी का डायग्नोसिस इसके प्रकार पर आधारित होता है।
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टाइप ए और बी – इन दोनों टाइप के लिए ब्लड सैंपल या बायोप्सी की जाती है। जिसमें एक्सपर्ट इस बात का पता लगाते हैं कि व्हाइट ब्लड सेल्स में स्फिंगोमाइलीनेज (sphingomyelinase) की मात्रा कितनी है।
टाइप सी- इसके लिए एक्सपर्ट स्किन का छोटा सा सैंपल लेकर पता करते हैं कि कोशिकाएं कैसे ग्रो करती हैं, कैसे मूव करती हैं और कैसे कोलेस्ट्रॉल को स्टोर करती हैं।
इसके अलावा दूसरे टेस्ट के द्वारा भी नीमन पिक का पता लगाया जा सकता है जो निम्न हैं।
मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (Magnetic resonance imaging MRI)
ब्रेन की एमआरआई (MRI) के जरिए ब्रेन सेल्स के लॉस को देखा जा सकता है, लेकिन नीमन पिक के अर्ली स्टेज में एमआरआई नॉर्मल हो सकती है क्योंकि इस बीमारी के लक्षण तभी दिखाई देते हैं जब ब्रेन सेल्स का लॉस होता है।
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आई एग्जाम
आई एग्जाम के द्वारा नीमन पिक डिजीज के संकेत जिसमें आई मूवमेंट करने में परेशानी होती है का पता लगाया जा सकता है।
जेनेटिक टेस्टिंग (genetic testing)
ब्लड सैंपल का डीएनए टेस्टिंग (DNA Testing) से एब्नॉर्मल जीन्स के बारे में पता लगाया जा सकता है जो नीमन पिक डिजीज का कारण बनते हैं।
प्रीनेटल टेस्टिंग (Prenatal testing)
अल्ट्रासाउंड के द्वारा इनलार्ज्ड लिवर और स्पलीन को डिटेक्ट किया जा सकता है जो टाइप सी के कारण होता है। एमिनियोसेंटिसीस (amniocentesis) के जरिए भी नीमन पिक डिजीज को कंफर्म किया जाता है।
नीमन पिक डिजीज का ट्रीटमेंट
नीमन पिक डिजीज का कोई इलाज (Niemann-Pick disease treatment) उपलब्ध नहीं है। सर्पोटिव केयर नीमन पिक के सभी प्रकारों के लिए हेल्पफुल है। टाइप बी का इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट (Bone marrow transplant), एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरिपी ( enzyme replacement therapy) और जीन थेरिपी (gene therapy) के जरिए किया जाता है। हालांकि ये ट्रीटमेंट कितने इफेक्टिव हैं। इस पर रिसर्च जारी है। वहीं टाइप सी के लिए (miglustat) दवा का यूज किया जाता है। यह एक एंजाइम इंहीबिटर (Enzyme inhibitors) है। यह बॉडी को फैटी सब्सटेंस बनाने से रोकती है।
फिजिकल थेरिपी नीमन पिक डिजीज के ट्रीटमेंट में महत्वपूर्ण हैं। इस बीमारी से पीड़ित लोगों को रेगुलरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए क्योंकि यह एक प्रोग्रेसिव डिजीज है और इसके लक्षण बिगड़ते जाते हैं।
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उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल उपयोगी लगा होगा और नीमन पिक बीमारी से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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