उपचार
हाइड्रोसील गंभीर समस्या नहीं है लेकिन, यदि बच्चे के अंडकोष में सूजन या दर्द महसूस होता है, तो तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन (यूटीआई)
बच्चों में यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) बहुत सामान्य जेनिटल समस्याओं (Genital problems in babies) में से एक है क्योंकि बच्चे जल्दी ही संक्रमण से ग्रस्त हो जाते हैं। इसे यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) भी कहते है। पांच साल की उम्र तक, आठ प्रतिशत लड़कियों और दो प्रतिशत लड़कों में यूटीआई (UTI) होने की संभावनाएं अधिक होती है। आमतौर पर यूटीआई के लक्षणों को समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है।
उपचार
डॉक्टरों द्वारा दी गयी एंटीबायोटिक्स, इस समस्या में सबसे अधिक कारगर साबित होती हैं। साथ ही शिशुओं को इससे बचाने के लिए उनके जेनिटल पार्ट्स की साफ-सफाई पर ध्यान दें। समय-समय पर बच्चे की नैपी बदलें, बच्चे को पर्याप्त मात्रा में पानी एवं अन्य तरल पदार्थ दें।
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लॉबिअल एडहैशन (Labial adhesions)
लॉबिअल एडिशंस एक ऐसी स्थिति है जिसमें योनि के ऊपर की त्वचा एक साथ जुड़ जाती है। डॉक्टरों के अनुसार लॉबिअल एडहैशन के कारण रैशेज जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। आमतौर पर यह समस्या नवजात लड़कियों में होती है। बच्चों में इस जेनिटल समस्या (Genital problems in babies) के कारण यूरिन आने में परेशानी होती है और बच्चों में योनि संक्रमण होने का डर रहता है।
उपचार
यदि बच्चे को पेशाब करने में परेशानी होती है या बार-बार यूटीआई हो जाता है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। कई मामलों में डॉक्टर सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं।
बच्चों में जेनिटल समस्याएं : हाइपोस्पेडिया (Hypospadias)
हाइपोस्पेडिया (लिंग का मूत्रमार्ग सही जगह पर न होना) की जेनिटल समस्याएं होने पर लड़कों में, लिंग के नीचे की तरफ मूत्र मार्ग होता है। यह एक स्थिति है जिसके कारण लड़कों को पेशाब करते समय बैठने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इस समस्या के कारण कभी-कभी लिंग में टेढ़ापन भी हो सकता है, जिसके कारण उन्हें जीवन में संभोग करने के दौरान भी परेशानी हो सकती है। इसलिए इस तरह की जेनिटल समस्याएं होने पर जन्म के दो सालों के अंदर सर्जरी के साथ हाइपोस्पेडिया का उपचार किया जाना बेहद जरूरी होता है।
उपचार
लिंग का मूत्रमार्ग सही जगह पर न होना यानी हाइपोस्पेडिया (Hypospadias) की समस्या का उपचार करने के लिए सर्जरी करानी आवश्यक होती है। बच्चे की यह सर्जरी जन्म के दो साल के अंदर ही होनी चाहिए।