पैदा होने के बाद बच्चे की सबसे पहले बॉन्डिंग या फिर रिश्ता मां से ही बनता है। ऐसे कई कारण होते हैं, जिसके कारण धीमे-धीमे दोनों में रिश्ता बहुत मजबूत बन जाता है।मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) के रिश्ते को सबसे मजबूत माना जाता है। हर मां का अपने बच्चे के के साथ बेहद खास रिश्ता होता है। मां और बच्चे का खास बॉन्ड उनके रिश्ते को और मजबूत बनाता है। लेकिन, कई बार कुछ स्थितियों के कारण मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग ठीक से नहीं बन पाती है जिनके अलग-अलग कारण हो सकते हैं। इस आर्टिकल में हम आपको मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) न बनने के कारणों के बारे में करेंगे। पहले जानते हैं कि किन कारणों से मां और शिशि के बीच बॉन्डिंग नहीं बन पाती है।
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मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby)
मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग वीक होने के कारण मानसिक और सामाजिक दोनों ही तरह की स्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं, अगर आपके साथ ऐसी ही कोई समस्या हो रही है, तो इन बातों का ध्यान रखकर आप आपने बच्चे के साथ अपने रिश्ते को मजबूत बना सकते हैं।
उनका खुद का बचपन अच्छे से न गुजरा हो तो
हर किसी का बचपन अच्छा नहीं होता है। कुछ आर्थिक स्थितियों के कारण तो कुछ अन्य स्थितियों के कारण। जिसका प्रभाव उनके भविष्य के बच्चों पर भी पड़ सकता है। अगर कोई महिला बचपन में अपने मां के करीब नहीं होती है, तो इसके कारण वो अपने बच्चे से भी लगाव कम रख सकती हैं।
मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक कर सकता है डिप्रेशन
कुछ स्थितियों के कारण मां प्रेग्नेंसी और प्रेग्नेंसी के बाद डिप्रेशन का भी शिकार हो सकती हैं। जिसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन भी कहा जाता है। अक्सर यह समस्या हर महिला के साथ पहले बच्चे के जन्म के दौरान अधिक होती है। दरअसल, जब पहला बच्चा होता है, तो महिलाओं को यह नहीं पता होता कि बच्चे की देखभाल कैसे करनी होती है। उन्हें अपने शरीर को लेकर भी थोड़ी चिंता हो सकती है। इसके कारण उन्हें चिड़चिड़ाहट भी हो सकती है और इसके चलते कई बार वो बहुत गुस्सैल मिजाज की भी हो जाती है। यहां तक कि कई बार उनके ऊपर ऑफिस और घर की चिंता भी बनी रह सकती है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक, यह समस्या करीब 20 से 70 प्रतिशत महिलाओं में होती है। शुरुआती स्तर पर इसे पोस्टपार्टम ब्लूज कहते हैं। इसके लक्षण बहुत सामान्य होते हैं। जैसे मूड स्विंग, उदासी, चिड़चिड़ापन, रोने की इच्छा होना और बच्चे को संभाल पाऊंगी या नहीं इसकी चिंता होना।
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पहली डिलिवरी में बच्चे की मृत्यु होना
मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक होने का यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है। ऐसे भी बहुत से मामले देखें जाते हैं, जिनमें जन्म के दौरान या जन्म के कुछ समय बाद ही शिशु की मृत्यु भी हो जाती है। अगर कोई महिला इस दौर से गुजरती है, तो इस ट्रामे से बाहर आने में उसे कई साल भी लग सकते हैं। ऐसे में जब दूसरी बार वो शिशु को जन्म देती हैं, तो पहली बार हुई घटना की वजह से वो काफी डरी भी हो सकती है।
लोगों से कम बात करना
कुछ महिलाएं शर्मिले मिजाज की भी होती हैं। जो सामाजिक स्तर को थोड़ा अलग ही रखती हैं। ऐसी महिलाएं किसी से भी अपने निजी या सामाजिक जीवन के बारे में बात करना पसंद नहीं करती हैं। ऐसे में इस कारण से भी मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक हो सकती है। आमतौर पर इस मिजाज की महिलाएं बच्चे की परवरिश को लेकर भी कुछ लापरवाही बरत सकती हैं। वो बच्चे की देखभाल परिवार के अन्य सदस्यों पर छोड़ सकती हैं।
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बहुत ज्यादा तनाव लेना
चाहे घरेलू महिला हो या फिर ऑफिस वर्किंग हर किसी का जीवन कई वजहों से तनाव भरा हो सकता है। ऐसे में बच्चे के जन्म के बाद उनका काम भी दोगुना हो जाता है, तो उनके तनाव को और भी ज्यादा बढ़ा सकता है। जिसके कारण मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक हो सकती है।
मैरिटल प्रॉब्लम्स या एब्यूज
मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक होने के पीछे मैरिटल प्रॉब्लम्स या एब्यूज भी एक कारण हो सकता है। कई वजहों से कपल का निजी रिश्ता काफी खराब और तनाव पूर्ण हो सकता है। जिसके चलते बच्चे का जीवन भी प्रभावित हो सकता है।
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ऐसे बनाएं मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby)
मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) वीक होने के पीछे कुछ सामान्य, तो कुछ गंभीर स्थितियां भी हो सकती हैं। हालांकि, जिन्हें दूर भी किया जा सकता है। इसके लिए कुछ तरह की दवाएं, तो कुछ तरह के ग्रुप या टॉक थेरिपी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यहां पर कुछ टिप्स हैं जिनकी मदद से मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग को मजबूत बनाया जा सकता है।
- अपने बच्चे के साथ एक ही कमरे से सोएं। इससे आप दोनों को साथ में रहने का ज्यादा मौका मिलेगा।
- अगर आपका बच्चा प्रीमैच्योर है, तो डॉक्टर से पूछ लें कि क्या आप अपने बच्चे को हाथ में ले सकते हैं या नहीं। क्योंकि, जब आप अपने बच्चे को हाथ में लेते हैं और उनसे बात करने की कोशिश करने लगते है, तब ही आपका एक अच्छा बॉन्ड बन सकता है।
- जब आप बच्चे के जन्म के बाद हॉस्पिटल से घर आ जाएं, तो जितना हो सके अपने बच्चे के साथ टाइम स्पेंड करें। उसे अपनी गोद में सुलाएं, उसे लोरी सुनाएं, खुद से उसकी मालिश करें, उसे नहलाएं। इससे आपके और बच्चे के बीच का रिश्ता और मजबूत होगा।
- आप जितना हो सके, अपने बच्चे के साथ बैठकर उसकी मालिश करें ताकि, उसे आराम मिल सके और आपका स्पर्श उसे समझ आ सके।
- आप जितना हो सके,बेबी के साथ स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट बनाने की कोशिश करें। इसे कंगारू केयर भी कहते हैं,जो ज्यादातर प्रीमैच्योर बेबीज के लिए किया जाता है।
- स्तनपान करते समय बच्चे को प्यार से सहलाएं, ताकि वो आराम से पेट भर दूध पी सके और उसे नींद भी अच्छी आए।
इन सभी बातों का पालन करने से आप अपने बच्चे से जरूर एक प्यार भरा बॉन्ड बना पाएंगे। सबसे ज्यादा जरूरी यही होता है कि आप कैसे अपने बच्चे को समझते हैं और उससे भी अपने स्पर्श और प्यार के बारे में समझा पाते हैं। हैलो हेल्थ किसी भी प्रकार की चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार उपलब्ध नहीं कराता है। इस आर्टिकल में हमने आपको मां और शिशु के बीच बॉन्डिंग (Bonding between mother and baby) के बारे में जानकारी दी है। उम्मीद है आपको हैलो हेल्थ की दी हुई जानकारियां पसंद आई होंगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए, तो हमसे जरूर पूछें। हम आपके सवालों के जवाब मेडिकल एक्स्पर्ट्स द्वारा दिलाने की कोशिश करेंगे।
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