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प्रीमैच्योर शिशु में किडनी की तकलीफ को इस तरह से करें मैनेज

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


AnuSharma द्वारा लिखित · अपडेटेड 21/02/2022

    प्रीमैच्योर शिशु में किडनी की तकलीफ को इस तरह से करें मैनेज

    शिशु मां के गर्भ में चालीस हफ्तों तक रहता है। लेकिन, अगर किन्हीं कारणों से शिशु का जन्म 37वें हफ्ते से पहले हो जाता है तो उसे प्रीमैच्योर या प्री-टर्म बेबी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि दस में से नौ प्रीमैच्योर शिशु सामान्य रूप से बढ़ते हैं। किंतु, इन बच्चों में डेवलपमेंट प्रॉब्लम्स का जोखिम अधिक रहता है। खासतौर, पर अगर शिशु का जन्म 23 से 24वें हफ्तों में हुआ है। प्री-टर्म बेबी कई समस्या का सामना करते हैं और आज हम बात करने वाले हैं प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) के बारे में। प्रीमैच्योर शिशु और किडनी की तकलीफ के बारे में जानें विस्तार से। सबसे पहले जानते हैं शिशु के प्रीमैच्योर होने के कारण क्या हैं?

    शिशु के प्रीमैच्योर होने का क्या कारण है? (What Causes Baby to be Premature)

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) से पहले जानते हैं कि शिशु के प्रीमैच्योर होने की वजह कौन सी हो सकती हैं? हालांकि, अधिक मामलों में प्रीमैच्योर बर्थ के कारणों का पता नहीं होता। लेकिन, इसके कुछ कारण इस प्रकार हो सकते हैं:

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    • मल्टीप्ल प्रेग्नेंसी (Multiple Pregnancy)
    • मां को गर्भाशय या सर्विक्स संबंधी कोई समस्या हो (Mother Has Problem with her Uterus or Cervix)
    • मां को इंफेक्शन हो (Mother Gets an Infection)
    • ऐसी कोई स्थिति जिसके कारण शिशु की डिलीवरी समय से पहले करानी पड़े जैसे प्री- प्रीक्लेमप्सिया (Mother has a Medical Condition that means the Baby must be Delivered early, such as Pre-Eclampsia)
    • मां को डायबिटीज जैसी कोई समस्या हो (Mother has a Health Condition like Diabetes)
    • प्रीमैच्योर बर्थ की हिस्ट्री होना (History of Premature Birth)

    अगर आपने गर्भावस्था के 37 वें या इससे भी कम हफ्ते में कदम रखा है और किसी प्रीमैच्योर लेबर के लक्षणों को महसूस करें जैसे ब्लीडिंग, शिशु की मूवमेंट का कम होना, संकुचन आदि। तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है। क्योंकि, समय से पहले डिलीवरी कई समस्याओं का कारण बन सकती है। उन्हीं में से एक है प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby)। आइए, अब जानते हैं प्रीमैच्योर शिशु और किडनी की तकलीफ के बारे में।

    Kidney disease in premature Baby

    नवजात शिशु में बच्चे में किडनी की बीमारी 

    शिशु की किडनी आमतौर पर जन्म के बाद मैच्योर होती है। लेकिन, जन्म के पहले चार से पांच दिनों के दौरान शिशु को शरीर के तरल पदार्थ, नमक और अपशिष्ट को संतुलित करने में समस्याएं हो सकती हैं, खासकर  अगर शिशु का जन्म 28 वें हफ्ते से पहले हो जाए तो। इस समय में शिशु को किडनी से संबंधित यह समस्याएं भी हो सकती हैं:

    ब्लड से वेस्ट को फिल्टर करना (Filtering Wastes from the Blood)

    ब्लड से वेस्ट को  फिल्टर करने से पोटेशियम (Potassium), यूरिया (Urea) और क्रिएटिनिन (Creatinine) का सही बैलेंस बना रहता है।

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    कंसन्ट्रेटिंग यूरिन (Concentrating Urine) 

    कंसन्ट्रेटेड यूरिन यानी शरीर से वेस्ट पदार्थों को बाहर निकालना लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना कि इसके लिए शरीर में अधिक फ्लूइड न निकलें।

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी

    यूरिन को बनाना (Producing Urine)

    यूरिन का बनना तब एक समस्या हो सकता है जब डिलीवरी के दौरान किडनी को नुकसान हुआ हो या बच्चा लंबे समय तक ऑक्सीजन के बिना रहा हो।

    प्री मैच्योर बच्चों में किडनी की बीमारी की संभावना के कारण, डॉक्टर ध्यान से उस शिशु के मूत्र की मात्रा को रिकॉर्ड करते हैं और पोटेशियम, यूरिया और क्रिएटिनिन के स्तर के लिए रक्त का परीक्षण करते हैं। इसके साथ ही डॉक्टर को तब भी ध्यान रखना चाहिए जब उन्हें दवाइयां खासतौर पर एंटीबायोटिक्स दी जाती है। यह इस चीज को सुनिश्चित करने के लिए दी जाती हैं कि दवाएं शरीर से निकल जाती हैं या नहीं। 

    अविकसित किडनी वाले नवजात शिशुओं को शरीर में नमक और अन्य इलेक्ट्रोलाइट्स के साथ-साथ पानी की मात्रा को नियंत्रित करने में कठिनाई हो सकती है। प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) के कारण न केवल उनकी ग्रोथ में समस्या आ सकती है बल्कि उनके ब्लड में एसिड भी बनते हैं जिन्हें मेटाबोलिक एसिडोसिस (Metabolic Acidosis).कहा जाता है

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    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की समस्या का उपचार कैसे किया जाता है? (Treatment of Kidney Disease in Premature Baby)

    डिलीवरी से पहले, भ्रूण में बने वेस्ट प्रोडक्ट्स को प्लेसेंटा द्वारा हटा दिया जाता है और फिर मां की किडनी द्वारा इसे एक्स्क्रेटेड किया जाता है। डिलीवरी के बाद, नवजात शिशु की किडनी को इन कार्यों को करना चाहिए। बहुत प्रीमैच्योर नवजात शिशुओं में उनकी किडनी की कार्यक्षमता कम हो जाती है।  लेकिन जैसे-जैसे उनके किडनी मैच्योर होती है, उनमें सुधार होता जाता है। अगर प्रीमैच्योर बच्चे की किडनी को काम करने में समस्या आती है तो डॉक्टर बच्चे को तरल पदार्थ देने के लिए मना कर सकते हैं या  किन्हीं मामलों में अधिक तरल पदार्थ देने की सलाह भी दे सकते हैं ताकि रक्त में पदार्थ अत्यधिक कंसन्ट्रेटेड न हों।

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) का बेसिक इलाज है फ्लूइड रेस्ट्रिक्शन (Fluid Restriction) और साल्ट रिस्ट्रिक्शन (Salt Restriction)। प्रीमैच्योर बच्चे की किडनी कुछ ही दिनों के बाद इम्प्रूव हो जाती है सामान्य रूप से काम करना शुरू कर देती है। 

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    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी से जुड़े कुछ तथ्य (Facts about Kidney Disease in Premature Baby)

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) होना एक और चुनौती की तरह होता है। पिछले कुछ वर्षों में हुए शोध से पता चला है कि समय से पहले जन्म होना इस स्थिति के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है, जो जन्म के समय कम वजन से भी जुड़ा हुआ है। जानिए, प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में:

    किडनी डिसफंक्शन एक बड़ी समस्या है (Kidney Dysfunction Is a Bigger Problem) 

    पिछले कुछ समय में डॉक्टर और वैज्ञानिकों ने प्रीमैच्योर शिशुओं से जुड़े कई पहलुओं के बारे में जांच की है जैसे दिमाग संबंधी समस्या, हार्ट या लंग इश्यूज आदि। हालांकि, किडनी की अक्सर अनदेखी की गई है, जो एक चिंता है विषय है।  क्योंकि, किडनी की हेल्थ संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। तथ्य यह है कि गुर्दे की परेशानियां शिशुओं के लिए कुछ समस्याएं पैदा करती हैं, लेकिन बाद में जीवन में, यह उन वयस्कों के लिए गंभीर परेशानियां पैदा कर सकती हैं, जिनका जन्म समय से पहले हुआ है।

    नेफ्रॉन हैं इसका मुख्य कारण  (Nephrons are The Main Cause)

    नेफ्रॉन को प्रीमेच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी का मुख्य कारण माना जाता है। यह वो माइक्रोस्कोपिक  फिल्ट्रिंग यूनिट्स (Microscopic Filtering Units) हैं, जो किडनी बनाती है। इनके बारे एक रोचक चीज यह है कि एक बार जब शरीर इन्हें पैदा कर देता है, तो फिर से इनका उत्पादन नहीं करता है। यानी, जिन नेफ्रॉन्स का उत्पादन एक बार शरीर में हो जाता है, वो जीवनभर हमारे शरीर में रहते हैं। यही प्रीमैच्योर शिशुओं में सबसे समस्या की वजह है। अगर उनमें पर्याप्त नेफ्रॉन मास नहीं होता है, तो इसका नेगेटिव प्रभाव पूरी उम्र उनकी किडनी पर पड़ता है। 

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    लो बर्थ वेट और किडनी प्रॉब्लम्स एक दूसरे से लिंक्ड हैं (Low Birth Weight and Kidney Problems)

    ऐसा माना गया है कि लो बर्थ वेट बाद के जीवन में क्रॉनिक किडनी डिजीज से कनेक्टेड होता है। इसका कारण यह है कि प्रीमैच्योरली जन्म लेने से नेफ्रॉन्स के बनने की प्रक्रिया रुक जाती है। नेफ्रॉन्स को शरीर दोबारा नहीं बनाता है इसलिए यह चिंता का विषय बन सकता है। 

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी

    शुरुआत में निदान से समस्या कम होने में मदद मिल सकती है 

    प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) के बारे में किए गए शोध के अनुसार इस मामले में जल्दी निदान बेहद महत्वपूर्ण है। प्रीमैच्योर शिशु के माता-पिता को इसके लिए डॉक्टर से बच्चे की जांच करानी चाहिए ताकि पता चले कि उसकी किडनी सही से काम कर रही हैं या नहीं। 

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    कई दवाइयां भी बन सकती हैं इसकी वजह 

    किडनी एक तरह से हमारे शरीर के लिए फिल्टर का काम करती है। यानी, शरीर के हानिकारक तत्वों को यूरिन के माध्यम से बाहर निकलती है। प्रीमैच्योर बच्चों में चिंता का विषय यह है कि इन बच्चों को पहले ही किडनी की समस्या होती है। ऐसे में, कुछ दवाइयां इलाज की जगह उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं। खासतौर पर वो दवाइयां जो मां तब लेती है, जब बच्चा गर्भ में होता है। जैसे एंटीबायोटिक्स (Antibiotics), नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (Non-Steroidal Anti-Inflammatory Drugs), कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स (Corticosteroids) आदि। इसमें सबसे बड़ी चिंता का विषय प्रीमैच्योर बर्थ को रोकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं हैं, जिनमें एटोसिबान (Atosiban) भी शामिल है। ऐसा पता चला है कि एटोसिबान (Atosiban) के कारण भी नेफ्रॉन्स के बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। यही नहीं, यह दवाई ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) की फार्मेशन को कम करती है, जो एक हॉर्मोन है और किडनी डेवलपमेंट में सहायक होता है। 

    क्विज : बच्चा गर्भ में लात (बेबी किक) क्यों मारता है ?

    नेशनल इंस्टीटूट्स ऑफ हेल्थ (National Institutes of Health) के अनुसार जो बच्चे प्रीमैच्योर होते हैं और जिनका वजन कम होता है। उनमें युवावस्था में भी किडनी डिसफंक्शन का जोखिम बढ़ने के लक्षण दिखाई देते हैं। प्रीमैच्योर बच्चे में किडनी की बीमारी (Kidney Disease in Premature Baby) का जोखिम अधिक होता है। ऐसा नेफ्रॉन नंबर का कम होना (Nephron Number) और प्रसवोत्तर नेफ्रोटॉक्सिन (Post-Natal Nephrotoxins) के कारण होता है। नवजात शिशु जो प्रीमैच्योरली पैदा होते हैं उनमें नियोनेटल एक्यूट किडनी इंजरी की संभावना भी अधिक होती है। जिसके कारण भविष्य में उनमें नेफ्रॉन नंबर कम हो जाते हैं और इससे क्रॉनिक किडनी डिजीज की संभावना बढ़ सकती है।

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    ऐसा भी माना जाता है कि गर्भावस्था के 37वें हफ्ते से पहले डिलीवरी से प्रीमैच्योर शिशु में किडनी की बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है। यही, नहीं अगर यह शिशु का जन्म 28 वें हफ्ते से भी पहले हो हुआ, हो तो यह जोखिम तीन गुना अधिक हो जाता है। ऐसे में अगर आपका शिशु प्रीमैच्योर है तो आपको उसका खास ख्याल रखना चाहिए। डॉक्टर से समय-समय पर यह जांच अवश्य कराएं कि आपके शिशु की किडनी और अन्य अंग सही से काम कर रहें है या नहीं। ताकि, बड़े होने पर भी आपका शिशु सामान्य जीवन जी सके

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