क्या आप जानते हैं कि साइंटिस्ट आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) को विकसित कर रहे हैं, जो वास्तविक अंगों के काम को दोहरा सकती हैं और इससे डायलिसिस की आवश्यकता संभावित रूप से समाप्त हो सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के शोधकर्ता ऐसी एक प्रत्यारोपण कृत्रिम किडनी विकसित कर रहे हैं ,जो वास्तविक किडनी के कार्यों को बारीकी से दोहरा सकती हैं। यदि वे सफल होते हैं, तो वैज्ञानिकों का काम डायलिसिस की आवश्यकता को समाप्त करने में मदद कर सकता है। एन्ड स्टेज रीनल डिजीज (End-Stage Renal Disease) से पीड़ित रोगियों के लिए किडनी ट्रांसप्लांट को अधिक सफलता मिल सकती है।
ऐसा माना जाता है कि आने वाले कुछ समय में किडनी ट्रांसप्लांट की जगह आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) ले लगी। इस डिवाइस का मानव परीक्षण शुरू होने वाला है। इस बारे में विशेषज्ञ क्या कहते हैं, जानिए
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
शुवो रॉय जो यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के किडनी प्रोजेक्ट के टेक्निकाल डायरेक्टर हैं, उनके अनुसार बायोआर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का इस्तेमाल डायलिसिस और किडनी ट्रांसप्लांट कराने वाले के अधिकांश लोगों द्वारा किया जा सकता है। यह पूरी तरह से सुरक्षित और अधिक प्रभावी उपचार है। इसे बनाने वाले विषेशज्ञों का मानना है कि यह किडनी फिल्ट्रेशन, बैलेंसिंग और प्राकृतिक किडनी के अन्य बायोलॉजिकल कार्यों को अच्छी तरह से करेगी। यह शरीर के ब्लड प्रेशर (Blood Pressure) से काम करेगी और इस डिवाइस को किसी एक्सटर्नल ट्यूब या टेथर्स की जरूरत नहीं होती है।
इस डिवाइस को पेट में इन्सर्ट करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस डिवाइस के दो फीचर्स हैं एक एक मैकेनिकल अल्ट्राफिल्ट्रेशन यूनिट (Mechanical Ultrafiltration), जिसे हेमोफिल्टर (Hemofilter) कहा जाता है यह खून को सिलिकॉन मेमब्रेन्स (Silicon Membranes) से गुजार कर खून में से टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है, जो नैनोमीटर-स्केल पोर्स (Nanometer-Scale Pores) के साथ बना होता है। दूसरा है बायोरिएक्टर जिसमें पर्याप्त तरल पदार्थ की मात्रा बनाए रखने और हॉर्मोन का उत्पादन करना जैसे किडनी के काम करने के लिए कल्चर्ड ह्यूमन किडनी सेल्स होंगे। इसे चलाने के लिए इलेक्ट्रिक पावर की जरूरत नहीं होगी, बल्कि यह शरीर के ब्लड प्रेशर के अनुसार काम करेगी। यही नहीं, एक किडनी ट्रांसप्लांट के विपरीत, कोई इम्युनोसुप्रेशन आवश्यक नहीं होगा। लेकिन इस प्रोजेक्ट को पूरा करना किसी चुनौती से कम नहीं है, जानिए कैसे।
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इस डिवाइस से जुड़ी चुनौतियां कौन सी हैं (What are the Challenges Associated with this Device?)
एक्यूट किडनी इंजरी वाले रोगियों में हुए क्लीनिकल ट्रायल के अनुसार रीनल असिस्ट डिवाइस (Renal Assist Device) या आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) द्वारा इलाज किए गए रोगियों में सर्वाइव करने की संभावना कंटीन्यूअस रीनल रिप्लेसमेंट थेरिपी प्राप्त करने वालों की तुलना में 50% बेहतर थी। बायोरिएक्टर में किडनी सेल्स को सर्वाइवल में इम्प्रूवमेंट को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार इसका ट्रायल एक बड़ी और जटिल प्रणाली थी। जिसमें कम से कम दो डायलिसिस मशीनें, बहुत सारे ट्यूबिंग और कई पंप थे।
डॉ रॉय के अनुसार उनकी टीम ने एक छोटा सिस्टम डिजाइन करने के लिए इंजीनियरिंग का तरीका अपनाया है। हालांकि कार्डियोलॉजी में इंजीनियरिंग से उन्हें कार्डियोवर्टर डिफाइब्रिलेटर (Cardioverter Defibrillator) और बल्कि बेडसाइड मशीन से एक इम्प्लांटेबल डिवाइस में बदलने में मदद मिली है, जो डायलिसिस मशीन का फंडामेंटल वर्क हाउस है। उनके अनुसार हालांकि कुछ मटेरियल में सुधार हुए हैं, फिर भी उनके माध्यम से रक्त को चलाने के लिए उच्च-ड्राइविंग दबाव की आवश्यकता होती है। क्योंकि वे विषाक्त पदार्थों को कुशलता से नहीं निकालते हैं और वे कुछ समय के उपयोग के बाद काम करना बंद कर देते हैं। आर्टिफिशियल किडनी (Artificial Kidney) का परीक्षण हुआ है या नहीं, जानिए।
आर्टिफिशियल किडनी का परीक्षण (Testing of Artificial Kidney)
जांचकर्ताओं ने सूअरों में प्रोटोटाइप हेमोफिल्टर और बायोरिएक्टर का परीक्षण किया है। हेमोफिल्टर डिजाइन को इस तरह से रिफाइंड किया गया है कि केवल एंटीप्लेटलेट थेरिपी का उपयोग करके 30 दिनों तक ब्लड फ्लो सफलतापूर्वक मेंटेन किया जा सकता है। उसमे सिस्टमिक एंटीकोआग्युलेशन (systemic anticoagulation) का प्रयोग नहीं किया जाता है। अतिरिक्त अध्ययनों से पता चला है कि हेमोफिल्टर ब्लड थिनर के बिना लगातार तीन दिनों तक सूअरों में इंप्लांटेशन के बाद यूरिया और क्रिएटिनिन क्लीयरेंस प्रदान कर सकता है। अब जानते हैं इससे जुड़े कुछ सवालों के बारे में।