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क्या आप जानते हैं पर्याप्त पोषण की कमी से होता है मेरास्मस रोग?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Toshini Rathod द्वारा लिखित · अपडेटेड 27/05/2021

    क्या आप जानते हैं पर्याप्त पोषण की कमी से होता है मेरास्मस रोग?

    मेरास्मस (Marasmus) एक प्रकार का गंभीर कुपोषण है। यह उन लोगों को होता है जिन्हें पर्याप्त पोषण और ऊर्जा नहीं मिलती है। वैसे यह रोग ज्यादातर बच्चों को ही होता है, इसमें शरीर के मसल्स और फैट कम होने लगते हैं। मेरास्मस (Marasmus) से पीड़ित बच्चे का विकास सामान्य तरीके से नहीं हो पाता है। इसकी मुख्य वजह है शरीर को जरूरी पोषक तत्व विटामिन्स आदि की पूर्ति नहीं हो पाना। आमतौर पर विकासशील देशों में इस बीमारी के मामले ज्यादा आते हैं। समय रहते इलाज न कराने पर यह समस्या जानलेवा साबित हो सकता है।

    मेरास्मस क्या है? (What is marasmus)

    गरीब देशों में जब फसल खराब हो जाती है या फूड सप्लाय ठीक तरह से नहीं हो पाती तो भोजन कमी के कारण गरीब जनसंख्या का बड़ा हिस्सा गंभीर कुपोषण यानी मेरास्मस का शिकार हो जाता है। यह शरीर में प्रोटीन और एनर्जी की कमी (low energy) से होने वाला कुपोषण है, जो भोजन के माध्यम से शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन और कैलोरी की कमी के कारण होता है। शरीर में प्रोटीन और कैलोरी की कमी की वजह से एनर्जी लेवल एकदम कम हो जाता है और पीड़ित का शरीर जरूरी काम भी नहीं कर पाता। वैसे तो यह व्यस्कों और बच्चों किसी को भी हो सकता है, लेकिन इसके अधिकांश मामले बच्चों में देखे गए हैं, वह भी विकासशील देशों में। UNICEF के एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में 5 साल तक की उम्र के बच्चों की कुल मौतों में 50 प्रतिशत मौतों का कारण मेरास्मस (Marasmus) है। यह बीमारी जानलेवा होती है, लेकिन इसका इलाज संभव है।

    मेरास्मस के लक्षण (Symptoms of marasmus)

    मेरास्मस- marasmus

    इस बीमारी का मुख्य लक्षण है अंडरवेट यानी वजन बहुत कम होना। इस समस्या से पीड़ित बच्चों की मांसपेशियां (muscles ) और फैट टिशू (fat tissue) तेजी से कम होने लगता है। जिसकी वजह से त्वचा रूखी हो जाती है और बाल कमजोर होकर टूटने लगते हैं। इसके अलावा बच्चों में निम्न लक्षण दिखते हैं-

  • क्रॉनिक डायरिया (chronic Diarrhea)
  • श्वसन प्रणाली में संक्रमण (respiratory infections)
  • बौद्धिक विकलांगता (intellectual disability)
  • सही विकास न होना (stunted growth)
  • बॉडी मास इंडेक्स (BMI) असमान्य रूप से कम होना
  • ऊर्जा की कमी
  • लगातार चक्कर आना
  • रूखी त्वचा (Dry skin)
  • बार-बार संक्रमण होना
  • गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे उम्र से अधिक दिखते हैं और उनमें बहुत कम या बिल्कुल भी एनर्जी नहीं होती है और न ही किसी चीज की जिज्ञासा बचती है। इस समस्या के कारण बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल भी हो जाते हैं।

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    मेरास्मस के कारण (Causes of marasmus)

    पोषक तत्वों की कमी इसका मुख्या कारण है। यह उन बच्चों में होता है जिन्हें पर्याप्त प्रोटीन, कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट्स और दूसरे जरूरी पोषक तत्व नहीं मिलते है। ऐसा मुख्य रूप से गरीबी या भोजन की कमी की वजह से होता है। कुपोषण कई प्रकार का होता है। आमतौर पर कुपोषित बच्चों में इन चीजों की गंभीर कमी पाई जाती है-

    • आयरन (Iron)
    • आयोडीन (Iodine)
    • जिंक (zinc)
    • विटामिन ए (Vitamin A)

    मेरास्मस के जोखिम कारक (marasmus risk factors)

    विकासशील देश जहां गरीबी अधिक हैं वह कुपोषण पीड़ित बच्चों की संख्या अधिक होती है। इसके अलावा ऐसे देशों में पोषक तत्वों की कमी के कारण स्तनपान कराने वाली माएं भी बच्चे को पर्याप्त ब्रेस्ट मिल्क नहीं पिला पाती हैं, जिससे बच्चे कुपोषित हो जाते हैं। कुपोषण की वजह से बच्चों की लंबाई भी नहीं बढ़ती है और वह जरूरत से ज्यादा दुबले या कमजोर हो जाते हैं।

    इसके अलावा कुछ वायरस (virus), बैक्टीरिया (bacteria) और पैरासाइट इंफेक्शन (parasite infection) की वजह से बच्चों का शरीर कम मात्रा में पोषक तत्वों (nutrition) को अवशोषित कर पाता है। जिन इलाकों में बीमारियां अधिक फैलती है और चिकित्सा सुविधाएं नहीं है, वहां भी कुपोषण का खतरा अधिक होता है।

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    मेरास्मस का निदान कैसे किया जाता है? (Diagnosis of marasmus)

    डॉक्टर प्राथमिक रूप से कुपोषित बच्चे का शारीरिक परीक्षण (physical exam) करके इसका पता लगाता है, जैसे बच्चे की लंबाई, वज़न आदि। इससे पता चलता है कि उम्र के अनुसार उसका विकास सही हो रहा है या नहीं। यदि उसका विकास उम्र के हिसाब से नहीं हो रहा तो बच्चा कुपोषित हो सकता है। कुपोषण का शिकार बच्चों में एनर्जी भी नहीं होती है और वह मुश्किल से ही कोई काम कर पाता है इसके आधार पर भी मेरास्मस का पता लगाया जा सकता है। ब्लड टेस्ट से इसका पता लगाना मुश्किल है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मेरास्मस ( marasmus) पीड़ित कुछ बच्चों में इंफेक्शन भी होता है जो ब्लड टेस्ट को प्रभावित करता है।

    मेरास्मस का उपचार (How marasmus treated)

    मेरास्मस- marasmus

    मेरास्मस (marasmus) जानलेवा मेडिकल इमरजेंसी है और इसके लक्षण दिखते ही तुरंत इलाज की जरूरत है। शुरुआती इलाज में ड्रायड स्किम मिल्क पाउडर को उबले पानी में मिलाकर दिया जाता है। बाद में इस मिश्रण में वेजीटेबल ऑयल जैसे तिल, कैसिइन और चीनी आदि मिलाया जाता है। कैसिइन मिल्क प्रोटीन होता है। तेल मिलाने से मिश्रण की ऊर्जा डेन्सिटी बढ़ती है। मेरास्मस से पीड़ित बच्चे के लिए खास डायट प्लान मेडिकल प्रोफेशनल तैयार करता है जिससे उसके शरीर में पोषक तत्वों की कमी को दूर किया जा सके। यदि बच्चा एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa) से पीड़ित है तो मेडिकल प्रोफेशनल की पूरी टीम उसका उपचार करती है।

    मेरास्मस पीड़ित बच्चे के लिए पोषक तत्वों, कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी से भरपूर डायट बहुत जरूरी है। उन्हें अपनी उम्र के सामान्य बच्चों से अधिक कैलोरी की आवश्यकता होती है। हालांकि बहुत अधिक फैट और बॉडी टिशू खत्म होने के कारण उनका शरीर इन सारी चीजों को पचा नहीं पाता है। इसका एक समाधान जो डॉक्टर बताते है वह यह है कि खाने थोड़ी-थोड़ी मात्रा में और संभव हो तो ट्यूब के जरिए नसों और पेट तक पहुंचाया जाता है। इस तरीके से खाना शरीर में सीधे और जल्दी पहुंचता है। सही उपचार के बावजूद इस समस्या से उबरने में महीनों का समय लग जाता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को इंफेक्शन और डिहाइड्रेशन (dehydration) के उपचार की भी जरूरत पड़ती है। यदि मेरास्मस का कारण ईटिंग डिसऑर्डर (eating disorder) है, तो व्यक्ति को मेंटल हेल्थ ट्रिटमेंट और सहयोग की जरूरत पड़ती है।

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    मेरास्मस से बचाव (Prevention of marasmus)

    इस समस्या से बचाव का बेहतरीन तरीका है कैलोरी और प्रोटीन से भरपूर हेल्दी और बैलेंस डायट (balance diet) लेना। प्रोटीन से भरपूर चीजें जैसे- स्किम्ड मिल्क, फिश, अंडा और नट्स एनर्जी प्रदान करने के साथ ही बच्चे के विकास में भी मदद करते हैं। इसके अलावा हर क्षेत्र में मौजूद कैलोरी और प्रोटीन से भरपूर अन्य चीजों का सेवन भी कुपोषण से बचाने में मददगार है। इसके अलावा अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए डायट में पर्याप्त सब्जियां और फलो को शामिल करना जरूरी है। इससे विटामिन्स (vitamins) की कमी नहीं होगी। वैसे तो सप्लीमेंट्स भी लिए जा सकते हैं, लेकिन विटामिन्स के नेचुरल स्रोत ज्यादा असरदार होते हैं। जो व्यक्ति मेरास्मस (marasmus) से उबर चुका है या उबर रहा है उसे अपना खास ख्याल रखने की जरूरत है ताकि डायरिया और डिहाइड्रेशन की समस्या न हो।

    साफ-सफाई का ध्यान रखना है जरूरी (Sanitation and hygiene in marasmus)

    कुछ मामलों में दूषित पानी की वजह से भी मेरास्मस की समस्या हो सकती है। इसलिए साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। खासतौर पर उन जगहों पर जहां भोजन और साफ पानी की नियमित रूप से सप्लाई नहीं होती है। साफ-सफाई का ध्यान न रखने से संक्रमण हो सकता है जो मेरास्मस और दूसरे टाइप के कुपोषण के लक्षणों को और गंभीर बनाकर मरीज के ठीक होने की संभावना को घटा सकता है।

    कई बार भोजन में मौजूद बैक्टीरिया भी कुपोषण (malnutrition) की समस्या को गंभीर बना सकते है। इससे बचने के लिए खाना हमेशा उच्च तापमान पर पकाना चाहिए। पानी को साफ करने के लिए उसे उबालकर पीना अच्छा विकल्प है।

    नवजात बच्चे को कुपोषण से बचाने के लिए नई मां को भी पोषक तत्वों से भरपूर आहार दिया जाना चाहिए, ताकि पर्याप्त ब्रेस्ट मिल्क (breast milk) बने और वह बच्चे को ठीक तरह से स्तनपान करा सके। नवजात को कम से कम 6 महीने तक पर्याप्त मां का दूध मिलना जरूरी होती है, इससे उसे कुपोषण से बचाया जा सकता है। इसके अलावा दो बच्चों के बीच अंतर रखना और बच्चे का समय पर टीकाकरण भी कराना चाहिए ताकि वह किसी अन्य तरह की बीमारी के शिकार न हो, वरना इससे कुपोषण की समस्या और गंभीर हो सकती है।

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    कुपोषण (malnutrition) किसी भी देश के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है। दक्षिण एशियाई देशों की बात की जाए तो भारत में कुपोषण कि स्थिति बहुत खराब है और हर साल इसकी संख्या बढ़ती ही जा रही है। देश के गरीब इलाकों में आज भी भुखमरी की स्थिति गंभीर है। ऐसे क्षेत्रों में सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्कि व्यस्क भी कुपोषण का शिकार हैं। कई एनजीओ और सरकारी संस्थाएं इनकी मदद कर रही हैं और उन्हें पर्याप्त भोजन प्रदान करने की कोशिश की जा रही है। भारत सरकार ने साल 2018 में राष्ट्रीय पोषण मिशन योजना शुरू की गई थी जिसे ‘पोषण अभियान’ के नाम से भी जाना जाता है। इस योजना का मकसद है 2022 तक देश को ‘कुपोषण-मुक्त’ बनाना। हालांकि जमीनी हकीकत कुछ अलग ही तस्वीर बयां करती हैं जिसे देखते हुए इस मकसद को पाना मुश्किल नजर आता है, क्योंकि देश के कुछ हिस्सों में आज भी कुपोषण की समस्या गंभीर है।

    भारत के अलावा कई अफ्रीकी और अन्य देश भी कुपोषण की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं।

    डिस्क्लेमर

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