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न दिया ध्यान, तो बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बन सकती हैं जान का खतरा!

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Bhawana Awasthi द्वारा लिखित · अपडेटेड 23/09/2021

    न दिया ध्यान, तो बच्चों में सांस संबंधी बीमारियां बन सकती हैं जान का खतरा!

    बच्चे हो या फिर बड़े, अगर सांस लेने में किसी तरह की समस्या होती है, तो घुटन होने लगती है। सांस लेने में समस्या कई कारणों से हो सकती है। जब वयस्कों को सांस से संबंधित दिक्कत होती है, तो वो अपनी परेशानी आसानी से बता सकते हैं लेकिन बच्चों के साथ ऐसा नहीं होता है। बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां न सिर्फ सांस लेने में दिक्कत पैदा करती हैं बल्कि शरीर के विकास में भी बाधा उत्पन्न करती हैं। अगर समय पर बीमारी का इलाज न कराया जाए, तो बच्चे की हालत गंभीर भी हो सकती है और बच्चे की जान भी जा सकती है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां (Respiratory diseases in children) क्या होती है, उसके संबंध में जानकारी देंगे। जानिए बच्चों में सांस संबंधी बीमारियों (Respiratory diseases in children) के बारे में।

    बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां : ब्रोंकाइटिस (Bronchitis)

    बच्चों में ब्रोंकाइटिस की समस्या आम मानी जाती है, जो कुछ समय बाद अपने आप ही ठीक हो जाती है। ब्रोंकाइटिस की समस्या में सांस की नली में सूजन आ जाती है और बलगम अधिक बनने लगता है। इस कारण से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। बलगम अधिक बनने के कारण बच्चों को सांस लेने में तकलीफ होती है और साथ ही खांसी भी आती है। बच्चों में ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) वायरस के इंफेक्शन के कारण, बैक्टीरियल इंफेक्शन के कारण, एलर्जी की समस्या होने पर या फिर अस्थमा होने के कारण हो सकता है। इस कारण से बच्चों को छींक, नाक बहना, गले में खराश और हल्के बुखार की समस्या हो सकती है। म्यूकस अधिक बनने के कारण खांसी के साथ ही कफ भी आने लगता है। डॉक्टर इंफेक्शन का पता लगाने के बाद बच्चे को एंटी बैक्टीरियल या फिर एंटी वायरल दवाओं का सेवन करने की सलाह दे सकते हैं।

    ब्रोन्कोपुलमोनरी डिस्प्लेसिया (Bronchopulmonary Dysplasia)

    जब शिशु समय से पहले जन्म ले लेते हैं, तो फेफड़ों से संबंधित समस्याएं बढ़ने का खतरा अधिक हो जाता है। जब बच्चे बढ़ते हैं, तो फेफड़ें सही से बढ़ नहीं पाते हैं। प्रीमेच्योर बेबी को प्रभावित करने वाली लंग कंडीशन ब्रोन्कोपुलमोनरी डायस्प्लासिया यानी बीपीडी कहलाती है। 28वें सप्ताह में पैदा होने वाले करीब 23% नवजात को ये बीमारी अपना शिकार बनाती है। ऐसे बच्चों को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है, जब तक उनके फेफड़े पूरी तरह से विकसित न हो जाए। इस कंडीशन का अभी तक इलाज नहीं और इस बारे में अभी भी रिचर्स चल रही है।

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    बच्चों में साइनस की समस्या (Sinusitis)

    बच्चों में साइनसाइटिस की समस्या के कारण सांस लेने में समस्या पैदा हो जाती है। ऐसा बैक्टीरिया, वायरस आदि के इंफेक्शन के कारण होता है। कुछ बच्चों को धूल या धुएं से एलर्जी की समस्या हो जाती है, जो सांस लेने में तकलीफ का कारण बन सकती है। नाक बहना, खांसी आना, सिरदर्द की समस्या, बुखार आना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। एक्यूट साइनसाइटिस की समस्या बच्चे को दस दिन तक रह सकती है। डॉक्टर से जांच कराने के बाद ही इंफेक्शन का इलाज कराएं। डॉक्टर नेजल ड्रॉप्स के साथ ही एंटी बायोटिक दवाओं को खाने की सलाह देते हैं। क्रोनिक साइनसाइटिस का सामना तब करना पड़ता है, जब लंबे समय तक साइनस वाले स्थान में सूजन रहे। अगर बीमारी का सही तरह से ट्रीटमेंट न कराया जाए, तो ये भविष्य में अस्थमा का कारण भी बन सकती है।

    बच्चों में अस्थमा (Asthma)

    अस्थमा की बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। अस्थमा के कारण बच्चों में कफ की समस्या, खांसी, सांस लेने में समस्या, सांस लेते समय घरघराहट आदि समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों में अस्थमा अटैक के लिए कई ट्रिगर काम कर सकते हैं। डस्ट अधिक होने के कारण अस्थमा अटैक हो सकता है। अस्थमा के कारण निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। अमेरिक लंग एसोसिएशन की मानें तो अस्पताल में भर्ती होने के तीसरे प्रमुख कारण में बच्चों में अस्थमा की बीमारी होना है। अगर आपके बच्चे को अधिक खांसी आ रही है या फिर सांस लेने में दिक्कत हो रही है, तो तुरंत बच्चों के डॉक्टर (pediatrician) से संपर्क करें। कुछ नियमों का पालन कर और इनहेलर का सही समय पर इस्तेमाल कर अस्थमा की बीमारी नियंत्रित किया जा सकता है।

    और पढ़ें: साइनस से राहत पाने के लिए किन घरेलू उपायों को कर सकते हैं ट्राई?

    बच्चों में निमोनिया (Pneumonia)

    निमोनिया की बीमारी दुनिया भर में आम बीमारी है और ये बच्चों को अधिक प्रभावित करती है। छोटे बच्चों में निमोनिया आम होता है और अक्सर सर्दी, खांसी या गले में खराश की समस्या को पैदा करता है। निमोनिया की बीमारी स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया बैक्टीरिया से या फिर कुछ वायरस जैसे कि एडिनोवायरस (Adenovirus), इन्फ्लूएंजा वायरस (Influenza virus), रेस्पायरेटरी सिंसिशल वायरस (Respiratory syncytial virus) आदि के कारण फैलता है। निमोनिया के कारण कफ की समस्या के साथ ही हल्का बुखार, सांस फूलना आदि लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं। निमोनिया की जांच चेस्ट एक्स-रे के माध्यम से की जाती है और साथ ही बीमारी को ठीक करने के लिए एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।

    बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां: टीबी की समस्या (Tuberculosis)

    आपने अक्सर सुना होगा कि टीबी की बीमारी अक्सर वयस्कों में होती है लेकिन ये बच्चों को भी बीमार कर सकता है। बच्चों में टीबी की बीमारी टीबी जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) के कारण होती है। अगर घर में किसी को टीबी है, तो शंका बनी रहती है कि घर के अन्य सदस्यों को भी टीबी की समस्या हो जाएगी। अगर बच्चों में टीबी का इलाज सही समय पर न कराया जाए, तो मरने की संभावना बढ़ सकती है। टीबी के कारण कफ की समस्या, सांस लेने में समस्या, खांसी, थकान आदि लक्षण नजर आते हैं। टीबी की जांच के लिए बलगम का नमूना लिया जाता है और जांच की जाती है। बच्चों को बीसीजी का टीका इस बीमारी से बचाव के लिए दिया जाता है। अगर आपके बच्चे को लगातार खांसी आ रही है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

    इन फैक्टर्स से जुड़ी हो सकती हैं बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां (Respiratory diseases in children)

    बच्चों में कुछ सांस संबंधित समस्याएं आठ से दस दिनों में अपने आप ठीक हो जाती हैं, वहीं कुछ बीमारियां बिना इलाज के ठीक नहीं होती हैं और साथ ही ये बढ़ती भी जाती हैं। कुछ फैक्टर्स होते हैं, जो सांस संबंधित बीमारियों को बढ़ाने का काम करते हैं। जानिए बच्चों में रेस्पायरेटरी डिजीज को कौन से फैक्टर्स ट्रिगर करते हैं।

    • सेकेंड हैंड टबैको स्मोक (Second-hand tobacco smoke)
    • इनडोर एयर पॉल्युटेंट्स ( Indoor Air Pollutants)
    • आउटडोर एयर पॉल्युटेंट्स ( Outdoor Air Pollutants)
    • एलर्जन्स ( Allergens)
    • एक्युपेशनल एक्सपोजर (Occupational Exposure)
    • डायट एंड न्यूट्रीशन (Diet and Nutrition)
    • पोस्ट इंफेक्शियस क्रॉनिक रेस्पायरेटरी डिजीजेज (Post-infectious Chronic Respiratory Diseases)

    सांस लेने में हो रही है समस्या, तो इन बातों का रखें ध्यान!

    • ब्रोंकाइटिस (Bronchitis) या अन्य सांस संबंधी समस्या होने पर बच्चे अक्सर धीमा खाते हैं क्योंकि उनकी इच्छा अधिक नहीं होती है। ऐसे में उन्हें पर्याप्त समय दें।
    • बच्चे को पानी के साथ ही इलेक्ट्रोलाइट सॉल्युशन भी दें।
    • समय पर नोज ड्रॉप डालना न भूलें क्योंकि इससे बच्चे को बहुत राहत मिलती है।
    • बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां (Respiratory diseases in children) होने पर म्युकस की समस्या आम हो जाती है। नेजल ओरल एस्पिरेटर की हेल्प से बच्चे की नाक से म्युकस हटाते रहे।
    • बच्चे के पास कूल मिस्ट ह्युमिडिफायर रखें ताकि बच्चे को सांस लेने में समस्या न हो।
    • बच्चे को साथ लेकर कुछ समय के लिए हॉट रनिंग शॉवर में बैठे ताकि बच्चे को स्टीम मिल सके।
    • अगर बच्चा गरारा कर सकता है, तो पानी में नमक मिलाएं और उसे ऐसा करने के लिए कहें।

    बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां होने पर अपनाएं ये घरेलू उपाय

    • आप बच्चों में सांस संबंधि समस्याएं होने पर तुरंत इलाज कराएं। साथ ही आप कुछ घरेलू उपचार अपना सकती हैं, जो बच्चों को राहत दे सकते हैं।

      बच्चे को शहद के साथ थोड़ा अदरक का रस मिलाकर दें। अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो इंफेक्शन को दूर भगाने में मदद करते हैं।

    • ब्रोंकाइटिस के संक्रमण को दूर करने के लिए लहसुन कारगर उपाय साबित हो सकता है। आप खाना बनाते समय उसमें लहसुन की एक या दो कलियों का इस्तेमाल कर सकते हैं।
    • अगर आप बच्चे को कुछ मात्रा में दूध के साथ हल्दी मिलाकर देंगे, तो ये इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करेगा। बच्चों में रेस्पायरेटरी बीमारियां (Respiratory diseases in children) कम करने के लिए आप ये उपाय अपना सकती हैं। ध्यान रखें कि बिना डॉक्टर या एक्सपर्ट की सलाह के घरेलू उपाय न अपनाएं।
    • पानी का सेवन वैसे तो हमेशा ही पर्याप्त मात्रा में करना चाहिए लेकिन इंफेक्शन होने पर बच्चे को हाइड्रेटेड रखें। गले में खराश की समस्या है, तो पानी में हल्का नमक भी मिलाया जा सकता है।

    बच्चे को सांस संबंधित समस्याओं से बचाने के लिए सतर्क रहने की आवश्यकता है। अगर आपके बच्चे को खांसी आ रही है, तो उसे हल्के में न लें। ये किसी बड़ी बीमारी का लक्षण भी हो सकता है। लंबे समय तक खांस आना सांस संबंधी बीमारी का संकेत हो सकता है। आपको अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परार्श जरूर करना चाहिए।  आप स्वास्थ्य संबंधी अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है, तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं और अन्य लोगों के साथ साझा कर सकते हैं।

    डिस्क्लेमर

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