एसटीडी यानी सेक्शुअल ट्रांसमिटेड डिजीज, ऐसे रोग जो योनि, गुदा और ओरल सेक्स के द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में स्थानांतरित होते हैं यौन संचारित रोग (STD) कहलाते हैं। क्योंकि ये यौन जनित रोग हैं, इसलिए ये जरूरी नहीं है कि एसटीडी सिर्फ सेक्स द्वारा ही स्थानांतरित होते हैं और भी कई कारण हैं जैसे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से, स्तनपान से, इंफेक्टेड सुई से, इंफेक्टेड ब्लड चढ़ाने से, खुले घावों या छिली हुई त्वचा के संपर्क में आने से भी एसटीडी का खतरा रहता है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी गर्भवती महिला और शिशु को एसटीडी का खतरा रहता है इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान हर महिला को डॉक्टर से STD (Sexually Transmitted Diseases) के बारे में जानकारी जरूर लेनी चाहिए और डॉक्टर से नियमित रूप से यौन संचारित रोग से जुड़े परीक्षण या STD के टेस्ट करवाना चाहिए।
लोगों के मन में भ्रांति होती है कि प्रेग्नेंट महिला को STD नहीं हो सकता, ऐसा नहीं है कि गर्भवती महिला को STD न हो। कई बार लक्षण न दिखाई देने पर प्रेग्नेंट महिला को पता नहीं चल पाता कि वह यौन संचारित रोग से पीड़ित है। प्रेग्नेंसी में STD से पीड़ित होने पर मां और बच्चे दोनों को जान तक का खतरा रहता है, इसलिए प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है।
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यौन संचारित रोग कैसे प्रेग्नेंट महिला और बच्चे को प्रभावित कर सकते हैं?
गर्भावस्था के दौरान एक एसटीआई आपके और आपके बच्चे के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है। प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट करवाना जरूरी है। गर्भवती महिलाओं के लिए पहली तिमाही में सभी एसटीआई (जैसे कि ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस (एचआईवी), हेपेटाइटिस बी, क्लैमाइडिया और सिफलिस) के लिए स्क्रीनिंग करवाई जाती है। इन संक्रमणों के उच्च जोखिम में महिलाओं के लिए गर्भावस्था के दौरान गोनोरिया और हेपेटाइटिस-सी स्क्रीनिंग परीक्षणों की सिफारिश कम से कम एक बार की जाती है।
प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट से समय रहते इसके बारे में पता चल जाता है। यौन संचारित रोग प्रेग्नेंसी में मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। यह बच्चे के विकास को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यदि इलाज न करवाया जाए, तो जन्म के समय से ही समस्याएं दिखना शुरू हो जाती है। कई बच्चों में महीनों और सालों बाद STD का प्रभाव दिखाई देता है। यौन संचारित रोग होने पर प्रेग्नेंसी में नियमित रूप से चिकित्सीय देखभाल की जरूरत पड़ती है।
इससे बच्चे को होने वाली अधिकतर समस्याओं को रोका जा सकता है। प्रेग्नेंसी में STD होने पर बच्चे को अंधेपन, लिवर की समस्या, पीलिया जैसे कई रोग हो सकते हैं, जो ताउम्र परेशान कर सकते हैं। यदि प्रेग्नेंट महिला को एचआईवी जैसा यौन संचारित रोग हुआ है, तो मां के साथ बच्चे की जान भी खतरे में आ सकती है। STD शुरू होने से लेकर डिलिवरी तक समय-समय पर STD के टेस्ट किए जाते हैं ताकि किसी भी तरह के एसटीडी का पता लगाकर समय रहते उसका इलाज किया जा सके। गर्भावस्था के दौरान एक एसटीआई आपके बच्चे को कई तरह से प्रभावित कर सकता है? गर्भावस्था के दौरान एसटीआई कई जटिलताओं का कारण बन सकता है। जो इस प्रकार हो सकते हैं।
- एचआईवी (HIV): गर्भवती महिलाएं योनि से प्रसव या स्तनपान के दौरान अपने बच्चों को एचआईवी दे सकती हैं। हालांकि, यदि गर्भावस्था से पहले ही एचआईवी का निदान किया जाता है, तो संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।
- हेपेटाइटिस बी: गर्भावस्था में मां से बच्चे में हेपेटाइटिस बी होने का सबसे बड़ा जोखिम तब होता है। जब गर्भवती महिला प्रसव के करीब संक्रमित हो जाती है। अगर जन्म के तुरंत बाद जोखिम वाले शिशुओं का इलाज किया जाता है, तो ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है।
- क्लैमाइडिया: गर्भावस्था के दौरान क्लैमाइडिया प्रीमैच्योर बच्चे, समय से पहले जन्म और कम वजन का कारण बन सकता है। क्लैमाइडिया एक योनि प्रसव के दौरान महिलाओं से उनके बच्चों में हो सकता है। यदि गर्भावस्था के दौरान निदान किया जाता है, तो क्लैमाइडिया का एंटीबायोटिक के साथ सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।
- सिफलिस: गर्भावस्था के दौरान सिफलिस शिशु के समय से पहले जन्म, स्टिलबर्थ और कुछ मामलों में जन्म के बाद मृत्यु का कारण बन सकता है। अनुपचारित शिशुओं में कई अंगों से जुड़ी जटिलताओं का खतरा हो सकता है।
- गोनोरिया: गर्भावस्था के दौरान अनुपचारित गोनोरिया शिशु के समय से पहले जन्म, मेम्ब्रेन का समय से पहले टूटना और बच्चे के कम वजन का कारण बन सकता है। प्रसव के दौरान वजायना के माध्यम से गोनोरिया बच्चे को हो सकता है।
- हेपेटाइटिस सी: कुछ शोध बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान हेपेटाइटिस सी शिशु के समय से पहले जन्म, जेस्टेशनल, उम्र और कम जन्म के वजन के जोखिम को बढ़ाता है। इस प्रकार का लिवर संक्रमण गर्भावस्था के दौरान बच्चे तक पहुंच सकता है।
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प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट की लिस्ट
एसटीआई कई तरह के होते हैं, यह जानने के लिए कि आपको किस परीक्षण की आवश्यकता है अपने डॉक्टर से बात करें। वे आपको निम्नलिखित में से एक या एक से अधिक परीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- क्लैमाइडिया टेस्टिंग
- गोनोरिया टेस्टिंग
- सिफलिस टेस्ट
- ट्राइकोमोनस टेस्टिंग
- एचपीवी टेस्ट
- हर्पीस टेस्टिंग
- हेपेटाइटिस-बी टेस्टिंग
- हेपेटाइटिस-सी टेस्टिंग
- एचआईवी एंटीबॉडी टेस्ट
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क्या प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट किए जाने चाहिए?
प्रेग्नेंट महिला को STD के टेस्ट और इलाज दोनों करवाना जरूरी है। STD के टेस्ट के जरिए मां और बच्चे दोनों की सेहत से जुड़ी गंभीर जटिलताओं और खतरों का पता चलता है। अगर किसी महिला में प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट के जरिए किसी यौन जनित बीमारी के बारे में पता चला है तो जितनी जल्दी हो सकें, यौन संचारित रोगों का इलाज करवाना शुरू कर देना चाहिए। जितना जल्दी इलाज शुरू होगा, अजन्मे बच्चे पर यौन संचारित रोग का असर उतना ही कम होगा।
आपको बता दें कि, यदि आपको पहले कभी भी एसटीआई का परीक्षण कराने का निर्देश दिया गया है, तो गर्भावस्था के दौरान दोबारा से परीक्षण करना बहुत महत्वपूर्ण है।यदि आपको इससे जुड़े किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं या आप किसी प्रकार के उच्च यौन गतिविधि में सम्मिलित रहे हैं, तो गर्भावस्था की स्थिति में आपको यह परीक्षण कराना आवश्यक होता है।
डॉक्टर प्रेग्नेंसी में आपको सीडीसी स्क्रीनिंग की सलाह दे सकते हैं। इस टेस्ट के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे पर क्या असर पड़ सकता है, इसकी जानकारी मिल सकती है। डॉक्टर से समय-समय पर जांच करवाते रहें ताकि किसी तरह का खतरा न हो। प्रेग्नेंसी के दौरान लक्षणों के आधार पर यौन संचारित रोगों का पता लगाने के लिए STD के कुछ टेस्ट करवाए जाते हैं, जो कि इस प्रकार हैं-
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- यूरिन टेस्ट– इसमें गर्भवती महिला से यूरिन सैंपल लिया जाता है, जिसके जरिए क्लैमीडिया की जांच की जाती है। महिला और पुरुष दोनों के यूरिन सैंपल लिए जाते हैं, जिससे कि गोनोरिया की जांच की जा सके।
- ब्लड टेस्ट– गर्भवती महिला के हाथ की नसों से खून का सैंपल लिया जाता है, जिससे कि एचआईवी, सिफिलिस, ट्रायकॉमोनास, हेपेटाइटस-बी की जांच की जा सके।
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क्या गर्भवती होने पर STD का इलाज कराना ठीक होगा?
प्रेग्नेंसी के दौरान STD के टेस्ट और इलाज करवाना बेहद जरूरी है। अगर किसी प्रेग्नेंट महिला में STD के टेस्ट के दौरान कोई यौन जनित रोग डिटेक्ट हुआ है, तो जल्दी ही उसका इलाज शुरू करना चाहिए। प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं में कई यौन संचारित रोगों का पता चल सकता है, जिनमें क्लैमाइडिया, गोनोरिया, सिफलिस, ट्राइकोमोनिएसिस शामिल हैं। इन सभी रोगों का एंटीबायोटिक दवाओं के जरिए इलाज किया जाता है।
STD के टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर रोग के बारे में पता करके तय करते हैं कि कौनसी एंटीबायोटिक देना है। यह एंटीबायोटिक दवाइयां प्रेग्नेंसी में लेना पूरी तरह से सुरक्षित है। कुछ यौन संचारित रोग वायरस के कारण होते हैं, जैसे हेपेटाइटिस बी, एचआईवी और जेनिटल हर्पीस का पूरी तरह से इलाज नहीं किया जा सकता है। कुछ मामलों में यौन संचारित रोग (हेपेटाइटिस बी, एचआईवी और जेनिटल हर्पीस) का इलाज कर बच्चे को संक्रमण से बचाया जा सकता है। प्रेग्नेंसी में STD के टेस्ट और इलाज करवाना बेहद जरूरी है, इससे गर्भस्थ शिशु को एसटीडी के खतरों से बचाया जा सकता है।
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प्रेग्नेंसी में कई तरह के टेस्ट किए जाते हैं इसी में एसटीडी यानि यौन संचारित रोगों का भी टेस्ट किया जाता है ताकि पता लगाया जा सके कि गर्भवती महिला किसी यौन संचारित रोग से पीड़ित तो नहीं है। इन टेस्ट के जरिए होने वाले बच्चे को भी संक्रमण से बचाने के लिए उपाय किए जा सकते हैं।
हम उम्मीद करते हैं प्रेग्नेंसी में STD के टेस्ट विषय पर आधारित यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा। इन रोगों से बचाव करना बेहद जरूरी है। प्रेग्नेंसी के समय ज्यादा एहतियात बरतना चाहिए, क्योंकि कई बार इससे गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी असर पड़ सकता है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से संपर्क करें।
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