कुछ मामलों में जन्म के बाद शिशु में अनुवांशिकीय असमानताएं पाई जाती हैं। कई बार ये शिशु मेंटली डिसेबल भी हो सकते हैं। यह समस्या जेनेटिक होने से प्रेग्नेंसी के दौरान इसकी संभावना और बढ़ जाती है। इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ट्रिपल मार्कर टेस्ट किया जाता है। आज हम इस आर्टिकल में ट्रिपल मार्कर टेस्ट के बारे में बता रहे हैं।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) क्या है?
यह एक किस्म का ब्लड टेस्ट है। आम बोलचाल की भाषा में इसे सामान्य ब्लड टेस्ट नहीं कहा जा सकता। चूंकि इसमें ट्रिपल मार्कर स्क्रीनिंग की जाती है। गर्भ में शिशु को संभावित रूप से होने वाली अनुवांशिक विकृति के बारे में यह टेस्ट सूचना देता है। हालांकि, संभावित विकृतियों के लिए अन्य टेस्ट किए जा सकते हैं। इस संबंध में डॉक्टर से परामर्श की आवश्यकता होती है।
इस टेस्ट में महिला की उम्र, वजन, नस्ल, पहले से मौजूद बीमारियों, प्रेग्नेंसी के प्रकार (जुड़वा बच्चे) के बारे में जानकारी मिलती है।
कब किया जाता है ट्रिपल मार्कर टेस्ट (When is the triple marker test done)?
यह टेस्ट उन महिलाओं में किया जाता है, जिनकी प्रेग्नेंसी 15 और 20 हफ्तों के बीच होती है। इस टेस्ट का वैकल्पिक टेस्ट क्वाड्रउपल मार्कर स्क्रीन टेस्ट है, जो इनहिबिन ए नामक पदार्थ का पता लगाता है।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट के जरिए प्लेसेंटा में मौजूद अल्फा-फेटोप्रोटीन (एएफपी), ह्यूमन क्रोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचएसजी) और एस्ट्रिओल के स्तर का पता लगाया जाता है। हालांकि, यह टेस्ट हर महिला को कराना चाहिए। इन महिलाएं को ट्रिपर मार्कर टेस्ट जरूर कराना चाहिए।
- जिनकी जेनेटिक समस्या की पारिवारिक पृष्ठभूमि हो
- उम्र 35 वर्ष या इससे अधिक हो
- प्रीनेटल मेडिकेशन चला हो और उसके साइड इफेक्ट्स भी हुए हो
- डायबिटीज और इंसुलिन की समस्या हो
- प्रीनेटल वायरल संक्रमण की स्थिति में
- रेडिएशन के संपर्क में आने का सबसे ज्यादा खतरा
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ट्रिपल मार्कर टेस्ट के क्या फायदे हैं (Benefits of Triple Marker Test)?
ट्रिपल मार्कर टेस्ट से शिशु में डाउन सिंड्रोम या स्पाइना बिफिडा का पता लगाया जा सकता है। इस टेस्ट में एक से ज्यादा भ्रूण के बारे में संकेत मिलता है। यदि परीक्षण के परिणाम सामान्य आते हैं, तो बच्चे को किसी तरह के आनुवंशिक विकार होने की संभावना कम होती है। बच्चे का जन्म बिना किसी बीमारी के हो सकता है। ट्रिपल मार्कर टेस्ट में संबंधिक बीमारियों के बारे में मालूम हो जाता है, जिनका समय रहते उपचार किया जा सकता है।
प्रेग्नेंसी में ट्रिपल मार्कर टेस्ट को कराना कितना सही है? (How accurate is the triple marker test in pregnancy?)
ट्रिपल मार्कर टेस्ट में 100 में से 80 भ्रूणों के बारे में सटीक रूप से पता किया जा सकता है कि उसे स्पाइना बिफिडा है या नहीं। कुछ भ्रूणों में इसका पता लगाना मुश्किल हो सकता है। इस टेस्ट के जरिए से 100 में से 69 भ्रूणों में डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है। वहीं, 31 भ्रूणों में यह पता करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा इसके जरिए 100 में से 90 भ्रूणों में एनेस्थली है या नहीं यह पता लगाया जाता है।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) दूसरे ट्राइमेस्टर में भी किया जाता है। इसमें खून में एएफएपी, एजीसी और इस्ट्रिओइल के स्तर की जांच की जाती है।
एएफपी (AFP)
यह एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जिसका उत्पादन भ्रूण में होता है। यह न्यूरल ट्यूब में विकृति के बारे में बताता है।
एजीसी (SGP)
इसका कम स्तर गर्भ में संभावित रूप से भ्रूण का खराब होना या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का संकेत देता है। एचजीसी का स्तर ज्यादा होने से मोलर प्रेग्नेंसी या जुड़वा बच्चों का संकेत होता है।
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इस्ट्रिओइल (Estrioil)
यह एक एस्ट्रोजन होता है, जो प्लेसेंटा और भ्रूण दोनों से ही आता है। इसका कम स्तर बच्चे में डाउन सिंड्रोम के खतरे की तरफ इशारा करता है, विशेषकर कम एएफपी और एचजीसी के ज्यादा स्तर के साथ जोड़ने पर।
अमेरिका की ट्रिसोमी 18 फाउंडेशन के मुताबिक, इन तीनों पदार्थों का असामान्य स्तर डाउन सिंड्रोम या एडवर्ड सिंड्रोम की तरफ इशारा करता है। डाउन सिंड्रोम तब सामने आता है, जब भ्रूण 21 गुणसूत्रों की एक ज्यादा कॉपी विकसित कर लेता है। इससे कई तरह की मेडिकल समस्याएं हो सकती हैं।
कुछ मामलों में बच्चे की सीखने की क्षमता में डिसेबिलिटी आ जाती है। वहीं, एडवर्ड सिंड्रोम में इससे घातक समस्याएं समाने आ सकती हैं। शिशु के जन्म के पहले और वर्षों बाद कुछ मामलों में यह समस्याएं जानलेवा भी हो सकती हैं। इस समस्या वाले 50 प्रतिशत भ्रूण ही जन्म ले पाते हैं।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) के बाद दूसरे टेस्ट क्यों जरूरी?
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) में जीन से जुड़ी असमानताएं सामने आने पर अक्सर अतिरिक्त टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। क्योंकि, यह टेस्ट उपचार के उद्देश्य से नहीं किया जाता है बल्कि, संभावित खतरों के संकेत देता है। अतिरिक्त टेस्ट कराने की स्थिति महिलाओं में भिन्न हो सकती है।
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ट्रिपल मार्कर टेस्ट की प्रक्रिया (Triple Marker Test Procedure)
इस टेस्ट में मां और बच्चे को किसी भी प्रकार का खतरा नहीं होता है। एक सामान्य ब्लड टेस्ट के जरिए ट्रिपल मार्कर टेस्ट किया जाता है। ब्लड सैंपल लेने के बाद उसे प्रयोगशाला में भेजा जाता है। लैब में टेस्ट के दौरान अल्फा-फेटोप्रोटीन, ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन और एस्ट्रिऑल के स्तर को मापा जाता है। कुछ दिनों के भीतर ही इसकी रिपोर्ट आ जाती है। इसके बाद आपको रिपोर्ट का विश्लेषण करने के लिए डॉक्टर की मदद की आवश्यकता होती है।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) की तैयारी कैसे करें?
ट्रिपल मार्कर टेस्ट एक सामान्य स्क्रीनिंग टेस्ट है। इसलिए इसे कराने से पहले किसी तरह की विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती है। डबल मार्कर टेस्ट के बाद इस टेस्ट को कराने की जरूरत नहीं होती है।
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अब तो आप समझ ही गए होंगे कि प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले टेस्ट कितने जरूरी है। डॉक्टर की सलाह से इन टेस्ट्स को करवाना उचित होगा ताकि महिला और शिशु दोनों सुरक्षित रह सकें। हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में ट्रिपल मार्कर टेस्ट के बारे में बताया गया है। यदि आपका इस लेख से संबंधित कोई सवाल है तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। हम अपने एक्सपर्ट्स द्वारा आपके प्रश्नों के उत्तर दिलाने का पूरा प्रयास करेंगे। यदि आप ट्रिपल मार्कर टेस्ट से जुड़ी अन्य कोई जानकारी पाना चाहते हैं तो इसके लिए बेहतर होगा आप किसी विशेषज्ञ से कंसल्ट करें।
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