इसका कम स्तर गर्भ में संभावित रूप से भ्रूण का खराब होना या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का संकेत देता है। एचजीसी का स्तर ज्यादा होने से मोलर प्रेग्नेंसी या जुड़वा बच्चों का संकेत होता है।
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इस्ट्रिओइल (Estrioil)
यह एक एस्ट्रोजन होता है, जो प्लेसेंटा और भ्रूण दोनों से ही आता है। इसका कम स्तर बच्चे में डाउन सिंड्रोम के खतरे की तरफ इशारा करता है, विशेषकर कम एएफपी और एचजीसी के ज्यादा स्तर के साथ जोड़ने पर।
अमेरिका की ट्रिसोमी 18 फाउंडेशन के मुताबिक, इन तीनों पदार्थों का असामान्य स्तर डाउन सिंड्रोम या एडवर्ड सिंड्रोम की तरफ इशारा करता है। डाउन सिंड्रोम तब सामने आता है, जब भ्रूण 21 गुणसूत्रों की एक ज्यादा कॉपी विकसित कर लेता है। इससे कई तरह की मेडिकल समस्याएं हो सकती हैं।
कुछ मामलों में बच्चे की सीखने की क्षमता में डिसेबिलिटी आ जाती है। वहीं, एडवर्ड सिंड्रोम में इससे घातक समस्याएं समाने आ सकती हैं। शिशु के जन्म के पहले और वर्षों बाद कुछ मामलों में यह समस्याएं जानलेवा भी हो सकती हैं। इस समस्या वाले 50 प्रतिशत भ्रूण ही जन्म ले पाते हैं।
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) के बाद दूसरे टेस्ट क्यों जरूरी?
ट्रिपल मार्कर टेस्ट (Triple Marker Test) में जीन से जुड़ी असमानताएं सामने आने पर अक्सर अतिरिक्त टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। क्योंकि, यह टेस्ट उपचार के उद्देश्य से नहीं किया जाता है बल्कि, संभावित खतरों के संकेत देता है। अतिरिक्त टेस्ट कराने की स्थिति महिलाओं में भिन्न हो सकती है।