पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) की वजह से ज्यादातर महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में दिक्कत आती है। यह कोई बीमारी नहीं बल्कि, हार्मोन की समस्या है, जो रिप्रोडक्टिव सिस्टम में हस्तक्षेप करती है। पीसीओएस में ज्यादातर महिलाओं की ओवरी सामान्य के मुकाबले ज्यादा बड़ी हो जाती हैं। इन बड़ी ओवरीज में अनेकों छोटे-छोटे सिस्ट होते हैं, जिनमें इमैच्योर एग्स होते हैं। आज हम पीसीओएस वाली महिलाओं को गर्भधारण में आने वाली दिक्कतों के बारे में बताएंगे। इस आर्टिकल के माध्यम से जानिए कि आखिर क्या है पीसीओएस और गर्भधारण में संबंध।
पीसीओएस और गर्भधारण (PCOS and Pregnancy):
जानिए पीसीओएस और गर्भधारण में क्या है कनेक्शन
हार्मोंस की वजह से होता है पीसीओएस (PCOS is caused by hormones)
महिलाओं को पीसीओएस होने की स्थिति में उनकी बॉडी में एंड्रोजेन बड़ी मात्रा में बनता है। एंड्रोजेन को पुरुषों के हार्मोन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि, पुरुषों में महिलाओं के मुकाबले इसकी ज्यादा मात्रा होती है। पुरुषों के सेक्स ऑर्गन्स के विकास में इसकी अहम भूमिका होती है।
वहीं, महिलाओं में यह एस्ट्रोजेन हार्मोन में बदल जाता है। महिलाओं को पीसीओएस होने का मतलब यह नहीं की वे प्रेग्नेंट नहीं हो सकती। ज्यादातर महिलाओं में इसको लेकर गलतफहमी है। पीसीओएस बॉडी में हार्मोन के असंतुलन की एक समस्या है। महिलाएं पीसीओएस के साथ भी गर्भधारण कर सकती हैं।
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पीसीओएस और गर्भधारण: पीसीओएस और ऑव्युलेशन (PCOS and ovulation)
पीसीओएस में ज्यादातर महिलाओं की बॉडी में ल्युटेनिजाइंग हार्मोन (एलएच) का स्तर कम हो जाता है। इसी हार्मोन की वजह से ऑव्युलेशन होता है। पीसीओएस में फॉलिकल्स स्टुमिलेटिंग हार्मोन का स्तर कम हो जाता है। यह हार्मोन पुरुषों के टेस्टीज और महिलाओं की ओवरी के कार्यों को पूरा करने के लिए जरूरी होता है। पीसीओएस में महिलाओं की बॉडी में एस्ट्रोजेन का स्तर कम और एंड्रोजेन का ज्यादा हो जाता है।
हार्मोन के इस असंतुलन से महिलाओं के मासिक धर्म में अनियमित्ता आ जाती है। इससे या तो उन्हें ऑव्युलेशन नहीं होता है या वो कभी कभी होता है। इस स्थिति में महिलाओं को गर्भधारण करने में दिक्कतें आती हैं।
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फर्टिलिटी और पीसीओएस में संबंध (Relationship between PCOS and Fertility)
एंड्रोजेन के अलावा पीसीओएस वाली महिलाओं की बॉडी में टेस्टोस्टेरोन का स्तर भी ज्यादा होता है। इसके चलते उनके चेहरे पर बाल आते हैं। पीसीओएस होने पर महिलाओं की बॉडी इंसुलिन को प्रतिक्रिया नहीं देती है। इसके चलते आपकी बॉडी में ग्लूकोज का स्तर ज्यादा रहता है। बॉडी में इंसुलिन का स्तर ज्यादा होने से आपका वजन बढ़ता है। वजन का बढ़ना सीधे ही फर्टिलिटी की समस्या को पैदा करता है।
इन तमाम समस्याओं के बावजूद महिलाएं पीसीओएस में गर्भधारण कर सकती हैं। यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उन्हें गर्भधारण करने में कितना समय लगेगा? महिलाओं के बीच यह सवाल सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है। हालांकि, इसको लेकर कोई निश्चित समय सीमा या आंकड़े दे पाना मुश्किल है। क्योंकि, पीसीओएस के इलाज के हर तरीके में इसकी कामयाबी और गर्भधारण की दर अलग-अलग होती है। पीसीओएस वाली ज्यादातर महिलाएं फर्टिलिटी के इलाज के बाद गर्भधारण कर लेती हैं लेकिन, उन्हें इसमें कितना समय लगेगा यह उनकी उम्र और इलाज के तरीके पर निर्भर करता है।
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पीसीओएस और गर्भधारण को लेकर अध्ययनों ने क्या कहा?
2015 में एनसीबीआई में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इनफर्टिलिटी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है। वहीं, अमेरिकन सोसाइटी फोर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के मुताबिक, पीसीओएस वाली महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारणों की जांच गर्भधारण के प्रयासों के छह महीने बाद की जानी चाहिए। यदि ये कपल्स बिना किसी गर्भनिरोधक के हर हफ्ते में दो से तीन बार इंटरकोस करते हैं।
गर्भधारण के लिए किसी भी इलाज का चुनाव करने से पहले महिला की ट्यूबल पेटेंसी और पुरुष के सेमेन विश्लेषण आवश्यक है। हालांकि, क्लोमिफेन सिट्रेट (सीसी) ट्रीटमेंट में ट्यूबल पेटेंसी की जांच आवश्यक नहीं होती है। उल्लेखनीय यह है कि यदि महिला की बॉडी इस दवा के प्रति रेसिस्टेंट होती है या उसे गोनाडोट्रोपिन्स की जरूरत होती है तो इस स्थिति में ट्यूबल पेटेंसी जांच जरूरी है। सीसी ट्रीटमेंट उन महिलाओं को रिकमंड नहीं किया जा सकता जिनकी ओवरी में लंबे समय से एग्स नहीं बन पाते।
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पीसीओएस के कारण गर्भधारण में समस्या: पीसीओएस में गर्भधारण के तरीके (Methods of conception in PCOS)
एनसीबीआई में प्रकाशित लेख के मुताबिक, पीसीओएस वाली महिलाओं को गर्भधारण से पहले कुछ दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए। बॉडी में इंसुलिन का स्तर बढ़ने से पीसीओएस वाली महिलाओं का वजन ज्यादा होता है। पीसीओ शरीर के लिए इंसुलिन का उपयोग करना अधिक कठिन बनाता है, जो आम तौर पर शर्करा और स्टार्च को खाद्य पदार्थों से ऊर्जा में बदलने में मदद करता है जिससे वजन बढ़ता है। इन दिशा- निर्देशों के अनुसार, महिलाओं को अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर वजन कम करना चाहिए।
रोजाना व्यायाम करने से उनका तनाव कम होगा और स्वयं में खुशनुमा महसूस करेंगी। इससे पीरियड्स नियमित समय पर आएंगे और गर्भधारण करने की संभावना बढ़ेगी। इसके अलावा उन्हें फोलिक एसिड थेरिपी लेनी चाहिए, जिससे प्रेग्नेंट होने पर भ्रूण में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स को रोका जा सके। डिब्बाबंद व वसा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन एवॉइड करना चाहिए। इसकी जगह फल-सब्जियां, बीन्स, सूखे मेवे व गेहूं के आटे की चीजें खाएं। कार्बोहाइड्रेट व शुगर युक्त खाद्य पदार्थों को डायट से बाहर करना बेहतर होगा।
पीसीओएस के कारण गर्भधारण में समस्या : इन बातों का रखें ध्यान
गर्भधारण करने के लिए स्वस्थ जीवन अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्हें तंबाकू का सेवन और एल्कोहॉल का सेवन बंद करना चाहिए। इसके बाद पीसीओएस के पहले चरण के फार्माकोलॉजिकल इलाज में उनके ऑव्युलेशन में निरंतरता लाने के लिए उन्हें क्लोमिफेन सिट्रेट का ट्रीटेमेंट दिया जाता है। इलाज के दूसरे चरण में उन्हें गोनाडोट्रोपिन्स या लेप्रोस्कॉपी ओवरियन सर्जरी (ओवरियन ड्रिलिंग) दिया जाता है। तीसरे चरण में सबसे ज्यादा जटिल इलाज इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) दिया जाता है।
पीसीओएस में प्रेग्नेंसी है संभव
यह उस स्थिति में दिया जाता है जब दोनों चरणों का इलाज असफल रहा हो। यदि आपको भी पीसीओएस की समस्या है तो इलाज के इन तीनों चरणों में अलग-अलग समय लग सकता है। ऐसी स्थिति में आप कब प्रेग्नेंट होंगी यह बताना मुश्किल है। सभी पक्षों के सही दिशा में रहने से इसका उचित इलाज होने पर आप आसानी से प्रेग्नेंट हो सकती हैं। हम आशा करते हैं आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। हैलो हेल्थ के इस आर्टिकल में पीसीओएस और गर्भधारण से जुड़ी हर जानकारी देने की कोशिश की गई है। यदि आप इससे जुड़ी अन्य कोई जानकारी पाना चाहते है तो आप अपना सावाल कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं।
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