इन तमाम समस्याओं के बावजूद महिलाएं पीसीओएस में गर्भधारण कर सकती हैं। यहां पर सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि उन्हें गर्भधारण करने में कितना समय लगेगा? महिलाओं के बीच यह सवाल सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है। हालांकि, इसको लेकर कोई निश्चित समय सीमा या आंकड़े दे पाना मुश्किल है। क्योंकि, पीसीओएस के इलाज के हर तरीके में इसकी कामयाबी और गर्भधारण की दर अलग-अलग होती है। पीसीओएस वाली ज्यादातर महिलाएं फर्टिलिटी के इलाज के बाद गर्भधारण कर लेती हैं लेकिन, उन्हें इसमें कितना समय लगेगा यह उनकी उम्र और इलाज के तरीके पर निर्भर करता है।
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पीसीओएस और गर्भधारण को लेकर अध्ययनों ने क्या कहा?
2015 में एनसीबीआई में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं में इनफर्टिलिटी 70 से 80 प्रतिशत के बीच होती है। वहीं, अमेरिकन सोसाइटी फोर रिप्रोडक्टिव मेडिसिन के मुताबिक, पीसीओएस वाली महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारणों की जांच गर्भधारण के प्रयासों के छह महीने बाद की जानी चाहिए। यदि ये कपल्स बिना किसी गर्भनिरोधक के हर हफ्ते में दो से तीन बार इंटरकोस करते हैं।
गर्भधारण के लिए किसी भी इलाज का चुनाव करने से पहले महिला की ट्यूबल पेटेंसी और पुरुष के सेमेन विश्लेषण आवश्यक है। हालांकि, क्लोमिफेन सिट्रेट (सीसी) ट्रीटमेंट में ट्यूबल पेटेंसी की जांच आवश्यक नहीं होती है। उल्लेखनीय यह है कि यदि महिला की बॉडी इस दवा के प्रति रेसिस्टेंट होती है या उसे गोनाडोट्रोपिन्स की जरूरत होती है तो इस स्थिति में ट्यूबल पेटेंसी जांच जरूरी है। सीसी ट्रीटमेंट उन महिलाओं को रिकमंड नहीं किया जा सकता जिनकी ओवरी में लंबे समय से एग्स नहीं बन पाते।
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पीसीओएस के कारण गर्भधारण में समस्या: पीसीओएस में गर्भधारण के तरीके (Methods of conception in PCOS)
एनसीबीआई में प्रकाशित लेख के मुताबिक, पीसीओएस वाली महिलाओं को गर्भधारण से पहले कुछ दिशा निर्देशों का पालन करना चाहिए। बॉडी में इंसुलिन का स्तर बढ़ने से पीसीओएस वाली महिलाओं का वजन ज्यादा होता है। पीसीओ शरीर के लिए इंसुलिन का उपयोग करना अधिक कठिन बनाता है, जो आम तौर पर शर्करा और स्टार्च को खाद्य पदार्थों से ऊर्जा में बदलने में मदद करता है जिससे वजन बढ़ता है। इन दिशा- निर्देशों के अनुसार, महिलाओं को अपनी दिनचर्या में बदलाव लाकर वजन कम करना चाहिए।
रोजाना व्यायाम करने से उनका तनाव कम होगा और स्वयं में खुशनुमा महसूस करेंगी। इससे पीरियड्स नियमित समय पर आएंगे और गर्भधारण करने की संभावना बढ़ेगी। इसके अलावा उन्हें फोलिक एसिड थेरिपी लेनी चाहिए, जिससे प्रेग्नेंट होने पर भ्रूण में न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट्स को रोका जा सके। डिब्बाबंद व वसा युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन एवॉइड करना चाहिए। इसकी जगह फल-सब्जियां, बीन्स, सूखे मेवे व गेहूं के आटे की चीजें खाएं। कार्बोहाइड्रेट व शुगर युक्त खाद्य पदार्थों को डायट से बाहर करना बेहतर होगा।
पीसीओएस के कारण गर्भधारण में समस्या : इन बातों का रखें ध्यान
गर्भधारण करने के लिए स्वस्थ जीवन अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए उन्हें तंबाकू का सेवन और एल्कोहॉल का सेवन बंद करना चाहिए। इसके बाद पीसीओएस के पहले चरण के फार्माकोलॉजिकल इलाज में उनके ऑव्युलेशन में निरंतरता लाने के लिए उन्हें क्लोमिफेन सिट्रेट का ट्रीटेमेंट दिया जाता है। इलाज के दूसरे चरण में उन्हें गोनाडोट्रोपिन्स या लेप्रोस्कॉपी ओवरियन सर्जरी (ओवरियन ड्रिलिंग) दिया जाता है। तीसरे चरण में सबसे ज्यादा जटिल इलाज इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) दिया जाता है।