प्रेग्नेंसी से पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान स्क्रीनिंग टेस्ट जरूरी होता है। स्क्रीनिंग टेस्ट की हेल्प से प्रेग्नेंसी के दौरान हेल्थ को इफेक्ट करने वाली बीमारियों का पता लगाया जाता है। साथ ही डेवलपिंग फीटस में होने वाले इफेक्ट के बारे में भी जानकारी मिलती है। जब हैलो स्वास्थ्य ने फोर्टिस हॉस्पिटल की कंसल्टेंट गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. सगारिका बसु से बात की तो उन्होंने कहा कि ‘प्रेग्नेंसी के पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाले टेस्ट मां और होने वाले बच्चे की हेल्थ के लिए जरूरी हैं। कई बार कुछ बीमारियों के लक्षण पता नहीं चलते हैं, लेकिन स्क्रीनिंग टेस्ट के माध्यम से डिजीज संबंधी जानकारी मिल जाती है।
ब्लड स्क्रीनिंग टेस्ट (Blood screening tests)
ब्लड स्क्रीनिंग टेस्ट महिला के प्रग्नेंट होने के पहले किया जाता है। अगर किसी भी बीमारी के लिए वैक्सिनेशन करना होता है तो टेस्ट के दौरान उसे दिया जाता है। प्रेग्नेंसी से पहले वैक्सिनेशन करना ठीक रहता है, क्योंकि कुछ वैक्सीन से प्रेग्नेंसी के दौरान फीटस को खतरा हो सकता है। ज्यादातर डॉक्टर महिलाओं को प्रेग्नेंसी के पहले और बाद में स्क्रीनिंग टेस्ट की राय देते हैं। टेस्ट के दौरान महिला को खून देना होता है। डॉक्टर टेस्ट का प्रोसीजर बताता है। साथ ही रिजल्ट के पॉजिटिव आने पर जरूरी उपाय भी बताए जाते हैं। उन महिलाओं के लिए ये टेस्ट बहुत जरूरी होता है जिनके घर में किसी बीमारी का इतिहास रहा हो। अगर महिला को किसी भी प्रकार का इंफेक्शन है तो भी टेस्ट से इसकी जानकारी मिल जाती है।
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रूटीन प्रेग्नेंसी स्क्रीनिंग टेस्ट (Routine pregnancy screening test)
प्रेग्नेंसी में स्क्रीनिंग टेस्ट (Screening test in pregnancy): ब्लड ग्रुप और एंटीबॉडी स्क्रीन
जब पहली बार महिला प्रेग्नेंसी चेकअप के लिए जाती है तो ब्लड टेस्ट किया जाता है। पहले प्रेग्नेंसी चेकअप के दौरान महिला 12 सप्ताह की प्रेग्नेंट हो सकती है। इस दौरान महिला के ब्लड टाइप जैसे कि ए, बी, एबी, और ओ की पहचान की जाती है। अगर महिला को अपने ब्लड ग्रुप की सही जानकारी रहती है तो इस टेस्ट की जरूरत नहीं पड़ती है।
RH- और RH+ की जांच
डॉक्टर RH- और RH+ ब्लड की जांच भी करते हैं। RH- महिला और RH+ पुरुष की संतान में हीमोलेटिक डिजीज( Hemolytic disease) होने का खतरा रहता है। ये गंभीर स्थिति है क्योंकि इस कारण से होने वाले बच्चे का ब्रेन डैमेज या फिर मृत्यु भी हो सकती है। ब्लड टेस्ट के बाद ब्लड एंटीबॉडीज की स्क्रीनिंग की जाती है। अगर ऐसा टेस्ट पहले हो चुका है तो भी इसे दोबारा किया जाता है। महिलाओं में एंटीबॉडीज कॉन्सन्ट्रेशन (Antibodies concentrations) चेंज हो सकता है। जरूरत पड़ने पर महिला को एंडीबॉडी डोज दिए जा सकते हैं। प्रेग्नेंसी होने पर कुछ वैक्सिनेशन को इग्नोर किया जाता है।
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प्रेग्नेंसी में स्क्रीनिंग टेस्ट: रुबेला एंटीबॉडी (Rubella antibody)
प्रेग्नेंसी के पहले स्क्रीन टेस्ट के दौरान रुबेला एंटीबॉडी के लिए जांच की जाती है। अगर पहले भी महिला का वैक्सिनेशन हो चुका है तो भी उसे ये जांच जरूर करानी चाहिए। बॉडी में सफिशिएंट एंटीबॉडी का होना बहुत जरूरी है। रूबेला इम्यूनिटी समय के साथ ही कम होने लगती है। प्रेग्नेंसी के पहले इसकी जांच कराने के बाद वैक्सिनेशन कराना जरूरी होता है। प्रेग्नेंसी के दौरान इस वैक्सिनेशन को इग्नोर किया जाता है।
सिफलिस सीरोलॉजी (Syphilis serology)
सिफलिस इंफेक्शन की जांच के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। ये इंफेक्शन सेक्शुअली ट्रांसमिटेड इंफेक्शन है। अगर महिला को ये बीमारी है तो इसके लक्षण पता नहीं चलते हैं। प्रेग्नेंसी में इस इंफेक्शन के नेगेटिव इफेक्ट दिख सकते हैं। टेस्ट के बाद एंटीबायोटिक की हेल्प से सिफलिस इंफेक्शन का इलाज संभव है।
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वायरल इंफेक्शन टेस्ट (Viral infection test)
प्रेग्नेंसी से पहले और प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का हेपेटायटिस बी और हेपेटायटिस सी टेस्ट किया जाता है। साथ ही एचआईवी का भी परीक्षण भी किया जाता है। वायरस इंफेक्शन होने वाले बच्चे के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि रिजल्ट पॉजिटिव आने पर डॉक्टर से बात करें। हेपेटायटिस- सी का इंफेक्शन न्यू बॉर्न में फैलने का खतरा 5 प्रतिशत रहता है।
हेपेटायटिस- सी (hepatitis C)
हेपेटायटिस- सी के वाहक (carriers) से इंफेक्शन होने का भी खतरा रहता है। इसी कारण से सभी महिलाओं को हेपेटायटिस- सी एंटीबॉडीज की स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है। बाद में ये भी चेक किया जाता है कि वाहक डिसीज से संक्रमित है या फिर क्रॉनिक। सी-सेक्शन से भी हेपेटायटिस- सी का खतरा कम नहीं होता है। ऐसे में नॉर्मल डिलिवरी भी की जा सकती है। 12 से 18 महीने बाद होने वाले बच्चे की भी स्क्रीनिंग की जाती है।
गर्भावस्था में स्क्रीनिंग: एचआईवी टेस्ट (HIV Test)
प्रेग्नेंसी के दौरान पहली बार विजिट के लिए आई महिला का एचआईवी टेस्ट किया जाता है। मां से बच्चे को एचआईवी फैलने का खतरा 25-30 प्रतिशत रहता है। अगर मां को एचआईवी से पीड़ित है तो होने वाले बच्चे को इस खतरे से बचाने के लिए एंटीरेट्रोवायरल थेरिपी दी जा सकती है। एचआईवी पीड़ित मां को बच्चे को फॉर्मुला मिल्क देना की सलाह दी जाती है।
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पीएपी स्मीयर (PAP smear) या सर्वाइकल साइटोलॉजी
प्रेग्नेंसी के दौरान पहली बार डॉक्टर को दिखाने आई महिला की पीएपी स्मीयर जांच की जाती है। पीएपी स्मीयर गर्भावस्था के दौरान कोई समस्या उत्पन्न करता है या फिर नहीं, इस बारे में कह पाना मुश्किल है, लेकिन डॉक्टर इसकी जांच जरूर करते हैं।
गर्भावस्था में स्क्रीनिंग : विटामिन डी की जांच (Vitamin D test)
जिन महिलाओं में विटामिन डी की कमी होती है उन्हें ब्रेस्टफीडिंग के दौरान विटामिन डी की खुराक दी जाती है।
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गर्भावस्था में स्क्रीनिंग : ब्लड डिसऑर्डर ( Haemoglobinopathies)
कुछ महिलाओं को एडिशनल स्क्रीनिंग टेस्ट की जरूरत पड़ सकती है। हीमोग्लोबिनोपैथियों (haemoglobinopathies) में हीमोग्लोबिन का उत्पादन असामान्य हो जाता है। नॉर्मल ब्लड टेस्ट के बाद डॉक्टर इस जांच के बारे में कह सकता है।
प्रेग्नेंसी में स्क्रीनिंग टेस्ट: चिकनपॉक्स (chickenpox)
जिन महिलाओं ने कभी भी चिकनपॉक्स के लिए टीकाकरण नहीं कराया है, उन्हें इस बीमारी के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट देना पड़ सकता है। ये वैक्सिनेशन प्रेग्नेंसी के पहले किया जाता है।
प्रेग्नेंसी के बारे में विचार करने से पहले अपने स्वास्थ्य के बारे में जानना जरूरी है। अगर आप स्वस्थ्य महसूस कर रही हैं तो भी प्रेग्नेंसी से पहले स्क्रीनिंग टेस्ट कराना सही रहेगा। अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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