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नवजात शिशु में ज्यादा क्यों होता है जॉन्डिस का खतरा?

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar


Nidhi Sinha द्वारा लिखित · अपडेटेड 30/01/2020

    नवजात शिशु में ज्यादा क्यों होता है जॉन्डिस का खतरा?

    जॉन्डिस जिसे पीलिया के नाम से भी जाना जाता है। जॉन्डिस होने पर आंख, शरीर, नाखून और यूरिन पीला होने लगता है। बड़ों की तुलना में नवजात शिशु में जॉन्डिस होने की संभावना ज्यादा होती है। नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (NCBI) के अनुसार तकरीबन 55 प्रतिशत नवजात शिशु में जॉन्डिस (Neonatal Jaundice) की परेशानी ज्यादा होती है। 

    ऑल इंडिया इन्स्टिटूट मेडिकल साइंस (AIIMS) के अनुसार जन्म लेने वाले शिशु में जॉन्डिस की समस्या आम है। जन्म लेने वाले नवजात में 70 प्रतिशत तक शिशु में जॉन्डिस की समस्या होती है वहीं जन्म लेने के बाद और एक सफ्ताह के अंदर 80 प्रतिशत नवजात शिशु इसके शिकार होते हैं

    नवजात शिशु में जॉन्डिस क्यों होता है ?

    जॉन्डिस एक ऐसी बीमारी है, जो जन्म के 2-3 दिनों के भीतर नवजात शिशुओं में हो सकती है। दरअसल, शिशु के जन्म के दौरान बिलीरुबिन का विकास ठीक से नहीं होता है। इसी कारण जॉन्डिस शिशु के जन्म के कुछ घंटे बाद ही हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह 2 से 3 दिनों के बाद नवजात शिशु में जॉन्डिस की समस्या बढ़ सकती है और एक हफ्ते तक रह सकता है। लेकिन, कभीकभी स्थिति गंभीर भी हो जाती है। ऐसा बिलीरुबिन के ठीक तरह से विकास नहीं होने होने की वजह से होता है। 

     बिलीरुबिन क्या है ?

    बिलीरुबिन हर मनुष्य के शरीर में एक पीले रंग का द्रव्य होता है, जो खून और मल में प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है। शरीर में मौजूद रेड ब्लड सेल्स टूटने की वजह से बिलीरुबिन का निर्माण बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति में जब लिवर बिलीरुबिन के स्तर को संतुलित नहीं बना पाता है या संतुलित करने में असफल रहता है, तो ऐसे में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ जाता है। शरीर में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ना जॉन्डिस की दस्तक माना जाता है। वहीं शिशु के जन्म के दौरन बिलीरुबिन ठीक तरह से विकसित नहीं होने के कारण जॉन्डिस का खतरा बना रहता है और नवजात शिशु में जॉन्डिस की बीमारी हो जाती है।

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    नवजात शिशु में किनकिन कारणों से जॉन्डिस का खतरा बना रहता है ?

    फिजियोलॉजिकल जॉन्डिस सबसे सामान्य जॉन्डिस माना जाता है। शिशु के जन्म के बाद और पहले सप्ताह तक  60% शिशुओं में हो सकता है। ऐसा बिलीरुबिन के सामान्य से ज्यादा बढ़ने की वजह से होता है। नवजात में जब बिलीरुबिन के लेवल को लिवर संतुलित नहीं कर पाता है तब जॉन्डिस की समस्या शुरू हो जाती है। एक से दो हफ्ते में शिशु में जब रेड ब्लड सेल्स ठीक होने लगती है, तो जॉन्डिस की समस्या भी ठीक होने लगती है।

    इन कारणों के साथसाथ जॉन्डिस के और भी कारण हो सकते हैं। उन कारणों में शामिल है:

  • प्रीमेच्योर बच्चों में जॉन्डिस का खतरा सबसे ज्यादा होता है। क्योंकि प्रीमेच्योर बच्चे का लिवर ठीक से विकसित नहीं होता है। एक्सपर्ट्स के अनुसार 80 प्रतिशत प्रीमेच्योर बच्चों को जॉन्डिस होता है।
  • ब्लड संबंधी परेशानी जैसे ब्लड क्लॉट होने की स्थिति में भी जॉन्डिस का खतरा बना रहता है।
  • स्तनपान नहीं करवाने की वजह से भी शिशु को जॉन्डिस होने की संभावना बनी रहती है। मां के दूध से शिशु को पौष्टिक आहार मिलता है और स्तनपान ठीक से नहीं होने की स्थिति में नवजात तक पौष्टिक आहार नहीं पहुंच पाता है। नवजात शिशु को पौष्टिक आहार जॉन्डिस से बचाने के साथ-साथ अन्य बीमारियों से भी बचाये रखने में मददगार होता है।
  • इंफेक्शन की वजह से भी नवजात शिशु में जॉन्डिस और अन्य बीमारियों का खतरा बना रहता है।  
  • नवजात शिशु में जॉन्डिस होने के कारणों में शामिल है शिशु तक ठीक तरह से ऑक्सिजन नहीं पहुंचना। ऑक्सिजन की कमी भी जॉन्डिस होने का कारण बन सकती है।
  • इन ऊपर बताये गये कारणों के अलावा भी अभी-कभी नवजात शिशु में जॉन्डिस के कारण हो सकते हैं लेकिन, सबसे अहम कारण नवजात शिशु के बिलीरुबिन का सही तरीके से विकास नहीं होना माना जाता है।

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    नवजात शिशु में जॉन्डिस के लक्षण क्या हैं ?

    नवजात शिशु में जॉन्डिस के लक्षण निम्नलिखित हो सकते हैं। जैसे-

  • नवजात शिशु का शरीर पीला पड़ जाना
  • आंख और नाखूनों का पीला होना
  • नवजात शिशु को भूख नहीं लगना
  • बच्चे का अत्यधिक और बार-बार रोना
  • नवजात शिशु का दूध नहीं पीना
  • बार-बार बुखार आना
  • नवजात शिशु में उल्टी और दस्त एकसाथ होना
  • शिशु का यूरिन पीला होना  
  • मल का रंग पीला न होना   
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    नवजात शिशु में जॉन्डिस का इलाज कैसे किया जाता है ?

    ज्यादातर बच्चों में जॉन्डिस अपने आप और पौष्टिक आहार (मां का दूध) से ठीक हो सकता है और इलाज की जरूरत नहीं पड़ सकती है। लेकिन, कभीकभी बच्चों में जॉन्डिस की वजह से समस्या गंभीर भी हो सकती है। ऐसी स्थिति में बिलीरुबिन की जांच लेवल जांच कर इलाज शुरू कर सकते हैं।    

    नवजात शिशु में जॉन्डिस न हो इसके लिए सबसे पहला उपाय है की शिशु को मां के दूध का सेवन करवाना चाहिए। यह ध्यान रखें की नवजात को जन्म से ही मां का दूध दें और एक दिन में कम से कम 8 से 12 बार शिशु को दूध पिलाना चाहिए। हर एक से दो घंटे के बीच में शिशु को दूध पिलाते रहें। अस्पताल से छुट्टी मिलने के पहले शिशु का चेकअप जरूर करवाना चाहिए। इससे शिशु में हो रही जॉन्डिस की समस्या के साथ-साथ अन्य शारीरिक परेशानी की जानकारी मिल सकती है। किसी भी बीमारी से बचने या बचाने के लिए साफ-सफाई का विशेष ख्याल रखें। गन्दगी की वजह से भी जॉन्डिस का खतरा हो सकता है। वयस्कों में होने वाले जॉन्डिस के दौरान डॉक्टर विटामिन-सी से भरपूर फल जैसे नींबूसंतरा और कीवी जैसे अन्य रसीले फलों को खाने या इनके जूस को पीने की सलाह देते हैं।यह बहुत फायदेमंद होता है। हालांकि नवजात शिशु को इनसब का सेवन नहीं करवाया जा सकता है लेकिन, डॉक्टर आपको जो सलाह दें उसका पालन करना चाहिए। वैसे तो नवजात शिशु डॉक्टर के निरक्षण में रहता है। लेकिन, अगर बच्चे में ऊपर बताए गए लक्षण दिखें तो देरी किये बिना डॉक्टर को जल्द से जल्द इसकी जानकारी दें। ऐसा भ्रम न पालें की यह खुद ठीक हो ही जायेगा।  इसके साथ ही अगर आप नवजात शिशु में जॉन्डिस से जुड़े किसी तरह के कोई सवाल का जवाब जानना चाहते हैं तो विशेषज्ञों से समझना बेहतर होगा। हैलो हेल्थ ग्रुप किसी भी तरह की मेडिकल एडवाइस, इलाज और जांच की सलाह नहीं देता है।

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