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भ्रूण को लेकर बहुत से जेंडर मिथ प्रचलित हैं, जानिए इनकी सच्चाई

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड Dr Sharayu Maknikar


Sunil Kumar द्वारा लिखित · अपडेटेड 22/12/2021

    भ्रूण को लेकर बहुत से जेंडर मिथ प्रचलित हैं, जानिए इनकी सच्चाई

    भारतीय समाज में कई जेंडर मिथ प्रचलित हैं। ज्यादातर लोग इन जेंडर मिथ या जेंडर को लेकर मिथ पर विश्वास भी कर लेते हैं। अल्ट्रासाउंड पर डॉक्टर की राय के इतर क्या प्रेग्नेंसी के दौरान भ्रूण के लिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है? यह सवाल हर महिला और पुरुष के दिमाग में आता है। कई बार आपका परिवार और रिश्तेदार या मित्र कुछ लक्षणों के आधार पर भ्रूण के लिंग का अनुमान लगाते हैं लेकिन, इनमें से ज्यादातर कल्पनाएं विज्ञान के बजाए सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होती हैं। प्रेग्नेंसी के 20 हफ्ते पूरा होने पर अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भ्रूण के लिंग का सटीक अंदाजा लगाया जा सकता है। आज हम आपको भ्रूण की लिंग के संबंध में कुछ ऐसे ही सुने सुनाए मिथ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन पर अक्सर बिना वैज्ञानिक अप्रोच के विश्वास कर लिया जाता है।

    नोट: भारतीय दंड संहिता अनुसार जन्म से पूर्व गर्भ में बच्चे की लिंग चांज करना और कराना एक कानूनी अपराध है। आर्टिकल में दी गई जानकारी सिर्फ ज्ञानवर्धन के लिए है। इसका मकसद लिंग जांच को प्रोत्साहित करना नहीं है।

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    जेंडर मिथ है कि बड़े पेट से पता चलता है जेंडर?

    जेंडर मिथ इस तरह के हैं जो सुनने में अजीब लगते हैं लेकिन लोग इन पर आंख बंद करके भरोसा करते हैं। जेंडर मिथ में एक मिथक जो सबसे ज्यादा प्रचलित है वो है कि कुछ लोगों को लगता है कि प्रेग्नेंसी में पेट ज्यादा बड़ा होने पर लड़की होती है। जेंडर मिथ की सबसे गलत बात ये है कि लोग आंख मूंद कर इस पर विश्वास करते हैं। प्रेग्नेंसी में पेट बड़ा होने के पीछे अन्य कारण भी हो सकते हैं। पहली प्रेग्नेंसी के मामले में अगर महिला की बॉडी, पेट की मसल्स अच्छी शेप में है और प्रेग्नेंसी के दौरान आपका वजन कितना बढ़ता है? इससे पेट का आकार तय होता है। कई बार जेंडर मिथ पर लोग भरोसा कर लेते हैं और इसके अनुसार अपना खान-पान निर्धारित करते हैं।

    हालांकि जेंडर मिथ से बच्चे का कोई लेना देना नहीं है। गर्भ में पल रहे शिशु के लिंग का इस पर कोई असर नहीं पड़ता है। इसका मतलब यह हुआ कि आप सिर्फ पेट के आकार का आंकलन करके बच्चे के लिंग का अनुमान नहीं लगा सकते हैं।

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    मीठा खाने की ललक भी है जेंडर मिथ

    जेंडर मिथ का दूसरा सबसे अहम मिथक है कि लोगों को लगता है कि प्रेग्नेंसी के दौरान मीठा खाने का मतलब है कि पेट में लड़की है। प्रेग्नेंसी के दौरान मीठा खाने की इच्छा को गर्भ में लड़की के होने से जोड़ा जाता है। बात यही खत्म नहीं होती इसके साथ ही एक और जेंडर मिथक जुड़ा हुआ है। अगर आपका मन नमकीन खाने का मन करता है तो आपके गर्भ में लड़का है ऐसा माना जाता है।

    हालांकि, इस जेंडर मिथ पर अभी भी पर्याप्त अध्ययन होना बाकी है। मीठा और नमकीन खाने की इच्छा के पीछे आपकी बॉडी में विशेष मिनरल्स की कमी जिम्मेदार हो सकती है। अगली बार मीठे और नमकीन को लिंग से जोड़ने से पहले आपको इस बात को जरूर याद कर लेना चाहिए। यह एक जेंडर मिथ के अलावा कुछ नहीं है। मीठा खाना या नमकीन खाना किसी भी तरह से आपके गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में नहीं बताता हैं और अगर आपको लगता है कि ऐसा करने के बाद चीजें हुई है तो यह मात्र एक संयोग हो सकता है।

    सुबह होने वाली थकावट को करते हैं जेंडर मिथ से कनेक्ट

    जेंडर मिथ यहां पर नहीं रूकते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान होने वाली मॉर्निंग सिकनेस को भी जेंडर मिथ से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि प्रेग्नेंसी में सुबह ज्यादा थकावट होने से आप बेटी को जन्म दे सकती हैं। इस तथ्य पर यकीन करने से पहले आपको फिर से सोचना चाहिए। सुबह होने वाली थकावट के पीछे बॉडी के हार्मोन्स में होने वाले बदलाव और ब्लड शुगर का स्तर कम होना भी एक कारण हो सकता है। कई बार महिलाओं को प्रेग्नेंसी में संपूर्ण पोषण नहीं मिलता, जिसकी वजह से उनकी बॉडी में कमजोरी होती है। यह भी एक बड़ा जेंडर मिथ है।

    दक्षिणी दिल्ली के लाजपत नगर में स्थित सपरा क्लीनिक की सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर एसके सपरा ने कहा, ‘महिलाओं में पोषण की कमी से उनकी बॉडी में कमजोरी आ जाती है। इसकी वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान और डिलिवरी के बाद तक यह कमजोर बनी रहती है।’ लेकिन मानने वाले ऐसा मानते हैं कि मॉर्निंग सिकनेस की वजह आपके भ्रूण में पल रही बेटी है।

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    मूड स्विंग होना भी है जेंडर मिथ

    मूड स्विंग को जेंडर मिथ के साथ भी जोड़ा जाता है। प्रेग्नेंसी के दौरान अक्सर हाॅर्मोंस के लेवल में उतार- चढ़ाव आता है। कुछ लोगों को लगता है कि गर्भ में लड़की का भ्रूण होने से महिलाओं की बॉडी में एस्ट्रोजेन का स्तर बढ़ जाता है और मूड स्विंग होता है। हालांकि, अध्ययन इस तर्क का समर्थन नहीं करते हैं। अलग-अलग शोध से पता चलता है कि प्रेग्नेंसी में मूड स्विंग होना केवल हॉर्मोन में बदलाव की वजह से हैं।

    आमतौर पर प्रेग्नेंसी के दौरान हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है और शिशु को जन्म देने के बाद यह सामान्य स्तर पर आ जाते हैं। इसका बच्चे के लिंग से कोई लेना-देना नहीं होता। लड़का और लड़की दोनों ही मामलों में यह उतार-चढ़ाव होता है। जेंडर मिथ में मूड स्विंग भी बहुत अहम है क्योंकि लोग इसके आधार पर भी बच्चों का जेंडर निर्धारित करते हैं।

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    प्रेग्नेंसी के बीच में वजन का बढ़ना

    प्रेग्नेंसी के मध्य में अगर किसी महिला का वजन बढ़ता है तो कुछ लोगों को लगता है कि वह लड़की को जन्म देगी। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि पेट का ज्यादा बाहर और वजनी होना लड़के से संबंधित होता है। वैज्ञानिक सुबूत इसका समर्थन नहीं करते हैं। प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का वजन बढ़ना उसके बॉडी टाइप के ऊपर निर्भर करता है। अगली बार इस जेंडर मिथ या जेंडर को लेकर मिथ पर विश्वास ना करें। हालांकि हमारे आसपास औऱ समाज में बहुत से जेंडर मिथ प्रचलित हैं लेकिन इनपर पूरी तरह से भरोसा करना गलत है। कुछ लोग सुनी सुनाई बातों में आकर अलग-अलग फैसले लेते हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि जेंडर मिथ को इससे बढ़ावा मिले।

    उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा और जेंडर मिथक या जेंडर को लेकर मिथ के बारे में जानकारी मिल गई होगी जो प्रेग्नेंसी के समय प्रचलित होते हैं। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।

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