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प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या के कारण और बचाव के तरीके

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Ankita mishra द्वारा लिखित · अपडेटेड 05/08/2020

    प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या के कारण और बचाव के तरीके

    प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या सबसे अधिक देखी जाती है। हर तीन में से एक प्रेग्नेंट महिला प्रेग्नेंसी में दाद का उपचार कराती है। दाद की समस्या एक संक्रामक स्थिति होती है। इसका कारण वैरिसैला-जोस्टर वायरस (VZV) होता है, जो चिकनपॉक्स की समस्या का भी कारण होता है। आमतौर पर, चिकनपॉक्स की समस्या छोटे बच्चों में अधिक देखी जाती है, जिसे छोटी माता भी कहा जाता है।

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    प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या क्या है?

    दाद एक वायरल संक्रमण है जो दर्दनाक, खुजलीदार और छोटे-छोटे चकत्ते वाले होते हैं। वैरिसेला-जोस्टर वायरस (VZV) कहा जाता है। वैसे तो दाद की समस्या, बड़े उम्र दराज के लोगों में अधिक देखी जाती है, लेकिन प्रेग्नेंसी में दाद की भी समस्या होनी काफी आम होती है। अगर बचपन में किसी महिला को चिकनपॉक्स की समस्या हुआ था, तो प्रेग्नेंसी में उसे दाद होने का खतरा रहता है। चिकनपॉक्स के ठीक होने के बाद वैरिसैला-जोस्टर वायरस (VZV) शरीर में ही निष्क्रिय तरीके से रहता है, जो प्रेग्नेंसी के दौरान एक्टिव हो सकता है और प्रेग्नेंसी में दाद का कारण बन सकता है।

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    दाद को हम आम भाषा में रिंगवर्म और चर्मरोग भी कहते हैं। कई लोगों में ऐसा भ्रम बना हुआ है कि दाद किसी कीड़े-मकौड़े के काटने के कारण ही होता है। जबकि, दाद एक तरह का फंगल इंफेक्शन है जो फंगस के द्वारा फैलता है। दाद की समस्या सिर के स्कैल्प, त्वचा और जनांनगों में अधिक तेजी से फैलता है। वहीं, मेडिकल में दाद को ‘टिनिया’ कहा जाता है। दाद के कई प्रकार होते हैं, जिनमें टिनिया कैपिटिस, जो सिर की त्वचा पर होता है, टिनिया कॉर्पोरिस, जो शरीर की त्वचा पर होता है, टिनिया पेडिस, जो पैर में होता है, टिनिया क्रूरिस, जो गुप्ताओं में होता है और टिनिया मेनस, जो हाथों में होता है।

    गर्भावस्था में रिंगवर्म:  प्रेग्नेंसी में दाद होने का जोखिम क्या है?

    आमतौर पर, अगर प्रेग्नेंट महिला को बचपन में कभी चिकनपॉक्स की समस्या हुई रहती है, तो प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या का जोखिम बढ़ सकता है। इसके अलावा, अगर वह किसी दाद से संक्रमित व्यक्ति के दानों से सीधे संपर्क में आती है, तो उसके शरीर में भी वैरिसैला-जोस्टर वायरस (VZV) एक्टिव हो सकते हैं, जो पहले चिकनपॉक्स का कारण बन सकते हैं और बाद में दाद का। या फिर कई मामलों में सीधे दाद की समस्या भी उत्तपन्न हो सकती है। इसलिए, अगर आप गर्भवती हैं, और आपको पहले कभी चिकनपॉक्स नहीं हुआ है, तो आपको उन लोगों से दूर रहना चाहिए, जिन्हें चिकनपॉक्स या दाद की समस्या होती है।

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    गर्भावस्था में रिंगवर्म:  प्रेग्नेंसी में दाद के लक्षण और उपचार के तरीके

    बचपन में चिकनपॉक्स होने के बाद वैरिसैला-जोस्टर वायरस (VZV) शरीर में डिएक्टिव तौर पर रहता है जो कुछ तंत्रिका कोशिकाओं में रहता है। एक बार चिकनपॉक्स होने वाले बच्चों की प्रतिरक्षा प्रणाली आमतौर पर कमजोर हो सकती है। ऐसे में कुछ तरह की बीमारियां, नसीले पदार्थों का सेवन, बहुत ज्यादा तनाव लेना या बढ़ती उम्र के कारण वैरिसैला-जोस्टर वायरस (VZV) दोबारा से एक्टिव होकर दाद का कारण बन सकता है।

    गर्भावस्था में रिंगवर्म के लक्षण

    • प्रभावित त्वचा में जलन होना
    • हल्का सूजन होने के साथ त्वचा पर लाल, गोल घेरे दिखाई देना
    • दर्द होना
    • शरीर में झुनझुनी या खुजली महसूस करना
    • बुखार होना
    • ठंड लगना
    • मतली की समस्या
    • दस्त की समस्या
    • पेशाब करने में कठिनाई होना

    दाद के दानों में कुछ दिनों में तरल पदार्थ भरे छाले बन जाते हैं, जो आमतौर पर 7 से 10 दिनों में फट जाते हैं और बहने लगते हैं। ऐसी स्थिति में पोस्टहेरपेटिक न्यूरेल्जिया नामक एक स्थिति भी हो सकती है। इसकी समस्या काफी गंभीर मानी जाती है, जिसका इलाज कराने के लिए आपको एक लंबे समय का कोर्स पूरा करना पड़ सकता है।

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    गर्भावस्था में दाद का उपचार

    प्रेग्नेंसी में दाद या आमतौर पर भी दाद का उपचार करना काफी आसान होता है। हालांकि, इसके उपचार के लिए जरूरी है कि आप इसके लक्षणों को जल्दी से जल्दी पहचानें और उपचार के लिए तुरंत अपने डॉक्टर से परामर्श करें। लेकिन गर्भावस्था के दौरान, दवाइओं का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करें। क्योंकि दाद के उपचार की दवाएं बच्चे के लिए जोखिम का कारक भी बन सकती हैं।

    आमतौर पर चिकित्सक, दाद का संक्रमण को ठीक करने के लिए त्रिअम्सिनोलोन (Triamcinolone) और निस्टैटीन (Nystatin) युक्त क्रीम प्रभावित त्वचा में लगाने की सलाह दे सकते हैं।

    इन दवाओं के साथ ही आपके डॉक्टर आपको कुछ जरूरी निर्देश भी दे सकते हैं, जिनमें शामिल हैंः

    • दर्द से राहत पाने के लिए प्रभावित त्वचा पर बर्फ से सिकाई करना और ठंडे पानी से नहाना
    • फंगल के उपचार और संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावित त्वचा का साफ और सुरक्षित तरीके से कवर करना
    • खुजली को कम करने के लिए एंटीहिस्टामाइन और कैलामाइन युक्त लोशन लगाना
    • दर्द को कम करने के लिए मेडिकल स्टोर पर मिलने वाली दर्द निवारक दवाओं के इस्तेमाल की भी सलाह दे सकते हैं।

    प्रेग्नेंसी में दाद होना मेरे बच्चे को कैसे प्रभावित कर सकता है?

    प्रेगनेंसी के दौरान अगर माँ को दाद होता है तो शिशु को बाद में चिकनपॉक्स होने का खतरा होता है इसलिए गर्भवती महिला को दाद होने पर, इस बारे में डॉक्टर को सूचित करनी चाहिए ताकि समय से पहले सावधानियां बरत कर शिशु में इस बीमारी के होने के संभावना को कम किया जा सके।

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    दाद के कारण होने वाले अन्य जोखिम क्या हो सकते हैं?

    • अगर दाद चेहरे पर हो, तो यह आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण ग्लूकोमा होने का भी जोखिम बढ़ सकता है, जो अंधेपन का भी कारण भी हो सकता है।
    • दाद चेहरे के प्रभावित हिस्से पर मांसपेशियों को कमजोर कर सकता है, जिससे कई लोगों को सुनने में भी परेशानी हो सकती है।
    • कुछ दुर्लभ मामलों में, दाद ब्रेन या रीढ़ की हड्डी में भी फैल सकता है और ब्रेन स्ट्रोक या मेनिनजाइटिस, ब्रेन और रीढ़ की हड्डी के बाहर झिल्ली में होने वाले संक्रमण का भी कारण बन सकता है।

    गर्भावस्था में रिंगवर्म:  प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या होने पर मैं अपने नवजात शिशु की देखभाल कैसे करूं?

    प्रेग्नेंसी में दाद की समस्या गर्भ में भ्रूण के लिए किसी तरह का खतरा नहीं होता है। हालांकि, अगर बच्चे के जन्म के बाद भी दाद की समस्या बनी रहती है या बच्चे के जन्म के बाद मां को दाद की समस्या होती है, तो यह नवजात बच्चे में भी फैल सकता है। ऐसे में मां को बच्चे से दूर ही रहना चाहिए। जरूरत पड़ने पर ही बच्चे के पास जाना चाहिए और इस दौरान दाद वाली जगह को सुरक्षित तरीके से कवर करना भी जरूरी होता है। साथी ही, हर घंटें आपको अपने हाथ भी साफ करने चाहिए।

    इसके अलावा अगर दाद की समस्या ब्रेस्ट में हुई है, तो बच्चे को तब तक ब्रेस्टफीडिंग न कराएं जब तक इसकी समस्या पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती है।

    बच्चे के लिए वैक्सीन है जरूरी

    साल 1995 से लगभग हर देश में चिकनपॉक्स वैक्सीन का इस्तेमाल करना काफी सामान्य हो गया है। इसके तहत जब बच्चा 1 से 2 साल का होता है तो डॉक्टर आमतौर पर उसे चिकनपॉक्स का टीका देते हैं। इसके बाद बच्चे के 4 से 6 साल के होने पर उसे बूस्टर शॉट देते हैं। जो आमतौर पर हर बच्चे के लिए जरूरी है भारत सरकार इसका निशुल्क में वितरण भी करती है।

    अगर इससे जुड़ा आपका कोई सवाल है, तो अधिक जानकारी के लिए आप अपने डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।

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