रोंगटे खड़े होना या गूजबंप्स का अनुभव तो हम सभी ने अक्सर किया ही होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि असल रोंगटे क्यों खड़े होते हैं? क्या आप जानते हैं कि ये गूजबंप्स आपको किस बात का संकेत देते हैं। इस आर्टिकल में जानें अचानक हाथ-पैर की त्वचा के छोटे -छोटे बाल क्यों खड़े हो जाते हैं और ऐसा अक्सर ठंड लगने, घबराने, डर जाने पर क्यों होता है?
क्या है रोंगटे खड़े होना (Goosebumps)?
अचानक ठंड लगने पर अक्सर लोगों के हाथ व पैर के बाल खड़े हो जाते हैं। मानो कि उनमें जान आ गई हो। इसे रोंगटे खड़े होना कहते हैं। साथ ही जब हम अचानक किसी भावना जैसे की भय, उदासी, खुशी और कामोत्तेजना की तीव्र अनुभूति करते हैं तब भी गूजबंप्स का आना स्वाभाविक है ।
इस वक्त रोंगटे खड़े होना भी सामान्य
सुनने में भले ही यह अजीब लगे लेकिन कभी-कभी मल त्याग के दौरान भी लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि आपका शारीरिक परिश्रम आपके नर्वस सिस्टम को एक्टिव कर देता है। कई बार रोंगटे खड़े होना बेहद सामान्य प्रक्रिया है ऐसा अक्सर तब होता है जब लोग किसी गहरी सोच में डूब जाते हैं और अचानक से उनका ध्यान टूट जाता है।
रोंगटे खड़े होने के कारण?
रोंगटे खड़े होना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका मूल उद्देश्य आपके शरीर को गर्म रखने में मदद करना होता है। जब आपको ठंड लगती है तो मसल्स मूवमेंट गूसबंप्स को ट्रिगर करता है और आपके शरीर को गर्माहट देता है।
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जानवरों के रोंगटे खड़े होना
मनुष्य की तरह जानवरों के भी रोंगटे खड़े होते हैं। लेकिन जानवरों के रोंगटे खड़े होना साफ तौर पर देखा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पूरे शरीर में भारी तादाद में बाल होते हैं, जो रोंगटे खड़े होने पर बढ़े हुए नजर आते हैं।
भावुकता में रोंगटे खड़े होना
एक अध्ययन के मुताबिक इमोशन्स गूजबंप्स की एक बड़ी वजह है। यानी भावुकता तय करती है हमारे रोंगटे खड़े होंगे या नहीं। ऐसा बहुत बार देखा गया है कि फिल्म देखने के दौरान, या फिर बहुत इमोशनल म्यूजिक सुनने पर अक्सर लोगों को गूजबंप्स आ जाते हैं। जब आप बहुत इमोशनल महसूस करते हैं तब बॉडी बहुत सारे रिएक्शन देती है जैसे दिल की धड़कन बढ़ना या तेज सांस चलना। जिससे त्वचा की निचली सतह में मूवमेंट होता है जिसे रोंगटे खड़े होना शुरू हो जाते हैं।
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रोंगटे ज्यादा खड़े होना भी ठीक नहीं
रोंगटे खड़े होने के बाद जैसे ही शरीर गर्म हो जाता है गूजबंप्स गायब हो जाते हैं। इसमें चिंता करने जैसा कुछ नहीं है लेकिन, कभी -कभी जब यह लंबे समय तक रहते हैं तो यह गंभीर समस्या की ओर इशारा करते हैं जैसे कि रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से नर्वस सिस्टम का ज्यादा एक्टिव होना या फिर ठंड और बुखार के कारण। अगर ऐसा कुछ आपके साथ है तो डॉक्टर से संपर्क करें।
तो रोंगटे यानी छोट-छोटे बाल कैसे खड़े होते हैं?
रोंगटे खड़े होने का साइंस कुछ ऐसा है कि जब भी हमें ठंड, डर या किसी उत्तेजना का अहसास होता है तब स्किन के नीचे मौजूद मसल्स एक्टिव हो जाती हैं। ये मसल्स हेयर फॉलिकल्स के आसपास होती हैं। इनके संकुचित यानी कॉन्ट्रेक्ट होते ही ये बाल सीधे हो जाते हैं, जिसे हमे रोंगटे खड़े होना कहते हैं। इसके पाइलोइरेक्शन (piloerection) कहते हैं।
नर्वस एक्शन की वजह से रोंगटे खड़े होना
डर, ठंड, उत्तेजना आदि अहसासों के अलावा हमारा दिमाग रोंगटे खड़े होने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होता है। हमारा नर्वस सिस्टम किसी खतरे के दौरान बहुत सारी प्रक्रियाएं शुरू कर देता है, जो हमें संभावित खतरे से निपटने के लिए तैयार करती हैं। हमारी दिल की धड़कन का तेज होना, पसीना आने के साथ राेंगटे भी खड़े होते हैं। रोंगटे इसलिए भी खड़े होते हैं जिससे संभावित खतरे के सामने हम बड़े नजर आएं। ये ठीक उस बिल्ली की तरह होता है जो गुस्से में आने पर बड़ी नजर आती है क्योंकि उसके पूरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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संगीत और रोंगटे खड़े होना
हम अपने दिमाग को दो हिस्सों में विभाजित करके समझ सकते हैं। रोंगटे खड़े होने में इनमें ये जिम्मेदार होते हैं। पहला भाग होता है इमोशनल पार्ट और दूसरा कॉग्निटिव। दिमाग का इमोशन वाला हिस्सा कॉग्निटिव भाग से ज्यादा तेजी से रिस्पॉन्स देता है। ऐसे में वो किसी संगीत को शोर समझता है और रोंगटे खड़ा कर सकता है। जबकि कॉग्निटिव भाग संगीत में मौजूद ध्वनि और संगीत को समझकर हमें अच्छा महसूस कराता है।
इसी दौरान अगर कोई अजीब या अचानक से कोई विशेष ध्वनि आ जाए तो हम घबरा जाते हैं, कॉग्निटिव ब्रेन इसे खतरा ही समझता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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खुद के रोंगटे खड़े करना
अबतक रोंगटे खड़े होना एक ऐसी प्रक्रिया मानी जाती है, जिसपर हमारा कोई वश नहीं। हम अपनी सांसों को कंट्रोल कर सकते हैं पर रोंगटे खड़े करना शायद असंभव सा लगे पर बॉस्टन की नॉर्थयूनिवर्सिटी में हुई एक शोध ने रोंगटे से जुड़े सारे मायने ही मदल दिए। 2018 में प्रकाशित इस रिपोर्ट में 32 साल की औसत आयु वाले लोगों पर अध्ययन किया जिसमें हैरान करने वाली बातें सामने आईं।
ये थे नतीजे
इनमें से कुछ लोगों ने रोंगटे खुद खड़े कर लेने की क्षमता का जिक्र किया। रिसर्च में शामिल एक व्यक्ति ने बताया कि वो अपने कान के पीछे के मसल कॉन्ट्रेक्ट कर सकता है। इससे उसके रोंगट खड़े हो जाते हैं और कान से लेकर हाथ तक यह जा पहुंचता है।
रिसर्च में शामिल एक व्यक्ति ने कहा, ‘ हम अपने दिमाग को शरीर की किसी मसल को टाइट करने का संदेश दे सकते हैं। फलस्वरूप हमें रोंगटे खड़े होते दिखाई दे सकते हैं। मैंने इसे कई बार ट्राय किया। हां, यह जरूर है कि कुछ बार मुझे ज्यादा देर तक फोकस करना पड़ा। इसमें कोई नुकसान नहीं है। हालांकि, यह भी जरूरी नहीं कि हर व्यक्ति इस चीज को कंट्रोल कर सके।
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रिसर्च को लेकर विरोधाभास
इस रिसर्च ने जहां गूजबंप्स यानी रोंगटे खड़े होने के साइंस में संभावनाओं के नए द्वारा खोल दिए, तो वहीं दूसरी ओर इसकी जमकर आलोचना भी हुई। कई शोधकर्ताओं और जानकारों ने इस एक्सपेरिमेंट पर सवाल उठाते हुए यह कहा कि यह किसी लैब में नहीं किया गया था, जिसपर पूर्णत: भरोसा नहीं किया जा सकता है।