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रोंगटे ज्यादा खड़े होना भी ठीक नहीं
रोंगटे खड़े होने के बाद जैसे ही शरीर गर्म हो जाता है गूजबंप्स गायब हो जाते हैं। इसमें चिंता करने जैसा कुछ नहीं है लेकिन, कभी -कभी जब यह लंबे समय तक रहते हैं तो यह गंभीर समस्या की ओर इशारा करते हैं जैसे कि रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से नर्वस सिस्टम का ज्यादा एक्टिव होना या फिर ठंड और बुखार के कारण। अगर ऐसा कुछ आपके साथ है तो डॉक्टर से संपर्क करें।
तो रोंगटे यानी छोट-छोटे बाल कैसे खड़े होते हैं?
रोंगटे खड़े होने का साइंस कुछ ऐसा है कि जब भी हमें ठंड, डर या किसी उत्तेजना का अहसास होता है तब स्किन के नीचे मौजूद मसल्स एक्टिव हो जाती हैं। ये मसल्स हेयर फॉलिकल्स के आसपास होती हैं। इनके संकुचित यानी कॉन्ट्रेक्ट होते ही ये बाल सीधे हो जाते हैं, जिसे हमे रोंगटे खड़े होना कहते हैं। इसके पाइलोइरेक्शन (piloerection) कहते हैं।
नर्वस एक्शन की वजह से रोंगटे खड़े होना
डर, ठंड, उत्तेजना आदि अहसासों के अलावा हमारा दिमाग रोंगटे खड़े होने के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार होता है। हमारा नर्वस सिस्टम किसी खतरे के दौरान बहुत सारी प्रक्रियाएं शुरू कर देता है, जो हमें संभावित खतरे से निपटने के लिए तैयार करती हैं। हमारी दिल की धड़कन का तेज होना, पसीना आने के साथ राेंगटे भी खड़े होते हैं। रोंगटे इसलिए भी खड़े होते हैं जिससे संभावित खतरे के सामने हम बड़े नजर आएं। ये ठीक उस बिल्ली की तरह होता है जो गुस्से में आने पर बड़ी नजर आती है क्योंकि उसके पूरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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संगीत और रोंगटे खड़े होना
हम अपने दिमाग को दो हिस्सों में विभाजित करके समझ सकते हैं। रोंगटे खड़े होने में इनमें ये जिम्मेदार होते हैं। पहला भाग होता है इमोशनल पार्ट और दूसरा कॉग्निटिव। दिमाग का इमोशन वाला हिस्सा कॉग्निटिव भाग से ज्यादा तेजी से रिस्पॉन्स देता है। ऐसे में वो किसी संगीत को शोर समझता है और रोंगटे खड़ा कर सकता है। जबकि कॉग्निटिव भाग संगीत में मौजूद ध्वनि और संगीत को समझकर हमें अच्छा महसूस कराता है।