रूबेला बीमारी एक संक्रामक बीमारी है जो ज्यादातर बच्चों को प्रभावित करती है। शरीर पर लाल चकत्ते होना, बुखार आना और आंखों का लाल होना रूबेला बीमारी के लक्षण हैं। रूबेला बीमारी को जर्मन मीजल्स (German measles) के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर यह एक हल्का संक्रमण है जो कम उम्र के बच्चों में होता है और एक सप्ताह के भीतर दूर हो जाता है और यह बिना उपचार के भी ठीक होता है। लेकिन गर्भवती महिलाओं में रूबेला बीमारी अधिक गंभीर हो सकती है।
क्या है रूबेला बीमारी और कैसे करें इससे बचाव?
रूबेला बीमारी एक वायरस के कारण होती है। इसे “जर्मन मीजल्स (German measles)’ भी कहते हैं। रूबेला खांसी और छींक के द्वारा एक रोगी से दूसरे को फैलता है। जो लोग वायरस की चपेट में आ जाते हैं वो एक हफ्ते तक संक्रामक होते हैं। एक सप्ताह के बाद उनके शरीर पर दाने और चकत्ते आने लगते हैं। ज्यादातर रोगियों को इस बात का अंदाजा ही नहीं होता कि वो संक्रमित हैं क्योंकि उन्हें इस बीमारी के लक्षण नहीं पता होते। लेकिन वे अनजाने में दूसरों को वायरस दे देते हैं। जर्मन मीजल्स एक गर्भवती महिला से उसके बच्चे तक खून के माध्यम से फैल सकता है। मां से बच्चे तक इस बीमारी के पहुंचने का रिस्क पहले तीन महीने में बहुत ज्यादा रहता है।
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रूबेला बीमारी के लक्षण क्या हैं?
विशेषज्ञों द्वारा पहचाने गए कुछ मुख्य लक्षण यहां बताए जा रहे हैं। इसके अलावा भी कई कारण हो सकते है। लक्षण दिखने पर बगैर समय बिताएं अपने डॉक्टर से परामर्श लें। गुलाबी या लाल रंग के दाने संक्रमण का पहला संकेत है। शुरू में यह दाने चेहरे पर निकलते हैं, फिर शरीर के बाकी हिस्सों में फैल जाते हैं।
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- लगातार हल्का बुखार आना
- आंखों का रंग गुलाबी होना और सूज जाना
- लंबे समय तक सिरदर्द
- कान और गर्दन के पीछे की ग्रंथियों में सूजन होना
- लगातार बहती नाक
- खांसी आना
- जोड़ों में दर्द होना
- गर्दन में अकड़न
- कान का दर्द
कुछ बहुत ही दुर्लभ मामलों में, रूबेला बीमारी कान के संक्रमण और दिमाग की सूजन का कारण बन सकता है। अगर आपको इनमे से कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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जटिलताएं
किसी महिला को गर्भावस्था के दौरान रुबेला संक्रमण होने पर इसके भ्रूण तक पहुंचने की संभावना रहती है। ऐसी स्थिति में गर्भपात या प्रसव पूर्व शिशु के जन्म का जोखिम होता है। अगर शिशु का जन्म हो जाता है तो शिशु में जन्म संबंधी विकृतियां हो सकती हैं। इसमें बहरापन, हृदय संबंधी समस्याएं, आंखों की खराबी, मानसिक मंदता सहित अन्य जटिल समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इन विकृतियों को समग्र रूप से कार्डिओरेनल सिंड्रोम (Cardiorenal syndrome CRS) कहते हैं। जो महिलाएं प्रेगनेंसी के पहले तीन महीने के दौरान इससे संक्रमित होती हैं, अध्ययन के मुताबिक, उनमें 50% से 90% बच्चे कार्डिओरेनल सिंड्रोम से पीड़ित होते हैं। आकड़ों की माने तो दुनिया भर में, हर वर्ष 100,000 के आसपास बच्चे कार्डिओरेनल सिंड्रोम (CSR) के साथ जन्म लेते हैं।
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रूबेला बीमारी को कैसे रोक सकते हैं?
रूबेला बीमारी से बचने का सबसे अच्छा तरीका टीकाकरण है। बच्चों को MMR (Measles Mumps Rubella) वैक्सीन के दो टीके की जरूरत होती है। बच्चों को जन्म के 12 से 15 महीने के बीच पहला टीका लग जाना चाहिए और उसके बाद उन्हें चार से छह साल की उम्र के बीच दूसरा टीका लगाना चाहिए। इसके अलावा महिलाओं को गर्भधारण करने से पहले डॉक्टर से रुबेला प्रतिरक्षा क्षमता की जांच करा लेनी चाहिए। यह खासतौर से उन देशों में रहने वाली महिलाओं के लिए जरूरी हो जाता है जहां रुबेला टीकाकरण को नियमित नहीं चलाया गया है।
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रूबेला बीमारी का इलाज कैसे किया जाता है?
रूबेला बीमारी एक वायरस है, इसलिए इससे बचाव के लिए कोई भी एंटीबायोटिक काम नहीं आता। अधिकांश समय, बच्चों में पाया जाना संक्रमण बहुत हल्का होता है, इसलिए ज्यादातर केस में यह समस्या अपने आप सही हो जाती है। यदि आप गर्भवती हैं और आपको लगता है कि आपमें रुबेला के लक्षण हैं, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें। गर्भवती महिलाओं को हाइपरिम्यून ग्लोब्युलिन (hyperimmune globulin) नामक एंटीबॉडी देकर रूबेला बीमारी के वायरस से लड़ने में मदद मिल सकती हैं।
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रूबेला बीमारी के लिए घरेलू उपाय
खसरा यानी रूबेला से इलाज के लिए रोगी को दवा के साथ-साथ नीचे बताए गए ये घरेलू नुस्खें अपनाए जा सकते हैं-
- नारियल पानी में एंटी ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। बीमारी के दौरान मीजल्स के लक्षणों को कम करने के लिए इसका सेवन किया जाना चाहिए निश्चित रूप से इससे आराम मिलेगा। साथ ही अन्य ताजे फलों का जूस भी मरीज को देना चाहिए। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं रहेगी।
- रूबेला बीमारी के घरेलू उपचार के तौर पर नीम की पत्तियों का उपयोग करना चाहिए। इसमें एंटीसेप्टिक और एंटीवायरल गुण होते हैं जो रूबेला बीमारी के लक्षणों को कम करने में मददगार हो सकते हैं। इसके लिए पानी में इसकी पत्तियों को डालकर उबालकर पानी को ठंडा कर लें। फिर उस पानी से नहाएं। साथ ही बीमारी से पीड़ित गर्भवती महिला के बिस्तर में भी नीम की पत्तियां डाल दें। इससे खसरे में होने वाली खुजली से आराम मिलता है।
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खसरा से बचाव
अगर आप रूबेला बीमारी से बचाव चाहते हैं, तो इन बातों पर ध्यान दें:
- प्रेगनेंसी में इस वायरस के फैलने का खतरा ज्यादा होता है। इसलिए, गर्भवती महिला को इससे बचने के लिए हाइजीन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। हाथों की साफ-सफाई पर ध्यान दें। विशेषकर आंखो, मुंह और नाक को छूने से पहले। गर्भवती महिला बाहर से आने के बाद साबुन या हैंडवॉश से हाथ अच्छी तरह से धोएं।
- प्रेग्नेंट महिला को रूबेला टीकाकरण लगवाने चाहिए। इस बारे में डॉक्टर से बात करें।
- अगर किसी को मीजल्स हैं तो उससे दूरी बनाकर रखें। अगर गलती से आप संक्रमित लोगों के संपर्क में आई भी हैं तो तुरंत डॉक्टर से बात करें।
- ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जिससे आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े।
उम्मीद हैं कि रूबेला बीमारी के इस आर्टिकल से आपको सहायता मिलेगी। खसरा रोग का कारण चाहे जो भी हो। समय रहते रूबेला बीमारी के लक्षण को पहचानकर उसका उचित इलाज कराना जरूरी है। बीमारी के लक्षण दिखते ही बिना देर करते हुए डॉक्टर से संपर्क करें।
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