वैसे लोग जिनकी पतली आईब्रो होती है, वैसे लोग माइक्रोब्लेडिंग का सहारा लेकर पतली आईब्रो को मोटा कर सकती हैं। आइए इस आर्टिकल में हम लेटेस्ट ट्रेंड को जानने के साथ इससे जुड़े फैक्ट्स, कीमत और रिस्क फैक्टर को समझने की कोशिश करते हैं।
मौजूदा समय में माइक्रोब्लेडिंग शब्द इसलिए चर्चा में आया क्योंकि कई सेलेब्रिटी सुंदर दिखने की चाह में इसे कराने लगी। कुल मिलाकर कहा जाए तो माइक्रोब्लेडिंग कॉस्मेटिक टेटूइंग प्रक्रिया है, जिसके तहत पतली आईब्रो को भरा जाता है। ऐसा करने से आईब्रो भरा-भरा दिखता है। यह पारंपरिक टैटू से अलग है, वहीं जीवनभर रहने की बजाय माइक्रोब्लेडिंग से कलरिंग किए जाने से तीन साल तक इसका इफेक्ट रहता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि माइक्रोब्लेडिंग में टैटू से अलग टूल का इस्तेमाल किया जाता है वहीं इसमें छोटे पिगमेंट का यूज किया जाता है।
माइक्रोब्लेडिंग से जुड़े अहम तथ्य
– इस प्रक्रिया में निडल युक्त माइक्रोब्लेड टूल हाथों की मदद से इस्तेमाल करके उपचार किया जाता है।
– इस प्रक्रिया में स्किन में छेद किया जाता है, यदि कोई नौसिखिया इस प्रक्रिया को अंजाम दे या फिर साफ-सफाई से ट्रीटमेंट न करे तो उस स्थिति में इंफेक्शन हो सकता है।
– जिस व्यक्ति पर माइक्रोब्लेडिंग के तहत उपचार किया जा रहा है यदि वो अच्छे से कोऑपरेट करे तो बेहतर रिजल्ट मिल सकते हैं।
आइए जानते हैं क्या है माइक्रोब्लेडिंग
एक्सपर्ट माइक्रोब्लेड टूल की मदद से हमारे आईब्रो के स्किन में पिग्मेंट डालता है, यह ठीक हमारे बालों की तरह ही दिखता है। समय के साथ इसका रंग भी बदलता है, ऐसे में बेहतर रंग पाने के लिए व इसे मेनटेन रखना जरूरी हो जाता है। कहा जाता है कि माइक्रोब्लेडिंग के जरिए नेचुरल आईब्रो हासिल किया जा सकता है, लेकिन परफेक्ट आईब्रो हासिल करने के लिए लंबा समय लगता है।
बता दें कि शुरुआती प्रक्रिया में महज कुछ घंटों के बाद ही आईब्रो डार्क दिखने लगता है। वहीं यह संभव है कि कुछ सप्ताह के बाद ही ट्रीटमेंट के बाद जैसा आईब्रो का रंग है वैसा न रहे, ऐसे में परफेक्ट बनाने के लिए उसको टचअप या मेनटेन करने की जरूरत पड़ सकती है।
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माइक्रोब्लेडिंग और टेटू पेन में अंतर
माइक्रोब्लेडिंग की प्रक्रिया में कुछ खास प्रकार के औजार का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि टैटू बनाने में निडल्स का इस्तेमाल होता है। बावजूद इसके यह टैटू की श्रेणी में ही आता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इसमें ब्लेड की मदद से स्किन में पिग्मेंट डाला जाता है। पारंपरिक टैटू बनाने के लिए मशीन का इस्तेमाल किया जाता है जबकि माइक्रोब्लेडिंग में मैनुअल टूल का इस्तेमाल होता है।
इसके दुष्प्रभावों से रहे अवेयर
सभी प्रकार के कॉस्मेटिक प्रोसिजर से लेकर माइक्रोब्लेडिंग, यहां तक कि परमामेंट मेकअप टेटुइंगिस के साथ कई रिस्क फेक्टर जुड़े हुए हैं।
बता दें कि यूएस का फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन कई इस बात की सलाह नहीं देता कि कॉस्मेटिक प्रैक्टिस करने के लिए स्किन पर कलर एडक्टिव चीजों का इस्तेमाल किया जाए। यही वजह है कि यदि आप माइक्रोब्लेडिंग की प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं तो इसके दुष्परिणामों के बारे में अच्छे से जान लें।
दो चीजें जो आपको जानना जरूरी है
माइक्रोब्लेडिंग प्रक्रिया के तहत क्या वाकई में दर्द होता है। इसके बारे में एक्सपर्ट बताते हैं कि पूरे समय व्यक्ति को दर्द नहीं होता है, बल्कि ट्रीटमेंट के दौरान कई बार दर्द हो सकता है। वहीं ऐसा लग सकता है कि पतले ब्लेड आईब्रो की स्किन के अंदर जा रहे हैं। वहींट्रीटमेंट के दौरान अजीब तरह की आवाज सुनाई दे सकती है।
कब दिखता है फाइनल रिजल्ट
माइक्रोब्लेडिंग ट्रीटमेंट के दो सप्ताह के बाद इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। ट्रीटमेंट के बाद कुछ लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें कुछ खास अंतर नहीं दिखता, लेकिन वास्तव में ऐसा नही होता। कुछ समय के बाद परफेक्ट आईब्रो अपनी वास्तविक रूप में आ जाता है।
रिसर्च करना है बेहतर
यदि आपने सोच लिया है कि आपको भी अच्छा दिखने की चाह में माइक्रोब्लेडिंग करवाना है तो जरूरी है कि किसी भीसैलून में जाकर न करवाएं। बल्कि उसी व्यक्ति से ट्रीटमेंट करवाएं जिसके पास यह करने का लाइसेंस प्राप्त हो, या फिर जिसे अच्छी ट्रेनिंग हासिल हो। ट्रीटमेंट करवाने के पूर्व आप कहां यह प्रक्रिया करवा रहे हैं उसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए। माइक्रोब्लेडिंग को लेकर हर जगह अलग अलग नियम व कानून है। ऐसे में तमाम एहतियात को बरतकर ही इलाज कराना चाहिए।
सामान्य तौर पर कहा जाए तो हाइली स्किल्ड या लाइसेंस प्राप्त एक्सपर्ट के साथ हाई क्वालिटी सैलून और स्पॉ वाले ही ग्राहकों को माइक्रोब्लेडिंग की सेवा देते हैं। लेकिन हर एक व्यक्ति को इस प्रक्रिया से गुजरने से पूर्व वो कहां से ट्रीटमेंट करा रहा है उसके बारे में और पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी लेने के बाद ही कराना चाहिए।
बता दें कि सोसाइटी ऑफ परमानेंट कॉस्मेटिक प्रोफेसनल्स के साथ अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ माइक्रोपिग्मेंटेशन जैसी संस्थाओं पर माइक्रोब्रेलिंड या फिर परमानेंट मेकअप कराने को लेकर भरोसा किया जा सकता है। इन संस्थानों के पास स्किल्ड एक्सपर्ट के साथ इस ट्रीटमेंट को करने का लाइसेंस भी मिला है।
कहीं एलर्जिक रिएक्शन का खतरा तो नहीं
रेयर केस में माइक्रोब्लेडिंग प्रक्रिया के तहत एलर्जिक रिएक्शन न हो इसके लिए ऑर्गेनिक पिग्मेनटेशन की मदद ली जाती है। ऐसे में ट्रीटमेंट के पूर्व इस बात की जानकारी भी होनी चाहिए कि एक्सपर्ट किस प्रकार के पिग्मेंट का इस्तेमाल कर रहा है। वहीं वैसे पिग्मेंट जिनसे एलर्जी होने की संभावनाएं हो उनका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
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इंफेक्शन से जुड़ी बीमारी का खतरा
माइक्रोब्लेडिंग के ट्रीटमेंट के दौरान स्किन में छेद करना पड़ता है। ऐसे में एचआईवी के साथ बैक्टीरियल स्किन इंफेक्शन व अन्य इंफेक्शन डिजीज के संक्रमण का फैलने का खतरा ज्यादा रहता है। वैसे औजार जिन्हें अच्छे से सैनेटाइन न किया हो उनका इस्तेमाल करना घातक हो सकता है। यदि कोई उनका इस्तेमाल कर दें तो उससे इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। यह बेहद जरूरी है कि ट्रीटमेंट के पूर्व हर एक औजार का अच्छी तरह से स्टेरेलाइज कर लिया जाए, ताकि इंफेक्शन से जुड़े खतरे को रोका जा सके।
क्या यह सेमी परमानेंट होता है
यदि किसी के चेहरे पर गलत तरीके से माइक्रोब्लेडिंग का ट्रीटमेंट कर दिया जाए तो आसानी से उसे ठीक या फिर कवर कर पाना मुश्किल होता है। यदि किसी के साथ यह हो जाए तो उसे वापिस इसे ठीक कराने में अतिरिक्त पैसे खर्च करने पड़ते हैं। सबसे बेहतर तरीका यही है कि इसका ट्रीटमेंट सही से किया जाए। ऐसे में जरूरी है कि विश्वसनीय संस्थान से ही इलाज करवाना चाहिए।
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रिस्क फैक्टर पर एक नजर
एसपीसीपी के अनुसार यदि कोई स्वास्थ्य से जुड़े सभी प्रकार के स्टैंडर्ड का पालन करता है तो उस स्थिति में काफी रेयर ही है कि किसी के साथ कुछ गलत हो। खासतौर से तब जब सारे इक्वीप्मेंट को स्टैरलाइज किया हो।
वहीं ट्रीटमेंट के बाद यदि इसकी देखभाल अच्छे से न की जाए तो कई मेडिकल कांप्लीकेशन हो सकती हैं। इन रिस्क फैक्टर को उस वक्त कम किया जा सकता है जब व्यक्ति ट्रीटमेंट के बाद दिए निर्देशों का सही से पालन करें।
साल 2014 में क्लीनिकल इंटरवेंशन इन एजिंग जर्नल में यह बताया गया है कि कॉस्मेटिक टैटू करवाने से कुछ रिस्क हो सकते हैं। यदि ग्राहक जागरूक, शिक्षित या फिर उसे ट्रेनिंग हासिल हो तो रिस्क फैक्टर कम होगा।
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ट्रीटमेंट के पहले यह करें तैयारी
निवाडा की पेराडाइज सैलून ऑफ कारसन सिटी के अनुसार माइक्रोब्लेडिंग प्रोसेस इन तत्वों को किया जाता है शामिल
– ट्रीटमेंट के दिन कैफीन युक्त खाद्य पदार्थ या फिर शराब का सेवन न करें
– ट्रीटमेंट के तीन दिन पहले तक सनबाथ न लेने के साथ न करें टैनिंग
– ट्रीटमेंट के दो दिन पहले तक आईब्रो की न तो वैक्सीन करें न ही प्लकिंग करें
– ट्रीटमेंट के करीब दो से तीन सप्ताह पहले तक कैमिकल युक्त दवा का सेवन न करने के साथ किसी प्रकार की फेशियल ट्रीटमेंट नहीं कराने की सलाह दी जाती है
– ट्रीटमेंट के सात दिन पहले तक आईब्रो में पानी नहीं लगाने की सलाह देते हैं, वहीं ट्रीटमेंट के पूर्व बाल को अच्छे से गीला करना जरूरी है ताकि उसके कारण दिक्कत न हो
– ट्रीटमेंट के एक महीने पहले तक न तो बोटोक्स ट्रीटमेंट कराएं व न ही विटामिन ए (रेटीनॉल) का सेवन करने की सलाह दी जाती है
– ट्रीटमेंट के एक सप्ताह पहले तक मछली के तेल या फिर प्राकृतिक ब्लड थिनर जैसे विटामिन ई का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है
– एसपीरिन या भी आईब्रूफेन जैसी दर्द निवारक दवा का सेवन नहीं करने की सलाह दी जाती है
– ट्रीटमेंट के पूरे दिन काम करने की सलाह नहीं दी जाती है
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ऐसे किया जाता है इलाज
ट्रीटमेंट की बात करें तो एक्सपर्ट के सामने व्यक्ति को बैठा दिया जाता है। ट्रीटमेंट के पूर्व एक्सपर्ट स्टाइल, कलर के साथ पूरी प्रक्रिया को बताता है। प्रक्रिया शुरू करने के पहले आईब्रो वाली जगह पर एक्सपर्ट सुन्न करता है, इससे मरीज को दिक्कत नहीं होती।
एक बार जब व्यक्ति कंफर्टेबल महसूस करने लगता है तब काफी बारीकी से एक्सपर्ट ट्रीटमेंट को अंजाम देता है। कई बार तो इसमें दो घंटे से ज्यादा का समय लग जाता है। एक्सपर्ट इसलिए समय लेकर ट्रीटमेंट करता है ताकि यह लंबे समय तक रह जाता है, वहीं गलती होने पर परिणाम घातक हो सकते हैं।
ट्रीटमेंट के दौरान क्लाइंट को आईब्रो के पास हल्का सेनसेशन महसूस हो सकता है, वहीं हल्का दर्द होता है।
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रिकवरी में लगता है समय
माइक्रोब्लेडिंग प्रोसेस के बाद कम से कम ठीक होने में एक सप्ताह का समय लगता है। वहीं व्यक्ति का आईब्रो सामान्य से ज्यादा डार्कर हो सकता है। वहीं जैसे जैसे यह ठीक होता है आईब्रो अपने वास्तविक शेप में आ जाता है। कुछ लोगों में सामान्य दिखता है तो कुछ में सूजन और लालीपन का एहसास होता है। ऐसे में एक्सपर्ट इलाज के बाद अपने क्लाइंट को खास टिप्स देते हैं। जैसे-
– पानी से धोने के साथ उंगलियों के छोर से काफी आराम से आईब्रो को साफ करें, करीब 10 सेकंड तक एंटीबैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल करें वहीं खुद से ही पानी को सूखने के लिए छोड़ें
– मॉश्च्यूराइजिंग का कम से कम करें इस्तेमाल
– सात से 10 दिनों तक लंबे समय तक नहीं नहाने के साथ स्वीमिंग करने से बचें
– आईब्रो के आसपास मेकअप करने से परहेज करें, जितना संभव उस स्पेस को साफ रखें
– चार सप्ताह तक डायरेक्ट सनलाइन या टैनिंग से बचें
– फेशियल कराने के साथ दवाओं का सेवन करीब 4 सप्ताह तक न करें
– ट्रीटमेंट के 10 दिनों तक मुंह के बल सोने से बचें
ट्रीटमेंट में इतना आता है खर्च
बता दें कि लोग माइक्रोब्लेडिंग इसलिए कराते हैं क्योंकि वो नेचुरल लुक पाने के साथ पतले आईब्रो को भरना चाहते हैं। कई मामलों में एक से दो साल से लेकर उससे भी ज्यादा समय तक आईब्रो अच्छा दिखता है। आईब्रो की क्लालिटी इस बात पर निर्भर करता है कि किस स्किल्ड तरीके से ऑपरेट किया है। वेबसाइट की मानें तो करीब 28 हजार रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक इस ट्रीटमेंट पर खर्च होता है। वहीं एक्सपर्ट जितना अधिक एक्सपीरिएंस होगा वह उतना ही ज्यादा चार्ज करता है। इतना ही नहीं जगह के हिसाब से भी ट्रीटमेंट की कीमत में इजाफा होता है। वहीं कम से कम 1.5 से लेकर दो घंटों तक का समय लगता है, ट्रीटमेंट के बाद ठीक होने में कम से कम मरीज को दो सप्ताह का समय दिया जाता है।
क्या माइक्रोब्लेडिंग प्रेग्नेंसी में सेफ है
यदि आप गर्भवती हैं या फिर शिशु को दूध पिलाती हैं तो उस स्थिति में यह जरूरी हो जाता है कि आप माइक्रोब्लेडिंग से जुड़े ट्रीटमेंट के बारे में जाने। एक्सपर्ट बताते हैं कि गर्भावस्था व शिशु को दूध पिलाने के दौरान कई महिलाएं सजने संवरने को लेकर सजग रहती हैं। लेकिन उस वक्त माइक्रोब्लेडिंग करना कहीं से भी उचित नहीं है। यदि आप कराने की सोच रहे हैं तो ऐसा न करें।
इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए डाक्टरी सलाह लें। हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है।