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संगीत और रोंगटे खड़े होना
हम अपने दिमाग को दो हिस्सों में विभाजित करके समझ सकते हैं। रोंगटे खड़े होने में इनमें ये जिम्मेदार होते हैं। पहला भाग होता है इमोशनल पार्ट और दूसरा कॉग्निटिव। दिमाग का इमोशन वाला हिस्सा कॉग्निटिव भाग से ज्यादा तेजी से रिस्पॉन्स देता है। ऐसे में वो किसी संगीत को शोर समझता है और रोंगटे खड़ा कर सकता है। जबकि कॉग्निटिव भाग संगीत में मौजूद ध्वनि और संगीत को समझकर हमें अच्छा महसूस कराता है।
इसी दौरान अगर कोई अजीब या अचानक से कोई विशेष ध्वनि आ जाए तो हम घबरा जाते हैं, कॉग्निटिव ब्रेन इसे खतरा ही समझता है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
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खुद के रोंगटे खड़े करना
अबतक रोंगटे खड़े होना एक ऐसी प्रक्रिया मानी जाती है, जिसपर हमारा कोई वश नहीं। हम अपनी सांसों को कंट्रोल कर सकते हैं पर रोंगटे खड़े करना शायद असंभव सा लगे पर बॉस्टन की नॉर्थयूनिवर्सिटी में हुई एक शोध ने रोंगटे से जुड़े सारे मायने ही मदल दिए। 2018 में प्रकाशित इस रिपोर्ट में 32 साल की औसत आयु वाले लोगों पर अध्ययन किया जिसमें हैरान करने वाली बातें सामने आईं।