backup og meta

जानिए लो फाइबर डायट क्या है और कब पड़ती है इसकी जरूरत

जानिए लो फाइबर डायट क्या है और कब पड़ती है इसकी जरूरत

शरीर के लिए जितने प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विटामिन की जरूरत होती है, उतनी ही जरूरत फाइबर की भी होती है। हेल्दी रहने के लिए फाइबर का सेवन रोजाना करना आवश्यक है। फाइबर ग्लूकोज और इंसुलिन के स्तर को संतुलित बनाए रखता है। रिसर्च के अनुसार बच्चे अधिक फाइबर युक्त वाले खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहते हैं, तो वहीं वे ज्यादा वसा और शुगर का सेवन करते हैं। ऐसी स्थिति में फाइबर उसे बैलेंस करने में मददगार होता। ऐसा इसलिए क्योंकि फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ में कैलोरी कम होती है। यह पचने में लंबा समय लेता है, लेकिन कुछ मामलों में डॉक्टर खुद लो फाइबर डायट या लो रेसिड्यू डायट लेने की सलाह देते हैं। जानते हैं इसके बारे में।

और पढ़ें : अगर दिखाई दें ये लक्षण तो समझ लें हो गईं हैं पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार

फाइबर क्या है?

फाइबर खाने में पाया जाने वाला वो पदार्थ हैं जो डायजेस्ट नहीं होता है। ये पौधों से कार्बोहाइड्रेट के रूप में निकाला जाता है। ये दो प्रकार का होता है। पहला घुलने वाला फाइबर और दूसरा न घुलने वाला। दोनों का मतलब आपको उनके नाम से ही समझ आ गया होगा। घुलने वाला फाइबर हमारे शरीर में जाकर पानी में मिल जाता है। ये पेट में जाने के बाद एक गाढ़ा तरल पदार्थ बन जाता है, जो शरीर के अनावश्यक खाने को अवशोषित करने से रोकता है। इससे शरीर में कोलेस्ट्रॉल नहीं बन पाता। न घुलने वाला फाइबर पेट को साफ करने के लिए अच्छा माना जाता है। इसे डायट में शामिल करने से कब्ज की परेशानी नहीं होती है। हमें डायट में दोनों तरह के फाइबर को शामिल करना चाहिए।

कब्ज की परेशानी में अपना सकते हैं ये डायट

कब्ज की समस्या यानी कॉन्स्टिपेशन में बाउल मूवमेंट प्रॉपरली नहीं होता है। कब्ज की समस्या के कारण व्यक्ति को रोजाना मल त्याग करने में समस्या होती है। डायजेस्टिव सिस्टम खाने को सही तरह से डायजेस्ट नहीं कर पाता है और व्यक्ति को स्टूल हार्ड और ड्राई होते हैं। इसी कारण से व्यक्ति को एब्डॉमिनल पेन भी हो सकता है। अगर किसी व्यक्ति को कब्ज की समस्या है तो हो सकता है कि उसे दो से तीन दिन तक स्टूल पास न हो। ऐसी समस्या से राहत पाने के लिए डॉक्टर लाइफस्टाइल में सुधार के साथ ही खानपान में बदलाव की सलाह दे सकते हैं। कब्ज की समस्या से निपटने के लिए आमतौर पर फाइबर युक्त भोजन करने की सलाह दी जाती है। फाइबर की उचित मात्रा पाचन के काम को बेहतर करती है। लो फाइबर फूड लेने की सलाह भी पेशेंट को दी जा सकती है। कॉन्स्टिपेशन की समस्या के लिए कुछ दवाओं का सेवन करने की सलाह भी डॉक्टर आपको दे सकता है।

और पढ़ें : इन प्रोटीन फूड्स को अपने रूटीन में शामिल कर, प्रोटीन की जरूरतों को पूरा करने में मदद करें

लो फाइबर डायट या लो रेसिड्यू डायट क्या है?

लो फाइबर डायट को ही लो रेसिड्यू डायट कहते हैं। रेसिड्यू का मतलब होता है ‘बचा हुआ’। तो इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि लो फाइबर डायट एक ऐसा आहार है, जिसमें हमारे पाचन तंत्र में खाना कम बचा रहता है। इस डायट के बारे में बताने से पहले आप ये जान लें कि लो रेसिड्यू डायट को आप रोजाना फॉलो नहीं कर सकते हैं। इस डायट को डॉक्टर कुछ बीमारियों में फॉलो करने के लिए कहते हैं, जैसे- इन्फ्लमेटरी बॉवेल डिजीज।

और पढ़ें : हार्ट अटैक के बाद डायट का रखें खास ख्याल! जानें क्या खाएं और क्या न खाएं

इंफ्लेमेटरी बाॅवेल डिजीज क्या है?

अगर किसी कारण पाचन तंत्र में सूजन की समस्या शुरू हो जाए और सूजन की वजह से डायजेशन से जुड़ी समस्याएं शुरू हो जाती हैं। ऐसी स्थिति को इंफ्लेमेटरी बाॅवेल डिजीज (Inflammatory bowel disease) कहते हैं। इंफ्लेमेटरी बाॅवेल डिजीज के अंतर्गत दो अलग-अलग तरह की शारीरिक परेशानी होती हैं। इन परेशानियों में शामिल हैं-

  1. अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis)
  2. क्रोहन रोग (Crohn’s disease)

1. अल्सरेटिव कोलाइटिस

अल्सरेटिव कोलाइटिस (UC) एक ऐसी शारीरिक परेशानी है जो डाइजेस्टिव सिस्टम की लार्ज इंटेस्टाइन पर बुरा प्रभाव डालता है। UC आतों में इर्रिटेशन (जलन) होता है जो कि डायजेस्टिव सिस्टम के ऊपरी सतह में अल्सर का रूप ले लेता है। कभी-कभी अल्सर में पस जैसी परेशानी भी शुरू हो जाती है और इससे खून आने लगता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस पुरुषों और महिलाओं दोनों में होने और 15 से 35 वर्ष की उम्र के लोगों में ज्यादा होने वाली परेशानी है। वैसे यह जेनिटिकल कारणों से भी हो सकता है।

2. क्रोहन डिजीज

क्रोहन डिजीज आंत से संबंधित एक बीमारी है। क्रोहन डिजीज की वजह से आंतों में जलन और दर्द की समस्या शुरू हो जाती है। दरअसल क्रोहन डिजीज में आंत की दीवारें या सतह मोटी हो जाती है, जो खाने को ब्लॉक कर देता है और उसे आगे बढ़ने नहीं देता है। इसके अलावा छोटी आंत प्रभावित हिस्सा भोजन के पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं करता है। ऐसा होने पर पेट दर्द, डायरिया की बीमारी, वजन घटना, आंत में छेद आदि समस्या हो जाती है। जब ये समस्या ज्यादा बढ़ जाती है और दवाओं से ठीक नहीं होती सर्जरी का विकल्प अपनाया जाता है।

और पढ़ें: जानिए गट से जुड़े मिथ और उसके तथ्य

लो फाइबर डायट की जरूरत किसे होती है?

पेट से संबंधित बीमारियों में लो फाइबर डायट को डॉक्टर द्वारा सजेस्ट किया जाता है। लो रेसिड्यू डायट में ज्यादातर  खाए जाने वाले फूड्स की मात्रा सीमित रहती है, जिससे पेट में समस्या कम होती है। इस डायट को लेने के बाद भोजन अवशोषित हो जाता है। जिसके कारण अवशेष काफी कम बचता है। जब पेट में खाने का अवशेष कम रहेगा तो इसके बाद आंतों में होने वाली हलचल कम होती है। जिससे स्टूल यानी कि मल त्याग की मात्रा कम होती है। 

लो फाइबर डायट को निम्न बीमारियों से ग्रसित लोगों को अपनाने की सलाह दी जाती है :

  • इंफ्लमेटरी बॉवेल डिजीज, क्रोहन डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस।
  • बोवेल ट्यूमर
  • कीमोथेरिपी में प्रयुक्त किए जाने वाले रेडिएशन के कारण पेट और आंतों में जलन की समस्या होना।
  • कोलोनोस्कोपी या पेट की किसी सर्जरी के पहले या बाद में।
  • आंतों का सकरा या पतला हो जाना।
  • बॉवेल डिजीज सिंड्रोम या डीवर्टीकुलोसिस।

उपरोक्त बीमारियों से ग्रसित व्यक्ति को कम फाइबर का सेवन करने के लिए कहा जाता है। एक दिन में लगभग 10 से 15 ग्राम ही फाइबर का सेवन करना होता है। इसके साथ ही इस डायट में मिनरल, विटामिन, कैल्शियम, पोटैशियम, फोलिक एसिड और विटामिन सी आदि की मात्रा को भी थोड़ा कम कर दिया जाता है। बहुत सारे फूड के पैकेट पर न्यूट्रिएंट्स की मात्रा लिखी होती है। 

और पढ़ें :परिणीति चोपड़ा के डायट प्लान से होगा वेट लॉस आसान, जानिए वर्कआउट सीक्रेट भी

लो रेसिड्यू डायट काम कैसे करती है?

लो फाइबर डायट में एक सीमा में ही फाइबर का सेवन कर सकते हैं। प्रतिदिन सिर्फ 10 से 15 ग्राम फाइबर का ही सेवन किया जाता है। जबकि बिना किसी पेट संबंधी बीमारी के एक नॉर्मल व्यक्ति 25 से 38 ग्राम फाइबर का सेवन रोजाना करता है। आपको डेयरी के प्रोडक्ट्स और कुछ तरह के कार्बोहाइड्रेट का सेवन इस डायट में न करने की सलाह दी जाती है। ताकि आपके पेट में किसी तरह का कोई दर्द न हो। 

अगर आपके डॉक्टर या डायटीशियन आपको बताते हैं कि आपको लो रेसिड्यू डायट की जरूरत है तो आपको उसे फॉलो करना पड़ेगा, लेकिन ऐसा हो सकता है कि लो फाइबर डायट को फॉलो करते हुए विटामिन सी और फॉलिक एसिड की शरीर में कमी हो जाए। इसके साथ ही गट बैक्टीरिया भी बदल सकते हैं। किसी को लो फाइबर डायट को कब तक और कितनी मात्रा में फॉलो करना होगा, ये बात व्यक्ति के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आप इस बारे में अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से परामर्श कर सकते हैं।

और पढ़ें : वजन कम करने में मदद कर सकती है हल्दी (Turmeric), जानें 5 फायदे

लो रेसिड्यू डायट में क्या खाना चाहिए?

लो फाइबर डायट में आपको निम्न चीजें खानी होती हैं :

  • बिना नट्स और बीज के सफेद ब्रेड।
  • व्हाइट राइस, व्हाइट पास्ता या क्रैकर्स।
  • रिफाइंड अनाज, जिसमें एक ग्राम से कम फाइबर हो।
  • व्हाइट रिफाइंड आटे से बना पैनकेक या वैफेल।
  • अच्छे से पकी हुई सब्जियां और बिना छिलके व बीज के फल।
  • पका हुआ मीट, चिकन, मछली और अंडे।
  • दूध से निर्मित पदार्थ, जैसे- योगर्ट, पुडिंग, आइस्क्रीम, चीज़, क्रीम, बटर आदि।
  • बिना बीज का सलाद।

लो फाइबर डायट में क्या नहीं खाना चाहिए?

लो फाइबर डायट में आपको निम्न चीजें नहीं खानी चाहिए :

  • गेंहू या गेंहू से बने ब्रेड, अनाज और पास्ता
  • ब्राउन राइस
  • ओट्स
  • काशा
  • जौ
  • क्विनोआ
  • सूखे फल
  • बीज और छिलके का साथ कच्चे फल, जैसेड- बेरीज
  • कच्चे या कम पकी हुई सब्जियां, जैसे- कॉर्न
  • सूखी फलियां, मटर या दालें
  • पीनट बटर
  • नारियल
  • पॉपकॉर्न

आप उपरोक्त फूड का यदि सेवन करना चाहते हैं तो इस बारे में डॉक्टर से सलाह जरूर लें। लो फाइबर डायट को लंबे समय तक लेने की सलाह डॉक्टर नहीं देगा। हो सकता है कि डॉक्टर आपको कुछ समय बाद इस डायट को न अपनाने की सलाह दे।

लो फाइबर डायट प्लान कैसे बनाएं?

लो रेसिड्यू डायट प्लान तैयार कराने के लिए आपको अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। नीचे बताई गई डायट प्लान मात्र एक नमूना है, जिसे बिना डॉक्टर के परामर्श के फॉलो नहीं करें।

ब्रेकफास्ट के दौरान लो फाइबर डायट

  • एक गिलास दूध
  • एक अंडा
  • एक स्लाइस सफेद टोस्ट के साथ जेली
  • आधा कप आड़ू

लो रे स्नैक

एक कप योगर्ट, बिना बीज और नट्स का सेवन आप लो रे

लंच के दौरान लो फाइबर डायट

  • एक से दो कप चिकन नूड्ल्स 
  • क्रैकर्स
  • टूना मछली का सैंडविच, वह भी सफेद ब्रेड और मायोनीस के साथ
  • एप्पल सॉस
  • आईस टी

स्नैक

  • सफेद टोस्ट, ब्रेड या क्रैकर्स
  • दो स्लाइस चीज या आधा कप कॉचेज चीज
  • जूस या आइस टी

डिनर

  • एक कटोरी मीट, चिकन या मछली
  • आधा कप व्हाइट राइस
  • आधा कप पकी हुई सब्जियां, जैसे- गाजर या हरी बींस
  • गर्म चाय
  • व्हाइट रिफाइंड आटे से बना डिनर रोल बटर के साथ

उपरोक्त बताए गए लो रेसिड्यू डायट प्लान के फूड्स को खुद ही तैयार करें। खाने को अच्छी तरह से पकाएं। पाक कला का अच्छी तरह इस्तेमाल करें। खाने को रोस्टिंग और ग्रिलिंग न करें। इससे खाना सूखा और कड़ा हो जाता है। 

हमेशा याद रखें कि इस डायट को फॉलो करने से आपको कम मात्रा में शौच हो सकती है और आपके आंट में मूवमेंट भी कम रहती है। जिससे आपको कब्ज की समस्या हो सकती है। कब्ज की समस्या से बचने के लिए ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें। ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी पिएं।

लो फाइबर डायट प्लान को फॉलो करने के बाद से आपके आंत में मूवमेंट कम होगा। जिससे आपको पेट संबंधी समस्याओं से निजात मिलेगा। इसके साथ ही जब आपका पाचन तंत्र धीरे-धीरे दुरुस्त हो जाएगा तो डॉक्टर आपको धीरे-धीरे फाइबर डायट पर शिफ्ट कर सकते हैं। इसका ये मतलब नहीं है कि आपको सिर्फ फाइबर खाना है या फाइबर की मात्रा को बढ़ा देना है। आपको ये करना है कि फाइबर की मात्रा पहले की तुलना में संतुलित रूप से लेनी होगी। 

और पढ़ेंः इन पारसी क्यूजीन के बिना अधूरा है नवरोज फेस्टिवल, आप भी करें ट्राई स्वादिष्ट पारसी रेसिपीज

लो फाइबर डायट लेने के नुकसान क्या हैं?

लो फाइबर डायट लेने से हमें कई तरह के पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, जिससे शरीर में कई तरह के विटामिन और मिनरल की कमी हो जाती है। अगर आपको किसी तरह की परेशानी है और डॉक्टर ने आपको इस डायट को लेने की सलाह दी है तो आप इसे लेना शुरू कर सकते हैं। बिना डॉक्टर की सलाह के लो रेड्यूस डायट का सेवन बिल्कुल भी न करें।आप जब भी लो रेसिड्यू डायट को फॉलो करें तो अपने डॉक्टर के परामर्श पर ही शुरू करें। 

उपरोक्त जानकारी चिकित्सा सलाह का विकल्प नहीं है। हम उम्मीद करते हैं कि आपको इस आर्टिकल के माध्यम से लो फाइबर डायट या लो रेड्यूस डायट के बारे में जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको इस संबंध में अधिक जानकारी चाहिए तो आप आहार विशेषज्ञ से जानकारी ले सकते हैं। आप स्वास्थ्य संबंधि अधिक जानकारी के लिए हैलो स्वास्थ्य की वेबसाइट विजिट कर सकते हैं। अगर आपके मन में कोई प्रश्न है तो हैलो स्वास्थ्य के फेसबुक पेज में आप कमेंट बॉक्स में प्रश्न पूछ सकते हैं।

[embed-health-tool-bmr]

डिस्क्लेमर

हैलो हेल्थ ग्रुप हेल्थ सलाह, निदान और इलाज इत्यादि सेवाएं नहीं देता।

Low-fiber diet do’s and don’ts https://www.mayoclinic.org/healthy-lifestyle/nutrition-and-healthy-eating/in-depth/low-fiber-diet/art-20048511 Accessed on 3/4/2020

Low-Residue and Low-Fiber Diets in Gastrointestinal Disease Management1,2 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4642427/ Accessed on 3/4/2020

Low-fiber diet. https://medlineplus.gov/ency/patientinstructions/000200.htm. Accessed on 10 September, 2020.

Fibre in food. https://www.betterhealth.vic.gov.au/health/healthyliving/fibre-in-food. Accessed on 10 September, 2020.

Why is it important to eat vegetables?. https://www.choosemyplate.gov/eathealthy/vegetables/vegetables-nutrients-health. Accessed on 10 September, 2020.

Current Version

14/10/2021

Shayali Rekha द्वारा लिखित

के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड डॉ. पूजा दाफळ

Updated by: Nikhil deore


संबंधित पोस्ट

महुआ के फायदे : इन रोगों से निजात दिलाने में असरदार हैं इसके फूल

सिंपल सी दिखने वाली इस सब्जी 'जुकिनी' के फायदे जानकर हैरान हो जाएंगे आप


के द्वारा एक्स्पर्टली रिव्यूड

डॉ. पूजा दाफळ

· Hello Swasthya


Shayali Rekha द्वारा लिखित · अपडेटेड 14/10/2021

ad iconadvertisement

Was this article helpful?

ad iconadvertisement
ad iconadvertisement