डायबिटीज यूं तो एक बीमारी है लेकिन यह कई बीमारियों का कारण भी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस बीमारी से कई प्रकार की बीमारी हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि इस बीमारी से जितना संभव हो बचाव किया जाए। पहले के समय में डायबिटीज की बीमारी 40 वर्ष के बाद के उम्र के लोगों में देखने को मिलती थी, लेकिन मौजूदा समय में यह बीमारी कम उम्र के लोगों में देखने को भी मिलती है। डायबिटीज इस मॉर्डन युग की उन बीमारियों में से एक है जो तेजी से फैल रही है। वहीं इसकी चपेट में काफी संख्या में लोग आ रहे हैं। डायबिटिक मैकुलर एडिमा (डीएमई) डायबिटीज से जुड़ी समस्या है। वैसे लोग जो टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं उन्हें यह बीमारी होने की संभावना रहती है। आंखों के मैक्युला में जब अत्यधिक फ्लूइड बनना शुरू होता है तो उस स्थिति में डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी होती है। मैक्युला की मदद से हम आसानी से चीजों को देख पाते हैं। यह रेटिना के बीचो बीच होता है, वहीं आंखों के पीछे रक्त कोशिकाएं होती हैं, जो इससे जुड़ी होती हैं। जब मैक्युला में अत्यधिक फ्लूइड भर जाता है तो उसके कारण विजन संबंधी समस्या होती है।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा की समस्या को विकसित होने में कुछ समय लगता है। हाई ब्लड शुगर लेवल रेटिना की रक्त कोशिकाओं को डैमेज कर सकते हैं। वहीं डैमेज ब्लड वेसल्स में लीकेज के कारण फ्लूइड बह सकता है, जिस वजह से सूजन सहित विभिन्न प्रकार की समस्याएं आ सकती हैं। वहीं इस समस्या को रेटिनोपैथी (retinopathy) कहा जाता है।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा का इलाज कई प्रकार से किया जाता है। यदि इस बीमारी का शुरुआती दिनों में ही पता चल जाए तो इसका इलाज आसान होता है। इसलिए जरूरी है कि डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित लोग समय-समय पर स्पेशलिस्ट की सलाह जरूर लें।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा के क्या हैं लक्षण
शुरुआती अवस्था में डायबिटिक मैकुलर एडिमा के किसी प्रकार का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। यदि आपको डायबिटीज की बीमारी है तो बेहतर यही होगा कि आप समय-समय पर डॉक्टरी सलाह लेने के साथ शरीर व आंखों की जांच कराएं। जांच के क्रम में यदि किसी प्रकार की डायबिटिक मैकुलर एडिमा और रेटिनोपैथी के लक्षण दिखाई देता है तो जल्द से जल्द ट्रीटमेंट शुरू कराना बेहतर रहता है।
वहीं यदि आपको आंखों से संबंधित इस प्रकार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो जरूरी है कि आप अपने आंखों से संबंधित डॉक्टर को बताएं, जैसे
समय के साथ-साथ डायबिटिक मैकुलर एडिमा के केस में हाई ब्लड शुगर लेवल आंखों के छोटे ब्लड वेसल्स को डैमेज कर सकते हैं। इस कारण डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी होने की संभावना रहती है। डॉक्टरी सलाह को अपनाते हुए उनके दिशा-निर्देशों का पालन कर ब्लड शुगर लेवल को मैनेज करने की जरूरत है। ऐसा कर अपनी आंखों की हिफाजत करने के साथ उसे हेल्दी रख सकते हैं। बता दें कि हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रोल लेवल के कारण ब्लड वेसल्स डैमेज हो सकते हैं।
कुछ मामलों में गर्भवती महिलाओं में देखा गया है कि उन्हें डायबिटीज की बीमारी होने की वजह से उनमें डायबिटिक मैकुलर एडिमा होने की संभावनाएं ज्यादा रहती है। इसलिए गर्भवती महिलाएं यदि डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं तो उन्हें नियमित तौर पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। ताकि डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी से समय रहते बचाव किया जा सके।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा ऐसी बीमारी है जिसे रेटिना में होने वाले सूजन को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग पार्ट में वर्गीकृत किया है। पतली रेटिना का अर्थ यह है कि यहां अत्यधिक मात्रा में सूजन है, वहीं इस वजह से अत्यधिक विजन लॉस की समस्या होती है। डायबिटिक मैकुलर एडिमा के प्रकार को जहां पर यह बीमारी है ब्लड वेसल्स के लोकेशन के हिसाब से भी वर्गीकृत किया जाता है। कुछ मामलों में यह एक ही जगह पर बीमारी होती है। पूरे रेटिना में क्षति होने की संभावना रहती है वहीं यह काफी जटिल भी होता है।
जब आप आंखों की जांच कराने के लिए जाते हैं तो आपके आंखों के डॉक्टर आंखों की जांच कराने के लिए कुछ टेस्ट की सलाह दे सकते हैं। टेस्ट की जांच में यह पता चलता है कि ब्लड वेसल्स में कहीं डैमेज है या रेटिना में किसी प्रकार का सूजन है या नहीं। उस हिसाब से डॉक्टर मरीज का इलाज करते हैं।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा के तहत आंखों के डैमेज की जांच करने के लिए डॉक्टर कुछ आई टेस्ट का सुझाव दे सकते हैं, जैसे
फ्लोरोसीन एंजियोग्राफी (Fluorescein angiography) : इस टेस्ट के तहत मरीज के हाथों में डाई इंजेक्ट किया जाता है, ताकि रेटिना में ब्लड फ्लो की जांच की जा सके।
ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओटीसी- Optical coherence tomography) : इस टेस्ट की मदद से रेटिना में किसी भी प्रकार के सूजन की जांच कराई जाती है।
फुंदुस इमेजिंग (Fundus imaging) : इस टेस्ट के तहत रेटिना की डिटेल्ड पिक्चर ली जाती है, वहीं टेखा जाता है इरेगुलर ब्लड वेसल्स की कहीं कोई समस्या तो नहीं, इसकी जांच आंखों के स्पेशलिस्ट करते हैं।
सभी प्रकार के टेस्ट के लिए मरीज को एक खास प्रकार का आई ड्रॉप दिया जाता है, इसकी मदद से प्यूपिल को बड़ा किया जाता है, इसे प्यूपिल डाइलेशन कहा जाता है। इसकी मदद से आई केयर स्पेशलिस्ट रेटिना की काफी अच्छे से जांच कर पाते हैं। वहीं कुछ लोगों में प्युपिल डायलेशन के कारण उन्हें हल्की सेंसिटिविटी का एहसास हो सकता है, लेकिन इस टेस्ट में आपको किसी प्रकार का डिसकंफर्ट नहीं होता है।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा का क्या है ट्रीटमेंट
मौजूदा समय में डायबिटिक मैकुलर एडिमा से ग्रसित मरीजों का इफेक्टिव ट्रीटमेंट मौजूद है। यदि कोई व्यक्ति नियमित तौर पर डॉक्टरी सलाह लेता है तो उसका डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी से बचाव किया जा सकता है। ट्रीटमेंट कर आंखों की रोशनी को जाने से बचाया जा सकता है। जरूरत के अनुसार आपका आई केयर स्पेशलिस्ट आपको एक से अधिक ट्रीटमेंट की सलाह भी दे सकता है।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा का इलाज लेजर थेरेपी से भी किया जाता है। क्लिनिक या अस्पतालों में ही लेजर थेरेपी से इलाज किया जाता है, क्योंकि इस ट्रीटमेंट को अंजाम देने के लिए उपकरणों की आवश्यकता होती है। डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी से ग्रसित लोगों की आंखों में रेटिना के आसपास हुए डैमेज को लेजर की मदद से हटाया जाता है। इस प्रक्रिया की मदद से ब्लड वेसल्स में लिकेज की समस्या को सुलझाने के साथ असामान्य रूप से विकसित ब्लड वेसल्स को रोका जाता है।
लेजर थेरेपी की मदद से वर्तमान में विजन लेवल को मेनटेन रखने के साथ भविष्य में होने वाले विजन लॉस को भी रोका जा सकता है। लेकिन इसके लिए आपको बस कुछ लेजर ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ सकती है ताकि आई डैमेज को रिपेयर किया जा सके। यदि अतिरिक्त आंखों की डैमेज होती है तो आपको अन्य ट्रीटमेंट की आवश्यकता पड़ सकती है।
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इंजेक्टेबल मेडिकेशन से भी इलाज संभव
मौजूदा समय में इंजेक्टेबल मेडिकेशन के दो ग्रुप है, पहली एंटी वीईजीएफ और दूसरा स्टेरॉयड। हर एक ग्रुप में अलग-अलग प्रकार होते हैं। आपके आंखों की जांच करने के बाद आपके आई केयर स्पेशलिस्ट दवाओं से संबंधित डोज का निर्धारण करते हैं।
इन दवाओं की मदद से डायबिटिक मैकुलर एडिमा के केस में मरीज को दर्द से राहत दिलाया जा सकता है। इस दवा के डोज के तहत बेहद ही पतले इंजेक्शन नुमा निडल की मदद से आंखों में दवा दी जाती है।
यहां एंटी वीईजीएफ का तात्पर्य एंटी वस्कुलर एंडोथेलियल ग्रोथ फैक्टर से जुड़ा है। इस कैटेगरी से संबंधित दवा असामान्य ब्लड वेसल्स ग्रोथ को रोकने के साथ भविष्य में होने वाले डैमेज को रोकता है। वहीं यह सूजन भी कम करता है।
डीएमई की बीमारी होने पर डॉक्टर कुछ दवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे-
लूसेंटिस (Lucentis)
आएलिया (Eylea)
ऑजूरडेक्स (Ozurdex)
ल्यूविन (Iluvien)
फ्लूसिनोलोन (Fluocinolone)
डेक्सामेथासोन (Dexamethasone)
रेनीबिजूमैब (Ranibizumab)
अफ्लीबिरसेप्ट (Aflibercept)
दवाओं का सेवन करने के पूर्व जरूरी है कि डॉक्टरी सलाह ली जाए। बिना डॉक्टरी सलाह के दवा का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है।
इस दवा का इस्तेमाल करने से दुष्परिणाम की संभावना कम होती है और इसे सुरक्षित माना जाता है
रेटिना में फ्लूइड के लीकेज की समस्या को कम करने में करता है मदद
हाल में हुए शोध के अनुसार आंखों की रोशनी में सुधार को लेकर इस दवा के बेहतर नतीजे देखने को मिले हैं
एंटी वीईजीएफ इंजेक्शन सामान्य तौर पर दर्द भरे नहीं होते हैं। यदि इंजेक्शन को लेकर आपके मन में किसी प्रकार की घबराहट और आशंका है तो आपको डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए। वहीं इलाज के अन्य विकल्पों के बारे में आप उनसे पूछताछ कर सकते हैं।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा का इलाज करने के लिए आई केयर स्पेशलिस्ट स्टेरॉयड का भी इस्तेमाल करते हैं। इसके तहत-
इस दवा का इस्तेमाल करने से कुछ मामलों में संभावना रहती है कि कहीं मरीज को मोतियाबिंद न हो जाए, इसको लेकर आपको अपने स्पेशलिस्ट से दवा के रिस्क और बेनीफिट्स पर पहले ही बात करनी चाहिए।
रेटिना में सूजन कम करने के साथ विजन में किया जाता है सुधार।
यदि एंटी वीईजीएफ दवा असर न करे तो इन दवा का होता है इस्तेमाल।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा का इलाज स्टेरॉयड से करने के लिए इंजेक्शन के साथ दवा उपलब्ध है। लेकिन इसका सेवन डॉक्टरी सलाह लेकर ही किया जाना चाहिए।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा
क्यों जरूरीहै इलाज कराना
रेगुलर चेकअप कराकर इस बीमारी से काफी हद तक बचा जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि आई केयर स्पेशलिस्ट से समय-समय पर जांच कराई जाए और ट्रीटमेंट कराकर होने वाले विजन लॉस से बचा जा सके। ट्रीटमेंट कराकर खोई विजन को वापिस पाई जा सकती है। वहीं यदि मरीज का इलाज न किया जाए तो कुछ समय के बाद मरीज की हालत बद से बदतर हो सकती है।
यदि आपको बीमारी के लक्षण दिख रहे हैं वहीं आपने उसका उपचार नहीं कराया है, यहां तक कि आपने डॉक्टरी सलाह तक नहीं ली है, तब भी लेट नहीं हुआ है। कहा जाता है इलाज कराने के लिए जब जागो तभी सवेरा … इसके तहत आपको जल्द से जल्द डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। इलाज कराने के बाद यदि आप डायबिटिक मैकुलर एडिमा की बीमारी से ग्रस्त होते हैं तो आपको ट्रीटमेंट जल्द से जल्द शुरू कर देना चाहिए। ताकि लांग टर्म आई डैमेज और विजन लॉस की समस्या से बचा जा सके।
वहीं आप इस बीमारी से बचाव के लिए कुछ प्रवेंटिव मेजर्स को अपना सकते हैं। ताकि अपनी आंखों की रोशनी को बचाया जा सके। आप इन उपायों को आजमाकर अपने आंखों की कर सकते हैं देखभाल, जैसे
यदि आप ब्लड शुगर लेवल को मेनटेन करने में किसी प्रकार की समस्या झेल रहे हैं तो बेहतर यही होगा कि आप अपने डॉक्टर को इसके बारे में बताएं। डॉक्टर कुछ अन्य ट्रीटमेंट ऑप्शन के जरिए आपका इलाज कर सकते हैं। ऐसा कर अपना अपने विजन को सामान्य करने के साथ खोए हुए विजन को वापिस पा सकते हैं।
डायबिटिक मैकुलर एडिमा बीमारी को एक्सपर्ट की मदद से मैनेज किया जा सकता है। क्योंकि मौजूदा समय में इस बीमारी का उपचार करने के लिए कई सारे ट्रीटमेंट ऑप्शन हैं। इसलिए जरूरी है कि 40 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को और डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित लोगों को नियमित तौर पर डॉक्टरी सलाह लेनी चाहिए। वहीं अपने शरीर की जांच करवानी चाहिए। ताकि किसी प्रकार की कोई बीमारी हो तो उसका उपचार किया जा सके।
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