5- इलाज और बचाव
टाइप 1 डायबिटीज: टाइप-1 के इलाज के बारे में अभी भी अनुसंधान चल रहा है, कोई भी सटिक या प्रामाणिक तथ्य अभी तक सामने नहीं आया है।
टाइप-2 डायबिटीज: वैसे तो टाइप-2 के इलाज के बारे में भी कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिला है। फिर भी समय पर इलाज करने पर इसको रोका जा सकता है या कुछ हद तक बचाया जा सकता है।
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क्या टाइप-1 (Type 1 Diabetes) और टाइप-2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) के रिस्क फैक्टर्स अलग-अलग होते हैं?
वैसे तो दोनों के रिस्क फैक्टर को लेकर कोई प्रामाणित तथ्य नहीं है, लेकिन दोनों के रिस्क फैक्टर्स को अनुमान के तौर पर बताया जा सकता है।
टाइप-1 डायबिटिज
टाइप-1 जीवनशैली से प्रभावित नहीं होता है, जिस तरह से टाइप-2 डायबिटीज होता है। कहने का मतलब यह है कि टाइप-1 डायबिटीज को लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर कंट्रोल में नहीं लाया जा सकता है। बच्चे से लेकर 40 वर्ष के उम्र तक टाइप-1 डायबिटीज होने का खतरा होता है। 40 वर्ष के बाद टाइप-1 डायबिटीज होने का खतरा न के बराबर होता है।
टाइप-2 डायबिटीज
टाइप-2 डायबिटीज होने के पीछे बहुत सारे कारण होते हैं, जैसे- पारिवारिक इतिहास, उम्र और मोटापा। इसलिए जीवनशैली में बदलाव लाकर आप इन खतरों को कम कर सकते हैं। हेल्दी खाना, खुद को एक्टिव रखकर और हेल्दी वेट को मेंटेन करके आप ब्लड शुगर को कंट्रोल में कर सकते हैं। टाइप-2 के मामले में 40 साल के बाद होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। अभी तो यंग लोगों को भी टाइप-2 डायबिटीज होने लगा है।
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टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण
वैसे तो दोनों टाइप के डायबिटीज में लक्षण देखे जाए तो एक जैसे ही हैं। जैसे कि, रात को बार-बार पेशाब करने जाना, बार-बार प्यास लगना, बार-बार भूख लगना, हद से ज्यादा थकान महसूस करना, बेवजह वजन कम होना, जेनिटल एरिया में खुजली या छाले जैसे घाव होना, कटने या छिलने पर ठीक होने में समय लगना, धूंधला दिखना। लेकिन सबसे बड़ा दोनों में अंतर यह है कि टाइप-1 डायबिटीज में लक्षण तुरन्त महसूस होने लगते हैं, लेकिन उसकी जगह पर टाइप-2 डायबिटीज में लक्षण बहुत देर के बाद सामने आते हैं। यहां तक कभी-कभी मरीज को दस साल के बाद समझ में आता है कि उसको टाइप-2 डायबिटीज हुआ है। इसलिए टाइप-2 के लक्षणों को पहले स्टेप में समझना मुश्किल हो जाता है।
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज के उपचार में भिन्नता
टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज का उपचार जितना जल्दी हो सके उतना अच्छा होता है क्योंकि इससे शरीर में जो जटिलताएं उत्पन्न होती हैं, उससे राहत मिलने में आसानी होती है। अगर आप टाइप-1 या टाइप-2 में से किसी एक से ग्रस्त हैं, तो आपको रोज का काम करने में भी समस्या हो सकती है। अगर आपको टाइप-1 डायबिटीज है, तो इसको मैनेज करने का एक ही उपाय है इंसुलिन लेना। जरूरत के अनुसार सही मात्रा में इंसुलिन लेकर ही आप ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल में ला सकते हैं। खुद के ब्लड शुगर के लेवल को नियमित रूप से चेक करने की जरूरत होती है। हर दिन डायट में कार्ब्स इनटेक को काउन्ट करके ही आप निर्धारित कर सकते हैं कि कितना इंसुलिन लेना है। कहने का मतलब यह है कि इंसुलिन कितना लेना है यह आपने कितना कार्बोहाइड्रेड वाले फूड्स का सेवन किया है उस पर निर्भर करता है। इसके अलावा आपको हेल्दी लाइफस्टाइल, एक्सरसाइज, संतुलित भोजन आदि का पालन सही तरीके से करना है। तभी आपको टाइप-1 के कारण होने वाली जटिलताओं से कुछ हद तक मुक्ति मिल सकती है।
टाइप-2 डायबिटीज में सबसे पहले हेल्दी एक्टिव लाइफस्टाइल और बैलेंस्ड डायट अपनाने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा हेल्दी वेट को मेंटेन भी करना पड़ता है। अगर इन सबके अलावा भी ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं हो रहा है, तभी दवा और इंसुलिन देने की नौबत आती है। ब्लड शुगर लेवल की जांच कब-कब करनी है, इसके बारे में आपकी शारीरिक अवस्था के आधार पर डॉक्टर जांच करने की सलाह देते हैं।
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टाइप-1 डायबिटीज (Type 1 diabetes) के लक्षण क्या हैं?
टाइप-1 डायबिटीज क्या है, इस बात को अच्छी तरह से समझने के लिए उसके लक्षणों के बारे में भी जानना बहुत जरूरी है। जैसा कि पहले भी चर्चा की गई है कि दोनों टाइप के डायबिटीज के लक्षण लगभग समान ही होते हैं। टाइप-1 डायबिटीज होने की संभावना 4 साल से लेकर लगभग 14-15 साल तक रहती है या 40 के पहले तक। अगर पहले चरण में इस बीमारी को नजरअंदाज किया गया, तो धीरे-धीरे जटिलताएं बढ़ती जाती हैं-
– जो बच्चे पहले बिस्तर में पेशाब नहीं करते थे वह इस बीमारी से आक्रांत होने पर करने लगते हैं
-बार-बार पेशाब करने जाते हैं