ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) हो सकता है। हॉर्मोन थेरिपी उनमें इंसुलिन रेजिस्टेंस (Insulin resistance) को बढ़ा सकती है। दरअसल ट्रांसजेंडर्स को हॉर्मोन थेरिपी (Hormone therapy) इसलिए दी जाती है ताकि वे सेकेंड्री सेक्शुअल कैरेक्टरस्टिक्स के साथ अच्छी तरह अलाइन हो सकें। जिसमें टेस्टेस्टेरॉन और ईस्ट्रोजन हॉर्मोन थेरिपी शामिल है। यह ट्रीटमेंट का गोल के आधार पर फेमिनाइजेशन (Feminization) है या मस्क्युलिनाइजेशन (Masculinization) के लिए उपयोग होती है।
फेमिनाइजेशन हॉर्मोन थेरिपी का उपयोग ट्रांसजेंडर महिला या ट्रांसफेमिनाइन व्यक्ति के लिए किया जाता है। वहीं मैस्क्युलाइजिंग हॉर्मोन थेरिपी ट्रांसजेंडर मेन या ट्रासमैस्क्युलिन लोगों को दी जाती है। इसे जेंडर अफर्मिंग हॉर्मोन थेरिपी (Gender-affirming hormone therapy) कहा जाता है। ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव को लेकर कुछ स्टडीज की गई हैं। जिसमें कई बातें सामने आई हैं। चलिए उनके बारे में जान लेते हैं , लेकिन पहले पता कर लेते हैं कि आखिर इंसुलिन सेंसिटिविटी क्या होती है?
इंसुलिन सेंसिटिविटी (Insulin sensitivity)
इंसुलिन सेंसिटिविटी का मतलब है कि शरीश की कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति रिस्पॉन्स करने के लिए इतनी सेंसिटिव हैं। हाय इंसुलिन सेंसिटिविटी के चलते शरीर की कोशिकाएं ब्लड ग्लूकोज का उपयोग प्रभावी रूप से कर लेती हैं और ब्लड शुगर को कम करती है। लो इंसुलिन सेंसिटिविटी को इंसुलिन रेजिस्टेंस कहा जाता है। जिसमें कोशिकाएं ज्यादा ग्लूकोज को एब्जॉर्ब नहीं कर पाती जिससे ब्लड शुगल लेवल बढ़ जाता है। मैनेजमेंट के बिना यह टाइप 2 डायबिटीज के विकास का कारण बन सकता है।
इंसुलिन संवेदनशीलता लोगों के बीच भिन्न होती है और विभिन्न जीवनशैली और आहार संबंधी कारकों के अनुसार बदल सकती है। इसमें सुधार करने से उन लोगों को फायदा हो सकता है जिन्हें टाइप 2 मधुमेह है या होने का खतरा है।
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ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders)
एनसीबीआई (NCBI) में छपी स्टडी के अनुसार ट्रांसजेंडर पुरुषों में टेस्टोस्टोरोन थेरिपी लीन मास को बढ़ाती है, फैट मास को कम करती है और इंसुलिन रेजिस्टेंस पर कोई प्रभाव नहीं डालती। जबकि ट्रांसजेंडर महिलाओं में फेमिनाइजिंग हॉर्मोन थेरिपी (एस्ट्राडियोल, एंटी-एंड्रोजन एजेंटों के साथ या बिना) लीन मास को कम करती है, फैट मास को बढ़ाती है और इंसुलिन रेजिस्टेंस को बिगाड़ सकती है। इस स्टडी में शरीर की सरंचना में परिवर्तन लगभग सभी अध्ययनों में सिलसिलेवार (Consistent) थे। ट्रांसजेंडर पुरुषों ने टेस्टोस्टेरॉन थेरिपी के चलते लीन मास खोया और फैट मास प्राप्त किया। वहीं ट्रांसजेंडर महिलाओं में ईस्ट्रोजन थेरिपी के चलते इसका उल्टा प्रभाव देखा गया।
ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) को लेकर की गई इस स्टडी का किसी भी अन्य अध्ययन ने सीधे तौर पर खंडन नहीं किया है। हालांकि, छोटी अवधि के कई छोटे अध्ययनों ने इसमें कोई बदलाव नहीं बताया। हालांकि, इंसुलिन रेजिस्टेंस के रिजल्ट्स कम सुसंगत और अनिश्चित हैं। ट्रांसजेंडर्स में हॉर्मोन थेरिपी का इंसुलिन सेंसिटिविटी पर प्रभाव को लेकर अधिक शोध की आवश्यकता है। तब तक मेडिकल प्रोफेशनल्स को ट्रांसजेंडर्स के स्वास्थ्य का ध्यान रखकर, कार्डियोवैस्कुलर रिस्क मार्कर्स को मॉनिटर करना चाहिए।
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ट्रांसजेंडर्स में हॉर्मोन थेरिपी का इंसुलिन सेंसिटिविटी पर प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) और अन्य अध्ययन
इसके अलावा भी ट्रांसजेंडर्स में हॉर्मोन थेरिपी का इंसुलिन सेंसिटिविटी पर प्रभाव को लेकर अध्ययन किए गए हैं। बैल्जियम के एक अध्ययन में पाया गया कि ट्रांसजेंडर महिलाओं में हॉर्मोन थेरिपी का असर इंसुलिन सेंसिटिविटी पर होता है। जब वे एक साल से अधिक समय से हॉर्मोन थेरिपी ले रही हो। जो मेल सेक्स से फीमेल सेक्स में ट्रांजिशियन के लिए दी जाती है। इस स्टडी में 55 ट्रांसजेंडर महिलाएं और 35 ट्रांसजेंडर पुरुष शामिल थे। ट्रांसजेंडर पुरुषों की आयु 26 वर्ष और ट्रांसजेंडर महिलाओं की आयु 34 साल के लगभग थी।
ट्रायल की शुरुआत में मेडिकेशन शुरू करने से पहले सभी प्रतिभागियों का स्वास्थ्य से संबंधित डेटा इकठ्ठा किया गया था जिसमें हाइट, वेट, लीन मास, कमर की चौड़ाई, फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज और फास्टिंग इंसुलिन की जानकारी ली गई थी। एक साल के बाद जब उनकी हॉर्मोन थेरिपी शुरू की गई सभी का मेजरमेंट फिर से लिया गया।
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ऐसा रहा रिजल्ट
रिजल्ट में पाया गया कि ट्रांसजेंडर पुरुष जो हॉर्मोन थेरिपी पर थे उन्होंने इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ी वहीं महिलाएं जो हॉर्मोन थेरिपी पर थी उनकी इंसुलिन सेंसिटिविटी कम हो गई। इस खोज के नैदानिक प्रभाव हो सकते हैं क्योंकि परिणाम बताते हैं कि ट्रांसजेंडर पुरुषों को टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का अधिक खतरा हो सकता है। निष्कर्षों की पुष्टि करने और निहितार्थों की जांच करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने पाया कि ट्रांसजेंडर पुरुषों में एक साल की हॉर्मोन थेरिपी के बाद एवरेज बॉडी वेट 63.1kg से 65.9kg तक हो गया, लेकिन महिलाओं के बॉडी में वेट में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ।
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि भले ही सभी पैरामीटर्स और मार्कर्स पूरी तरह नहीं बदले, लेकिन इंसुलिन सेंसिटिविटी में बदलाव अपोजिट डायरेक्शन में हुआ है। यह बताता है कि, कम से कम हमारे अध्ययन समूह में, पुरुष महिला हॉर्मोन एक्सपोजर की तुलना में पुरुष के तहत अधिक इंसुलिन संवेदनशील थे। इस प्रकार ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) के बारे में जानकारी हमें प्राप्त होती है।
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ट्रांसजेंडर्स पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on transgenders)
ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) के बारे में जानने के बाद यह भी जान लीजिए कि हॉर्मोन थेरिपी ट्रांसजेंडर के हार्ट और फर्टिलिटी को भी प्रभावित करती है। कई बार यह स्ट्रोक का कारण भी बन सकती है। यूरोपियन हार्ट जर्नल में नए पेपर के अनुसार, डॉक्टरों ने ईस्ट्रोजन के एक वर्जन (ओरल एथिनिलोएस्ट्राडियोल) का उपयोग करना बंद कर दिया। क्योंकि 1990 के दशक के अंत में सामने आए अध्ययनों से पता चला है कि यह हॉर्मोन नसों या फेफड़ों में खतरनाक थक्कों के जोखिम में 20 गुना वृद्धि के साथ जुड़ा था। जिसे थ्रोम्बेम्बोलाइज्म (Thromboembolism) कहा जाता है। इसके अलावा भी फेमिनाइजिंग हॉर्मोन थेरिपी (Feminizing Hormone Therapy) के कुछ रिस्क हैं जो निम्न प्रकार हैं।
- हाय ट्रायग्लिसराइड (High triglycerides)
- वजन का बढ़ना (Weight gain)
- हाय पोटेशियम (hyperkalemia)
- हाय ब्लड प्रेशर (High blood pressure)
- टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 diabetes)
- ब्लड में प्रोलेक्टिन का बढ़ना (Hyperprolactinemia)
- ब्रेस्ट कैंसर (Breast cancer) का रिस्क बढ़ना
टेस्टेस्टोरॉन हॉर्मोन थेरिपी के रिस्क (Risks of Testosterone Hormone Therapy)
इसके साथ ही ट्रांसजेंडर महिलाओं को दी जाने वाली टेस्टेस्टोरॉन थेरिपी के साथ गर्भावस्था संभंव नहीं है। साथ ही यह निम्न कंडिशन्स का कारण बन सकती है।
- एरिथ्रोसाइटोसिस (Erythrocytosis)
- स्लीप एप्निया (Sleep apnea)
- कंजेस्टिव हार्ट फेलियर (Heart failure)
- मैस्क्युलिनिजिंग हॉर्मोन थेरिपी ट्रांसजेंडर्स के हार्ट पर असर डाल सकती है।
उम्मीद करते हैं कि आपको ट्रांसजेंडर्स में इंसुलिन सेंसिटिविटी पर हॉर्मोन थेरिपी का प्रभाव (Effect of hormone therapy on Insulin sensitivity in transgenders) से संबंधित जरूरी जानकारियां मिल गई होंगी। अधिक जानकारी के लिए एक्सपर्ट से सलाह जरूर लें। अगर आपके मन में अन्य कोई सवाल हैं तो आप हमारे फेसबुक पेज पर पूछ सकते हैं। हम आपके सभी सवालों के जवाब आपको कमेंट बॉक्स में देने की पूरी कोशिश करेंगे। अपने करीबियों को इस जानकारी से अवगत कराने के लिए आप ये आर्टिकल जरूर शेयर करें।
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