आंखों की ऊपरी परत की रक्षा करने वाले लेयर जो ऊतकों से मिलकर बनी होती है, उसे ही कॉर्निया कहते हैं। इसे आप विंडो भी कह सकते हैं, क्योंकि इसके जरिए ही प्रकाश आंखों में जाता है और आप कुछ देख पाते हैं। आंसू कॉर्निया को बैक्टीरिया, वायरस और फंगी से बचाते हैं, लेकिन कई बार तमाम कोशिशों के बाद भी संक्रमण के कारण कॉर्निया में घाव हो जाता है, जो कॉर्नियल अल्सर कहलाता है। कॉर्नियल अल्सर क्यों होता है और इसकी पहचान कैसे की जा सकती है जानने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल।
कॉर्नियल अल्सर आंख के कॉर्निया में होने वाला घाव है जो आमतौर पर संक्रमण के कारण होता है। छोटी सी चोट या लंबे समय तक कॉन्टेक्ट लेंस पहनने से भी संक्रमण हो सकता है और यही संक्रमण अल्सर का कारण बनता है। यह दर्दनाक होता है, इसकी वजह से आंखें लाल हो जाती हैं और आंखों की रोशनी भी जा सकती है।
इसका मुख्य कारण है संक्रमणः
यह इंफेक्शन कॉन्टेक्ट लेंस पहनने वालों को होता है। यह एक तरह का अमीबा संक्रमण है और दुर्लभ मामलों में ही इससे आंखों की रोशनी जा सकती है।
पौधे या पौधे से संबंधित किसी चीज से कॉर्निया में चोट लगने पर यह फंगल इंफेक्शन विकसित होता है। यह कमजोर इम्यून सिस्टम वालों में भी विकसित हो सकता है।
बेल्स पाल्सी जैसे डिसऑर्डर जो पलकों को प्रभावित करते हैं और इसकी वजह से आपकी आंखें पूरी तरह से बंद नहीं हो पाती। जिससे कॉर्निया ड्राई हो सकता है और अल्सर की संभावना बढ़ जाती है।
हरपीज सिंप्लेक्स केराटाइटिस एक वायरल संक्रमण है जो आंखों में बार-बार घाव का कारण बनता है। यह कई वजहों से हो सकता है जैसे तनाव, सूरज की रोशनी के लंबे समय तक रहना या कमजोर इम्यून सिस्टम।
कॉर्नियल अल्सर के अन्य कारणों में शामिल हैः
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कॉर्नियल अल्सर के लक्षण से पहले आपको संक्रमण के लक्षण दिख सकते हैं। संक्रमण के लक्षणों में शामिल हैः
कॉर्नियल अल्सर के सभी लक्षण गंभीर हैं और अंधेपन को रोकने के लिए इनका तुरंत इलाज किया जाना चाहिए। कुछ कॉर्नियल अल्सर इतने छोटे होते हैं कि बिना मैग्निफिकेशन के नहीं दिखते, लेकिन आपको इनके लक्षण महसूस होंगे।
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आई स्पेशलिस्ट आंखों की जांच के दौरान कॉर्नियल अल्सर का निदान करता है। कॉर्नियल अल्सर की जांच के लिए डॉक्टर फ्लोरसिन आई स्टेन टेस्ट करता है। इस टेस्ट के लिए डॉक्टर ब्लोटिंग पेपर पर ऑरेंज डाई की की बूंद डालता है। इसके बाद डॉक्टर ब्लोटिंग पेपर को आंख की सतह से टच करके डाई को आंख में स्थानांतरित करता है। इसके बाद डॉक्टर माइक्रोस्कोप जिसे स्लिट लैंप कहा जाता है कि रोशनी में क्षतिग्रस्त हिस्से की जांच करता है। जब यह लाइट कॉर्निया पर पड़ती है तो क्षतिग्रस्त हिस्सा हरा दिखाई देता है। अगर डॉक्टर को लगता है कि किसी इंफेक्शन की वजह से आपको कॉर्नियल अल्सर हुआ है, तो वो आंख से टिशू का सैंपल ले सकता है।
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क्योंकि कॉर्नियल अल्सर की मुख्य वजह संक्रमण है इसलिए डॉक्टर आपको एंटीबायोटिक आईड्रॉप देगा। यदि संक्रमण गंभीर है तो आपको हर घंटे आईड्रॉप डालने की जरूरत है। दर्द से राहत के लिए ओरल पेन किलर दिया जा सकता है। दर्द कम करने के लिए खास आईड्रॉप भी दिया जा सकता है जिससे आंखों की पुतलियां फैल जाती हैं।
यदि आपने कॉन्टेक्ट लेंस पहना है, तो डॉक्टर उसे निकाल देगा। यदि डॉक्टर को संक्रमण का संदेह है तो वह आपकी आंखों पर पैच नहीं रखेगा। पैच रखने से बैक्टीरिया और अधिक बढ़ते हैं।
यदि दवाओं से कॉर्नियल अल्सर ठीक नहीं होता या इससे कॉर्निया में छेद होने का खतरा होता है तब इमरजेंसी सर्जरी की जरूरत होती है, जिसमें कॉर्नियल ट्रांस्प्लांट किया जाता है। इलाज के दौरान डॉक्टर आपको इनसे परहेज के लिए कह सकता हैः
गंभीर मामलों में कॉर्नयिल ट्रांस्प्लांट की जरूरत होती है। इसमें सर्जिकल प्रक्रिया के दौरान क्षतिग्रस्त कॉर्नियल टिशू को हटाकर उसकी जगह डोनर स्वस्थ टिशू डाल दिए जाते हैं। आमतौर पर यह सर्जिकल प्रक्रिया सुरक्षित है, लेकिन किसी भी अन्य सर्जरी की तरह ही इसमें भी कुछ जोखिम जुड़े हैं। सर्जरी के बाद कुछ इस तरह की जटिलताएं हो सकती हैः
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कॉर्नियल अल्सर से बचाव का सबसे अच्छा तरीका यह है कि जैसे ही आपको आई इंफेक्शन के कोई लक्षण दिखें या आंख में चोट लग जाए, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं। इसके अलावा अन्य सावधानियां बरतें जैसेः
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की कोई भी मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है, अधिक जानकारी के लिए आप डॉक्टर से संपर्क कर सकते हैं।
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