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जानें क्या है चारकोट फुट और हड्डियों को कैसे करता है कमजोर

के द्वारा मेडिकली रिव्यूड डॉ. प्रणाली पाटील · फार्मेसी · Hello Swasthya


Satish singh द्वारा लिखित · अपडेटेड 25/08/2021

    जानें क्या है चारकोट फुट और हड्डियों को कैसे करता है कमजोर

    चारकोट फुट/ज्वाइंट को न्यूरोपैथिक ज्वाइंट या चारकोट (न्यूरो/ऑस्टिओ) आर्थ्रोपैथी) भी कहा जाता है। यह एक प्रकार का पांव संबंधी विकार है, जो हमारे शरीर के सॉफ्ट टिश्यू , हड्डियों और ज्वाइंट के साथ एंकल को प्रभावित करता है। इस समस्या के कारण हड्डियों की मोबिलिटी सामान्य रूप से नहीं हो पाती और भारत में लोग इसे पत्थर पांव भी कहते हैं। चारकोट फुट (Charcot Foot) के रिस्क फैक्टर को जानने के साथ कैसे इस विकार से बचा जाए और यह बीमारी न हो उसे जानने के लिए पढ़ें यह आर्टिकल।

    चारकोट फुट (Charcot Foot) क्या है?

    चारकोट फुट की समस्या में एक या दोनों पांव और एंकल सुन्न हो जाता है। इसके साथ ही पांव की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, वहीं कई मामलों में यह फ्रैक्चर और हड्डियों के डिसलोकेशन का कारण भी बनता है। बता दें कि इस अवस्था में पैर सुन्न होता है, ऐसे में पांव में फ्रैक्चर और अन्य ट्रामा के कारण होने वाले दर्द या असुविधा के बारे में व्यक्ति को पता भी नहीं चलता कि उसके पैर के साथ कुछ गलत हो गया है। ऐसे में खड़े होने और चलने से व्यक्ति के पैर की हड्डियों को और भी ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है।

    विकार के कारण हड्डियां और ज्वाइंट कमजोर होने पर हड्डियां कोलैप्स और डिसलोकेट होने के कारण पांव का आकार पूरी तरह बदल सकता है। पांव रॉकर बॉटम फुट (पथरीला पांव) की तरह दिखने लगता है। वहीं पैर के तलवे का छोर पत्थर की तरह दिखने लगता है व फैल जाता है। चारकोट फुट (Charcot Foot) के कारण पैर में घाव भी हो जाते हैं, ऐसे में घाव आसानी से भर नहीं पाते। यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो आगे चलकर यह समस्या गंभीर अपंगता, टेढ़े-मेढ़ें पांव के साथ अंग विच्छेदन का कारण बन सकती है।

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    इलाज नहीं किया गया तो होंगे इस प्रकार के बदलाव

    चारकोट फुट (Charcot Foot) होने की वजह से हमारे पैर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। कई मामलों में यह टूट भी सकती हैं। इस कारण मरीज में यह लक्षण भी दिख सकते हैं, जैसे

    • पैर की उंगलियां मुड़ने लगती हैं
    • पैर सामान्य शेप से अलग दिखने लगता है
    • एंकल मुड़ने के साथ अस्थिर हो जाता है
    • शूज के विपरित हड्डियां दबने लगती हैं : इस कारण पैर की स्किन में घाव हो जाते हैं, जो इंफेक्शन का कारण बनते हैं। अगर व्यक्ति को डायबिटीज है, तो उसके कारण खराब ब्लड फ्लो होने की वजह से मरीज का इंफेक्शन ठीक होने में काफी समय लगता है। यदि लंबे समय तक पैर में इंफेक्शन रहता है तो उस स्थिति में पैर काटने की जरूरत बन जाती है, ताकि इंफेक्शन और ज्यादा न बढ़ें।

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    चारकोट फुट (Charcot Foot) के कारण होने वाले लक्षणों पर नजर

    चारकोट फुट (Charcot Foot) होने पर मुख्य रूप से मरीज में कुछ खास लक्षण दिखते हैं। इसे तीन अवस्थाओं से आसानी से समझा जा सकता है।

    • स्टेज एक में टूटती हैं हड्डियां : फ्रेगमेंटेशन और डिस्ट्रक्शन की समस्या पहले स्टेज में देखने को मिलती है। चारकोट फुट (Charcot Foot) के शुरुआती लक्षणों में देखा गया है कि मरीज के पैर या एंकल में सूजन आने के साथ लालीपन आता है। वहीं, दूसरे पैर की तुलना में प्रभावित पांव की स्किन छूने में गर्म लगती है। शुरुआत में पैर के सॉफ्ट टिश्यू में सूजन आने के कारण छोटी हड्डियों में फ्रैक्चर शुरू हो जाता है। इस कारण पैर के आसपास की हड्डियां टूटने लगती हैं, पैर के ज्वाइंट अपनी स्थिरता को खोते हैं, नतीजतन डिसलोकेशन की परेशानी होती है। अंतत: हड्डियां पूरी तरह से नर्म हो जाती हैं। इस स्टेज के तहत पैर की निचली सतह फ्लैट हो जाती है और पत्थर की तरह दिखने लगती है। यदि बीमारी से ग्रसित मरीज का इलाज न किया गया तो करीब एक साल तक यही लक्षण देखने को मिलते हैं।
    • दूसरे स्टेज में लक्षणों में आती है कमी : दूसरे स्टेज में हमारा शरीर बीमारी को ठीक करने का प्रयास करता है। वहीं पैर के डिस्ट्रक्शन में कमी आती है, नतीजतन कम सूजन, कम लालीपन और कम गर्माहट जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
    • तीसरे स्टेज में ठीक होती है हड्डियां, लेकिन वास्तविक शेप में नहीं आ पाती : तीसरे और फाइनल स्टेज में पैर की हड्डियां ठीक होती है। लेकिन, इस परिस्थिति के बाद वो अपनी वास्तविक स्थिति में नहीं पहुंच पाती हैं। इस स्थिति के बाद फिर कोई अन्य डैमेज नहीं होता है। लेकिन पैर में होने वाले घाव आगे चलकर अल्सर का रूप ले सकते हैं, यह ज्यादा घातक हो सकते हैं। कई मामलों में इसके कारण पैर को काटकर अलग भी करना पड़ सकता है।

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    इन कारणों से हो सकती है चारकोट फुट (Charcot Foot) की समस्या

    चारकोट फुट (Charcot Foot) की समस्या उन लोगों में देखने को अधिक मिलती है, जिनका पैर और तलवा सुन्न होता है। नर्व डैमेज के कारण सेनसेशन का एहसास नहीं होने की समस्या को पेरीफेरल न्यूरोपैथी भी कहा जाता है। चारकोट फुट डायबिटीज के दुष्परिणामों के कारण होने वाली बीमारी है। लेकिन चारकोट फुट (Charcot Foot) इन कारणों से भी हो सकती है, जैसे

    • इंफ्लेमेटरी कंडीशन जैसे सारकॉइडोसिस (sarcoidosis ) और सोरायसिस
    • पार्किंसन डिजीज (Parkinson’s disease)
    • एचआईवी (HIV)
    • इंफेक्शन, ट्रामा और पेरीफेरल नर्व में डैमेज
    • पोलियो (Polio)
    • सी-रिंगोमेलिया (Syringomyelia)
    • सिफलिस
    • लेप्रोसी
    • ड्रग एब्यूज
    • एलकोहॉल यूज डिसऑर्डर (Alcohol use disorder)

    जानें कैसे किया जाता है बीमारी का पता

    चारकोट फुट (Charcot Foot) की बीमारी होने की स्थिति में स्टेज 1 में बीमारी का आसानी से पता नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि डॉक्टर को अपनी हेल्थ कंडीशन की सही-सही जानकारी दी जाए। इसके बाद जब दूसरे स्टेज में बीमारी बढ़ने लगती है, तो ऐसे में कई इमेजिंग टेक्नोलॉजी जैसे एक्स-रे और एमआरआई ट्रीटमेंट काफी लाभदायक होते हैं। वहीं बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर फिजिकल एग्जामिनेशन कर न्यूरोपैथी के लक्षणों की जांच कर सकता है। वहीं मरीज की मेडिकल हिस्ट्री को जानने के साथ इन टेस्ट को करवाने की सलाह दे सकता है जैसे,

    • सीम्स वेनस्टेन 5.07/10 ग्राम मोनोफिलामेंट टेस्ट (Semmes-Weinstein 5.07/10 gram monofilament test) करवाने की सलाह देते हैं। इसकी मदद से प्रेशर और टच की सेंसिटिविटी का पता किया जाता है
    • पिनप्रिक टेस्ट (pinprick test) से मरीज के दर्द को एहसास करने की जांच की जाती है, पता किया जाता है कि प्रभावित अंग में उसे दर्द महसूस हो भी रहा है या नहीं
    • न्यूरोमीटर टेस्ट (neurometer test) इसके जरिए पेरिफेरल नर्व डिस्फंक्शन और डायबिटिक न्यूरोपैथी की जांच की जाती है

    कई मामलों में तो डॉक्टर टेंडन रिफ्लेक्सेस की जांच कर मसल्स टोन और पैर व तलवों की स्ट्रेंथ की जांच करते हैं।

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    जानें कैसे किया जाता है चारकोट फुट का ट्रीटमेंट (Treatment for Charcot Foot)

    चारकोट फुट के इलाज की बात करें तो शुरुआती दिनों में इसकी सूजन और गर्माहट को कम करने के लिए इलाज किया जाता है। वहीं बीमारी का पता चलने के बाद पैर के ऊपर किसी भी प्रकार का वजन डालने से पूरी तरह परहेज किया जाता है, ताकि कोई अतिरिक्त डैमेज न हो। इसे ऑफ लोडिंग भी कहा जाता है।

    कई लो-टेक्नोलॉजी के साथ नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट भी चारकोट फुट (Charcot Foot) को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं, इसके तहत

    • खास प्रकार के स्प्लिंट को पहनने के साथ वॉकिंग ब्रेस और कस्टमाइज्ड वॉकिंग बूट का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है
    • पैर पर पड़ने वाले सभी प्रकार के वजन को कम कर इलाज किया जाता है, इसके तहत मरीज को व्हील चेयर, बैसाखी और वॉकिंग स्कूटर का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है
    • बीमारी से पीड़ित मरीज को ऑर्थोटिक ब्रेस का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, ताकि पैर का एलाइनमेंट सही हो सके
    • कांटेक्ट कास्ट को पहनने की सलाह दी जाती है जो पैर में आसानी से फिट हो जाए

    बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए इस प्रकार का सपोर्ट उन्हें कुछ महीनों के लिए अपनाना होता है। इस दौरान डॉक्टर से भी समय-समय पर चिकित्सीय सलाह लेने की जरूरत पड़ती है, डॉक्टर मरीज की नियमित जांच कर सही सलाह देते हैं। यदि एक समय पर एक पैर में बीमारी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो ऐसे में डॉक्टर दूसरे पैर की भी जांच करते हैं, ताकि उसमें किसी प्रकार का लक्षण होने पर समय पर इलाज किया जा सके। एक बार पैर के ठीक होने पर डॉक्टर मरीज को थेराप्यूटिक शूज और डायबिटिक फुटवियर (therapeutic shoes or diabetic footwear) पहनने की सलाह देते हैं। ऐसा कर डॉक्टर चारकोट फुट (Charcot Foot) के लक्षणों को कम करते हैं, वहीं भविष्य में भी बीमारी न हो उसकी तैयारी करते हैं।

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    सर्जरी कर किया जाता है चारकोट फुट का इलाज (Treatment for Charcot Foot)

    बीमारी से ग्रसित मरीज के पैर को यदि किसी प्रकार का सपोर्ट न दे पाए, पैर ठीक से खड़ा भी न हो पाए तो उस स्थिति में डॉक्टर मरीज को सर्जरी की सलाह देते हैं। वहीं यदि मरीज के पैर में किसी प्रकार का सोर या अल्सर है तो उस स्थिति में भी डॉक्टरी सलाह की आवश्यकता पड़ती है।

    वैसे तो सर्जरी की आवश्यता तभी पड़ती है, जब अल्सर हड्डियों में चला जाता है। ऐसे में इन डेड टिश्यू को काटकर अलग किया जाता है, ताकि ये शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित न कर सके। कुछ लोग ऐसे हैं जो बीमारी का इलाज नहीं कराते हैं। ऐसे में यह बीमारी और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। पैर की संरचना बिगड़ने के साथ इंफेक्शन का खतरा भी कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। ऐसे मरीजों का आगे चलकर पांव काटना पड़ता है और उन्हें प्रोस्थेसिस (prosthesis ) के सहारे जीवन जीना पड़ता है। इसलिए जरूरी है कि बीमारी का सही समय पर इलाज कराया जाए। इन सर्जिकल तकनीक से मरीज का किया जाता है इलाज;

    • प्रोस्थेटिक फिटिंग: इसके तहत सर्जरी कर बीमारी से प्रभावित पैर को हटा दिया जाता है।
    • एक्सोस्टेक्टोमी (Exostectomy) : इसके तहत प्लैंटर प्रोमिनेंसे को ही हटा दिया जाता है, ताकि अल्सर न हो।
    • एंकल फ्यूजन : इस प्रॉसिजर के तहत स्क्रू, रॉड और प्लेट लगाकर एंकल के ज्वाइंट को मजबूती प्रदान की जाती है, वहीं मोशन को रोका जाता है। ताकि और ज्यादा समस्या न हो।
    • रिकंस्ट्रक्टिव ऑस्टियोटॉमी (Reconstructive osteotomy) : इस सर्जरी को रियल लिगामेंट बोन सर्जरी (realignment bone surgery) भी कहा जाता है। इस प्रक्रिया के तहत पैर और एंकल हड्डियों की लेंथ को और भी ज्यादा शॉर्ट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत सर्जन हड्डियों को काटने के साथ हड्डियों में कील ठोक उन्हें जोड़ते हैं।

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    चारकोट फुट डेवलप्मेंट (Charcot Foot Development) का ऐसे किया जाता है इलाज

    कुछ केस में चारकोट फुट का इलाज संभव है, जैसे

    • वैसे मरीज जो डायबिटीज की बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें न्यूरोपैथी होने की संभावना भी रहती है। वैसे लोगों को जितना संभव हो पैर को बचाना चाहिए, कोशिश यही रहनी चाहिए कि पैर में किसी प्रकार का ट्रामा और डैमेज न हो।
    • यदि आपको डायबिटीज है तो अपने ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल में रखते हुए नर्व डैमेज को ठीक किया जा सकता है
    • बीमारी का पता करने के लिए बेहतर यही है कि सेल्फ एग्जामिनेशन करना चाहिए, ताकि शुरुआती अवस्था में ही बीमारी का पता चल सके
    • नियमित अंतराल पर डॉक्टरी सलाह लेने के साथ जांच कराते रहना चाहिए।

    क्या इससे किया जा सकता है बचाव, जानें

    चारकोट फुट (Charcot Foot) काफी विनाशकारी स्थिति है, यदि किसी हो यह बीमारी हो जाए तो उसका पांव डैमेज हो सकता है, कई मामलों में तो पैर को काटना तक पड़ सकता है। कुछ मामलों में बीमारी से बचाव संभव है। बेहतर यही होगा कि बीमारी का शुरुआती अवस्था में ही पता किया जाए। ताकि डैमेज को काफी हद तक बचाया जा सके। शुरुआती अवस्था में ही बीमारी का पता चल जाए तो लो टेक्नोलॉजी के साथ कंजरवेटिव ट्रीटमेंट को अपनाकर बीमारी से बचाव किया जा सकता है। वहीं कुछ मामलों में सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। समय-समय पर पैर की सूजन, लालीपन और गर्माहट के साथ घाव की जांच की जानी चाहिए, पैर की अच्छे से सफाई करने के साथ हमेशा सॉक्स और शूज पहनना चाहिए। इन आदतों को अपनाकर बीमारी को बढ़ने से हम रोक सकते हैं। जरूरी है कि बीमारी को लेकर यह जागरुकता अपनाई जाए।

    डिस्क्लेमर

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