परिचय
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज कैसे करें?
थायरॉइड इंसान के गले में पाए जाने वाली एक ग्रंथि होती है, जो शरीर के विभिन्न कार्यों के लिए जिम्मेदार होती है। थायरॉइड ग्रंथि से थायरॉइड हॉर्मोन स्रावित होता है, जिससे शरीर का मेटाबॉलिज्म नियंत्रित होता है। वहीं, थायरॉइड की कमी होने से घेंघा जैसी बीमारी हो जाती है। थायरॉइड का इलाज केमिकल से बनी दवाओं से बहुत लोग करते हैं। लेकिन जिन्हें आयुर्वेद पर भरोसा है, वे लोग थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज कराना चाहते है। इस आर्टिकल में आप थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सभी बातें जानेंगे।
और पढ़ें: थायरॉइड के बारे में वो बातें जो आपको जानना जरूरी हैं
थायरॉइड क्या है?
थायरॉइड हमारे गले में पाई जाने वाली एक तरह की ग्रंथि होती है। थायरॉइड गले में बिल्कुल सामने की ओर होती है। थायरॉइड ग्रंथि तितली के आकार की होती है और आपके शरीर के मेटाबॉल्जिम यानी कि उपापचयी क्रियाओं को नियंत्रण करती है। थायरॉइड ग्रंथि आइयोडीन की मदद से कई जरूरी हॉर्मोन भी पैदा करती है। थायरॉइड ग्रंथि से निकलने वाला थायरॉक्सिन यानी टी-4 एक ऐसा ही मुख्य हॉर्मोन है। थायरॉक्सिन को खून के द्वारा शरीर के टिश्यू में पहुंचाने के बाद इसका कुछ हिस्सा ट्रायोडोथायरोनाइन हॉर्मोन, जोकि टी-3 हॉर्मोन के रूप में बदल जाता है। ये सबसे सक्रिय हॉर्मोन में माना जाता है।
आयुर्वेद में थायरॉइड क्या है?
आयुर्वेद में थायरॉइड का जिक्र हुआ है, लेकिन थायरॉइड के रूप में नहीं हुआ है। बल्कि गले के सूजन के रूप में ही इसका जिक्र किया गया है। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत और चरक दोनों ने अपने ग्रंथों में गले में सूजन के ‘गलगण्ड’ के रूप में जिक्र किया है। सुश्रुत ने गलगण्ड को पैरोटिड ग्रंथि में सूजन बताया है और चरक ने गले में एंडोक्राइन ग्ंथि में सूजन का वर्णन किया है। हमारे शरीर में वात और पित्त के असंतुलित होने पर हाइपरथायरॉइडिज्म और कफ व वात में असंतुलन होने से हाइपोथाइरॉइडिज्म हो जाता है। जिसके बाद घेंघा रोक, अनियमित पीरियड्स आदि की समस्या हो जाती है।
और पढ़ें: थायरॉइड पर कंट्रोल करना है, तो अपनाएं ये तरीके
थायरॉइड प्रकार क्या हैं?
- हाइपोथायरॉइडिज्म
- हाइपरथायरॉइडिज्म
- गोइटर
- थायरॉइड नॉड्यूल (गांठ)
- थायरॉइड कैंसर
[mc4wp_form id=’183492″]
लक्षण
थायरॉइड के लक्षण
हाइपोथायरोडिज्म में ये निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं :
- आलस आना
- ड्राई स्किन
- कब्ज
- ठंड लगना
- मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द
- डिप्रेशन
- महिलाओं में पीरियड्स के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग
- कमजोरी महसूस होना
हाइपरथायरोडिज्म में ये निम्न लक्षण दिखाई दे सकते हैं :
- घबराहट
- हार्ट बीट तेज होना
- कमजोरी लगना
- गर्मी बदार्शत न कर पाना
- बार-बार मल त्याग
- ज्यादा पसीना आना
- अचानक वजन घटना
और पढ़ें: Thyroid Nodules : थायरॉइड नोड्यूल क्या है?
कारण
थायरॉइड डिसऑर्डर के कारण हैं?
थायरॉइड होने के कई कारण हो सकते हैं:
- गोइटर होने पर थायरॉइड होने की आंशका बढ़ जाती है
- 30 साल से ज्यादा उम्र होने पर भी हो सकता है थायरॉइड
- टाइप 1 डायबिटीज या कोई ऑटोइम्यून डिजीज होने पर।
- ऑटोइम्यून थायरॉइड पहले किसी को परिवार में हुआ हो
- महिलाओं को थायरॉइड का खतरा ज्यादा होता है
- बढ़ता वजन या मोटापा
और पढ़ें: थायरॉइड और वजन में क्या है कनेक्शन? ऐसे करें वेट कम
इलाज
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज कई आयुर्वेदिक थेरिपी के साथ-साथ जड़ी-बूटियों और औषधियों से होता है :
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज थेरिपी या कर्म द्वारा
वमन कर्म
वमन का मतलब होता उल्टी। वमन कर्म के द्वारा आयुर्वेद में पेट को साफ कराया जाता है। इससे शरीर के अंदर से सभी प्रकार के टॉक्सिन निकल जाते हैं। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि थायरॉइड एक कफ और पित्त संबंधी समस्या है तो ऐसे में जब कफ और पित्त की मात्रा शरीर में ज्यादा हो जाती है तो उल्टी करा के उसके लेवल को नियंत्रित किया जाता है।
स्वेदन कर्म
स्वेदन कर्म का मतलब होता है स्वेटिंग थेरिपी। इस थेरिपी में व्यक्ति के शरीर से पसीना निकाला जाता है, जिसके द्वारा शरीर से टॉक्सिन निकालने की प्रक्रिया पूरी की जाती है। इसमें तेल, घी, दूध या काढ़े से भरे टब में लेटा कर स्वेदन क्रिया को पूरा किया जाता है। ये हाइपोथायरॉइड में किया जाने वाला थायरॉइड डिजीज का आयुर्वेदिक इलाज है।
लेपन विधि
लेपन विधि में गले के सूजन को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके लिए आंवला और जौ के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा भारंगी की जड़ और चावल का पानी मिला कर लेप बना कर गले में सूजन वाले स्थान पर लगाया जाता है।
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज जड़ी-बूटी के द्वारा
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज निम्न जड़ी-बूटियों के द्वारा किया जाता है :
वच (Sweet Flag)
वच एक औषधीय जड़ी-बूटी है, जो सांस, नर्वस सिस्टम, पाचन तंत्र और प्रजनन संबंधी समस्याओं के लिए मददगार साबित होती है। वच का प्रयोग वात और कफ के संतुलन को ठीक करने के लिए किया जाता है। वच को काढ़े, पेस्ट, पाउडर किसी भी तरीके से लिया जा सकता है।
अश्वगंधा
अश्वगंधा एक प्रचलित जड़ी बूटी है, जो हमारे शरीर में इम्यूनिटी बढ़ाने में मददगार होती है। आचार्य सुश्रुत ने गलगण्ड के इलाज के लिए बहुत प्रभावी बताया है। अश्वगंधा के पाउडर को घी, तेल, काढ़े आदि के रूप में सेवन किया जा सकता है। लेकिन अश्वगंधा का इस्तेमाल करने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर संपर्क कर लें।
निर्गुंडी
निर्गुंडी एक औषधीय जड़ी-बूटी है, जो हाइपोथायरॉइडिज्म के इलाज के लिए उपयुक्त माना जाता है। निर्गुंडी की काढ़ा थायरॉइड के इलाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा आप निर्गुंडी के पाउडर को शहद, चीनी या पानी के साथ मिश्रण बना कर सेवन कर सकते हैं।
और पढ़ें: गले में इस तरह की परेशानी हो सकती है हायपरथायरॉइडिज्म की बीमारी
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज औषधियों के द्वारा
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज निम्न औषधियों के द्वारा होता है :
गोमूत्र हरीतकी वटी
हरीतकी को हरड़ या हर्रे कहते हैं। हरड़ में गाय का मूत्र मिला कर गोमूत्र हरीतकी वटी बनाई जाती है। गोमूत्र हरीतकी वटी का इल्सेतमाल सूजन को कम करने के लिए किया जाता है। गोमूत्र हरीतकी वटी थॉयरॉइड में गले में सूजन को कम करती है। इसे आप गुनगुने पानी के साथ या अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ले सकते हैं।
दशमूल क्वाथ या काढ़ा
आयुर्वेद में काढ़ा को क्वाथ कहा जाता है। दशमूल क्वाथ बेल, गोक्षुरी, पटली आदि सामग्रियों को मिलाकर बनाया जाता है। वात के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों में दशमूल क्वाथ का इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ ही दशमूल को दर्द निवारक और पीरियड्स को नियमित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इस काढ़े को आप गुनगुने पानी में मिला कर पी सकते हैं।
चित्रकादि वटी
चित्रकादि वटी चित्रक जड़ी-बूटी की जड़ से बनती है। थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज करते समय चित्रकादि वटी को जरूर शामिल किया जाता है। चित्रकादि वटी में चित्रक की जड़, त्रिकुट, हींग, अजमोद, जौ, पिप्पली की जड़ आदि जड़ी-बूटी मिला कर गोलियां बनाई जाती है।
कंचनार गुग्गुल
कंचनार गुग्गुल कंचनार पेड़ की छाल, त्रिकुट, सोंठ, काली मिर्च, गुग्गुल, इलायची और दालचीनी के मिश्रण की गोलियां बनाई जाती है। गुनगुने पानी के साथ कंचनार गुग्गुल की गोलियां ली जा सकती हैं, लेकिन अपने डॉक्टर से परामर्श के बाद ही आप इसका सेवन करें।
थायरॉइड डिसऑर्डर या किसी अन्य बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज करने पर आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि आप इसे किसी डॉक्टर या एक्सपर्ट के परामर्श के बाद ही अपना रहे हों। क्योंकि, बेशक आयुर्वेदिक औषधियों का कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन इसके दुष्प्रभावों से इंकार भी नहीं किया जा सकता है। अगर आप प्रेग्नेंट महिला हैं या फिर आपको दिल की बीमारी, किडनी की बीमारी या मानसिक बीमारी है, तो किसी भी आयुर्वेदिक औषधि का उपयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें।
और पढ़ें: प्रेग्नेंसी में हायपोथायरॉइडिज्म डायट चार्ट, हेल्दी प्रेग्नेंसी के लिए करें इसे फॉलो
जीवनशैली
आयुर्वेद के अनुसार आहार और जीवन शैली में बदलाव
आयुर्वेद के अनुसार थायरॉइड के लिए डायट और लाइफ स्टाइल में बदलाव बहुत जरूरी है। हेल्दी लाइफ स्टाइल और हेल्दी खाने के लिए :
क्या करें?
- योग भी थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज है। थायरॉइड से राहत पाने के लिए प्राणायाम करें। प्राणायाम में आप कपालभाती और सूर्यभेदन आसान को जरूर करें।
- दिन में नींद ना लें। इससे आपके हॉर्मोन में बदलाव हो सकते हैं।
- समुद्री नमक या सी सॉल्ट खाएं।
- बाजरा, जौ, मूली, रागी, ओट्स, मूंग दाल, परवल, छाछ, गुनगुना पानी का सेवन करें। इसके साथ ऐसी चीजें खाएं तो शरीर में कफ के लेवल को कम करे।
क्या ना करें?
- तली-भूनी चीजें खाने से करें परहेज।
- दही, मैदा, आलू, दूध, काला चना, मटर आदि कफ बढ़ाने वाली चीज ना खाएं।
- बेकिंग चीजें ना खाएं।
- कम मात्रा में भोजन लें और दिन भर कुछ-कुछ ना खाते रहें।
थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज आप ऊपर बताए गए तरीकों से कर सकते हैं। लेकिन आपको ध्यान देना होगा कि आयुर्वेदिक औषधियां और इलाज खुद से करने से भी सकारात्मक प्रभाव नहीं आ सकते हैं। इसलिए आप जब भी थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज के बारे में सोचें तो डॉक्टर का परामर्श जरूर ले लें। उम्मीद करते हैं कि आपके लिए थायरॉइड का आयुर्वेदिक इलाज की जानकारी बहुत मददगार साबित होगी।
[embed-health-tool-ovulation]