क्या है अध्ययन
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 237 बोस्टन स्थित मां और उनके शिशुओं को निगरानी में रखा और देखा कि गर्भावस्था के दौरान मां किस तरह के दूषित कणों के संपर्क में थी। इसके लिए सेटेलाइट डेटा और वायु प्रदूषण मॉनीटर का उपयोग किया गया। छह महीने की उम्र में शिशुओं के हृदय की दर और सांस का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने पाया कि गर्भावस्था के दौरान मां जितने ज्यादा वायु प्रदूषण के संपर्क में थी उन बच्चों में तनाव के समय शिशु की हृदय गति में कमी उतनी ज्यादा थी।
प्रदूषण से कम होती जिंदगी
1998 में हुए एक अध्ययन में सामने आया कि इंडो-गंगेटिक प्लेन्स (IGP) क्षेत्र के बाहर रहने वाले लोगों ने अपने जीवन के लगभग 1.2 साल वायु प्रदूषण के कारण कम कर दिए थे, वायु गुणवत्ता को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशा-निर्देशों का पालन करके इसे रोका जा सकता था। वहीं 2016 में गैर-आईजीपी राज्यों में रहने वालों ने आईजीपी क्षेत्र में 7 वर्षों की तुलना में अपने जीवन के लगभग 2.6 साल खो दिए।
विश्लेषण जारी करने के दौरान, सहारा हॉस्पिटल लखनऊ के चेस्ट सर्जन डॉ गिरिश कुमार ने वायु प्रदूषण के चलते स्वास्थ्य पर होने वाले असरको एक चिंताजनक विषय बताया है। उन्होंने कहा, “यह दिल्ली में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है। पिछले 10 सालों में लाख कोशिशों के बाद भी वायु प्रदूषण में किसी तरह का सुधार नहीं हुआ है। मैं 28 साल के नॉन स्मोकर को चरण 4 फेफड़ों के कैंसर के साथ जूझते देख रहा हूं। यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक अनुभव है। मुझे इस बात पर गुस्सा भी आता है और चिंता भी होती है कि हम वायु प्रदूषण की वजह से युवा लोगों को खो रहे हैं। ”
1988 में 90 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर के मामले धूम्रपान करने वालों में थे, लेकिन अब गैर-धूम्रपान करने वालों में 50% ऐसे मामले देखे जा रहे हैं। “वायु प्रदूषण एक ग्रुप 1 कार्सिनोजेन है। प्रदूषित हवा में सिगरेट के धुएं की तरह नुकसान करने वाले पदार्थ हैं।
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ईपीआईसी ने इस साल के शुरू में दिल्ली के लिए एक समान अध्ययन जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम(NCAP) लागू होने पर दिल्ली के निवासी अपना जीवनकाल 3.35 साल बढ़ा सकते हैं। एनसीएपी(NCAP) का टार्गेट है कि पीएम 2.5 (ठीक, सम्मानित प्रदूषण कणों) को बीस से तीस प्रतिशत तक कम किया जा सके।