
पूरी दुनिया की नजरें और दिमाग सिर्फ उस खबर का इंतजार कर रही हैं, जो कि महामारी कोरोना वायरस की दवाई की जानकारी लेकर आए। लेकिन, शायद लोगों को इसके लिए थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। वहीं, कुछ दिनों पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोरोना वायरस के इलाज में प्रभावशाली देखे जाने वाले एंटी-एचआईवी ड्रग कॉम्बो को मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद पूरे देश ने इस जानकारी को लेकर थोड़ी राहत की सांस ली थी। लेकिन, इससे संबंधित एक बुरी खबर चीन से आई है, क्योंकि वहां पर हुए एक क्लिनिकल ट्रायल में उस एंटी-एचआईवी ड्रग कॉम्बो को फेल कर दिया गया है।
कोरोना वायरस की दवाई को कब मिली भारत में मंजूरी
मार्च की शुरुआत में 60 वर्ष से अधिक उम्र के एक इटालियन कपल कुछ लक्षणों के आधार पर जांच में कोरोना वायरस से ग्रसित पाया गया था। जिनको कोरोना वायरस की दवाई के रूप में एंटी-एचआईवी ड्रग लोपीनावीर और रिटोनावीर (Lopinavir and Ritonavir) का कॉम्बो दिया गया। डॉक्टरों के मुताबिक, दोनों की स्थिति सुधरने लगी थी। जिसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 60 वर्ष से अधिक उम्र के कोरोना वायरस पीड़ित लोगों को इस एंटी-एचआईवीड ड्रग कॉम्बो के उपयोग को एमरजेंसी अप्रूवल दे दिया था। हालांकि, बाद में जयपुर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में कपल में से एक 69 वर्षीय व्यक्ति की कार्डिएक अरेस्ट की वजह से मौत हो गई थी। इसी दवा का क्लिनिकल ट्रायल चीन में किया गया।
यह भी पढ़ें- नए कोरोना वायरस टेस्ट को अमेरिका से मिली ‘इमरजेंसी’ मान्यता, 10 गुना तेजी से लगाएगा संक्रमण का पता
कोरोना वायरस की दवाई से संबंधित ट्रायल में क्या पाया गया?
चीन में 199 कोविड- 19 मरीजों पर हुए ओपन लेबल ट्रायल में इस महामारी के इलाज के दौरान स्टैंडर्ड केयर की तुलना में लोपीनावीर-रिटोनावीर ड्रग कॉम्बो (कॉम्बिनेशन) के इस्तेमाल के बाद कोई खास प्रभाव नहीं देखा गया है। बल्कि, स्टडी में पाया गया कि, ट्रीटमेंट के दौरान 94 मरीजों को यह दवाई देने के बाद गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं जैसे उल्टी, डायरिया आदि का सामना करना पड़ा। हालांकि, इस दवा को देने के बाद स्टैंडर्ड केयर ट्रीटमेंट की तुलना में मरीज के आईसीयू में रहने के समय में कमी आई, लेकिन उसके अस्पताल में रहने के कुल समय में कोई अंतर नहीं आया। इस ट्रायल में शोधकर्ताओं ने उन कोरोना वायरस से गंभीर संक्रमित मरीजों को शामिल किया था। हालांकि, बेशक चीन में हुए ट्रायल में एंटी-एचआईवी ड्रग कॉम्बो के इस्तेमाल के बाद कोई खास प्रभाव नहीं देखा गया, फिर भी डब्ल्यूएचओ अभी भी लोपीनावीर और रिटोनावीर के इस्तेमाल पर ग्लोबल मेगा ट्रायल के निष्कर्षों का इंतजार कर रहा है।
यह भी पढ़ें- Coronavirus Predictions: क्या बिल गेट्स समेत इन लोगों ने पहले ही कर दी थी कोरोना वायरस की भविष्यवाणी
कैसे विकसित होती है कोई वैक्सीन
कोरोना वायरस के इलाज में एंटी-एचआईवी ड्रग कॉम्बो की प्रभावशीलता पर ट्रायल फेल हो जाने के बाद भी पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर शोध जारी है। इसे संबंध में इम्यूनिफाई मी हेल्थकेयर की को-फाउंडर और वाइस प्रेसिडेंट (प्रोडक्ट), डॉ. नादिरा ने बताया कि, किसी भी वैक्सीन को मार्केट में आने के लिए कई सख्त क्लिनिकल ट्रायल से होकर गुजरना पड़ता है। पहले फेज में वैक्सीन का कुछ दर्जन स्वस्थ स्वयंसेवकों पर परीक्षण किया जाता है, ताकि उससे होने वाले किसी भी आशंकित साइड इफेक्ट और उस वैक्सीन से जुड़ी सुरक्षा के बारे में पूरी तरह से आश्वस्त हुआ जा सके। अगर कोई भी स्वस्थ स्वयंसेवक किसी दुष्प्रभाव से नहीं गुजरता है, तो वैक्सीन को दूसरे फेज में पहुंचा दिया जाता है।
ट्रायल का दूसरा चरण
वैक्सीन के ट्रायल के दूसरे फेज में उसे कुछ बीमारी या वायरस (वर्तमान में कोरोना वायरस) से प्रभावित इलाके में मौजूद कई सौ लोगों पर टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में वैक्सीन द्वारा मरीजों के बीमारी में कमी या रोकथाम से संबंधिक डाटा इकट्ठा किया जाता है। अगर, डाटा संभावित इलाज की तरफ सकारात्मक परिणाम दिखा रहा होता है, तो इसे तीसरे फेज में भेज दिया जाता है।
ट्रायल का तीसरा चरण
एचआईवी ड्रग कॉम्बो से अलग कोरोना वायरस वैक्सीन या किसी भी वैक्सीन के ट्रायल के तीसरे फेज में उसे प्रकोप झेल रहे क्षेत्र में मौजूद कई हजार लोगों पर टेस्ट किया जाता है और इस एक्सपेरिमेंट को रिपीट भी किया जाता है। अगर, सभी ट्रायल के परिणाम सकारात्मक रहते हैं, तो इसके बाद वैक्सीन को रेगुलेटिंग बॉडी के पास मान्यता प्राप्त करने के लिए भेज दिया जाता है।
यह भी पढ़ें- कोरोना वायरस से लड़ने के लिए चाहिए हेल्दी इम्यूनिटी, क्या आप जानते हैं इस बारे में
कोरोना वायरस से बचने के लिए सामाजिक दूरी बनाना क्यों है जरूरी?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के विशेषज्ञों ने एचआईवी ड्रग कॉम्बो के अलाव एक अध्ययन से अनुमान लगाया जा रहा है कि कोरोना वायरस से बचने के लिए सामाजिक दूरी बनाने के नियम का सख्ती से पालन किया गया तो इसके मामलों को 62 फीसदी तक कम कर सकता है। इस बीमारी को फैलने से रोकने का बस एक ही उपाय ये है कि जितना हो सके लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया जाए। आईसीएमआर के अध्ययन के अनुसार, अगर सोशल डिस्टेंसिंग जैसे होम क्वारंटाइन को लागू किया गया तो भारत में 62 फीसदी मामले कम होने के अलावा इसकी वैक्सीन बनाने के भी ज्यादा मौके मिल पाएंगे।
यह भी पढ़ें- 21 दिन तक पूरे भारत में कंप्लीट लॉकडाउन, पीएम मोदी का फैसला
कोरोना वायरस की दवाई : सावधानी
कोरोना वायरस से बचने के लिए भारत सरकार ने लोगों के लिए कुछ सलाह दी है। इन एहतियात रूपी सलाह को फॉलो करने से आप कोरोना वायरस संक्रमण से काफी हद तक बच सकते हैं।
- हाथों को अच्छी तरह से धोएं।
- बेवजह लोगों से न मिलें, भीड़ न लगाएं।
- आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचें।
- छींकते या खांसते समय अपने मुंह और नाक को किसी टिश्यू पेपर या फिर कोहनी को मोड़कर ढकें।
- अगर आपको बुखार, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो रही है, तो जितनी जल्दी हो सके डॉक्टर से मिलें।
- कोरोना वायरस की दवाई के ट्रायल में फेल हो जाने के बाद जबतक कोई प्रभावशाली दवा या वैक्सीन नहीं आ जाती। तबतक अपने हेल्थ केयर प्रोवाइडर की हर सलाह मानें और पूरी जानकारी प्राप्त करते रहें।
- भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि अगर आप मास्क लगा रहे हैं तो उससे पहले अपने हाथों को एल्कोहॉल बेस्ड हैंड रब या फिर साबुन और पानी से अच्छी तरह धोएं।
- अपने मुंह और नाक को मास्क से अच्छी तरह कवर करें कि उसमें किसी भी तरह का गैप न रहे।
- एक बार इस्तेमाल किए गए मास्क को दोबारा इस्तेमाल न करें।
- मास्क को पीछे से हटाएं और उसे इस्तेमाल करने के बाद आगे से न छूएं।
- इस्तेमाल के बाद मास्क को तुरंत एक बंद डस्टबिन में फेंक दें।
हैलो स्वास्थ्य किसी भी तरह की मेडिकल सलाह नहीं दे रहा है। अगर आपको किसी भी तरह की समस्या हो तो आप अपने डॉक्टर से जरूर पूछ लें।
और पढ़ें :
इलाज के बाद भी कोरोना वायरस रिइंफेक्शन का खतरा!
कोरोना वायरस से बचाव संबंधित सवाल और उनपर डॉक्टर्स के जवाब
वर्क फ्रॉम होम : कोरोना वायरस की वजह से घर से कर रहे हैं काम, लेकिन आ रही होंगी ये मुश्किलें
हैलो हेल्थ ग्रुप चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार प्रदान नहीं करता है